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Jagdish bhaiji with brahma baba - 1

बाबा ही हमारा संसार है

एक बाबा ही हमारा संसार है। गीत के थोड़े-थोड़े शब्दों में भी बहुत दफा बहुत ज्ञान भरा हुआ रहता है। एक बाबा ही हमारा संसार है। इसका क्या मतलब है? शब्दार्थ को तो कोई कुछ कहेगा, कोई कुछ कहेगा। बाहर का व्यक्ति समझेगा ही नहीं कि बाबा कैसे हमारा संसार है। संसार तो अलग चीज़ है, बाबा अलग है। एक बाबा हमारा संसार है, एक ही बाबा हमारा संसार है, एक बाबा ही तो हमारा संसार है। अगर यही याद रख लें तो बेड़ा पार हो जायेगा, आत्मा का कल्याण हो जायेगा। और कुछ भी न पढ़ें।

भले, वे निरक्षरी हैं लेकिन भट्टाचार्य हैं।

भारत में एक फिल्म आयी थी, उन दिनों दीवारों पर लिखा जाता था फिल्मों का नाम। एक बहन जब देहली से मधुबन जाती थी तो उन फिल्मों का नाम बाबा को बताती थी, कहती थी बाबा, आजकल यह फिल्म आयी हुई है। बाबा का फिल्म से क्या सम्बन्ध है? यह तो विरोधात्मक वस्तु है। ना। लेकिन बाबा फिर उस पर समझाते थे। आपने देखा होगा कि दुनिया के जो गीत हैं उनका भी बाबा ने कितना अच्छा आध्यात्मिक अर्थ बताया! तो एक फिल्म आयी थी, ‘अनपढ़’, दूसरी थी, ‘मैं चुप रहूंगी।’ बाबा ने कहा, ‘मैं अनपढ़ हूं और मैं चुप रहूंगी’ ये तुम्हारे ऊपर लागू होता है। ये फिल्में तुम्हारे कारण बनी हैं। बड़ी-बूढ़ी मातायें हैं, और कुछ पढ़ नहीं सकती हैं, और कुछ नहीं ख्याल में आता है, गाँव से जाती हैं, ‘निरक्षर भट्टाचार्य’ है। ‘भट्टाचार्य’ का अर्थ समझते हो? भट्टाचार्य का अर्थ है बड़े विद्वान लेकिन मातायें हैं निरक्षर भट्टाचार्य। कुछ भी नहीं मालूम, अक्षर भी नहीं जानतीं लेकिन बड़ी विद्वान हैं क्योंकि ऊंचे-से-ऊंचे बाप को जानती हैं ।
जब में ज्ञान में जाया था तब बाबा ने कहा, बच्चे की बुद्धि में भूसा भरा हुआ है। मैं देखने लगा कि भूसा कहाँ भरा हुआ है, निकालूँ उसको । एक भूसा होता है जो गाय-भैंस को खिलाने के काम आता है, यह जो उल्टे ज्ञान वाला भूसा भरा है वो बिल्कुल फेंकने वाला भूसा है। यह गाय-भैंस के काम भी नहीं आता। यह सड़ा हुआ भूसा है। सड़ा हुआ भूसा गाय के आगे चारा बनाकर रख दो, वो सूंघके भूखा रहना मंजूर करती है लेकिन खाती नहीं है। हमारी बुद्धि में जो सारा उल्टा ज्ञान फँसा हुआ है, यह भूसा है, वो भी सड़ा हुआ। मैंने सोचा, यह तो मुश्किल काम हो गया सड़े हुए भूसे को निकालना। इस तरह, बाबा की बातें बहुत अजीब और अनोखी होती हैं।

