अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस 21 जून” पर विशेष लेख
संपूर्ण स्वस्थ उसी को कहा जाता है जो शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, नैतिक, आर्थिक और सामाजिक इन छह प्रकार से दुरूस्त हो। लेकिन वर्तमान समय, इनमें से एक प्रकार का भी स्वास्थ्य दिखाई नहीं देता है क्योंकि जीवन शैली ही अस्वस्थ है। दवाइयाँ एक बीमारी को ठीक करने के साथ दूसरी बीमारी को बढ़ा देती हैं। जैसे शरीर को ठीक करने वाली दवाई मन को खिन्न करती है और खिन्नता शरीर को शक्तिहीन बना देती है। नैतिक, आर्थिक और सामाजिक स्वास्थ्य की किसी में महसूसता तक न होने के कारण तीनों पतन के कगार पर हैं। ऐसे समय में मनुष्य को संपूर्ण स्वास्थ्य प्रदान कराने वाला एकमात्र मार्ग है भगवान शिवपिता का सिखाया हुआ “सहज राजयोग”।
सारी समस्याओं का एक ही उपाय कैसे हो सकता है?
समझ से बढ़कर दूसरी कोई भी दवाई इस दुनिया में नहीं है। समझ अर्थात् “सच्चाई की महसूसता”। बचपन में राजमहल से बिछुड़कर जंगली जानवरों के संग में जंगली की तरह ही पले एक राजकुमार को जैसे ही सच्चाई की समझ मिली तो उसका संपूर्ण रहन-सहन जंगली से राजाई घराने के योग्य बन गया। सहज राजयोग से मिलने वाली सच्चाई की समझ मनुष्य को हर प्रकार से निरोगी बना सकती है।
सहज राजयोग क्या है?
‘मैं ज्योतिबिंदु आत्मा हूँ, न कि शरीर’ इस सत्य को जानना और आत्मिक स्थिति में रहकर भगवान शिवपिता, जो हम सब आत्माओं के परमपिता हैं, को याद करना, यह है प्राथमिक विधि। साथ-साथ सृष्टि चक्र का परिभ्रमण, तीनों लोकों व तीनों कालों की जानकारी, मनुष्य का उत्थान व पतन, देवता व असुर कौन हैं, संगमयुग एवं परमात्मा का अवतरण, कर्म का फल, इन सब ज्ञान की बातों का संयुक्त रूप में अभ्यास करना ही सहज राजयोग है। इस विधि को दैनिक जीवन में प्रयोग करने वाला व्यक्ति हर कदम सच्चाई की सुंदरता का आस्वादन करते हुए सुख-शान्ति भरा जीवन जीने की कला सीखता है।
मन का स्वास्थ्य
मन को स्वस्थ रखने की खुराक है “शान्ति”। अशान्ति का मुख्य कारण है स्वयं को शरीर समझना। चालक खुद को चालक समझना छोड़ अगर खुद को ही कार समझता है तो क्या यह गंभीर मानसिक बीमारी नहीं है? वैसे ही हम आत्माएँ अगर स्वयं को शरीर समझती हैं तो मन का अस्वस्थ होना निश्चित है। मन का स्वास्थ्य अति मूल्यवान है क्योंकि मन अर्थात् आत्मा की एक शक्ति जो संकल्पों को उत्पन्न करता है। संकल्प, जीवन रूपी नैया की पतवार हैं। जैसे संकल्प उठते हैं उस अनुसार कर्मेंद्रियाँ कर्म करती हैं और कर्म ही जीवन है। मन स्वस्थ है तो संकल्प तथा कर्म यथार्थ होंगे।
मूल गुण के रूप में शान्ति
शांति आत्मा का मूल गुण है। मैं शरीर हूँ, जैसे ही यह भ्रम नष्ट होकर, ‘मैं आत्मा हूँ’ यह रोशनी चमकती है तब अंतर्मन से शान्ति का फव्वारा निकल पड़ता है। स्वयं को आत्मा समझ कर जब हम परमपिता शिव परमात्मा, जो शान्ति के सागर हैं, को याद करते हैं तब ऐसी गहरी शान्ति (silence) और शीतलता (calmness) की अनुभूति में खो जाते हैं जिसका शब्दों में वर्णन करना असंभव है। वह है परमशांति। यह अनुभव हर प्रकार की मानसिक बीमारियों के लिए रामबाण अर्थात् सर्वोत्तम दवाई है।
केवल याद करने से दवाई कहाँ से बनकर आती है? इस प्रश्न का बहुत आश्चर्यजनक और सुंदर स्पष्टीकरण है। शरीर व मन के अस्वस्थ होने का मूल कारण है जन्म-जन्मांतर से किए हुए पापों या विकर्मों का बोझ, जो आत्मा पर है। इसलिए बीमारी से परेशान किसी व्यक्ति को देखते हैं तो कहते हैं, उसका कर्म। इस पाप के बोझ को आसुरी संस्कार कहते हैं, जो आसुरी संकल्पों को उत्पन्न करता है। ईर्ष्या, द्वेष, संशय, हठ, रीस करना, दुःख देना व लेना इन नकारात्मक बातों से संबंधित संकल्प मानसिक बीमारी के कारण बनते हैं। सहज राजयोग में हम जिनको याद करते हैं, वे कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं बल्कि सर्वशक्तिवान शिव भगवान हैं। याद करना अर्थात् बुद्धि के माध्यम से संबंध जोड़ना। बुद्धि रूपी तार द्वारा परमात्मा की शक्तियाँ आत्मा की तरफ प्रवाहित होकर आत्मा के आसुरी संस्कारों को ही भस्म कर डालती हैं, जो कि बीमारी की जड़ थे।
