गाँधी नगर, गुजरात से ब्रह्माकुमारी कैलाश बहन जी अपने अनुभव इस प्रकार सुनाती हैं कि मेरी जन्मपत्री में लिखा था कि यह बच्ची छोटेपन में सन्यासी बन जायेगी और जहाँ भी जायेगी वहाँ सभी सुख उपलब्ध होंगे लेकिन 25 वर्ष की आयु में ही मर जायेगी। घर वालों को इस बात का दुःख होता था और इसलिए स्कूल में भी नहीं जाने दिया। मेरा स्वभाव शान्त और एकान्त प्रिय था। मेरे पिता जी के कई गुरु थे। मैं लास्ट गुरु के पास जाया करती थी। गुरु जी और अन्य साधु-सन्त भी यही कहते थे कि यह लड़की 25 साल से ज़्यादा नहीं जीयेगी।
जब मैं पहली बार सन् 1962 में बाबा के पास आयी तो बाबा ने भी यही कहा, बच्ची, तुम्हारी उम्र बहुत छोटी है। सभी यही कहते थे कि 25 साल के बाद एक दिन भी जिन्दा नहीं रह सकती। बाबा ने भी ऐसा ही कहा था। लेकिन बाबा के कहने में और दूसरे लोगों के कहने में काफ़ी अन्तर था; क्योंकि बाबा ने साथ में यह भी कहा कि हो सकता है योगबल से आयु बढ़ जाये। मैंने कभी उम्र बढ़ाने के लिए योग नहीं किया। लेकिन बाबा ने जो वरदान दिया था उसके कारण आज तक बाबा की सेवा में तत्पर हूँ। उन 25 सालों में मृत्यु के कई कारण बनते रहे लेकिन बाबा की मदद से सदा बचती रही। जब 25 साल पूरे होने को थे उसी दिन मैं ट्रेन से गिर गयी और ट्रेन में फँस गयी। लेकिन किसी ने दौड़कर मुझे बाहर निकाला और मैं बच गयी।
इस विषय में एक और घटना मुझे याद आ रही है। तब मैं होशियारपुर सेन्टर पर कृष्णा बहन (अम्बाला वाली) के साथ रहती थी। योग के समय कृष्णा बहन रिकार्ड नम्बरवार रख जाती थी और मैं नम्बरवार बजाती रहती थी क्योंकि मुझे पढ़ना नहीं आता था। एक दिन सभी योग में बैठे थे, मैंने रिकार्ड लगाया ‘मेरा मन डोले, मेरा तन डोले…।’ उसी समय क्लास हॉल में मेरे सिर पर साँप गिरा और फिर गोद में बैठ गया। सन्दली पर बैठी बहन योग करा रही थी, वह घबरा गयी। मैंने इशारे से कहा, आप बैठे रहो। क्लास में किसी को पता नहीं चला और मैं एक ही रिकार्ड बजाती रही। साँप मेरे को देखता था, मैं उसको देखती थी। एक ही रिकार्ड लगाती रही तो कृष्णा बहन सोचने लगी कि एक ही रिकार्ड क्यों बजा रही है। कुछ समय के बाद जैसे ही रिकार्ड बन्द किया तो साँप मेरे ऊपर चढ़ने लगा। मैंने उसे झटके से नीचे गिरा दिया और साथ ही वही रिकार्ड लगाकर कृष्णा बहन को बुलाने गयी। कृष्णा बहन ने बोला, अरे कैलाश, तुम आधे घण्टे से एक ही रिकार्ड क्यों लगा रही हो? मैंने कहा, क्लास में साँप गिरा है। मैं उन्हें क्लास हॉल में ले गयी और दरवाज़े से दिखाया, देखा तो वह बहुत मस्ती में नाच रहा था। कृष्णा बहन ने कहा, कमाल है, कब से पड़ा है! मैंने बताया, जब शुरू में गीत लगाया, मेरा मन डोले… तब से मेरी गोद में पड़ा था। कृष्णा बहन ने कहा, मेरा मन डोले, तेरी गोदी में साँप डोले। फिर सबको बाहर बुलाया गया। इस प्रकार उस समय भी बाबा ने ही मुझे साँप से बचा लिया।