प्रेम की भी पीड़ा होती है।

कल हम जा रहे थे ऑक्सफोर्ड रिट्रीट सेन्टर में वहाँ एक बहन है। मुझे पता पड़ा कि यह समर्पित हुई है। तो मैने पूछा, आप ‘प्रेम गली’ में गुज़री हो? उसको उतनी हिन्दी नहीं आती थी, तो उसने समझा कि ‘प्रेम गली’ कोई गली (street) का नाम होगा। पास में एक बहन थी, उससे पूछा कि प्रेम गली’ कहाँ है? मैंने कहा, कोई बात नहीं, प्रेम गली का नहीं पता, प्रेम की पीड़ा, प्रेम के दर्द का अनभव हुआ है? उसने पूछा, प्रेम से दर्द क्यों होता है? पास में जो बहन थी, उसने कहा, देखो, मीरा का गीत है “मैं तो हुई प्रेम दीवानी, मेरा दर्द न जाने कोई।” है ना यह गीत मीरा का ? प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को समाप्त कर देती है। एक गीत में भी है कि “हे प्रभु, आपका मुझसे जो प्यार है, आप से मेरा जो प्यार है उसको एक आप जानते हो और एक मैं जानता हूँ और न जाने कोई।” आपको लगता है, बाबा से मेरा प्यार ऐसा है? बाबा भी हमसे इतना प्यार करता है, हमारे बिना बाबा भी रह नहीं सकता। बाबा को नींद नहीं आती। भगवान नींद नहीं करता। क्यों? क्योंकि बच्चों से उसका इतना प्यार है, उनको याद करता है तो सोयेगा कैसे? वो सो नहीं सकता। यह एक बात भी हमारे ध्यान में आ जायेह प्यार, प्रभु का प्यार। उसका मुझसे प्यार है, मेरा उससे प्यार है, तो भी कल्याण हो जाये व्यक्ति का। ये जो हमारे गीत बने हुए हैं बहुत सार्थक हैं, बहुत प्रेरणा देने वाले हैं। जीवन में व्यक्ति को आगे बढ़ाने वाले हैं।

आप तो गुड़ से भी ज़्यादा मीठे हैं।

कुछ दिनों से यह मीठी चर्चा करते रहे हैं। आपस में मिलते थे, जुलते थे, रूहरिहान करते थे। बाबा के गुण गाते थे, बाबा की बातें सुनते थे। आज हमको लन्दन निवासी वापस भेज रहे हैं। आज में भारत लौट रहा हूँ, इसलिए सोचा, आप सबको देखकर जाऊँ। क्यों? क्योंकि आप लोगों से प्यार हो गया है, मुहब्बत हो गयी है। जहाँ प्यार होता है वहाँ ऐसा ही होता है। आप लन्दनवासियों की याद रहेगी, आपका स्नेह पाया, सहयोग पाया। यह तो बाबा की खुशबूदार फुलवाड़ी है। माली इसका कितना अच्छा है। बाबा तो है ही माली, जानकी दादी जी जो आपको मिली हुई हैं, बहुत लक्की हैं आप लोग आपको उनकी पालता मिलती है। हम भी यहाँ रहे, हमें भी लाभ हुआ। हमेशा उनसे लाभ होता है। आप लोगों का जो पारिवारिक प्यार है, स्नेह है, दुनिया के और देशों में नहीं है। भारत में तो है ही क्योंकि भारतवासियों की यह विशेषता है। दूसरे देशों में भी है लेकिन सब में नहीं है। यह तो एक-एक बाबा का मीठा बच्चा है। एक से बढ़कर एक। किसी ने एक माँ से पूछा, तुम्हें कौन-सा बच्चा प्यारा लगता है? माँ ने कहा, गुड़ की ढेरी ले आओ। गुड़ ले आये। उसको कहती है, इसको इधर से चखो। उसने चखा और कहता है, मीठा है। फिर कहा, उधर से चखो वो भी मीठा है। उधर से चखो, वो भी मीठा है। गुड़ तो सब तरफ से मीठा है। आप तो गुड़ से भी ज्यादा मीठे हो। मिठास आप में है, ज्यादा दिन रहूंगा तो मुश्किल हो जायेगा, मोह-ममता हो जायेगी हमारी आपसे और आपकी हमारे से जल्दी छुट्टी लेने में ही फायदा है। आप सबने बहुत स्नेह दिया, सहयोग दिया, बहुत-बहुत थैंक्स

ब्र.कु जगदीश चन्द्र हसिजा

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