Bk sudarshan didi gudgaon - anubhavgatha

बी के सुदर्शन दीदी – अनुभवगाथा

गुड़गाँव से ब्रह्माकुमारी सुदर्शन बहन जी लिखती हैं कि मैं पहली बार सन् 1960 में साकार बाबा से मिली थी। नुमाशाम का समय था, बाबा को साधारण रूप में देखा, शिव बाबा देखने में नहीं आया तो थोड़ा दिलशिकस्त हो गयी क्योंकि मुझे अभी थोड़ा समय ही ज्ञान में हुआ था। इसलिए ज्ञान की गहराई को भी नहीं समझा था परन्तु बाबा का व्यक्तित्व प्रभावशाली लगा। दूसरे दिन मैं सुबह क्लास में जाकर बैठी, थोड़े समय के बाद बाबा आकर गद्दी पर बैठे तो बाबा ने एक-एक को दृष्टि दे निहाल किया। जब मेरे पर दृष्टि पड़ी तो एक सेकेण्ड में बाबा के मस्तक पर लाइट का गोला दिखायी दिया और वहाँ से साकार बाबा गायब हो गये। वहाँ पर सिर्फ अति सुन्दर लाइट ही लाइट दिखायी दे रही थी। अब तो मेरे नैनों से प्रेम के आँसू बहने लगे, मन आनन्द से भर गया। एक सेकण्ड भी नैन झपकने को मन नहीं कर रहा था। यही इच्छा थी कि शिव बाबा को देखती रहूँ और उनके स्नेह का अनुभव करती रहूँ। थोड़े ही समय में यह दृश्य समाप्त हो गया और ऐसे लगा मानो मेरी जन्म-जन्म की परमात्मा को पाने की आश पूरी हो गयी; आज मुझे अपना जन्म-जन्म का बिछुड़ा पारलौकिक बाप मिल गया। जिसकी खोज में बचपन से भक्ति, व्रत, नियम किये, वह दिन आज आ गया, मेरा प्यारा शिव बाबा मुझे मिल गया। बाबा ने मुझे सारे सम्बन्धों का अनुभव कराया, मुझे सेकेण्ड में निश्चय हो गया कि सत्य ज्ञान है तो यही है। इससे ऊँचा ज्ञान और कोई है ही नहीं। जीवन है तो यही है, प्रभु-प्राप्ति का कोई और रास्ता है ही नहीं।

मैं बन गयी श्रीकृष्ण के साथ झूला झूलने वाली ‘गोपी’

भक्ति में मैंने ‘सुखसागर’ पढ़ा था, जिसमें वर्णन आता है कि श्रीकृष्ण के साथ गोप-गोपियाँ झूला झूलती थीं। तो मेरे मन में भी आता था कि काश, मैं भी गोपी होती। जानी-जाननहार बाबा ने मुझे यह भी अनुभव करा दिया। अचानक बाबा ने एक दिन कहा, ‘चलो बच्ची, बाबा-मम्मा के साथ झूला झूलो’। मैं तो बहुत खुश हो गयी और जाकर झूले में बाबा के साथ बैठ गयी, बस ऐसे लगा कि मैं श्रीकृष्ण के साथ झूला झूल रही हूँ और उसी में मगन हो गयी। तो बाबा ने वह भी आश पूरी कर दी।

एक बार की बात है, बरसात के दिनों में बारिश बहुत तेज़ हो रही थी, हम ट्रेनिंग सेक्शन में ठहरे थे। क्लास में जाने के लिए रूम से बाहर आये तो अभी जहाँ शान्ति स्तम्भ बना है वहाँ बहुत पानी भरा हुआ था, उसमें ईंटें रखी हुई थीं। मैं धीरे-धीरे ईंटों पर पैर रखकर आ रही थी। सामने से बाबा आ रहे थे, उनकी नज़र मेरे पर पड़ी। उनको लगा होगा कि बच्चों को बहुत तकलीफ़ हो रही है। साइड में लम्बे पत्थर रखे हुए थे, उसी वक्त बाबा खुद दो-दो ईंटें लगाकर ऊपर लम्बे-लम्बे पत्थर रखने लगे। बाबा को देखकर सभी बच्चे दौड़ कर आये और कुछ ही पल में पत्थरों का पुल बना दिया। सचमुच कितने निरहंकारी थे प्यारे बाबा !

याद आयी सुदामा की कहानी

एक बार, मैं मधुबन में बाबा से मिलने आयी थी और बाबा के रूम में बैठी थी। वहाँ और एक पार्टी बाबा से मिल रही थी। एक गाँव का बुज़ुर्ग भाई अपने साथ एक गठरी लाया था। उसमें और छोटी-छोटी गठरियाँ थीं, किसी में दाल थी, किसी में चावल, किसी में आटा था। वह ले तो आया लेकिन उन्हें देने में उसको लज्जा आ रही थी कि इतने बड़े बाबा को ये छोटी-सी वस्तु कैसे दूँ! वह गठरी को छुपाने लगा लेकिन बाबा तो बच्चों के दिल के भाव को जानने वाला है। बाबा की दृष्टि उस गठरी पर पड़ते ही बाबा ने कहा, ‘लाओ बच्चे लाओ, बाबा के लिए क्या लाये हो?’ बाबा ने अपना लम्बा हाथ करके उसकी गठरी ले ली और बाबा ने उसे खोला तो अलग-अलग छोटी-छोटी गठरियाँ बँधी हुई थीं। यह देखकर मुझे सुदामा की कहानी याद आ गयी। फिर तो एक भाई के द्वारा भोली भण्डारिन को सब गठरियाँ भेज दी गयी और कहा कि आज ही ये दाल और चावल डाल कर ब्रह्मा भोजन बनाना, बाबा स्वयं भी खायेंगे। ऐसे थे ग़रीब बच्चों के ग़रीब निवाज़ बाबा। आज भी जब मैं मधुबन आती हूँ तो यह दृश्य मेरे मन में तरोताज़ा हो जाता है।

