
Control over thoughts brings easy success
As long as the human soul is in a body, it performs actions, even if it is just thinking or breathing. Each of the body’s
शिव अर्थात् कल्याणकारी नाम परमात्मा का इसलिए है क्योंकि यह धर्मग्लानि के समय, जब सभी मनुष्यात्माएं पांच विकारों के कारण दुःखी, अशान्त, पतित एवं भ्रष्टाचारी बन जाती हैं तो उनको पुन: पावन एवं कल्याणकारी बनाने का दिव्य कर्तव्य करते हैं । अतः परमात्मा को भी कर्म – भ्रष्ट संसार का उद्धार करने के लिए ब्रह्मलोक से नीचे उतरकर किसी साकार शरीर का आधार लेना पड़ता है। वह किसी साधारण वृद्ध तन में प्रवेश करते हैं । परमात्मा शिव के इस दिव्य अवतरण अथवा अलौकिक जन्म की पुनीत स्मृति में ही शिवरात्रि अर्थात् शिव जयंती का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार भारत में ही विशेष धूमधाम से मनाया जाता है क्योंकि भारत भूमि ही परमात्मा के अलौकिक जन्म तथा कर्म की पावन भूमि है।
शिवरात्रि का त्योहार फाल्गुन मास, जो चैत्रवदी वर्ष का अन्तिम मास होता है, में आता है । अतः रात्रि की तरह फाल्गुन की कृष्ण चतुर्दशी भी आत्माओं के अज्ञान अंधकार अथवा आसुरी लक्षणों के पराकाष्ठा के अन्तिम चरण की द्योतक है। इसके पश्चात् आत्माओं का शुक्ल पक्ष अथवा नया कल्प प्रारंभ होता है अर्थात् अज्ञान और दुःख के समय का अन्त होकर पवित्र तथा सुख का समय शुरू होता है।
परमात्मा शिव अवतरित होकर अपने ज्ञान, योग तथा पवित्रता की शक्ति द्वारा आत्माओं में आध्यात्मिक जागृति उत्पन्न करते हैं। इसी महत्व के फलस्वरूप भक्त लोग शिवरात्रि पर जागरण करते हैं। शिव और शंकर में अन्तर न समझने के कारण, शिव को मस्त योगी समझ स्वयं को भी कृत्रिम रूप से मस्त बनाने के लिए नशे का सेवन करते हैं। लोगों को यह तो ज्ञान नहीं कि सच्ची मस्ती तो परमात्मा शिव से प्राप्त ज्ञानामृत प्राप्त करने से ही चढ़ती है।
आप सभी मनुष्यात्माओं को हार्दिक ईश्वरीय निमन्त्रण है कि शिवरात्रि के यथार्थ रहस्य को समझकर विकारों का सच्चा व्रत रखें एवं शीघ्र ही आने वाली नई सतयुगी दुनिया में देव पद को प्राप्त करें ।
शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है महाशिवरात्रि
भारत देश त्यौहारों और पर्वो का देश है। इन पर्वों और उत्सवों में कई ऐसे उत्सव हैं जिन्हें ‘महोत्सव’ की संज्ञा दी जाती है। ये महोत्सव सभी उत्सवों में विशिष्ट स्थान रखते हैं। भारत में जितने पर्व और उत्सव मनाये जाते हैं उनमें महाशिवरात्रि का पर्व महोत्सव के रूप में याद किया और मनाया जाता है। यह देवों के देव महादेव, त्रिलोकीनाथ, मृत्युंजय, कालों के काल महाकाल, तीन देवताओं के रचयिता परमात्मा शिव और शक्ति के मिलन का पर्व है। इस पर्व को समस्त जगत की मनुष्य आत्माओं और परमात्मा के मिलन का पर्व भी कहते हैं। इस पर्व से ही पूरी दुनिया में नारियों को देवी, लक्ष्मी, सरस्वती, दुर्गा और शीतला की देवी की उपाधि मिली है परन्तु बदलते परिवेश में इन महोत्सवों की केवल मान्यताएं और परम्पराएं ही रह गयी हैं जिसकी आध्यात्मिक व्याख्या न जानने के कारण प्रभु तथा अध्यात्म प्रेमी वर्तमान समय के दृष्टिकोण से पूजा-अर्चना कर इतिश्री कर लेते हैं। इसलिए इस महोत्सव से जो मनुष्य को प्राप्त होना चाहिए उसकी प्राप्ति का अभाव सा हो गया है।
शिव और शक्ति के मिलन का वास्तविक रहस्य
परमपिता परमेश्वर शिव में, स्त्री और पुरुष दोनों का भाव समाया होता है। इसलिए उन्हें अर्धनारीश्वर भी कहते हैं। शिव पुराण और वेदों में भोलेनाथ को ‘शिव’ का तथा पार्वती को ‘शक्ति’ का रूप दिया गया है। यहाँ केवल एक शक्ति की बात नहीं है। परमात्मा समस्त जगत में आत्माओं के पिता हैं और पतियों के भी पति हैं । परमात्म-शक्तियों से जब नारी शक्ति सम्पन्न हो जाती है, तब वह शिव-शक्ति की उपाधि से नवाजी जाती है। इसलिए शास्त्रों में कहा गया है कि ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात् जहाँ नारियों की पूजा होती है, वहाँ देवतायें निवास करते हैं। आज समाज में एक मुंह से दो विरोधाभासी बातें निकलती हैं। एक तरफ तो नारी की महिमा की जाती है और दूसरी तरफ उन्हें सर्पिणी और नर्क का द्वार कह दिया जाता है।
