हमारी सोच, धरती और हम – विश्व पर्यावरण दिवस पर एक आध्यात्मिक चिंतन

हमारी सोच, धरती और हम – विश्व पर्यावरण दिवस पर एक आध्यात्मिक चिंतन

हर साल 5 जून को “विश्व पर्यावरण दिवस” मनाया जाता है — और यह एक वैश्विक संदेश देता है कि अब वह समय आ गया है जब मनुष्य और प्रकृति के बीच खोए हुए बैलेंस को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए।

इस वर्ष, विश्व पर्यावरण दिवस 2025 का थीम है: “विश्व स्तर पर प्लास्टिक प्रदूषण का अंत”। यह प्लास्टिक कचरे की गंभीर समस्या से निपटने का एक वैश्विक संकल्प है। हर साल 430 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक का उत्पादन होता है, जिसमें से लगभग दो-तिहाई केवल एक बार उपयोग के लिए होता है और जल्दी ही फेंक दिया जाता है। यह अल्पकालिक उपयोग की वस्तुएं नदियों और महासागरों को प्रदूषित करती हैं, हमारी फूड चेन में प्रवेश कर जाती हैं, और माइक्रोप्लास्टिक के रूप में हमारे शरीर में भी जमा हो जाती हैं।

इस ब्लॉग के माध्यम से, हम आपको नीतियों (पॉलिसी) और सफाई अभियानों के आगे, पर्यावरण असंतुलन के अन्य गहरे कारणों को समझने का निमंत्रण देते हैं। क्योंकि सच्चा परिवर्तन तभी आता है जब बाहरी कार्यों के साथ-साथ आंतरिक जागरूकता भी जुड़ी हुई हो।

अक्सर हम पर्यावरण में बदलाव को सिर्फ भौतिक या नीतियों के नजरिए से ही देखते हैं। लेकिन एक और गहरी सूक्ष्म परत भी होती है जो हैहमारे थॉट्स, फीलिंग्स और अवेयरनेस की।

क्या हो अगर हमारे सोचने, महसूस करने का तरीका व हमारे वाईब्रेशन भी नेचर को प्रभावित करते हों?

क्या हो अगर हमारा आंतरिक संसार ही हमारे बाहरी संसार को गहराई से आकार दे रहा हो?

आध्यात्मिक ज्ञान कहता है कि हम जो सोचते हैं, महसूस करते हैं उसका असर हवा, पानी, मिट्टी और पूरे वातावरण पर होता है।

ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा यह समझाया गया है कि मनुष्य आत्मा और प्रकृति के पाँच तत्व — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। ये भौतिक तत्व केवल उपयोग की जाने वाली चीजें मात्र नहीं हैं, बल्कि संवेदनशील वाइब्रेशन हैं।

प्रकृति और आत्मा के बीच पुराना संबंध है

ब्रह्माकुमारीज़ के आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा यह समझाया गया है कि मनुष्य आत्मा और प्रकृति के पाँच तत्व — पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश — आपस में गहराई से जुड़े हुए हैं। ये भौतिक तत्व केवल उपयोग की जाने वाली चीजें मात्र नहीं हैं, बल्कि संवेदनशील वाइब्रेशन हैं। 

जब मनुष्य की सोच शुद्ध और आत्म-केन्द्रित होती है, तब प्रकृति संतुलित रहती है। यही स्थिति प्राचीन समय में थी, जब सौंदर्य, शांति और समृद्धि का सामंजस्य था। भावनाएं करुणामयी होती थीं, तब प्रकृति भी संतुलन में रहती थी। 

लेकिन जैसे-जैसे मानव चेतना में अहंकार, लालच और भय बढ़ा, वैसे-वैसे ये वाइब्रेशन प्रकृति में असंतुलन पैदा करने लगे। इसका नतीजा क्या हुआ? पर्यावरणीय गिरावट, जलवायु अस्थिरता और जीवन की लय से धीरे-धीरे जुड़ाव टूटना। इस दृष्टिकोण से देखा जाए तो प्रकृति केवल हमारे बाहरी कर्मों पर ही प्रतिक्रिया नहीं देती, बल्कि हमारी सामूहिक सोच और वाइब्रेशन को भी महसूस करती है।

Thoughts as a form of environmental contribution. Not just what we do, but what we think, feel, and hold in consciousness—all of it matters.

