नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य
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हर वर्ष नए साल को बेहतर और खुशनुमा बनाने के लिए हम सभी कई शुभ संकल्प, विचार व वायदे अपने आपसे करते हैं। अपनी योजनाओं, परियोजनाओं एवं सपनों को साकार करने हेतु मन में अनेक विचार तथा बातें भी आती हैं। उनमें बहुत से संकल्प सकारात्मक, नकारात्मक, दृढ़ या कमज़ोर होते हैं। नकारात्मक या कमज़ोर संकल्प हमें जीवन में आगे नहीं बढ़ने देते और हमारे व्यक्तित्व को भी निखरने नहीं देते, जिससे हम ज़िंदगी से भी हताश और निराश होने लगते हैं। रिश्तों व संबंधों पर भी हमारे संकल्प व सोच का गहरा प्रभाव पड़ता है। इसलिए अपनी संकल्प शक्ति को शुभ एवं सकारात्मक बनाएं, तभी जीवन में सुख, शांति और समृद्धि आएगी।
मनुष्य मस्तिष्क पर हर मिनट हज़ारों संकल्प-विकल्प आते-जाते रहते हैं। हमारी संकल्प शक्ति पलक झपकने से भी ज़्यादा तेज़ गति से चलती है। इसलिए चेक करते रहें कि हमारे संकल्प कौन से हैं – अच्छे या बुरे? अच्छे, श्रेष्ठ व स्नेह-युक्त दृढ़ संकल्प अधिक से अधिक हमारे मन-बुद्धि में चलें और हमारा नया वर्ष सुखमय, सार्थक एवं उमंग-उत्साह पूर्ण बने इसके लिए हमें अपने मन को – सहज, सरल, मज़बूत, सकारात्मक तथा पवित्र बनाना होगा। साथ ही हमारे हर संकल्प में दूसरों के लिए शुभ-भावना, शुभ-कामना वा सहयोग-भावना हो, यह हमारी सदैव कोशिश होनी चाहिए।
संकल्प प्रभावशाली एवं महानता का अनुभव कराने वाले होने चाहिए। इससे हमारी श्रेष्ठ स्थिति बनेगी और हम जीवन में हर कदम पर सफलता प्राप्त करते रहेंगे। मन में उठने वाले संकल्पों पर हमारा नियंत्रण होना चाहिए, जिससे हम जब चाहें उन्हें फुल स्टॉप लगा सकें और व्यर्थ संकल्पों को आने से रोक सकें। यह भी ध्यान देने की ज़रूरत है कि हम केवल सकारात्मक बातें सोचें, जिससे हमारे संकल्प समर्थ व श्रेष्ठ बनें। इसके लिए हमें अपने मन-बुद्धि को शुद्ध एवं पवित्र बनाना होगा, तभी संकल्प शक्तिशाली और स्फूर्तिवान होंगे तथा दिल से निकली हुई बात व संकल्प तुरंत सिद्ध होंगे।
मान लीजिए कि आपके किसी निकटतम को गंभीर बीमारी हो जाए, जिससे उन्हें बहुत पीड़ा का सामना करना पड़ रहा हो और डॉक्टर्स ने भी जवाब दे दिया हो। उस समय ऐसी आत्मा को सांत्वना या तसल्ली रूपी सकाश दें तो व्यक्ति को खुशी, शांति और आनंद की अनुभूति कराने में सहायक बन जायेंगे तथा उन्हें बीमारी से लड़ने एवं सामना करने की क्षमता मिलेगी।
यदि हमें अपनी संकल्प शक्ति को श्रेष्ठ व समर्थवान बनाना है तो अपनी सोच को गुणवान और सकारात्मक बनाना होगा। सहनशीलता, सन्तोष, त्याग, मधुरता, नम्रता, दृढ़ निश्चय आदि गुण अपनाकर एवं अपनी दृष्टि का सकारात्मक परिवर्तन करके भी हम समर्थ संकल्पों का आह्वान कर सकते हैं। उमंग-उत्साह के साथ सदा सहयोगी आत्मा बनकर सहयोग के संकल्प कार्य में लगाओ तो विजयी अवश्य बनेंगे।
सहयोग के ऐसे संकल्प श्रेष्ठ बन जाते हैं जब हम अपने साथ दूसरों के भी संकल्पों में बल भर देते हैं। ऐसे श्रेष्ठ संकल्प एक इंजेक्शन का काम करते हैं। दृष्टि, वृत्ति को शुद्ध व पवित्र बनाकर जो भी संकल्प करें, वह सकारात्मक एवं शक्तिशाली होते हैं जिससे कार्य में सफलता मिलना तय हो जाता है। इसके अलावा जो भी संकल्प करें, वैसा स्वरूप बनने का भी अभ्यास करें, जिससे जीवन निर्विघ्न और मंगलकारी बन सके।
सारे दिन में हमें अनेक विचार आते हैं जिनमें बहुत से नकारात्मक व कुछ सकारात्मक होते हैं। नकारात्मक विचारों के बार-बार चलने से हमारे मन में आने वाली बातों की क्वालिटी पर हम ध्यान नहीं दे पाते, जिससे हम अपने विचारों को शक्तिशाली व उपयोगी नहीं बना पाते। इस प्रकार सोच व संकल्प रूपी खज़ाने का हम सही उपयोग करने की जगह उसे व्यर्थ गँवा देते हैं।
एकाग्रता और सकारात्मकता के साथ जब हम संकल्प करेंगे, तभी हमारे संकल्प शक्तिशाली होंगे और हमारे सभी कार्य सहज ही सफलता को प्राप्त हो जाएंगे। प्रायः असफलता तब प्राप्त होती है जब हम अपने संकल्पों-विकल्पों पर अटेंशन न देकर अपने निर्धारित लक्ष्य से भटक जाते हैं। ऐसे समय में हमारा मन एकाग्रचित्त न होकर किसी विषय, वस्तु या व्यक्ति में फँसकर भटक जाता है। अतः नववर्ष में अपने संकल्पों को शक्तिशाली एवं प्रभावशाली बनाने हेतु हमें अपनी सोचने की शक्ति को दूसरों के कल्याण में और सदा निमित्त भाव में रहकर कार्य करने में लगाना चाहिए।
ध्यान व योग का जीवन में प्रयोग करके हम अपने संकल्प शक्ति को शुभ, कल्याणकारी तथा श्रेष्ठ बना सकते हैं। योग द्वारा स्वयं का सम्पूर्ण स्नेह परमपिता परमात्मा शिव से जोड़ लें, तो हमारी बुद्धि और संकल्प सात्विक व शुभ-भावना से संपन्न बन जाएंगे। ध्यान-योग के निरंतर अभ्यास से आत्म-ज्योत जग जाती है और कर्मेन्द्रियों पर मन का नियंत्रण होने लगता है, जिससे मन में उठने वाले सूक्ष्म संकल्पों को भी हम चेक कर सकते हैं और सकारात्मक संकल्पों को कार्य में ला सकते हैं।
पुरुषार्थ या योग से हमारे संकल्पों में परिवर्तन आता है। संकल्प से फिर कर्मों में बदलाव आता है और फिर संस्कारों में फेर-बदल होता है। अतः ‘योगी तू आत्मा’ बनकर अपने संकल्प शक्ति को सही दिशा दें, जिससे इस नए साल में स्वयं के तथा विश्व के कल्याण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा पाएं।
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