विश्व मृदा दिवस, संयुक्त राष्ट्र खाद्य और कृषि संस्थान (FAO) द्वारा मिट्टी को समर्पित इस दिन को दुनिया भर में मनाया जाता है। इस अवसर पर विशेष मृदा का संरक्षण, संवर्धन तथा मृदा स्वास्थ्य के विकास का हम संकल्प लेते हैं। FAO द्वारा 5 दिसम्बर, 2014 को प्रथम विश्व मृदा दिवस संपूर्ण विश्व में मनाया गया था। 2015 को अंतर्राष्ट्रीय मृदा वर्ष के रूप में मनाया गया था। विश्व मृदा दिवस का उद्धेश्य है मिट्टी से जुड़े हर एक व्यक्ति में मिट्टी के महत्व प्रति जागरूकता बढ़ाना । इस महत्वपूर्ण संसाधन के स्थायी उपयोग को बढ़ावा देना, सुरक्षित करना तथा संवर्धन करने का उपाय बताना है।
संपूर्ण विश्व में ब्रह्माकुमारीज़ द्वारा पर्यावरण जागृति लाने तथा कृषि में सुधार के लिए किए जा रहे प्रयासों को देखते हुए UNEP में NGO के रूप में 2014 से Observer Status प्राप्त हुआ। संयुक्त राष्ट्र के FAO में Education for Rural People Project के सदस्य रह चुके थे। ब्रह्माकुमारीज़ का सहयोगी संस्थान राजयोग एज्युकेशन एण्ड रिसर्च फाउण्डेशन का कृषि एवं ग्राम विकास प्रभाग इस कार्यक्रम को आगे बढ़ाने को प्रयासरत है। संतुलित पर्यावरण के साथ मिट्टी की गुणवत्ता, मिट्टी के संरक्षण हेतु आवश्यक कदम, मिट्टी प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण की जागृति के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास के रूप में विश्व मृदा दिवस पर इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है।
भारत की ऋषि और कृषि परम्परा का देश है। भारत धरनी अध्यात्म की धरनी है और यहां की हवा पानी में अध्यात्म की खुशबू मिली हुई है। इस अनंत सृष्टि में आत्मा, परमात्मा तथा प्रकृति का सम्बन्ध बहुत ही महत्वपूर्ण है। मनुष्य प्रकृति के समन्वय से ही सुःख और दुःख का रोल प्ले करता है। जब मानव तथा प्रकृति के बीच बेहतर तालमेल रहता है, तो इस धरा पर सुख-शान्ति का माहौल बन जाता है। ऐसे सुखमय संसार के लिए हमें प्रकृति से तथा प्रकृतिपति परमात्मा से सम्बन्ध जोड़ना है। धरती माँ जो प्रकृतिपति परमात्मा का दिव्य वरदान है, उस धरती माँ का हमें विशेष ध्यान रखना चाहिए। किसानों की अज्ञानता व स्वार्थ वश अगर मिट्टी का संतुलन बिगड़ता है तो उसका विपरीत परिणाम सम्पूर्ण मानवता को सहना पड़ेगा। हमारा शरीर मिट्टी का ही शरीर है, इसलिए कहा जाता है मिट्टी से बना मानव एक दिन मिट्टी में मिल जायेगा। इस बात से हमें यही शिक्षा मिलती है कि जिस तरह हम अपनी जीवन में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए अनगिनत उपाय करते है तो क्यों न हम मिट्टी के संरक्षण के लिए भी ठोस कदम उठाएं। जब मिट्टी स्वस्थ रहेगी तो उसमें उगनेवाले सभी खाद्यान्न पौष्टिक और सात्विक होंगे जिससे हमारा शरीर भी स्वस्थ रहेगा।
इस मृदा दिवस में हमें यही संकल्प करना है कि
- हमारी धरती माँ को बंजर होने से बचाना है।
- रसायनिक खाद एवं दवाइयों के अंधाधुंध उपयोग को बंद करें।
- जैविक खाद के उपयोग से मिट्टी के सूक्ष्म जीवाणुओं को पुनर्जिवित करें।
- मिट्टी की जल धारण क्षमता को बनाये रखने का प्रयास करेंगे।
- वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर मृदा कटाव को रोकेंगे।
आइये अब, माँ धरती की पुकार सुने, परमपिता परमात्मा की प्रेरणा शाश्वत यौगिक खेती को समझें तथा अपने कर्तव्य के प्रति सचेत रहें। हमें इस धरती को सोने की चिड़िया तथा भारत को धन-धान्य संपन्न बनाना है। किसान शाश्वत यौगिक खेती को अपनाकर सहज राजयोग का अभ्यास कर, माँ धरती की सुरक्षा कर, अपनी जीवन व्यवस्था को संतुलित कर सकते हैं।
आज किसान खेती के अवशेषों को जलाते हैं माना माँ धरती की चमड़ी को ही जला देते हैं। जिससे धरती के जीवन तत्व नष्ट होते हैं तथा धरती की उर्वरक क्षमता भी नष्ट हो जाती है। मानव जीवन में मिट्टी का विशेष महत्व है क्योंकि स्वस्थ खाद्य स्वस्थ मृदा का आधार होती है। मृदा पानी का संग्रहण करती है और उसे स्वच्छ बनाती है। स्वस्थ मृदा बाढ़ एवं सूखे के खतरे को भी कम करती है। मृदा संरक्षण, खाद्य सुरक्षा तथा इंसानों के सुखद भविष्य के लिए जरूरी है। धरती अगर बलवान है तो किसान धनवान है। भारत कृषि प्रधान देश होने पर भी धरती की उर्वरा शक्ति कम होने के फल स्वरूप किसान आत्महत्या कर रहे हैं। दिन प्रतिदिन उत्पादन की लागत बढ़ती जा रही है और उत्पादन घटता जा रहा है।
वास्तव में प्राकृतिक रूप से उत्पादित वे समस्त जैव पदार्थ जो प्रायः वनस्पतियों तथा जीव जंतु के अवशेषों के सड़ने – गलने के फलस्वरूप प्राप्त होते हैं और खेतों में मिलाए जाने पर उपजाऊ शक्ति को बढ़ाते हैं तथा जैविक खादों के नाम से जाने जाते हैं। इसके अंतर्गत गोबर की खाद (कम्पोस्ट), हरी खाद, खली की खाद, वर्मी कम्पोस्ट खाद इत्यादि आते हैं। इन खादों की विशेषता है कि इनमें फसलों की वृद्धि के लिए आवश्यक समस्त सोलह मुख्य पोषक तत्व होते हैं। जो मिट्टी की उर्वरता एवं उत्पादकता को टिकाऊ बनाये रखने में सहायक होते हैं।
हरित क्रांति के पहले हमारी खेती में 4-5 प्रतिशत आरगैनिक कार्बन पाया जाता था। जो आज घटकर 0.4-0.5 प्रतिशत रह गया है। यह भविष्य में खेती के लिए घातक सिद्ध हो सकता है। जैविक खादों के उपयोग न करने से मिट्टी का स्वास्थ्य लगातार खराब होता जा रहा है। जिससे उसकी उर्वरता एवं उत्पादकता में कमी आ रही है। टिकाऊ खेती के लिए जरूरी है – कि मिट्टी की भौतिक एवं रासायनिक दशाओं में सुधार के अलावा मिट्टी में पाए जाने वाले सभी प्रकार के कीड़े-मकोड़े, केंचुए तथा सूक्ष्म जीवों के लिए अनुकूल वातावरण उपलब्ध हो। जिससे उनकी क्रियाशीलता में वृद्धि तथा फसलों की उत्पादकता बढ़े। कुछ समस्याग्रस्त मृदाओं जैसे ऊसर, क्षारीय, पथरीली एवं रेतीली भूमि में लगातार जैविक खादों के इस्तेमाल से उनकी उर्वरता एवं उत्पादकता में वृद्धि की जा सकती है। जैविक खादों में गौ-पदार्थ तथा वनस्पतियों के अवशेषों के उपयोगी गुणों के कारण मिट्टी सभी पोषक तत्वों को उपलब्ध करा सकती है। इससे फसलों की वृद्धि भी अच्छी होती है तथा मिट्टी की संरचना में सुधार होता है। यह मिट्टी को अत्याधिक गर्मी और अत्याधिक ठंडी नहीं होने देती है, उचित संतुलन बनाकर रखती है तथा जीव पदार्थों का असर कई वर्षों तक मिट्टी पर रहता है।
योगः कर्मसु कौशलम्
