Light The Lamp Of Divinity This Diwali (Part 2)
Discover the deeper meaning of Diwali: from lighting diyas to overcoming ego and negativity, each tradition embodies spiritual transformation.
चिरातीत से भारत के लोग आश्विन मास की शुक्ल प्रतिपदा से लेकर नवमी तक नवरात्रि का त्योहार भक्ति भावना और उत्साह से मनाते चले आते हैं। इस त्योहार के प्रारम्भ में ही लोग कलश की स्थापना करते हैं और अखंड दीप जगाते हैं, जो लगातार नौ दिन और रात प्रज्ज्वलित रहता है । वे इन दिनों कन्या पूजन करते, नियम पालन करते, जागरण, व्रत-उपवास तथा दुर्गा, काली, सरस्वती आदि का पूजन करते हैं।
इस विषय में जानकारी के लिए नवरात्रि से संबंधित तीन मुख्य प्रसंग, जिनको कथा रूप में भक्तजन सविस्तार सुना करते हैं, सहायक सिद्ध हो सकते हैं। उनमें से एक आख्यान में तो यह कहा गया है कि पिछली चतुर्युगी के अंतिम चरण में जब विश्व विनाश के निकट था तब मधु और कैटभ नामक असुरों ने देवी-देवताओं को अपना बंदी बनाया हुआ था और तभी श्री नारायण भी मोह-निद्रा में सोए हुए थे तब ब्रह्मा जी के द्वारा आदि कन्या प्रकट हुई। उसने नारायण को जगाया और उन्होंने मधु और कैटभ का नाश कर देवी- देवताओं को मुक्त कराया।
दूसरे आख्यान में कहा गया है कि महिषासुर नामक असुर ने स्वर्ग के सभी देवी-देवताओं को पराजित किया हुआ था। त्रिदेव की शक्ति से एक कन्या के रूप में जो आदि शक्ति प्रकट हुई वह दिव्य अस्त्रों- शस्त्रों से सुसज्जित थी, त्रिनेत्री थी और अष्ट भुजाओं वाली थी। उसने महिषासुर का वध किया और देवी- देवताओं को मुक्त कराया।
तीसरे प्रसंग में कहा गया है कि सूर्य के वंश में शुम्भ और निशुम्भ नामक दो असुर पैदा हुए। उनके प्रधान कार्यकर्ता का नाम रक्तबिन्दु था, सेनापति का नाम धूम्रलोचन था और उसके दो मुख्य सहायकों का नाम चंड और मुंड था। शिवजी की शक्ति से आदि कुमारी प्रकट हुई और उससे विकराल रूप से काली प्रकट हुई। उसने चंड-मुंड का विनाश किया। कालिका ने अपनी योगिनी शक्ति द्वारा धूम्रलोचन तथा रक्तबिंदु का भी विनाश किया। आख्यान में बताया गया है कि रक्तबिंदु की यह विशेषता थी कि यदि उसके रक्त का एक भी बिंदु गिर जाता तो उस बीज से एक और असुर पैदा हो जाता था। आदि शक्ति ने रक्तबिंदु का तरह विनाश किया कि उसका एक भी बिंदु अथवा बीज नहीं रहा।
अब देखा जाए तो वास्तव में इन आख्यानों में रूपक अलंकार के द्वारा विश्व के एक बहुत ही महत्वपूर्ण वृतांत का वर्णन किया गया है। परंतु लोग प्रायः इसका शब्दार्थ ही ले लेते हैं जिससे वे सत्यबोध से वंचित रह जाते हैं। वास्तव में किसी एक या किन्हीं असुरों द्वारा सभी देवी-देवताओं के परास्त होने की बात शब्दार्थ में तो किसी के गले के नीचे उतरना भी मुश्किल है।
हाँ, भावार्थ में यह वृतान्त बहुत महत्वपूर्ण है। वास्तव में मधु और कैटभ मीठे और विकराल अर्थ के वाचक होने से राग और द्वेष के प्रतीक हैं और असुर शब्द आसुरी लक्षणों या मनोविकारों का बोधक हैं। काम, मोह और लोभ नामक असुर हैं और क्रोध व अहंकार कैटभ हैं। इसी प्रकार महिष शब्द का अर्थ भैंस है। भैंस मंदबुद्धि, अविवेक तथा तमोगुण का प्रतीक है तभी तो एक कहावत भी है अकल बड़ी या भैंस? धूम्रलोचन का अर्थ है – धुएँ वाली आँखें। अतः यह ईर्ष्या या बुरी दृष्टि का वाचक है। शुम्भ और निशुम्भ हिंसा और द्वेष आदि के वाचक हैं।
अतः तीनों आख्यानों का वास्तविक भाव यह है कि पिछली चतुर्युगी के अंत में जब विनाशकाल निकट था और सृष्टि पर अज्ञान तथा तमोगुण रूपी रात्रि छाई हुई थी तब राम ‘मधु’ और द्वेष ‘कैटभ’ ने शुम्भ और निशुम्भ उन सभी नर-नारियों को जो कि सतयुग में दिव्यता सम्पन्न होने से देवी-देवता थे। परन्तु धीरे- धीरे अपवित्रता की ओर अग्रसर होते आए थे, अपना बंदी बना रखा था। यहाँ तक कि सतयुग के आरंभ में जो देव शिरोमणि श्री नारायण थे, अब वे भी जन्म-जन्मान्तर के बाद मोह निद्रा में विलीन थे। ऐसी धर्म- ग्लानि के समय परमपिता शिव ने त्रिदेव के द्वारा भारत की कन्याओं को ज्ञान, योग तथा दिव्य गुण रूपी शक्ति से सुसज्जित किया। यह ज्ञान ही उनका तीसरा नेत्र था और अंतर्मुखता, सहनशीलता आदि दिव्य शक्तियाँ ही उनकी अष्ट भुजाएँ थी।
इन्हीं शक्तियों के कारण वे आदि शक्ति अथवा शिव शक्ति कहलाई । इन आदि कुमारियों अथवा शक्तियों ने भारत के नर-नारियों को जो कि सतयुग में देवी-देवता थे, जगाया और उन्हें उत्साहित करके प्रवृत्तियों का ऐसा नाश किया कि उनका बीज, अंश या बिंदु भी नहीं रहने दिया, जिससे संसार में फिर आसुरीयता न पनप सके।
उन द्वारा ज्ञान दिए जाने की यादगार के रूप में नवरात्रियों के प्रारम्भ में कलश की स्थापना की जाती हैं। उन द्वारा जगाए जाने की स्मृति में आज भक्तगण जागरण करते हैं तथा योग के कारण ही वे हर वर्ष इन दिनों कन्या-पूजन करते हैं कि हे अम्बे, हे माँ, मेरी ज्योति जगा दो और मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करो कि मेरे अंदर का अंधकार मिट जाए।
परन्तु जन-जन को यह मालूम नहीं कि अब पुनः कलियुग के अंत का समय चल रहा है और पुनः आसुरीयता तथा भ्रष्टाचार का बोलबाला है तब परमपिता शिव पुनः कन्याओं को ज्ञान-शक्ति देकर पुनः जन-जन को आत्मिक ज्योति जगा रहे हैं और आसुरीयता के अंत का कार्य करा रहे हैं इसलिए हम केवल जयघोष या कर्मकाण्ड में ही न लगे रहे बल्कि अपने मन में बैठे महिषासुर, मधु-कैटभ, रक्तबिन्दु और धूम्रलोचन का नाश कर दें।
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