नागपुर, महाराष्ट्र से ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन जी कहतीं हैं; सन् 1956 में करनाल में सेवा आरम्भ हुई। मनोहर दादी जी के बारे में सुना था कि एक देवी जी भगवान के दर्शन कराती है। तो तीसरे ही दिन प्रभु मिलन की आश लिये सेवाकेन्द्र पर पहुंची। तब से मैं लौकिक माँ तथा लौकिक बहन सावित्री जी के साथ नियमित ज्ञान-अमृत का लाभ लेती रही।
बाबा से मिलने के पूर्व बाबा को मैंने पत्र लिखा कि सेवा में समर्पित होने की मेरी बहुत इच्छा है। मनोहर दादी जी को वो पत्र दिया। दादी जी ने भी बाबा को हमारे परिवार का समाचार तथा मेरे स्वास्थ्य के बारे में लिखा कि इसकी तबीयत बहुत नाज़ुक है। ठीक 7 दिन के बाद बाबा का लाल अक्षरों में हस्तलिखित पत्र पाया। बाबा ने लिखा था, ‘बच्ची का पत्र पाया। अगर यज्ञ में रहना चाहती है तो रह सकती है। अगर बच्ची बीमार है तो इसका इलाज देहली में कराया जा सकता है। बशर्ते पहले माँ (मम्मा) से मिले।’
लगभग 15 दिन के बाद मम्मा-बाबा का देहली में आगमन हुआ। मैं, मनोहर दादी जी तथा लौकिक माताजी के साथ देहली पहुंची। पहली मुलाक़ात में ही बाबा के अलौकिक व्यक्तित्व की छाप मेरे मानस पटल पर अंकित हो गयी। बाबा को फ़रिश्ते के रूप में देखकर अन्तरात्मा ने महसूस किया कि ‘जो पाना था सो पा लिया।’ प्यारे बाबा ने जो पत्र में लिखा था कि बच्ची का इलाज देहली में कराया जा सकता है, यही वाक्य मेरे लिए वरदान सिद्ध हुआ। देहली भूमि पर बाबा की दृष्टि मिलते ही मेरे स्वास्थ्य में परिवर्तन आना आरम्भ हुआ। जो दवाइयाँ और परहेज़ मैं करती थी, सब बन्द कर दिये। बाबा ने दृष्टि से ही मुझे निरोगी भव का वरदान दे दिया। पूर्व जीवन की हलचल के कारण जीवन बहुत दुःखी था लेकिन बाबा को पाकर गीत की ये पंक्तियाँ याद आ गयीं, ‘किसी ने मुझको बनाके अपना, मुस्कराना सिखा दिया…।’ यह प्रैक्टिकल वरदान सिद्ध हुआ। मेरे जीवन के परिवर्तन को देख लौकिक के कई सदस्य ज्ञान में चलने लगे और कई समर्पित रूप से सेवायें भी देने लगे।
एक बार मैं बाबा के पास बैठी थी। मनोहर दादी जी भी वहीं थी। कुछ ही क्षणों के लिए बाबा ने मुझे योग-दृष्टि दी तो ऐसे महसूस हुआ जैसेकि भृगु ऋषि मेरी जन्मपत्री देख रहा हो। तुरन्त बाबा ने मुड़कर दादी जी को कहा, ‘यह बच्ची बहुत भाग्यशाली है।’ इन वरदानी शब्दों को मैं आज भी महसूस करती हूँ कि कैसी भी परिस्थिति हो बाबा की शीतल छाया में सुरक्षित हूँ।
बाबा सदा ही न्यारे-प्यारे रहते थे। बच्चों से स्नेह बहुत था इसलिए बच्चों की उन्नति का जितना ख्याल करते थे उतना ही उपराम भी रहते थे। बाबा में सदा आन्तरिक नशा था कि आज यह तन बूढ़ा है, कल बाबा मिचनू श्रीकृष्ण बनेगा । बाबा सदा ही हर कार्य स्वयं करके सिखाते थे। इसलिए बिना कहे सभी कार्यों में जुट जाते थे। एक बार आबू में पानी की बहुत दिक्कत थी। हैण्ड पम्प से पानी खींचना था। बाबा ने सभी से पूछा कि क्या ये छोटी नाज़ुक बच्चियाँ पानी खींचेंगी? फिर स्वयं हैण्ड पम्प चलाना शुरू किया तो तुरन्त पम्प के पास पानी खींचने वालों की लाइन लग गयी।
एक बार यज्ञ में सिन्धी मुरली लिखने वाली बहन बीमार हो गयी। मैं उस समय सिन्धी पढ़ना तो जानती थी लेकिन लिखना नहीं आता था। जब बाबा को पता चला तो कहा, ‘क्यों बच्ची, लिखना नहीं आता तो सीख नहीं सकती? अगर नहीं सीखती तो बाबा कहेगा या तो बच्ची को सीखने का शौक़ नहीं है या बुद्धू बुद्धि है।’ तो बाबा की ऐसी शक्तिशाली प्रेरणा से दो दिन में सिन्धी लिखना सीख गयी। बुज़ुर्ग होने पर भी बाबा को हर सेवा करने का शौक था। सब्ज़ी काटने से लेकर अनाज की सफाई तक हर सेवा शौक़ से करते थे और करवाते थे। कभी बच्चों को पहाड़ी पर घुमाने ले जाते थे, कभी पिकनिक कराते थे, कभी बच्चों के साथ खेल-पाल करते थे। बाबा को बगीचे का बहुत शौक़ था।