शाश्वत यौगिक खेती पद्धति में किसान परमात्मा का ध्यान करते हुए कर्मयोगी बनकर खेती करते है। साकारात्मक चिंतन के साथ-साथ मन की और परमात्मा की शक्तियों को माँ धरती तथा पाँचों तत्वों में समावेश किया जाता है। जैविक पद्धतियों को अपना कर फसल संरक्षण करते हैं। किसान परमात्मा का गुण व शक्तियों का संचार समस्त प्रकृति, पांच तत्व तथा समस्त जीवराशियों पर करता है। इस प्रकार पौष्टिकता के साथ शुद्ध सात्विक अन्न का अधिक उत्पादन प्राप्त करता है। जहाँ पर्यावरण भी अपने संतुलन को प्राप्त करता है। कृषि में समस्त जीवराशियाँ, वनस्पति, पांचों तत्व तथा विशेष माँ धरती परमात्म शक्ति को प्राप्त करके सतोप्रधान सुखदायी बनती हैं। जिससे स्वयं की तथा पर्यावरण की सुरक्षा होती है।
किसानों को अब शाश्वत यौगिक खेती पद्धति को अपनाकर, आत्म विश्लेषण करते हुए मृदा स्वास्थ्य पर ध्यान देने की अत्यंत आवश्यकता है। वह मिट्टी का परीक्षण कर मृदा के लिए आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति को निर्धारित करता है, आवश्यक उर्वरकों के उपयोग से कृषि में सफलता प्राप्त करता है।
इस वर्ष का थीम : मिट्टी और पानी – जीवन का स्रोत हैं
मिट्टी और पानी खाद्य उत्पादन और मानव कल्याण का आधार हैं जिनके एकीकृत प्रबंधन की आवश्यकता है। इन संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका को समझते हुए इनकी सुरक्षा के लिए सक्रिय भूमिका निभाना है। मिट्टी और पानी वह माध्यम हैं जिसमें पौधे बढ़ते हैं और आवश्यक पोषक तत्व प्राप्त करते हैं। स्वस्थ मिट्टी एक प्राकृतिक फिल्टर के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो पानी जमीन में प्रवेश करते समय पानी को शुद्ध और संग्रहित करती है।
मिट्टी का स्वास्थ्य और पानी की गुणवत्ता और उपलब्धता एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। टिकाऊ मृदा प्रबंधन प्रथाओं को लागू करने से कृषि के लिए पानी की उपलब्धता बढ़ती है। कार्बनिक पदार्थों से समृद्ध स्वस्थ मिट्टी जल धारण कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। सतत मृदा प्रबंधन तथा जल प्रबंधन के माध्यम से उपत्पादकता को बढ़ा सकते हैं। पानी की कमी से मिट्टी की जैव विविधता का नुकसान होता है। कीटनाशकों, जैविक उर्वरकों का प्रबंधन नही करने पर तथा मिट्टी के लवणीकरण से जैव विविधता नष्ट होती है जो मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए भी खतरा पैदा करती है। स्वस्थ मिट्टी वायुमंडल से कार्बन को ग्रहण करती है जिससे जलवायु परिवर्तन के प्रयासों में योगदान मिलता है।
टिकाऊ मृदा प्रबंधन प्रथाएँ – जैसे न्यूनतम जुताई, फसल चक्र, कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाना और आच्छादन, मिट्टी के स्वास्थ्य में सुधार कर कटाव और प्रदूषण को कम करती हैं और जल धारणा की शक्ति और भंडारण को बढ़ाती हैं। ये प्रथाएं मिट्टी की जैव विविधता को संरक्षित करती हैं, उर्वरता में सुधार करती हैं और धरती में कार्बन को बढ़ाने में योगदान करती हैं, जो जलवायु परिवर्तन के खिलाफ लड़ाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।