सम्बन्ध-संपर्क में शान्ति
परिस्थितियों से गुजरते या संबंध-संपर्क में आते, औरों के प्रतिकूल स्वभाव-संस्कार, व्यवहार को देखकर भी मन अशांत होता है। लेकिन सहज राजयोग के अभ्यासी को इस बात का निश्चय रहता है कि इस सृष्टि नाटक में हम सब अभिनेता हैं। हर एक अभिनेता को अपनी-अपनी भूमिका मिली हुई है। इस समझ से औरों को दोषी बनाने का दृष्टिकोण बदल जाता है। यह बदलाव अशुभ संकल्पों की उत्पत्ति को समाप्त कर स्थाई शान्ति का गहरा अनुभव कराता है। उपरोक्त दोनों प्रकार की शान्ति का अनुभव मन को सदा के लिए स्वस्थ बना देता है।
बौद्धिक स्वास्थ्य
परखने, निर्णय करने और एकाग्र करने की क्षमता से बुद्धि के स्वास्थ्य को नापा जाता है। बुद्धि की स्थिरता उपरोक्त तीनों शक्तियों का बीज है। व्यर्थ और स्वार्थ भरे संकल्पों से स्थिरता बिगड़ जाती है। कार्य-व्यवहार में तीव्र व्यस्त रहने से बुद्धि को स्थिर होने का अवसर ही नहीं मिलता है। सहज राजयोग के नियमित अभ्यास से व्यर्थ विचारों व स्वार्थ को त्यागना सहज हो जाता है। इससे व्यस्त रहते हुए भी बुद्धि को स्थिर रखने की क्षमता आ जाती है। स्थिरता से इन तीनों शक्तियों का विकास होता है। स्वयं के संकल्प यथार्थ हैं या अयथार्थ; इस बात को बुद्धि स्पष्ट पहचान लेती है जिससे पाप कर्म करने से स्वयं को रोक सकते हैं। संबंध-संपर्क में आने वालों की चाह को परखकर उनकी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।
समस्याओं में यथार्थ समाधान दे सकते हैं। सफलता का आधार एकाग्रता है। राजयोग से जब चाहें, जहाँ चाहें, जितना समय चाहें बुद्धि को एकाग्र करने की क्षमता आ जाती है।
शारीरिक स्वास्थ्य
शरीर को स्वस्थ रखने के मुख्य घटक हैं हार्मोन्स। संकल्पों के आधार से स्त्रावित होने वाले ये रासायनिक, मन के भावों को शरीर के एक-एक जीवकोश तक पहुंचाने के निमित्त हैं। शरीर की वृद्धि, पाचन क्रिया, मस्तिष्क की कार्यशैली, नींद, स्वास्थ्य लाभ, शरीर के सर्व अंगों की यथार्थ कार्यविधि; ये सारी बातें हार्मोनों के स्त्राव पर अवलंबित हैं। शरीर में लगभग 50 हार्मोन्स हैं जिनके संतुलन से मानव तंदुरूस्त और क्रियाशील रहता है। गामा एमिनो ब्युटिरिक एसिड (GABA)-जो मस्तिष्क को विश्रांति देता, प्रेलिन-जो भूख को बढ़ाता है ये सारे महत्वपूर्ण हार्मोन्स गहरी नींद में, जब मन से डेल्टा तरंगें निकलती हैं, तब अधिक प्रमाण में स्रावित होते हैं। लेकिन वैज्ञानिक उपकरणों से यह सिद्ध हुआ है कि सहज राजयोग के अभ्यास के समय, मन द्वारा गहरी शान्ति की अनुभूति किए जाने के कारण भी सबसे अधिक शक्तिशाली डेल्टा तरंगें निकलती हैं, जो हार्मोन्स के स्त्राव को सुधारती हैं।
शुद्ध आहार का भी बहुत महत्व है। भोजन बनाने वालों की दूषित मानसिक तरंगों का असर; आहार पर और उसको स्वीकार करने वाले दोनों पर पड़ता है, जो अस्वस्थता लाती हैं। सहज राजयोग में परमात्मा शिवपिता की याद में रहकर भोजन बनाना और याद करते हुए उसे स्वीकार करने की अनोखी विधि सिखाई जाती है ताकि याद के बल से भोजन दोष रहित बन जाए। राजयोग से यह भावना जागृत होती है कि यह शरीर मेरा मंदिर है और मैं पवित्र मूर्ति हैं। मंदिर को अंदर-बाहर साफ रखते हैं और अपवित्र वस्तु को अंदर नहीं लाया जाता है। वैसे ही राजयोगी अपवित्र खान-पान और अस्वच्छता से दूर रहता है।