एक विनम्र सेवाधारी

एक बार बाबा दिल्ली में मेजर की कोठी पर आये थे, मैं भी बाबा से मिलने गयी, जहाँ हज़ारों बच्चे आये थे। बाबा अपने हाथों से सभी को चाय पिला रहे थे। मैंने यह दृश्य देखा तो ऐसा लगा कि इतना बड़ा बाबा सेवाधारी बन सब बच्चों की सेवा कर रहे हैं और बच्चे चाय पीकर आनन्दित हो रहे हैं। ऐसे थे हमारे निर्मानचित्त अलौकिक बाबा ।

मैंने भी एक सेकेण्ड में अपने जीवन का फैसला कर लिया और बाबा के आगे समर्पित होकर ईश्वरीय सेवा में लग गयी। वो दिन और आज का दिन, कई विकट परिस्थितियाँ आयीं, कितनी ही लौकिक परीक्षायें आयीं लेकिन मेरा निश्चय अटूट रहा। जिस दिन बाबा के घर में क़दम रखा तो प्रण किया कि बाबा के घर से अर्थी ही निकलेगी।

एक बार मेरी परीक्षा लेने के लिए एक व्यक्ति आया जिसको कई सिद्धियाँ प्राप्त थीं। मैंने उसे म्यूज़ियम समझाया और ज्ञान सुनाया लेकिन उसने मेरे से कोई बात नहीं की। फिर उस भाई से कहा कि, मैं उस ज्ञान-योग की सीढ़ी पर चढ़ चुकी हूँ जो स्वयं भगवान ने दी है। इससे ऊँची सीढ़ी कोई और है ही नहीं। ऐसी दृढ़ता और निश्चय मेरे बाबा ने मुझे दी।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Dadi atmamohini ji

दादी आत्ममोहिनी जी, जो दादी पुष्पशांता की लौकिक में छोटी बहन थी, भारत के विभिन्न स्थानों पर सेवायें करने के पश्चात् कुछ समय कानपुर में रहीं। जब दादी पुष्पशांता को उनके लौकिक रिश्तेदारों द्वारा कोलाबा का सेवाकेन्द्र दिया गया तब

Read More »
Bk gyani didi punjab anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी ज्ञानी बहन जी, दसुआ, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 1963 में पहली बार बाबा से मिलने पर उन्हें श्रीकृष्ण का छोटा-सा रूप दिखायी दिया | बाबा ने उनकी जन्मपत्री पढ़ते हुए उन्हें त्यागी,

Read More »
Bk pushpa didi haryana anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन जी ने 1958 में करनाल सेवाकेन्द्र पर साकार ब्रह्मा बाबा से पहली बार मिलन का अनुभव किया। बाबा के सानिध्य में उन्होंने जीवन की सबसे प्यारी चीज़ पाई और फिर उसे खो देने का अहसास किया। बाबा

Read More »
Bk vijaya didi haryana anubhavgatha

विजया बहन, जींद, हरियाणा से, श्रीकृष्ण की भक्ति करती थीं और उनसे मिलने की तीव्र इच्छा रखती थीं। उन्हें ब्रह्माकुमारी ज्ञान की जानकारी मिली, जिससे उनके जीवन में बदलाव आया। ब्रह्मा बाबा से पहली मुलाकात में, उन्हें अलौकिक और पारलौकिक

Read More »
Bk prem didi punjab anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी प्रेम बहन जी, फरीदकोट, पंजाब से, 1965 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त करने के बाद साकार बाबा के साथ अपने अनमोल अनुभव साझा करती हैं। बाबा से पहली मुलाकात में ही उन्होंने रूहानी शक्ति का अनुभव किया और अपने जीवन

Read More »
Dadi gulzar ji anubhav

आमतौर पर बड़े को छोटे के ऊपर अधिकार रखने की भावना होती है लेकिन ब्रह्मा बाबा की विशेषता यह देखी कि उनमें यह भावना बिल्कुल नहीं थी कि मैं बाप हूँ और यह बच्चा है, मैं बड़ा हूँ और यह

Read More »
Dadi mithoo ji

दादी मिट्ठू 14 वर्ष की आयु में यज्ञ में समर्पित हुईं और ‘गुलजार मोहिनी’ नाम मिला। हारमोनियम पर गाना और कपड़ों की सिलाई में निपुण थीं। यज्ञ में स्टाफ नर्स रहीं और बाबा ने उन्हें विशेष स्नेह से ‘मिट्ठू बहन’

Read More »
Bk hemlata didi hyderabad anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी हेमलता बहन ने 1968 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और तब से अपने जीवन के दो मुख्य लक्ष्यों को पूरा होते देखा—अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और जीवन को सच्चरित्र बनाए रखना। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ज्ञान और

Read More »
Bk radha didi ajmer - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी राधा बहन जी, अजमेर से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 11 अक्टूबर, 1965 को साप्ताहिक कोर्स शुरू करने के बाद बाबा से पत्राचार हुआ, जिसमें बाबा ने उन्हें ‘अनुराधा’ कहकर संबोधित किया। 6 दिसम्बर, 1965

Read More »
Dadi pushpshanta ji

आपका लौकिक नाम गुड्डी मेहतानी था, बाबा से अलौकिक नाम मिला ‘पुष्पशान्ता’। बाबा आपको प्यार से गुड्डू कहते थे। आप सिन्ध के नामीगिरामी परिवार से थीं। आपने अनेक बंधनों का सामना कर, एक धक से सब कुछ त्याग कर स्वयं

Read More »