पार्टियाँ मधुबन आतीं तो सभी को ठीक प्रबन्ध मिला या नहीं, कमरे की खिड़कियाँ खुली हैं या नहीं… हर प्रकार से बाबा स्वयं ध्यान देते थे। बच्चों को मच्छर न काटें इसलिए हवन का धूप कमरों से घुमवाते थे। जिस दिन पार्टी मधुबन पहुँचती थी उसी रात्रि को बाबा स्वयं सब कमरों में चक्कर लगाकर देखते थे।
बाबा तो बेफ़िकर बादशाह था। रात को जागकर भी टाँग पर टाँग चढ़ाये योग में बैठ जाता था। बाबा से मैंने सदा हल्का रहना सीखा। शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा को सदा कम्बाइण्ड रूप में मैंने अनुभव किया। फिर भी शिव बाबा की प्रवेशता से शब्दों में अथॉर्टी महसूस होती थी और ब्रह्मा बाबा कहता था कि बाबा ऐसे कहता है। साकार में बाबा से मात-पिता, शिक्षक-सखा के रूप में पालना पाने का सौभाग्य मिला।
बच्चों से कोई ग़लती हो जाये तो रियलाइज़ कराने का बाबा का तरीक़ा बड़ा अनोखा था। एक बार मैंने कपड़े धोकर सुखाये, लेकिन उतारना भूल गयी। रात को सोते समय याद आया लेकिन कड़ाके की ठण्ड थी तो सुस्ती कर गयी। सवेरे याद आया लेकिन सोचा कि क्लास के बाद उतार लूँगी लेकिन फिर भूल गयी। अमृतवेले बाबा ने देखा तो कपड़े उतरवा लिये। क्लास के बाद जब मैंने जाकर देखा तो पाया कि कपड़े हैं नहीं। पता चला कि बाबा के पास हैं। मैं बाबा के पास गयी। बाबा ने मेरी ग़लती का प्यार से एहसास कराया। कहा, ‘देखो बच्ची, कल कपड़े उतारे नहीं, कितनी मिट्टी चढ़ी होगी। मिट्टी वाले कपड़े तुम देवता बनने वाले बच्चे कैसे पहन सकते हो? कपड़े गिर जाते तो दुबारा धोने के लिए साबुन, पानी और समय भी दोबारा खर्च होता था ना! यह बोझ तुम्हारे ऊपर ही चढ़ जाता ना!’ इस प्रकार, बाबा ने कार्य के प्रति दक्षता और कर्म की गति का ज्ञान देकर प्यार से भूल का अनुभव कराया।
एक भाई ग़लती करके मधुबन में आया था। सभी सोच रहे थे कि बाबा ग़लती के लिए उसे ज़रूर कुछ कहेगा। दो-चार दिन बीत गये फिर भी बाबा ने कुछ नहीं कहा बल्कि और ही उसे विशेष प्यार की पालना देता रहा। कई दिनों तक बाबा ने कुछ कहा ही नहीं, आखिर उसके जाने का दिन आया। सबने सोचा कि आज तो बाबा ज़रूर कहेगा। लेकिन सबने देखा कि बाबा ने उसे प्यार से विदाई दी। आखिर जब बाबा से इसका कारण पूछा तो बाबा ने कहा, ‘देखो, बच्चा जानता है कि उसने ग़लती की है, बड़ी हिम्मत करके बाबा के पास आया था, यदि बाबा कुछ कहता तो बच्चा फंक हो जाता, दोबारा आने की हिम्मत नहीं करता। इसलिए बाबा ने उसे स्नेह देकर शक्ति भर दी। अब बाबा मुरली में ज़रा भी इशारा देगा तो बच्चा समझ जायेगा और स्नेह की शक्ति से अपने को चेंज कर लेगा।’
अक्सर मैंने देखा, बच्चों से ग़लती होने पर बाबा बच्चों की नब्ज़ देखकर शिक्षायें देता था। बच्चों में सुनने की हिम्मत है तो बाबा उन्हें बुलाकर प्यार से समझाता था अन्यथा कइयों को तो कहता था, इसे माँ (मम्मा) के पास भेजो।
एक भाई अपनी युगल की शिकायत लेकर बाबा के पास आया। युगल की कई ग़लतियाँ बाबा को एक के बाद एक सुनाता गया। बाबा ने देखा कि इसमें युगल के प्रति कितनी नफ़रत भरी है जो चेहरे से प्रत्यक्ष हो रही है। तो बाबा ने पूछा, ‘बच्चे, क्या उसमें कोई अच्छा गुण भी है? सोच-सोच के वह बताने लगा कि ये-ये गुण हैं। बाबा पूछता गया, और कोई अच्छा गुण है? वह सोच-सोचकर बताता गया और साथ-साथ उसके चेहरे पर जो नफ़रत के भाव थे वे स्नेह में बदलते गये। तब बाबा ने कहा, ‘देखो, आज से एक-दो की विशेषता देखो, कमियाँ नहीं क्योंकि कमियाँ देखने से आपसी सम्बन्धों में तनाव आता है। इसलिए सदा गुणों को ही देखो।’ बाबा की यही शिक्षा उस परिवार में खुशहाली ले आयी। ऐसा था हमारा प्यारा बाबा। ऐसा प्यार करेगा कौन!… करेगा कौन!
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