Bk puri bhai bangluru anubhavgatha

बी के पुरी भाई – अनुभवगाथा

बेंगलूरु से ब्रह्माकुमार पुरी भाईजी (ओ.आर.सी. गुरूग्राम, आशा बहनजी के लौकिक पिताजी) अपने अलौकिक अनुभव सुनाते हैं कि 25 जनवरी, 1958 की शाम को मेरे लौकिक मामा का लड़का मेरे पास आया और कहने लगा कि चलो, यहाँ ब्रह्माकुमारी बहनें आयी हैं। हम दोनों चल दिये जहाँ बहनें ठहरी थीं लेकिन ज्ञान समझने के विचार से नहीं। तिलक नगर में हरविलास रायजी ने एक छोटा-सा कमरा बहनों को दिया था जहाँ क्लास होती थी। हम वहाँ पहुँचे तो आत्ममोहिनी (गंगे) दादीजी ने हमें बिठाया और संस्था का लक्ष्य बताया; मनुष्य से देवता बनने का, दैवी गुण धारण करने का और अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाने का। मैंने पूछा कि आप मनुष्य से देवता बना सकते हो? उन्होंने कहा कि आपको जैसा हम कहें वैसा अपने को परिवर्तन करना पड़ेगा। हम दोनों भाई हँसी-मजाक करके वहाँ से अपने घर आ गये। भोजन आदि करके सो गये।

तुम्हारा नाम शिव बाबा के पास भेज दिया है

अचानक अमृतवेले मेरे कमरे में बहुत तेजोमय प्रकाश दिखायी देने लगा। मैं सपने में नहीं, जागृत अवस्था में था। लाइट के अन्दर बूढ़ा बाबा देखा। उनके हाथ में एक कवर था, उस पर गोल्डन शब्दों में कुछ लिखा हुआ था। उसने मुझे कहा, बच्चे, तुम्हारा नाम शिव बाबा के पास भेज दिया है। उस समय मुझे अतीन्द्रिय सुख का अनुभव हो रहा था। यह दृश्य समाप्त हुआ। मैं सोने की कोशिश करने लगा लेकिन नींद का नामो-निशान नहीं। मैं उठा, स्नान किया, उसके बाद सोचा कि आश्रम जाना चहिए। मैं आश्रम की ओर चल दिया। वहाँ पहुँचकर दरवाज़ा खटखटाया। बहनजी ने कहा, बाहर बैठो, अभी खोलते हैं। मन में उत्कण्ठा बहुत थी इसलिए मैं समय से पहले पहुँच गया था। कुछ समय के बाद दरवाज़ा खुला और मैंने बहनजी से पहली बात यही पूछी कि आपके गुरु कौन हैं? बहनजी ने कहा, हमारा गुरु कोई नहीं है, हमारे तो पिताश्री जी हैं। बात करते-करते मेरी नज़र दीवार पर टंगे चित्र पर पड़ी तो मेरी ख़ुशी का पारावार नहीं रहा। मैंने कहा, बहनजी, यही बाबा तो मुझे सुबह तीन बजे मिले और कहा कि तुम्हारा नाम शिव बाबा के पास भेज दिया है। बहनजी ने कहा, आप वही कल्प पहले वाले बाबा के बच्चे हैं, जो आपको बाबा ने अपना बना लिया। मेरे मन में बार-बार यही विचार आते रहे कि जिन्हें मैंने देखा नहीं, वे स्वयं मेरे पास आकर कह रहे हैं कि तुम्हारा नाम शिव बाबा के पास भेज दिया है। उसके बाद सुबह-शाम जाकर कोर्स पूरा किया और नित्य जाने लगा। एक दिन भी मिस नहीं करता था। जो पुरानी आदतें थीं वे सब सहज छूट गयीं। मेरे लौकिक परिवार वाले राधा स्वामी मठ में जाते थे। मुझे भी गुरुजी से मंत्र मिला था। उन्होंने पुरानी आदतें, बीड़ी, सिगरेट, शराब छोड़ने के लिए कहा था लेकिन मैं एक भी आदत छोड़ नहीं पाया था। घर में मांसाहार बनता था। मैंने घर वालों से कहा, मैं होम्योपैथिक दवाई ले रहा हूँ इसलिए इन सब चीज़ों का परहेज़ है। उसके बाद एक दिन भी मांसाहार घर में नहीं बना। लेकिन कुछ दिनों के बाद घर वालों को शक हुआ कि यह रोज़ सुबह ब्रह्माकुमारियों के पास जाता है, ज़रूर कोई जादू उन्होंने कर दिया है। क्योंकि गुरु के कहने पर तो कुछ भी नहीं छोड़ा था और वहाँ जाने पर पहले दिन से ही सब कुछ छोड़ दिया है।

