Faith and forgiveness heal the soul
Where there is spiritual love, we see each other as souls and remember God, the Father of all souls. But when love is without spiritual
हर वर्ष भारत में जन्माष्टमी के दिन श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। हरेक माता अपने बच्चे को नयनों का तारा और दिल का दुलारा समझती है, परन्तु फिर भी वह श्रीकृष्ण को सुंदर, मनमोहन, चित्तचोर आदि नामों से पुकारती है। वास्तव में श्रीकृष्ण का सौंदर्य चित्त को चुरा ही लेता है। जन्माष्टमी के दिन जिस बच्चे को मोर मुकुट पहनाकर, मुरली हाथ में देते हैं, लोगों का मन उस समय उस बच्चे के नाम, रूप, देश व काल को भूल कर कुछ क्षणों के लिए श्रीकृष्ण की ओर आकर्षित हो जाता है। सुंदरता तो आज भी बहुत लोगों में पाई जाती है परंतु श्रीकृष्ण सर्वांग सुंदर थे, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण थे। ऐसे अनुपम सौंदर्य तथा गुणों के कारण ही श्री कृष्ण की पत्थर की मूर्ति भी चित्तचोर बन जाती है।
इस कलियुगी सृष्टि में एक भी ऐसा व्यक्ति नहीं होगा जिसकी वृत्ति, दृष्टि कलुषित न बनी हो, जिसके मन पर क्रोध का भूत सवार न हुआ हो अथवा जिसके चित्त पर मोह, अहंकार का धब्बा न लगा हो । परन्तु श्रीकृष्ण जी ही ऐसे थे जिनकी दृष्टि, वृत्ति कलुषित नहीं हुई, जिनके मन पर कभी क्रोध का प्रहार नहीं हुआ, कभी लोभ का दाग नहीं लगा। ये नष्टोमोहा, निरहंकारी तथा मर्यादा पुरूषोत्तम थे। उनको सम्पूर्ण निर्विकारी कहने से ही सिद्ध है कि उनमें किसी प्रकार का रिंचक मात्र भी विकार नहीं था। जिस तन की मूर्ति सजा कर मंदिर में रखी जाती है, उसका मन भी तो मंदिर के समान था । श्रीकृष्ण केवल तन से ही देवता नहीं थे, उनके मन में भी देवत्व था। जिस श्रीकृष्ण के चित्र को देखते ही नयन शीतल हो जाते हैं, जिसकी मूर्ति के चरणों पर जल डाल कर लोग चरणामृत पीते हैं और उससे ही अपने को धन्य मानते हैं, यदि वे वास्तविक साकार रूप में आ जाएँ तो कितना सुखमय, आनंदमय, सुहावना समय हो जाए।
श्रीकृष्ण पर मिथ्या कलंक
श्रीकृष्ण जिनके लिए गायन है कि वे सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, परम अहिंसक, मर्यादा पुरूषोत्तम थे, जिनमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार अंश मात्र भी नहीं थे, जिनकी भक्ति से अथवा नाम लेने से ही भक्त लोग विकारी वासनाओं पर विजय पाते हैं, उन पर लोगों ने अनेक मिथ्या कलंक लगाए हैं कि श्रीकृष्ण की सोलह हजार एक सौ आठ रानियाँ थी, वह हर रानी के कमरे में एक ही समय पर उपस्थित होते थे तथा कृष्ण जी से उनके दस-दस पुत्र थे अर्थात् श्रीकृष्ण जी के एक लाख इकसठ हजार अस्सी पुत्र हुए। विचार करने की बात है क्या ऐसा इस साकार लोक में संभव है? श्रीकृष्ण तो सर्वोच्च देवात्मा थे जिनमें कोई भी विकार लेशमात्र भी न था, जिनकी भक्ति से मीरा ने काम वासना पर विजय पाई और सूरदास, जिन्हें संन्यासोपरान्त आँखों ने धोखा दिया, उन्हें भी श्री कृष्ण की भक्ति कर अपनी अपवित्र कामी दृष्टि को पवित्र बनाने का बल मिला। ऐसी पवित्र आत्मा पर, जिनके स्मरण से ही विकारी भावनाएँ समाप्त हो जाती हैं, क्या ये मिथ्या कलंक, क्या ये मिथ्या कलंक लगाना उचित है ?