मैंने ध्यान के लिए कोई पुरुषार्थ नहीं किया था। लेकिन जब योग में बैठती थी तो मुझे ऐसा अनुभव होता था कि कोई गले में रस्सा डालकर खींच रहा है। इस कारण मुझे बहुत डर लगता था और इसलिए मैं योग में बैठना पसन्द नहीं करती थी, सेवा करना पसन्द करती थी। एक दिन होशियारपुर सेन्टर पर एक बाँधेली माता, जो बाबा से मिलकर आयी थी, मधुबन का अनुभव सुना रही थी। उसका अनुभव सुनकर मुझे भी साकार बाबा से मिलने की तीव्र इच्छा हो गयी। लेकिन कुछ परिस्थितियों के कारण मधुबन आ नहीं पाती थी। अनुभव सुनते-सुनते मैं बाबा की याद में खो गयी और नैनों से अश्रु बहने लगे। फिर कृष्णा दीदी ने योग में बैठ दृष्टि दी तो मैं गुम हो गयी और तीन दिन के बाद मेरी चेतना वापस लौटी। सभी बहनें देख रही थीं कि मैं बहुत खुश हूँ। क्योंकि बाबा ने मुझे सुन्दर-सुन्दर फल-फूल आदि दिखाये थे। मैंने ऐसे फल इकट्ठे किये थे जो कभी नहीं देखे थे। बाबा ने कहा, बच्ची, ये फल किस लिए इकट्ठे किये हैं? मैंने कहा, बाबा ये फल नीचे सबको खिलाऊँगी। तो बाबा ने कहा, सबको खिलायेगी? पक्का? मैंने कहा, जी बाबा। बाबा मुस्कराने लगे।
सन् 1962 में बाबा से मिल रही थी, वहाँ दीदी भी बैठी थी। दीदी ने कहा, बाबा यह बच्ची हिमाचल की है, भोली है, अच्छी है और ध्यान में जाती है। एक दिन बाबा ने कहा, बच्ची, तुम्हारा इतना अच्छा ध्यान में जाने का पार्ट है तो तुम पंजाब क्यों जाती हो? बाबा जहाँ भेजे वहाँ जायेगी? मैंने कहा, ”जी बाबा, आप जहाँ भेजेंगे वहाँ जाऊँगी लेकिन घर के नज़दीक नहीं भेजना। वहाँ से दूर रखेंगे तो मैं अच्छी सेवा कर सकूँगी।” बाबा ने कहा, “अच्छा बच्ची, तुमको बाबा जयपुर भेज रहे हैं, तो वहाँ जाना और बाबा को रोज़ भोग लगाना क्योंकि तुमको ट्रान्स में जाने की लिफ्ट मिली हुई है। इस गिफ्ट से सेवा करना।” इस प्रकार बाबा ने कपड़े आदि डलवाकर पेटी तैयार करावायी और जयपुर सेवा पर भेजा। आठ मास के बाद बाबा ने मुझे मधुबन बुलाया और पूछा, “बच्ची, जयपुर अच्छा लगता है? खुश हो?” मैंने कहा, “जी बाबा।” फिर बाबा ने पूछा, “बच्ची, तुम रोज़ मुरली पढ़ती हो? मैंने कहा, बाबा मैं पढ़ी नहीं हूँ इसलिए मुरली नहीं पढ़ती हूँ, सुनती हूँ।” तुम्हें पढ़ना तो बहुत था क्यों नहीं पढ़ाई की? मैंने कहा, “ड्रामा में नूंध नहीं होगा।” बाबा बहुत हँसे और बोले, “बच्ची, बाबा का दिया ज्ञान बाबा को ही सुना रही हो?” फिर बाबा ने कहा, “बच्ची, चिन्ता नहीं करो तुम्हें बाबा पढ़ायेंगे। आज शाम को चार बजे ऑफ़िस में आना, बाबा तुम्हें सिन्धी पढ़ना सिखायेंगे।” मैं चार बजे ऑफ़िस में गयी और बाबा ने सिन्धी लिखना शुरू भी किया। इतने में जयपुर से फोन आया कि कैलाश को जल्दी भेज दें, यहाँ बहुत सेवा है। बाबा ने कहा, “बच्ची, तुमको जयपुर वाले बुला रहे हैं।” मुझे लगा कि मेरी पढ़ाई सचमुच ड्रामा में नहीं है। मुझे बहुत दुःख हुआ और रोना भी आया। बाबा बोले, “बच्ची, चुप रहो, सब दुःखों को हरने वाले और सुख देने वाले बाप के सामने रोती हो?” फिर बाबा ने बहुत प्यार करके शान्त किया और बोले, “बच्ची, जयपुर में तुम सारा दिन बिज़ी रहती हो लेकिन रात को सभी