वाइब्रेशन का सूक्ष्म प्रभाव

आज विज्ञान भी यह स्वीकार करता है कि हमारे थॉट्स की अपनी एनर्जी होती है। परंतु आध्यात्मिक ज्ञान यह सदियों से सिखाता आया है कि हमारी हर सोच एक बीज के समान होती है। वो या तो हमें अच्छा महसूस कराती है या फिर कमजोर बना देती है।

इसलिए जब हमारे मन में तनाव, क्रोध या निराशा के वाइब्रेशन होते हैं, तो वे धीरे धीरे जीने योग्य हवा, पानी और मिट्टी को प्रभावित करते हैं।

जैसे ज़हरीली गैसें; CO2 आदि गैस वायुमंडल को प्रदूषित करती है, वैसे ही नेगेटिव और निराशाजनक थॉट्स पृथ्वी के वाइब्रेशन को खराब करते हैं। लेकिन अगर हमारी सोच में शांति, प्यार, करुणा व क्षमा के गुण हों, तो वे उस ठंडी हवा के जैसे लगते हैं जो भले न भी दिखें, लेकिन असर ज़रूर करते हैं। 

इसी वजह से आध्यात्मिक समझ ये कहती है कि हमारे थॉट्स भी पर्यावरण पर अपना असर डालते हैं। सिर्फ हम क्या करते हैं, यही नहीं, बल्कि हम क्या सोचते हैं, क्या महसूस करते हैं और अपने मन में क्या क्या पकड़े रहते हैं—ये सब चीज़ें भी मायने रखती हैं।

The five elements and our influence

पांच तत्व और मनुष्यों पर इनका प्रभा

आध्यात्मिक समझ के अनुसार, पाँच तत्व; पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश केवल जड़ पदार्थ नहीं हैं, बल्कि ये जीती-जागती एनर्जी हैं जिनपर हम इंसानों की सामूहिक सोच का असर पड़ता है। हर तत्व किसी न किसी संतुलन का प्रतीक होता है: जैसे धरती की स्थिरता, पानी की पवित्रता, हवा की सादगी, आग में बदलाव लाने की शक्ति, और आकाश के फैलने का नेचर। इसलिए जब हम अपने अंदर शांति, संतुलन और स्थिरता लाते हैं, तो ये बाहरी दुनिया के इन पाँचों तत्वों को भी संतुलन में रखने में मदद करता है। 

हमारी रोज़मर्रा की चीज़ें—जैसे हम क्या खाते हैं, किस सोच के साथ सफर करते हैं, और नेचुरल रिसोर्सेस का कैसे इस्तेमाल करते हैं—ये सब बातें इन पाँच तत्वों पर असर डालती हैं। लेकिन इसके साथ ही हमारे वाईब्रेशन भी उतने ही असरदार होते हैं। हमारी आंतरिक स्थिति का इन पर गहरा असर होता है।

इसको ऐसे देख सकते हैं जैसे गुस्सा आने पर शरीर में गर्मी बढ़ती है, जो अग्नि तत्व के बैलेंस को बिगाड़ देता है। डर व भय से हमारी सांसों की गति तेज़ हो जाती है, जिससे वायु तत्व प्रभावित होता है। बेचैनी हमारे आसपास के माहौल को हलचल में लाती है। और गलत व अशुद्ध विचार जल और मिट्टी के सूक्ष्म स्तर को प्रभावित करते हैं। 

वहीं दूसरी तरफ, शांति, प्यार और कृतज्ञता जैसे भावों के वाइब्रेशन पोषण का काम करते हैं — जो धीरे-धीरे पाँचों तत्वों की सफ़ाई करके उनका संतुलन वापस लाते हैं। ये पाँच तत्व हमारे सच्चे साथी के समान हैं, जो हमें वही लौटाते हैं जो हम उन्हें देते हैं। जब हमारे अंदर मन साफ़, शांत और सम्मान से भरपूर होता है, तो प्रकृति भी वैसा ही जवाब देती है। 

A single thought, repeated often enough, has the power to shift (uplift or drain) the vibrations of the planet.

अपने अंदर से संतुलन की शुरुआत करें

ब्रह्माकुमारीज़ का आध्यात्मिक ज्ञान सिखाता है कि सच्चा पर्यावरणीय परिवर्तन व प्रकृति के साथ संतुलन तभी संभव है, जब हम अपनी असली आत्मिक शक्तियों; शांति, सुख, प्रेम, पवित्रता, शक्ति, आनंद और ज्ञान को जागृत करें। यही हमारे असली और नेचुरल गुण हैं हालांकि रोज़मर्रा की भागदौड़ में हम इन्हें अक्सर भूल जाते हैं। 

जब हम मेडिटेशन, साइलेंस व आत्मचिंतन के ज़रिए स्वयं के अंदर जाते हैं, अपने मन को शांत करते हैं, असली प्रभाव तब शुरू होता है। और अंदर की यही स्पष्टता हमारी बातों, कार्य और फिर आसपास के माहौल को भी प्रभावित करने लगती है। और जो एनर्जी हम बाहर भेजते हैं वो लाइफ को सहारा देने वाली और प्राकृतिक दुनिया से मेल खाने वाली बन जाती है।

 यह कोई थ्योरी नहीं है। बल्कि जैसे एक प्रदूषित नदी पूरे इकोसिस्टम को प्रभावित करती है, वैसे ही अगर एक थॉट बार-बार सोचा जाए, तो उसकी शक्ति पूरे ग्रह की एनर्जी को बदल ( पॉजिटिव या नेगेटिव) सकती है।

Through meditation and conscious living, we learn to live with less, love with more, and tread gently upon the earth.

संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्य में आध्यात्मिक सहयोग

ब्रह्माकुमारीज़ में, हम “प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करें” के वैश्विक आह्वान का पूरी तरह समर्थन करते हैं, और पर्यावरण पर की जाने वाली हर पहल में आध्यात्मिकता का आधार जोड़ते हैं। हमारा मानना है कि अपने अंदर की अवेयरनेस से ही बाहरी जिम्मेवारी स्वतः ही पैदा होती है, इसके लिए कुछ अलग प्रयास करने की आवश्यकता नहीं है। चाहे पेड़ लगाना हो, स्वच्छता बढ़ानी हो, पानी का सही इस्तेमाल करना हो, या पूरे विश्व में शुद्ध वाइब्रेशन फैलाने के लिए कलेक्टिव मेडिटेशन करना हो, इससे संबंधित हर पहलू एक गहरी आध्यात्मिक चेतना में आधारित होता है।

हमारा मानना है कि सच्ची और स्थायी सफाई आत्मा की पवित्रता से शुरू होती है। और हमारा दृष्टिकोण भी इसी समझ पर आधारित है कि बाहरी प्रदूषण अक्सर हमारे अंदर की अशांति का ही रिफ्लेक्शन होता है।

 kalptaruh: planting trees, nurturing soul

पर्यावरण संरक्षण में ब्रह्माकुमारीज का योगदान

 कल्पतरुह अभियान – वृक्ष लगाओ, जीवन मूल्यों को सींचो

‘कल्पतरुह’ तीन शब्दों का मेल है – कल्प (इच्छा), तरु (वृक्ष) और रूह (आत्मा)। कल्पतरु लोगों को पेड़ लगाने के साथ-साथ अंदर के गुणों को भी सहेजने के लिए प्रेरित करता है। यह एक जन-आंदोलन है, जिसे स्कूलों, संस्थाओं और समाज ने मिलकर आगे बढ़ाया है। इसका मकसद है – पर्यावरण को संवारने के साथ आत्मिक विकास करना।

Solar energy for self-reliance

 सौर ऊर्जा से आत्मनिर्भरता

  • इंडिया वन 1 मेगावाट का थर्मल सोलर प्लांट, जिसमें ऊर्जा को स्टोर करने की सुविधा है।
  • सोलर कुकिंग और हीटिंग – बड़े बड़े कैंपसों में खाना पकाने और पानी गर्म करने के लिए इस्तेमाल हो रहा है।
  • फोटावोल्टिक सिस्टम – भारत में 350 से ज्यादा जगहों पर सोलर पैनल लगाए गए हैं।

पानी: एक पवित्र संसाधन

ब्रह्माकुमारीज़ वर्षा जल संग्रहण और संचयन, सीवेज ट्रीटमेंट (एस.बी.आर. तकनीक) और पूरे देश में जागरूकता अभियानों के जरिए पानी के सही इस्तेमाल का संदेश देती हैं। हमारे कैंपसों में पानी के जिम्मेवारी से उपयोग करने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है।

Yogic farming (yogic kheti)

योगिक खेती: स्वस्थ भूमि और शांत मन

राजयोग मेडिटेशन को जैविक खेती के तरीकों के साथ जोड़कर, भारत के हजारों किसान योगिक खेती कर रहे हैं। इस पद्धति से मिट्टी की ताकत बढ़ती है, फसल की गुणवत्ता सुधरती है और किसान का मन भी शांत रहता है। यह तरीका भारत सरकार की PKVY योजना द्वारा मान्यता प्राप्त है और साथ ही यह विज्ञान और अध्यात्म का एक सुंदर मेल दर्शाता है।

पार्क और हरे भरे स्थान: मन, तन और पर्यावरण के लिए वरदान ब्रह्माकुमारीज़ ऐसे बाग-बगीचे का उनका रख रखाव करते हैं जो शांति और मनन के लिए उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराते हैं। भारत के कई हिस्सों में ये पार्क दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी और अन्य महान आत्माओं के नाम पर बनाए गए हैं।

पार्क और हरे भरे स्थान: मन, तन और पर्यावरण के लिए वरदान

ब्रह्माकुमारीज़ ऐसे बाग-बगीचे का उनका रख रखाव करते हैं जो शांति और मनन के लिए उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराते हैं। भारत के कई हिस्सों में ये पार्क दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी और अन्य महान आत्माओं के नाम पर बनाए गए हैं।

Satvik food is vegetarian, pure, and prepared in god’s remembrance. Free from violence, garlic, onion, and excess, it promotes peace of mind, clarity, and sustainability.