आख़िरकार, वह दिन आया जब मेरी युगल भी साथ चलने लगी

यहाँ की पहली धारणा पवित्रता है, जो मुझे बहुत अच्छी लगी। अगर पवित्र नहीं रहूँगा तो धारणा भी नहीं होगी और प्रभु-मिलन भी नहीं होगा, योग भी नहीं लगेगा। मैं पवित्र रहने लगा लेकिन मेरी पत्नी को लौकिक सम्बन्धियों ने उल्टा-सुल्टा बोलकर भड़का दिया। वह मेरी एक भी बात नहीं मानती थी। इस कारण एक दिन घर में बहुत झगड़ा हो गया। लेकिन मेरा शुरू का नशा भी बहुत था कि पाना था सो पा लिया। मुझे जो चाह थी वह मिल गया। पत्नी क्या जाने कि मुझे क्या मिल गया। मैंने कहा, देखो निर्मला, रोज़-रोज़ का झगड़ा अच्छा नहीं। एक दिन आप भी चलकर तो देखो, अगर तुम्हें कोई बुराई दिखायी दे तो मैं वादा करता हूँ कि मैं भी जाना छोड़ दूंगा। 

इस प्रकार एक साल बीत गया। आख़िर वह दिन आया जो मेरे साथ वह आश्रम आयी। उस समय गंगे दादीजी योग करा रही थीं। जैसे ही मेरी युगल की नज़र गंगे दादीजी पर गयी, उनसे दुर्गा का साक्षात्कार हो गया और वह मन ही मन अपने को दोषी मानने लगी। कहने लगी कि ये तो पवित्र देवियाँ हैं, मैं इनके बारे में ग़लत सोचती थी। उसके बाद निर्मला (मेरी युगल) भी रोज़ मेरे साथ क्लास में आने लगी और फिर सारा परिवार इस ज्ञान में चलने लगा। अब मन में यही चाह थी कि जिस बाबा ने इन बहनों को इतना श्रेष्ठ बनाया और हमारा जीवन बदल दिया तो क्यों ना ऐसे बाबा से जाकर मिलें।

नयनों से नूर बरस रहा था

सुबह क्लास में गंगे दादी ने बताया कि बाबा कानपुर आ रहे हैं। मैं मन ही मन बड़ा खुश हो गया कि बाबा ने हमारी सुन ली। हम बाबा से मिलने कानपुर पहुँच गये। हम क्लास में बैठे थे, बाबा ने क्लास हॉल में प्रवेश किया तो मैं देखता ही रह गया। लम्बा, सफ़ेद वस्त्रधारी, तेजोमय चेहरा, नयनों से नूर बरस रहा था। दिव्य शक्ति से भरपूर ऐसा व्यक्तित्व आज तक नहीं देखा था। बाबा सन्दली पर बैठे तो हॉल में गहरी शान्ति छा गयी। बाबा सबको दृष्टि देने लगे। जब मेरे पर दृष्टि पड़ी तो ऐसा लगा कि आँखों से प्रकाश ही प्रकाश निकल रहा है। जैसे ही बाबा ने पहला शब्द उच्चारण किया, “मीठे बच्चे”, वह दिल को छू गया। फिर मुरली शुरू हुई। मुरली के बाद बाबा कमरे में गये। बहनजी ने कुछ भाई-बहनों को इशारा किया। मैं भी कमरे में गया। मैं बाबा की गोद में चला गया और देह को ही भूल गया। मैं कहाँ हूँ, यह भी भूल गया। बाबा से जो अलौकिक सुख मिला, उसका वर्णन शब्दों में नहीं कर सकता। साकार बाबा का प्यार दुलार कभी भूल नहीं सकता जिसने सर्व सम्बन्धों का दिव्य सुख दिया। मात, पिता, बन्धु, सखा के सम्बन्धों का सुख उस दिव्य शक्ति से प्राप्त हुआ और मेरा निश्चय एकदम दृढ़ हो गया। बाबा कहते थे, सोचो, दुनिया जिसके एक साक्षात्कार के लिए तरसती है, मैं उसकी गोदी में बैठा हूँ। बाबा की दृष्टि में सभी बच्चे समान थे। बाबा कहते थे कि बाबा तो ग़रीब निवाज़ है। दिल से यही निकलता था कि ‘इतना प्यार करेगा कौन’!