सो जायें तब तुम एकान्त में कॉपी-पेन लेकर बाबा की याद में बैठना तो बाबा तुमको पढ़ायेंगे।” मैं मूँझ गयी क्योंकि ब्रह्मा बाबा यहाँ, शिव बाबा ऊपर और मैं जयपुर में। तो बाबा मुझे कैसे पढ़ायेंगे? बाबा ने पूछा, “क्यों, मूँझ रही हो क्या? बाबा में निश्चय नहीं है? बच्ची, बाबा के बोल पर निश्चय रखो।” मैं जयपुर गयी। सारा दिन तो बहुत सेवा होती थी। रात हो गयी, सब सोये हुए थे। मैं उठी और आफ़िस में जाकर बाबा को याद करने लगी। थोड़े समय में ही मैं वतन में गयी। वहाँ देखा बाबा सामने से आ रहे थे और बहुत मुस्करा रहे थे। मैंने कहा, “बाबा, मैं तो चिन्ता कर रही हूँ और आप मुस्करा रहे हैं!” बाबा ने कहा, “बच्ची, रोज़ तुमको पढ़ाने के लिए बाबा मधुबन से आयेगा।” फिर बाबा ने मुझे पढ़ाना शुरू किया। बाबा का पढ़ाना अलग था जैसे यहाँ क, ख, ग, ऐसे नहीं पढ़ाया। लेकिन बाबा मेरे हाथ से ही जोड़ी अक्षर लिखवाता था। मधुबन में जब ब्रह्मा बाबा ने लिखना शुरू किया था तो वह सिन्धी भाषा लिखी थी, जब ऊपर वतन में पढ़ाया तो हिन्दी में ही पढ़ाया। मैं रोज़ वतन में जाती थी और बाबा से पढ़ती थी। पन्द्रह दिन में मैंने हिन्दी पढ़ना सीख लिया। बाबा ने कहा, बच्ची, जितनी लगन से मेहनत करेगी उतना आगे जा सकती है। फिर मैं एकान्त में आधा घण्टा धीरे-धीरे मुरली पढ़ती थी।
ऑपरेशन के समय बाबा आकारी रूप में मेरे पास ही खड़े थे
एक बार की बात है कि मेरी आँखों में बहुत तकलीफ़ थी। सभी ने कहा कि ऑपरेशन कराना पड़ेगा। लेकिन डॉक्टर ने कहा कि ऑपरेशन के बाद देख सकेगी कि नहीं, यह नहीं कह सकते हैं। फिर बाबा से पूछा तो बाबा ने सन्देश में कहा, “बाबा ज्योति देने वाला है, लेने वाला नहीं। इसलिए बच्ची को निश्चिन्त होकर हॉस्पिटल ले जाओ।” हॉस्पिटल में ले गये। दो डॉक्टर ऑपरेशन करने वाले थे, साथ में एक ब्रह्माकुमार डॉक्टर चॉकसी भाई भी ऑपरेशन थियेटर में खड़े थे। जब ऑपरेशन शुरू हुआ तो जो डॉक्टर ऑपरेशन कर रहा था उसे ब्रह्मा बाबा दिखायी दिया और वह देख रहा था कि बाबा की आँखों से सर्चलाइट की किरणें निकल कर मेरी आँखों पर पड़ रही हैं और बाबा ने मेरे सिर पर हाथ रखा हुआ है। यह सब देखकर डॉक्टर को बड़ा आश्चर्य लगा और बोला कि वो कौन थे, उनको कौन अन्दर ले आया? इतने में डॉक्टर चॉकसी भाई ने भी बाबा को देखा। वे बाबा के पास गये तो बाबा वहाँ से गुम हो गये। फिर डॉ.चॉकसी जी ने बोला, “डॉक्टर, आप निश्चिन्त होकर ऑपरेशन कीजिये, बाबा शक्ति देकर गये हैं, इसकी आँखों को कुछ नहीं होगा।” ऑपरेशन सफल हुआ, आँखें ठीक हो गयीं। डॉक्टर को भी बहुत आश्चर्य हुआ। बाद में डॉक्टर ने कोर्स भी किया और क्लास में भी आने लगे।
इस प्रकार सर्वशक्तिवान बाबा ने कम उम्र वाली को जीवनदान दिया, अनपढ़ को पढ़ा-लिखा बनाया, भोली को तीनों लोकों में चक्कर लगाने वाली सन्देशी बनाया, आँखों की रोशनी दी। क्या महिमा करें, कितनी महिमा करें उस महिमापूर्ण बाबा की, सब कम ही रहेगी।
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