Navratri ka aadhyatmik rahasya

नवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य

प्राचीन पौराणिक कथा है कि राक्षसों के असर से देवता जब काफी त्रस्त हो गए तो उन्होंने अपनी रक्षा के लिए शक्ति की आराधना करने लगे। फलस्वरुप शक्ति ने दुर्गा रूप में प्रकट होकर राक्षसों का विध्वंस किया और देवताओं के देवत्व की रक्षा की। देवताओं को सुरक्षित रखने के लिए यह देवी असुरों से सदैव संग्राम करती रहती थी। अतः इस देव असुर संग्राम का रूप देकर एक पूजा का रिवाज़ चलाया गया तब से अनेक देवियों की पूजा का प्रचलन हिन्दू धर्म में प्रचलित हुआ। आज भी हिन्दू समाज में शक्ति के नौ रूपों को नौ दिनों तक पूजा चलती है जिसे ‘नौ दुर्गे’ या ‘नवरात्रि’ कहते हैं।

तो आइये, नवरात्र के नौ देवियों पर एक नजर डालें:

  1. नवरात्र का पहला दिन दुर्गा देवी के रूप में माना जाता है। वह ‘शैलपुत्री‘ के नाम से पूजी जाती है। बताया जाता है कि यह पर्वतराज हिमालय की पुत्री थी इसलिए पर्वत की पुत्री पार्वती या शैलपुत्री के नाम से शंकर की पत्नी बनी। दुर्गा को शिव-शक्ति कहा जाता है। हाथ में माला भी दिखाते हैं। माला परमात्मा के याद का प्रतीक है। जब परमात्मा को याद करेंगे तो जीवन में सामना करने की शक्ति, निर्णय करने, सहन करने, सहयोग करने, समेटने, परखने, समाने और विस्तार को संकीर्ण करने की यह अष्ट शक्तियाँ जीवन में प्राप्त होती हैं। इसलिए दुर्गा को अष्ट भुजा दिखाते हैं। हाथ में बाण दिखाते हैं। जिसका अर्थ है- ज्ञान रूपी बाण मुख द्वारा चलाकर विकारों का संहार किया।
  2. नवरात्र का दूसरा दिन देवी ‘ब्रह्मचारिणी‘ का है, जिसका अर्थ है- तप का आचरण करने वाली । तप का आधार पवित्रता होता है, जिसके लिए जीवन में ब्रह्मचर्य की धारणा करना आवश्यक है। किसी भी देवी की सबसे बड़ी योग्यता उसकी ब्रह्मचर्य की धारणा है। इस देवी के दाहिने हाथ में जप करने की माला और बाएं हाथ में कमण्डल दिखाया जाता है। माला अर्थात् 108 श्रेष्ठ देवी-देवताओं में शामिल होने का पुरुषार्थ करना और कमण्डल प्रतीक है- दिव्यगुणों व शक्तियों की धारणा का।
  3. नवरात्र के तीसरे दिन देवी ‘चंद्रघण्टा‘ के रूप में पूजा की जाती है। पुराणों की मान्यता है कि असुरों के प्रभाव से देवता काफी दीन-हीन तथा दुःखी हो गए, तब देवी की आराधना करने लगे। फलस्वरूप देवी चंद्रघण्टा प्रकट होकर असुरों का संहार करके देवताओं को संकट से मुक्त किया। इस देवी के मस्तक पर घण्टे के आकार का अर्द्धचंद्र, 10 हाथों में खड्ग, शस्त्र, बाण इत्यादि धारण किए दिखाये जाते हैं। चंद्रघण्टा देवी की सवारी शक्ति का प्रतीक सिंह है जिसका अर्थ है- शक्तियां (देवियां) अष्ट शक्तियों के आधार से शासन करती हैं।
  4. नवरात्र के चौथे दिन देवी ‘कुष्माण्डा‘ के रूप में पूजा की जाती है। बताया जाता है कि यह खून पीने वाली देवी है। कलि पुराण में देवी की पूजा में पशु बलि का विधान है। इसी धारणा और मान्यता के आधार पर देवियों के स्थान पर बलि प्रथा आज भी प्रचलित है। वास्तव में, हमारे अन्दर जो भी विकारी स्वभाव और संस्कार है उस पर विकराल रूप धारण करके अर्थात् दृढ प्रतिज्ञा करके मुक्ति पाना है। इस देवी को सृष्टि की ‘आदि स्वरुपा’ और ‘आदि शक्ति’ माना जाता है, जो ब्रह्माण्ड में चारों ओर फैले अंधकार को नष्ट कर ब्रह्माण्ड का ज्ञान प्रदान करती है। इनकी आठ भुजाओं में क्रमशः कमण्डल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत कलश, चक्र, गदा और माला दिखाई जाती है। कमण्डल प्रतीक है- दिव्यगुणों व शक्तियों की धारणा का। बाण प्रतीक है- श्रेष्ठ संकल्प का। कमल-पुष्प प्रतीक है- कलियुगी समाज में रहते निर्लिप्त व निर्विकारी स्थिति का । अमृत कलश- बुद्धि की सतोप्रधानता का प्रतीक है। चक्र- तीनों कालों व तीनों लोकों के ज्ञान का और गदा शक्ति का प्रतीक है। यदि यह ऊपर उठी हुई है तो माया से युद्ध जारी है और यदि यह जमीन पर टिकी है तो माया पर विजय प्राप्ति की प्रतीक है। माला- राजयोग का प्रतीक है।