इसके अतिरिक्त यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने द्वापर युग में महाभारत युद्ध करवाया जिससे आसुरी दुनिया का नाश हुआ और स्वर्ग की स्थापना हुई। परन्तु द्वापर युग के बाद तो कलियुग अर्थात् कलह-क्लेश का युग ही आया। इसमें तो और ही पाप तथा भ्रष्टाचार बढ़ा, स्वर्ग की स्थापना कहाँ हुई? विचार कीजिए कि यदि अपवित्र दृष्टि, वृत्ति वाले लोग जैसे कंस, जरासंध, शिशुपाल आदि पावन श्रीकृष्ण को देख सकते हैं तो उनकी एक झलक के लिए भक्तों को नवधा भक्ति और संन्यासियों को घोर तपस्या करने की आवश्यकता क्यों पड़ी? यदि श्रीकृष्ण की दुनिया में भी इतने पाप और दुष्ट व्यक्ति थे तो आज की दुनिया को ही नर्क क्यों कहा जाए? वास्तविकता यह है कि श्रीकृष्ण की दुनिया में कंस, जरासंध, शिशुपाल जैसे आसुरी वृत्ति वाले लोग थे ही नहीं और न ही उस समय कोई पाप अथवा भ्रष्टाचार का नामोनिशान था क्योंकि श्रीकृष्ण का जन्म तो द्वापर में नहीं, बल्कि सतयुग के आरम्भ में हुआ था।
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के बारे में वास्तविकता
भादों मास में कृष्ण पक्ष में जो अष्टमी आती है, उस दिन लोग श्रीकृष्ण का जन्म हुआ मानते हैं, परंतु श्रीमद्भागवत से संकेत मिलता है कि श्रीकृष्ण के जन्म लेने पर, अथवा थोड़ा पहले, अन्य मुख्य (आठ) देवताओं ने भी जन्म लिया था। अतः वास्तव में जन्माष्टमी केवल श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव नहीं बल्कि साथ ही आठ मुख्य देवताओं के बहन-भाई आदि सम्बंधी भी तो देवी- देवता ही चाहिए। पुनश्च, देवताओं के बारे में तो प्रसिद्ध है कि वे अपने पुण्य कर्मो की प्रारब्ध भी तो साथ लाए होगें। आज भी जब कोई बच्चा जन्म लेता है तो लोग कहते हैं कि यह अपनी तकदीर साथ ले आया है। तो क्या श्रीकृष्ण और जिन आठ देवी-देवताओं ने जन्म लिया, वे अपने दैवी भाग्य को साथ नहीं लाए होंगे? अवश्य ही लाए होंगे। तो स्पष्ट है कि उनका जन्म द्वापर में नहीं बल्कि सतयुग में हुआ होगा क्योंकि
देवी-देवताओं की प्रारम्भ के योग्य तो सतयुगी सृष्टि के सतोप्रधान पदार्थ तथा सतोप्रधान एवं धर्मनिष्ठ जन ही होते हैं।
श्रीकृष्ण फिर कब आएँगे?