आया था जान से मारने, आ गया शरण में

लौकिक में मैं मयूर मिल में लेबर ऑफ़िसर था। मैंने एक लेबर को बर्खास्त कर दिया तो उसको बहुत गुस्सा आया और कहा कि मैं पुरी को जान से मार दूंगा। जब मुझे मालूम पड़ा तो मैंने गंगे दादी को जाकर सुनाया कि आज मेरे साथ ऐसी घटना घटने वाली है। दादी ने तुरन्त बाबा को फोन किया कि बाबा पुरी भाई को आज एक लेबर जान से मारने के लिए कह रहा है। तब बाबा ने कहा, बच्चे को कहो कि उसको कुछ भी नहीं होगा, निश्चिन्त रहे। मैं जब मिल से बाहर आया तो वह दरवाज़े पर ही खड़ा था मारने के लिए। लेकिन बाबा का जादू देखो, वह तुरन्त मेरे पैरों में पड़ गया, माफ़ी माँगने लगा और कहा कि मेरा हिसाब कर दो। इस प्रकार साकार में दूर होते हुए भी बाबा बच्चों की रक्षा करते थे। बाबा के बारे में क्या वर्णन करें, क्या छोड़ें समझ में नहीं आता। इतना तो मैं कह सकता हूँ कि साकार बाबा एक ही हैं, उन जैसा और कोई इस संसार में न था, न है और न कभी होगा।

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अनुभवगाथा

Bk sundarlal bhai anubhavgatha

सुन्दर लाल भाई ने 1956 में दिल्ली के कमला नगर सेंटर पर ब्रह्माकुमारी ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा बाबा से पहली बार मिलकर उन्होंने परमात्मा के साथ गहरा आध्यात्मिक संबंध महसूस किया। बाबा की दृष्टि से उन्हें अतीन्द्रिय सुख और अशरीरीपन

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Dadi brijindra ji

आप बाबा की लौकिक पुत्रवधू थी। आपका लौकिक नाम राधिका था। पहले-पहले जब बाबा को साक्षात्कार हुए, शिवबाबा की प्रवेशता हुई तो वह सब दृश्य आपने अपनी आँखों से देखा। आप बड़ी रमणीकता से आँखों देखे वे सब दृश्य सुनाती

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Bk mohini didi america anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी मोहिनी बहन जी की जीवन यात्रा आध्यात्मिकता और सेवा के प्रति समर्पण का उदाहरण है। 1956 में ईश्वरीय विश्व विद्यालय से जुड़ने के बाद, उन्होंने न्यूयॉर्क में ब्रह्माकुमारी सेवाओं की शुरुआत की और अमेरिका, कैरेबियन देशों में आध्यात्मिकता का

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Dadi gange ji

आपका अलौकिक नाम आत्मइन्द्रा दादी था। यज्ञ स्थापना के समय जब आप ज्ञान में आई तो बहुत कड़े बंधनों का सामना किया। लौकिक वालों ने आपको तालों में बंद रखा लेकिन एक प्रभु प्रीत में सब बंधनों को काटकर आप

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Dada chandrahas ji

चन्द्रहास, जिन्हें माधौ के नाम से भी जाना जाता था, का नाम प्यारे बाबा ने रखा। साकार मुरलियों में उनकी आवाज़ बापदादा से पहले सुनाई देती थी। ज्ञान-रत्नों को जमा करने का उन्हें विशेष शौक था। बचपन में कई कठिनाइयों

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Dadi mithoo ji

दादी मिट्ठू 14 वर्ष की आयु में यज्ञ में समर्पित हुईं और ‘गुलजार मोहिनी’ नाम मिला। हारमोनियम पर गाना और कपड़ों की सिलाई में निपुण थीं। यज्ञ में स्टाफ नर्स रहीं और बाबा ने उन्हें विशेष स्नेह से ‘मिट्ठू बहन’

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Dadi rukmani ji anubhavgatha 2

रुकमणी दादी, वडाला की ब्रह्माकुमारी, 1937 में साकार बाबा से मिलीं। करांची से हैदराबाद जाकर अलौकिक ज्ञान पाया और सुबह दो बजे उठकर योग तपस्या शुरू की। बाबा के गीत और मुरली से परम आनंद मिला। उन्होंने त्याग और तपस्या

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Bk satyavati didi anubhavgatha

तिनसुकिया, असम से ब्रह्माकुमारी ‘सत्यवती बहन जी’ लिखती हैं कि 1961 में मधुबन में पहली बार बाबा से मिलते ही उनका जीवन बदल गया। बाबा के शब्द “आ गयी मेरी मीठी, प्यारी बच्ची” ने सबकुछ बदल दिया। एक चोर का

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Didi manmohini anubhav gatha

दीदी, बाबा की ज्ञान-मुरली की मस्तानी थीं। ज्ञान सुनते-सुनते वे मस्त हो जाती थीं। बाबा ने जो भी कहा, उसको तुरन्त धारण कर अमल में लाती थीं। पवित्रता के कारण उनको बहुत सितम सहन करने पड़े।

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Bk sudarshan didi gudgaon - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी सुदर्शन बहन जी, गुड़गाँव से, 1960 में पहली बार साकार बाबा से मिलीं। बाबा के दिव्य व्यक्तित्व ने उन्हें प्रभावित किया, बाद उनके जीवन में स्थायी परिवर्तन आया। बाबा ने उन्हें गोपी के रूप में श्रीकृष्ण के साथ झूला

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