शरीर को स्वस्थ रखने का एक अन्य घटक है नींद। डॉक्टर सबसे पहले मरीज़ को यही प्रश्न पूछते हैं कि नींद ठीक आती है या नहीं? अनिद्रा बीमारियों की जड़ है। संबंधों में कड़वाहट, जिम्मेवारी का दबाव, जीवन शैली से संतुष्ट न रहना; इन सब बातों के कारण, नींद करने का समय चिंता करने में चला जाता है। सहज राजयोग के नियमित प्रयोग से समय-प्रति-समय हर समस्या का यथार्थ समाधान मिलता है जो प्रश्नचित्त को प्रसन्नचित्त बनाता है। सदा निश्चिंत रहने के कारण प्रसन्न व्यक्ति की नींद हमेशा गहरी होती है।
नैतिक स्वास्थ्य
कर्म फल का ज्ञान मनुष्य को नैतिक मार्ग दिखाता है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार इन पांच विकारों से क्षणिक सुख पाने की इच्छा रखना, इसको कहते हैं ‘अनीति’। कर्म, विकारों के लेप से मुक्त हो तब कहेंगे ‘नैतिक’। विकारों के वश किए गये कर्म को ‘पाप’ कहते हैं और दिव्य गुणों पर आधारित कर्म है ‘पुण्य’। सहज राजयोग की शिक्षा में इस बात को धारण कराया जाता है कि कर्मेंद्रियों से सदा पुण्य कर्म ही करें। कहते हैं ‘जैसी करनी, वैसी भरनी’। पुण्य करने से सुख-शांति-संपत्ति की प्रालब्ध पाते हैं और पाप का फल है दुःख-अशांति-अभाव। कर्मेंद्रियों पर नियंत्रण मजबूत रहे, उसके लिए सहज राजयोग से 8 प्रकार की शक्तियाँ भी प्राप्त होती हैं। इनमें से मुख्य हैं; सहन शक्ति, समाने की शक्ति और विस्तार को संकीर्ण करने की शक्ति। गुण और शक्तियों के रक्षा कवच में व्यक्ति नैतिक धारणाओं में मजबूत रहेगा और मूल्यों पर आधारित कर्म करेगा ताकि कर्म की सजा भोगनी न पड़े।
आर्थिक स्वास्थ्य
धन से भरपूर रहना, इसी को आर्थिक स्वास्थ्य नहीं कहा जाता बल्कि कमाने व खर्च करने की विधि पर आर्थिक स्वास्थ्य निर्भर है। लोभ एक विकार है। राजयोग का अभ्यासी बनने के बाद दुराचार से कमाना और अशुद्ध कामनाओं के लिए, दुर्व्यसनों के लिए खर्च करना; इन बीमारियों से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। जैसे कमल, कीचड़ में रहते हुए भी स्वच्छ रहता है वैसे ही प्रपंच भरे वातावरण में रहते हुए भी वह निर्लोभी रहता है अर्थात् धन के लालच से न्यारा रहता है। शिवपिता की याद में रहकर मेहनत व प्रामाणिकता से धन कमाता है और उस धन को सकारात्मक और कल्याणकारी कार्यों में सफल करता है।
सामाजिक स्वास्थ्य
अशान्ति, भय, असुरक्षा महसूस होने का कारण है अपनेपन का अभाव। जात, मत, धर्म, भाषा, देश, ऊंच-नीच आदि अनेक प्रकार के भेद-भाव, मेरा-तेरा, राग-द्वेष से भरे नकारात्मक भावों से ग्रस्त मानव अपनेपन की सुंदर भावना को खो बैठा है। इसका मुख्य कारण है हम सब किसके बच्चे हैं? इस सच्चाई को न जानना। सहज राजयोग हमें इस सच्चाई का दर्शन कराता है कि हम सब एक ही पिता की संतान हैं। जैसे, चावल को अंग्रेजी में राईस, हिंदी में चावल, मराठी में तांदूल, जापान में गोहन, चाईना में माईफन कहते हैं परन्तु वस्तु तो एक ही है। वैसे, भगवान शिवपिता को अंग्रेजी में गॉड, हिंदी में शिव, इस्लाम में अल्लाह आदि विविध नामों से पुकारा जाता है। लेकिन है एक ही पिता। एक पिता के हम सब बच्चे, इस महसूसता से भेद-भाव की मनोवृत्ति नष्ट होकर भाईचारे की भावना या अपनापन जागृत होता है। राजयोग के अभ्यास से हम जहाँ भी रहें वहीं अपनेपन का वातावरण निर्मित कर सकते हैं, यही सामाजिक स्वास्थ्य है।
आज, ऐसे लाखों उदाहरण हैं जिन्होंने सहज राजयोग के नियमित प्रयोग से सकारात्मक, कल्याणकारी कर्म करते हुए संपूर्ण स्वास्थ्य और सफल जीवन अपनाया है और विश्व के सामने आदर्शमूर्त बनकर खड़े हैं।