Bk gurumukh dada anubhavgatha

बी के गुरुमुख दादा – अनुभवगाथा

मधुबन के गुरुमुख दादा अपना अनुभव इस प्रकार सुनाते हैं कि मैं आज से 45 साल पहले 50 साल की उम्र में ज्ञान में आया। जहाँ मैं रहता था वहाँ उस समय ब्रह्माकुमारी बहनों को कोई जानता तक नहीं था। उन दिनों में सहारनपुर में था और रेलवे में नौकरी करता था। उस समय स्टीम इंजन होते थे, मैं असिस्टेण्ट लोको फोरमैन था। वहाँ मेरा एक मामा था, वह बहुत बड़ा आदमी था और कॉन्ट्रैक्टर था। उसका सम्बन्ध अंग्रेज़ों के साथ था। उसकी एक लड़की थी, शादी के छह मास के बाद उसका पति मर गया तो मामाजी ने सहारनपुर में एक मकान बनाकर वहाँ उसको रखा। वह बहन दुःखी बहुत थी। क्योंकि जब उसका पति मरा था उस समय उसके पेट में बच्चा था। इस कारण उस बच्चे के भविष्य का भी सवाल था। जब वह बहुत दुःखी थी तो उसने वहाँ के ब्रह्माकुमारी सेन्टर पर जाना शुरू किया। उस समय सेन्टर नया-नया खुला था। वहाँ जाने से उसको बहुत आनन्द मिला, दुःख दूर होता गया। उस बहन को इतना अच्छा लगा कि उसने अपने मकान का ऊपर वाला सारा हिस्सा ब्रह्माकुमारियों को दे दिया। मैं रेलवे कॉलोनी में रहता था। कभी-कभी मैं उसके घर जाया करता था। जब भी मैं उससे मिलने जाता था तब वह कहती थी कि भाई साहब, आप यह ज्ञान सुनो। सुनके तो देखो, बहुत अच्छा है। मैं सुना-अनसुना कर चला जाता था। इस प्रकार, दो साल तक वह मुझे कहती रही और मैं उसकी बात ऐसे ही टालता रहा।

जैसी दृष्टि वैसी ही सृष्टि दिखायी पड़ती है

वहाँ आश्रम पर एक बार बाबा आये। सुबह 10 बजे का वक्त था, मैं दफ़्तर में काम कर रहा था। एक भाई मेरे पास आया और कहने लगा कि आपकी बहन आपको बुला रही है, बाबा से आपको मिलाना है। बाबा, बाबा शब्द तो मैं हर बार अपनी बहन के मुख द्वारा सुनता ही था। मुझे कुछ खास नहीं लगा, एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया और मैं अपने काम में लग गया। पौने घण्टे के बाद और एक भाई आया। मेरा पद ऐसा था कि मेरे दफ़्तर में मेरी अनुमति बगैर कोई अन्दर आ नहीं सकता था। लेकिन यह ब्रह्माकुमार भाई सीधा मेरे पास आया और कहने लगा, अरे साहब, आप यहाँ बैठे हो? आपकी बहन आपको बुला रही है। आपको बाबा से मिलाना है। उसकी बात सुनकर मैं हैरान हो गया कि यह क्या कह रहा है! मेरे आफ़िस में, मेरी इजाज़त के बिना अन्दर आकर इतना निडर होकर कह रहा है! मैंने कहा, ठीक है आऊँगा। उसने कहा, चलो, चलो, अभी उठो। मैंने सोचा, अरे यह तो कमाल का आदमी है, मुझे इतने अधिकार से कह रहा है। फिर मैं उठा और उसके साथ चल पड़ा। जब मैं वहाँ गया तब बाबा बच्चों से मिल रहा था। मैं खड़ा देख रहा था। हॉल में बाबा के चारों तरफ़ बहुत भाई-बहनें बैठे हुए थे। बाबा उनको ऐसे प्यार करता था जैसे बाप अपने सगे बच्चों से करता है। उनको गोद में भी लेता था। मैं ज्ञान में नहीं था ना इसलिए वह दृश्य देख मुझे बहुत गुस्सा आया, नफ़रत आयी कि यह बाबा क्या कर रहा है? मैं दूर दरवाज़े के पास ही खड़ा हुआ था। मुझे नज़दीक नहीं बुलाया गया।