सात्विक भोजन: जो तन और मन दोनों को ठीक करे

सात्विक भोजन शाकाहारी, पवित्र और ईश्वर की याद में बनाया जाता है। इसमें किसी प्रकार की हिंसा, लहसुन, प्याज और अधिक मसाले आदि नहीं होते। ऐसा खाना मन को शांत करता है, थॉट्स को क्लियर रखता है और जीवन को संतुलित बनाता है। यह करुणा, अहिंसा और आध्यात्मिक जागरूकता जैसे मूल्यों को दर्शाता है।

At the un: consciousness in climate dialogues

 संयुक्त राष्ट्र में भागीदारी: आत्म परिवर्तन की पहल

ब्रह्माकुमारीज़ को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा और UNFCCC में मान्यता प्राप्त ऑब्जर्वर का दर्जा मिला है। COP कॉन्फ्रेंस और अंतरधार्मिक संवादों में भाग लेकर, हम यह संदेश देते हैं कि असली पर्यावरण परिवर्तन की शुरुआत अंदर से, यानी आत्म-परिवर्तन से होती है।

A better planet begins with better vibration within us—peace inside creates peace outside

सामूहिक ज़िम्मेदारी की ओर एक कदम

हम अक्सर कहते हैं कि आने वाली पीढ़ियों के लिए एक बेहतर जगह छोड़नी है। लेकिन शायद सबसे पहला कदम है: आज से अपने आसपास बेहतर वाइब्रेशन छोड़ना। क्योंकि आंतरिक शांति से ही बाहरी शांति आती है। स्पष्ट सोच से ही स्पष्ट, करुणामयी दुनिया बनती है।

आइए, इस विश्व पर्यावरण दिवस पर, इंडिविजुअल लेवल पर स्वयं से एक वादा करें— केवल प्लास्टिक का उपयोग न करना, रियूजेबल बैग ले जाना, सफाई अभियानों का समर्थन करना ही काफी नहीं, बल्कि अपने शुद्ध और शक्तिशाली थॉट्स से धरती को वाइब्रेशन देने की पहल करना।

स्वयं से वादा करें

आइए, इस विश्व पर्यावरण दिवस पर, इंडिविजुअल लेवल पर स्वयं से एक वादा करें— केवल प्लास्टिक का उपयोग न करना, रियूजेबल बैग ले जाना, सफाई अभियानों का समर्थन करना ही काफी नहीं, बल्कि अपने शुद्ध और शक्तिशाली थॉट्स से धरती को वाइब्रेशन देने की पहल करना।

प्लास्टिक प्रदूषण सिर्फ एक बाहरी या चीज़ों से जुड़ा हुआ संकट नहीं है बल्कि यह हमारे अंदर की आदतों का आईना है, जैसे जरूरत से ज़्यादा जमा करना, बेपरवाही और अपनी असली आत्मिक पहचान को भूल जाना। क्योंकि असली बदलाव की शुरुआत अंदर और बाहर की अवेयरनेस से ही होती है। 

आइए संकल्प लें कि हम जागरूकता के साथ जीवन जिएंगे, तनाव की जगह शांति को चुनें, सुविधा की जगह सोच-समझ कर काम करें, और बेफिजूल की बर्बादी की जगह जिम्मेदारी लें। फिर चाहे वो एक कपड़े का थैला साथ रखना हो या किसी बेचैन मन को शांत करना—एक छोटी सी अवेयरनेस भी हमारी धरती के लिए हीलिंग की शुरुआत कर सकती है।

Because while natural resources can be replaced, the earth itself cannot. This world environment day, let the change begin from the most powerful place: the inner world

आइए हीलिंग की शुरुआत करें

आध्यात्मिक समझ कहती है कि, पृथ्वी को केवल “बचाने” की जरूरत नहीं है, बल्कि उसे अपने काम के साथ-साथ शुद्ध और श्रेष्ठ वाइब्रेशन, सम्मान व आदर देने की, उसे समझने की और री स्टोर किए जाने की जरूरत है।  

क्योंकि प्राकृतिक संसाधन फिर से बनाए जा सकते हैं, लेकिन पृथ्वी को दोबारा नहीं बनाया जा सकता। इस विश्व पर्यावरण दिवस पर, परिवर्तन की शुरुआत अपने भीतर से करें।

हमारे पास एक ही पृथ्वी है।

हमारे पास एक ही चेतना है।

आइए, दोनों को हील करें।

 यदि पृथ्वी मेरे विचारों को महसूस कर पाती, तो वह कैसी प्रतिक्रिया देती?

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