जब संसार में मनुष्यों में आसुरी वृत्तियों के कारण मानवीय रूप बदलकर आसुरी स्वरूप हो जाता है, दुनिया पतित और काली हो जाती है, मानवता लुप्त होने लगती है तब एक नयी सृष्टि के सृजन की आवश्यकता होती है। मनुष्य में इतनी अज्ञानता हो जाती है कि वह परमात्मा द्वारा रचित अपनत्व की जगह पराया, प्रेम की बजाय नफरत और अहिंसा के बजाय हिंसा पर उतारू हो जाता है तब इस प्रकार की अज्ञानता को रात्रि के रूप में परिभाषित किया जाता है। ऐसी अज्ञानता की रात्रि में परमात्मा का इस धरा पर अवतरण होता है। वे नारी को पुनः उसके शक्ति स्वरूप का अनुभव कराते हैं तथा दुर्गुणों से मुक्त कराकर दुर्गा, ज्ञान-धन से सम्पन्न लक्ष्मी, ज्ञान का वीणा वादन करने वाली सरस्वती योग्य बनाते हैं और पूरे जगत में ज्ञान का शंखनाद कराकर एक नयी सृष्टि के सृजन के कार्य में नारियों को अर्पित कर महान कार्य कराते हैं ।
इस महाशिवरात्रि के पर्व पर स्त्रियां ही प्रमुखता से व्रत और उपासना करती हैं। इस महापर्व पर यह मान्यता है कि युवतियां अपने सच्चे, अच्छे और सद्गुणयुक्त वर की कामना करती है। ताकि उनका जीवन सम्पूर्ण सुखों से भरपूर हो। परमात्मा शिव सत्य और सुन्दर है। उसके अन्दर कोई भी अवगुण नहीं है तथा सर्व गुणों और सुखों का सागर है। परमात्मा शिव को जो वरने का संकल्प लेती हैं उनके जीवन का रक्षक स्वयं सर्व कल्याणकारी परमात्मा शिव हो जाते हैं और उनका जीवन युगों-युगों के लिए धन्य और सुखी हो जाता है। यह केवल युवतियों के लिए ही नहीं होता वरन् संसार में जितनी भी आत्मायें हैं वे सब पार्वती और सीता की भांति हैं जिनकों बुराइयों के इस राक्षस ने अपने वश में कर लिया है जिससे पूरे संसार में आतंक, हिंसा और अश्लीलता का माहौल है। ऐसे वक्त में हमें परमात्मा को सर्व सम्बन्धों की डोरी में बांधकर जीवन सौंप देना चाहिए। इससे हमारा जीवन पूर्ण रूप से सफल हो जायेगा।
महाशिवरात्रि पर्व की सार्थकता और सच्ची उपासना
इस युग परिवर्तन बेला में पुरानी दुनिया का महाविनाश, नयी दुनिया की स्थापना, अनेक धर्मों का विनाश, एक धर्म की स्थापना तथा शान्ति और स्वर्णिम संसार की रचना के सन्दर्भ में शिवपुराण के आठवें अध्याय तथा वायवीय संहिता में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि ‘सृष्टि के सृजन के लिए देवों के देव महादेव जगत कल्याणकारी परमपिता शिव ब्रह्मा की रचना करके उन्हें सृष्टि सृजन का दायित्व सौंपते हैं।’ इसके अनुसार परमपिता परमात्मा शिव इस कलियुग के अन्त तथा सतयुग के आदि पुरुषोत्तम संगमयुग में प्रजापिता ब्रह्मा के द्वारा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय द्वारा नयी दुनिया की स्थापना का गुप्त कार्य करा रहे हैं।
परमात्मा का यही दिव्य संदेश है कि जीवन में भांग धतूरा तथा बेल-पत्र के समान निरर्थक तथा दूसरों को दुःख देने वाली बुराइयों को मेरे ऊपर अर्पण कर अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान नर से श्री नारायण तथा नारी से श्री लक्ष्मी जैसा बनने का दिव्य कर्म करो। इसके साथ पूरे जगत में काम, क्रोध, लोभ और भौतिक साधनों एवं सत्ता में फंसी दुःखी, अशान्त आत्माओं को ईश्वरीय संदेश देकर उन्हें सुख- शान्ति के अधिकारी बनाने का महान कार्य करो । ‘उपासना’ का अर्थ है कि आज झूठी माया, झूठी काया और झूठा सब संसार में अनेक बन्धनों को तोड़ ‘उपा’ अर्थात् एक, ‘सना’ अर्थात् सानिध्य अर्थात् एक परमात्मा शिव के सानिध्य में रहने का अभ्यास कीजिए । महाताण्डव और विपदा की घड़ी में परमात्मा शिव ही इससे मुक्ति दिला सकते हैं। अतः सर्व मनुष्यात्माओं को चाहिए वे इस नाजुक और परिवर्तन की घड़ी में स्वयं तथा परमात्मा को पहचान अपने जीवन में दैवी गुणों का समावेश करें तथा परमात्मा शिव से मिलन मनायें । यह पर्व ही आत्मा अर्थात् शक्ति और परमात्मा शिव के मिलन का पर्व है। इसके आध्यात्मिक रहस्य को जानकर मनाने में ही इस महापर्व की सार्थकता है और यही परमात्म संदेश है।
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