भारत में भ्रष्टाचार, विकार, दुख और धर्मग्लानि को देखकर, भारतवासी श्रीकृष्ण के पुनः प्रकट होने की आशा रखते हैं क्योंकि वे समझते हैं गीता में उन्हीं के महावाक्य हैं कि मैं धर्मग्लानि के समय फिर आऊंगा। भारतवासियों को यह मालूम नहीं है कि इस कलियुगी, अपवित्र एवं भ्रष्टाचारी सृष्टि में देवता अपना पाँव भी नहीं रख सकते हैं। श्रीकृष्ण तो वास्तव में सतयुग के आरम्भ में जन्म लेते और विश्व पर राज्य करते हैं। उन्हें स्वयंवर के पश्चात् श्री नारायण कहते हैं और श्री राधे को श्रीलक्ष्मी कहते हैं, जैसे कि त्रेतायुग में जानकी जी को स्वयंवर के बाद श्री सीताजी कहते हैं। श्रीकृष्ण के समय की पूर्ण पावन एवं पूर्ण सुखी सतयुगी सृष्टि को सुखधाम अथवा वैकुण्ठ कहा जाता है।
वास्तव में गीता में यह जो महावाक्य है कि मैं धर्मग्लानि के समय अवतरित होता हूँ ये अशरीरी परमपिता परमात्मा ज्योतिर्लिंगम् शिव के हैं। वे ही हर कल्प के अंत में प्रजापिता ब्रह्मा के तन में अवतरित होकर आदि सनातन, श्रेष्ठाचारी देवी- देवता धर्म की पुनः स्थापना करते हैं और महादेव शंकर के द्वारा मनुष्यों को महाभारत – प्रसिद्ध विश्व-युद्ध के लिए प्रेरित कर अधर्म का और भ्रष्टाचारी सृष्टि का महाविनाश कराते हैं। इस प्रकार जब पाप का अंत और श्रेष्ठाचार की पुनः स्थापना हो जाती है तभी विष्णु के साकार रूप श्री कृष्ण (श्री नारायण) जन्म लेकर पालना करते हैं। अब भगवान शिव अपने दोनों ईश्वरीय कर्त्तव्य प्रजापिता ब्रह्मा और महादेव शंकर द्वारा करा रहे हैं और निकट भविष्य में होने वाले एटॉमिक विश्व युद्ध और महाविनाश के बाद सतयुगी सृष्टि के आरम्भ में पुनः श्री कृष्ण आने वाले हैं।
अपने हृदय को टटोलिए
अतः जन्माष्टमी के शुभ दिन पर अपने अन्तः करण में झाँककर देखने की आवश्यकता श्रीकृष्ण को मनमोहन कह छोड़ने से लक्ष्य की सिद्धि नहीं होगी, बल्कि इस समय अपने हृदय को परखने की आवश्यकता है कि हमारे मन को वास्तव में श्याम ने मोह रखा है या काम ने? अपने अंदर विकार है तो यह समझ लीजिए कि बाहत श्री कृष्ण गोविंद… आदि पद गाने से सद्गति नहीं होगी। यह तो बगल में विकारों की छुरी और मुँह में राम-राम वाला किस्सा हो जाएगा अथवा दिल्ली शहर नमूना, अन्दर मिट्टी बाहर चूना वाली उक्ति लागू होगी।
अतः श्री कृष्ण से सचमुच प्यार है और उसके वैकुण्ठ में आप जान चाहते हैं तो पूर्ण पवित्र बनो क्योंकि विकारी और आसुरी स्वभाव वाली आत्माएँ वैकुण्ठ में नहीं जा सकती और उनका श्री कृष्ण के साथ कोई सम्बन्ध नहीं हो सकता श्री कृष्ण तो सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण और सम्पूर्ण अहिंसक थे। अतः देखना चाहिए कि अपने में कहाँ तक दैवी गुण धारण किए हैं और पवित्रता की कितनी कलाएँ अपनाई हैं। अपनी धारणा की ओर ध्यान दिए बिना तो दो गुणों को भक्ति से भी कोई विशेष फल नहीं मिलता।
Where there is spiritual love, we see each other as souls and remember God, the Father of all souls. But when love is without spiritual
The purpose of relationships is to be able to share love and happiness, but does it happen? When we ask people about the biggest cause
Religion is often seen as divisive based on birth, but the true soul’s religion, according to spirituality, is peace. Recognizing ourselves as children of a divine Supreme Father unites us beyond external differences. By connecting with our true identity and spending a few minutes daily in peaceful awareness, we can contribute to a more harmonious world.
Start your day with a breeze of positivity and stay motivated with these daily affirmations
After Clicking on Join, You will be redirected to Whatsapp Community to receive daily message. Your identitiy will be secured and no group member will know about another group member who have joined.