  5. नवरात्र के पाँचवें दिन देवी ‘स्कन्द माता‘ के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं- यह ज्ञान देने वाली देवी है। इनकी पूजा करने से ही मनुष्य ज्ञानी बनता है। यह भी बताया गया है कि स्कन्दमाता की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। असम्भव कार्य भी स्वतः सिद्ध हो जाते हैं।
  6. नवरात्र के छठवें दिन देवी ‘कात्यायनी‘ के रूप में पूजा की जाती है। ‘कत’ एक प्रसिद्ध महर्षि बताये जाते हैं जिनके पुत्र ‘कात्य’ ऋषि थे। इनके ही गोत्र से ‘महर्षि कात्यायन’ का उत्पन्न होना बताया जाता है। महिषासुर दानव का वध जिस देवी ने किया था, उस देवी का प्रथम पूजन महर्षि कात्यायन ने किया था और इस कारण ही वह देवी ‘कात्यायनी’ कहलाई। एक मत यह भी है कि यह देवी, महर्षि कात्यायन की पुत्री थी जिसने आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्ल सप्तमी, अष्टमी व नवमी, तीन दिनों तक महर्षि कात्यायन की पूजा स्वीकार की और फिर दशमी को महिषासुर का वध किया। इनका वाहन ‘सिंह’ दिखाया जाता है। इनके चार हाथों में बाईं ओर के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प दिखाते हैं जो कि क्रमशः शक्ति व पवित्रता की धारणा के प्रतीक है। दाहिना ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में और नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में दिखाते हैं। इस देवी की पूजा से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। असम्भव कार्य भी स्वतः सिद्ध हो जाते हैं।
  7. नवरात्र के सातवें दिन देवी ‘कालरात्रि’ के रूप में पूजा की जाती है। इनके शरीर का रंग काला और सिर के बाल रौद्र रूप में बिखरे हुए दिखाए जाते हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रश्वांस से अग्नि ज्वालाएं निकलती दिखाई जाती हैं। इनका वाहन गधे को दिखाया गया है जिसका अर्थ है कि कलियुग में एक सामान्य गृहस्थ की हालत प्रतिकूल परिस्थितियों से जूझते जूझते गधे जैसी हो जाती है और जब वह गधा अपने मन-बुद्धि में कालरात्रि जैसी देवी को बैठा लेता है तो देवी उस गृहस्थ को परिस्थितियों से पार निकाल ले जाती है। कहा गया है कि असुरों के लिए काल रूप में प्रकट होने के कारण इन्हें ‘कालरात्रि’ के रूप में पूजा की जाती है।
  8. नवरात्र के आठवें दिन देवी ‘महागौरी‘ के रूप में पूजा की जाती है। कहते हैं कि कन्या रूप में यह बिल्कुल काली थी। शंकर से शादी करने हेतु अपने गौरवर्ण के लिए ब्रह्मा की पूजा की, तब ब्रह्मा ने खुश होकर उसे काली से गौरी बना दिया। इनका वाहन वृषभ बैल दिखाया जाता है जो कि धर्म का प्रतीक है।
  9. नवरात्र के नौवें दिन देवी ‘सिद्धिदायी‘ के रूप में पूजा की जाती है। कहा गया है कि यह सिद्धिदायी वह शक्ति है जो विश्व का कल्याण करती है। जगत का कष्ट दूर कर अपने भक्तजनों को मोक्ष प्रदान करती है।

इस तरह नौ देवियों की आध्यात्मिक रहस्यों को धारण करना ही ‘नवरात्रि पर्व’ मनाना है। वर्तमान समय स्वयं निराकार परमपिता परमात्मा इस कलियुग के घोर अंधकार में माताओं- कन्याओं द्वारा सभी को ज्ञान देकर फिर से स्वर्ग की स्थापना कर रहे हैं। परमात्मा द्वारा दिए गए इस ज्ञान को धारण कर अब हम ऐसी नवरात्रि मनाये जो अपने अंदर रावण अर्थात् विकार है, वह खत्म हो जाये, मर जाये। यही है सच्चा सच्चा दशहरा मनाना। ऐसा दशहरा मनायें, तब ही दीवाली अर्थात् भविष्य में आने वाली सतयुगी दुनिया के सुखों का अनुभव कर सकेंगे। इसलिए हे आत्माओं! अब जागो, केवल नवरात्रि का जागरण ही नहीं करो बल्कि इस अज्ञान नींद से भी जागो। यही सच्ची-सच्ची नवरात्रि मनाना और जागरण करना है। ऐसी नवरात्रि की आप सभी को मुबारक हो, मुबारक हो।

नज़दीकी राजयोग मैडिटेशन सेंटर

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