बाबा के बोल ने मुझे अनमोल बना दिया

बाबा सबसे मिल चुके थे, फिर भी मुझे नहीं बुलाया गया। बाद में मेरी बहन बाबा का हाथ पकड़कर ले आयी और मेरे सामने खड़ा कर दिया। वह बाबा से मेरा परिचय कराने लगी कि बाबा, यह मेरी बुआ का लड़का है, वो करता है, यह करता है, आदि। उसके बाद बाबा ने मेरी तरफ़ देखा और आगे चला गया। मेरे से कुछ नहीं बोला। चार-पाँच फुट आगे चला गया और वहाँ जाकर रुक गया। फिर मुड़कर वापस आ गया। आकर मुझे देखने लगा। मैं भी बाबा को देखता रहा। जैसे सामान्य रूप में एक व्यक्ति दूसरे को देखता है तो दूसरा भी उसको देखता है। तीन-चार मिनट बाबा मुझे देखता रहा। मुझे ऐसे लग रहा था कि बाबा मुझे छह मास से देख रहा है। फिर बाबा मुड़कर मेरी बहन से कहने लगा, बच्ची, यह बच्चा बहुत अच्छा है। ऐसे कहकर चले गये। बहन भी चली गयी। वे दोनों चले गये तो मैं भी चला गया और दफ़्तर पहुँच गया। जब मैं दफ़्तर में गया तो मेरा मन एकदम बदला हुआ था। मतलब में बहुत अच्छी मनःस्थिति में, खुशी से भरपूर मनःस्थिति में था। उस दिन मैंने बहुत अच्छा काम किया, घर गया, खाना खाया। खाना खाने के बाद मैं एक-डेढ़ घण्टा विश्राम करके आता था। लेकिन उस दिन खाना खाकर सीधा फिर दफ़्तर आ गया और काम करना शुरू किया। बाबा से मिलकर, उनकी दृष्टि लेकर मुझे बहुत अच्छा लगने लगा। फिर 4-5 दिन तक मैं सेवाकेन्द्र की तरफ़ गया नहीं। फिर मुझे बहन याद आयी तो बहन के पास चला गया। वह मुझे घर के ऊपर आश्रम पर ले गयी। वहाँ कोई अनुभवी बहन थी, वह मुझे ज्ञान समझाने लगी। उसकी बातें बहुत अच्छी लगने लगी। उसके बाद मेरी बहन ने कहा, आप चार-पाँच दिन एक-एक घण्टा यहाँ पर आना, बाद में इस ज्ञान में चलना या न चलना वह आपके ऊपर है। मैंने मान लिया और 5-6 दिन जाकर ज्ञान लिया। बहनों से ज्ञान सुनने से मेरे में परिवर्तन आने लगा और मैंने रोज़ जाना शुरू कर दिया।

लेकिन मैं ऐसा आदमी था जो खूब सिगरेट पीता था, क्लब जाकर गैम्बलिंग करता था, सब काम करता था और विकारी तो था ही, पाँच बच्चे थे। रेलवे में पोस्ट अच्छी होने के कारण तनख्वाह भी बड़ी अच्छी मिलती थी। जिस दिन से मैंने आश्रम जाना शुरू किया उस दिन से मैंने अपनी पत्नी को विकारी दृष्टि से न देखा। पवित्र रहने के लिए मुझे किसी ने कहा नहीं। यह अपने आप मन में शुद्ध भावना आने लगी। यह सब थी ज्ञान और उन बहनों के पवित्र वायब्रेशन्स की कमाल। कुछ मास के बाद मेरे भाई की लड़की की शादी थी। उस शादी में जाना ही पड़ा। वहाँ बहुत अच्छी-अच्छी मिठाइयाँ आदि दे रहे थे परन्तु मैंने कुछ नहीं लिया, कुछ नहीं खाया। मुझे किसी ने नहीं बताया था कि बाहर की चीजें नहीं खानी चाहिएँ। उनको मैंने कहा, मुझे फल ला दो, बस। इस तरह आश्रम पर रोज़ जाने से मुझे ये सारी प्रेरणायें आती थीं।

मैं सम्पूर्ण बदल गया

कुछ दिनों के बाद सहारनपुर से एक पार्टी मधुबन आ रही थी। उसके साथ मुझे भी भेजा गया। मधुबन आकर मैं बाबा से मिला। बाबा ने तो मुझे पहले सहारनपुर में दृष्टि दी हुई थी और कहा भी था कि यह बहुत अच्छा बच्चा है। बाबा ने बहुत प्यार किया। पहले मम्मा से मिला, बाद में बाबा से। दोनों ने इतना प्यार किया कि मैं सम्पूर्ण बदल गया। मधुबन से जब मैं सहारनपुर आया तो मेरी बदली अम्बाला हो गयी और मेरा भोगी जीवन, योगी जीवन में परिवर्तित हो गया। मैंने यह देखा कि बाबा जब किसी को दृष्टि देता था तब हर कोई व्यक्ति ज्ञान में चलना शुरू कर देता था। क्योंकि बाबा में शिव बाबा बैठकर डायरेक्ट काम करता था ना! जो बाबा से दृष्टि लेता था उसको ही पता नहीं पड़ता था कि मैं कहाँ हूँ, क्या कर रहा हूँ, कैसे कर रहा हूँ? वह अपने आप बदल जाता था। उसके मन, वचन, कर्म, सम्बन्ध, सम्पर्क में बदलाव आ जाता था, श्रेष्ठता आ जाती थी। उनके रिश्तदार भी ये सब देखकर आश्चर्य खाते थे। इस प्रकार साकार बाबा से मिलना माना जीवन परिवर्तन होना, भोगी से योगी बनना।

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अनुभवगाथा

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