Bk chandrika didi

बी के चन्द्रिका दीदी – अनुभवगाथा

महादेव नगर, अहमदाबाद से ब्रह्माकुमारी चन्द्रिका बहन जी कहती हैं कि सन् 1965 की बात है कि एक दिन ब्रह्ममुहूर्त में क़रीब 3.30 बजे मैं कुर्सी पर बैठी थी। ईश्वर-चिन्तन में ही मगन थी। तभी मैंने सफ़ेद प्रकाश की काया वाले व्यक्ति में लाल प्रकाश को प्रवेश करते देखा। कुछ ही सेकेण्ड के बाद वह आकर्षक स्वरूप मेरे निकट आया। मेरे सिर पर हाथ रखा और कहा, “बच्ची, मैं भारत में आया हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ लो।” बहुत ही स्पष्ट रूप से दो बार यह आवाज़ मैंने सुनी और तभी से लेकर मैं कई सत्संगों में, धर्मगुरु, धर्म-उपदेशक और धर्म-प्रचारकों के पास जाने लगी कि जिन्हें ध्यानावस्था में देखा था वह मुझे ज़रूर कभी साकार में मिल जायेंगे। लेकिन काफी सत्संगों में जाने के बावजूद भी मुझे उस दिव्य पुरुष का दर्शन नहीं हुआ।

मेरे दिल से निकला कि यही है, यही है

कुछ मास के बाद हमारे नज़दीक ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की ओर से साप्ताहिक कोर्स का आयोजन हुआ। हमें भी उसमें जाने का निमंत्रण मिला। जो निमंत्रण देने आये थे उन्होंने कहा कि यहाँ आप जैसी छोटी-छोटी बहनें स्वयं भगवान से मिलाने का दावा करती हैं, आप ज़रूर आइये। हमारे आस-पास वाले सभी लोगों को यह मालूम था कि हम काफी भक्ति करते हैं। उन्हों का निमंत्रण सुनकर मेरे माता-पिता सहित पूरे परिवार ने तो सात दिन जाने का फैसला कर लिया लेकिन मैंने इन्कार कर दिया और कहा कि ऐसे भगवान के नाम पर आजकल बहुत निकल पड़े हैं। मेरा अभी किसी में विश्वास नहीं रहा, न ही मुझे भगवान की प्राप्ति के लिए अब और कोई कोशिश करनी है। परिवार से सभी रोज़ जाया करते थे लेकिन मुझे कुछ सुनाते नहीं थे। आखिरकार एक दिन पिताजी ने कहा, बेटी, तुम भी चलो, तुम्हें बहुत अच्छा लगेगा। उस दिन मैं पिताजी के साथ गयी। तब कल्पवृक्ष का पाठ चल रहा था। मैंने चित्र में ब्रह्मा बाबा की तस्वीर देखी और सुना कि परमात्मा शिव इनके तन से गीता-ज्ञान दे रहे हैं। इस बात को सुनते ही मुझे कुछ महीने पहले ध्यानावस्था में देखा वो दृश्य याद आ गया और मेरे दिल से आवाज़ निकली कि यही है, यही है, यही है जिस छवि को मैं इतने दिनों से तलाश रही थी।

बाबा ने किया मुझसे वायदा 

मैं सात दिन का कोर्स भी पूरा नहीं कर पायी। केवल कल्पवृक्ष और तीन लोक के बारे में ही सुना। इसी बीच में गुरुवार को अहमदाबाद के पालड़ी सेवाकेन्द्र पर मेरा जाना हुआ (तब अहमदाबाद में एक ही सेवाकेन्द्र था, वह मकान अभी बदली हो गया है)। मुझे खुली आँखों से योगाभ्यास करने के बारे में कुछ भी मालूम नहीं था लेकिन मेरी लौकिक बड़ी बहन रंजन (वर्तमान समय अफ्रीका में ईश्वरीय सेवा कर रही वेदान्ती बहन) ने मुझे बताया कि योग में आँखें खुली रखना और सामने जो बहन बैठी है उनकी आँखों से आँख मिलाना और अन्दर से बोलना कि मैं आत्मा हूँ… मैं प्रकाश स्वरूप हूँ…। मैं तो उनको देखते-देखते कुछ ही क्षणों में ध्यान में चली गयी। मैंने ध्यानावस्था में फिर ब्रह्मा बाबा को देखा। मैं उनके गले लग गयी। बाबा ने भी कहा, ‘आ गयी बच्ची!’ मैंने कहा, ‘जी बाबा।’ फिर तो मुझे नयी सतयुगी दुनिया के स्वयंवर, रास-मण्डल, गोप-गोपियाँ आदि के साक्षात्कार हुए। काफी समय वतन में ही बहलती रही। फिर बाबा ने कहा, बच्ची, अब तुम जाओ। मैंने कहा, बाबा, मुझे तो यहाँ ही रहना है, और कहीं नहीं जाना है। बाबा ने कहा, बच्ची, यह तो सूक्ष्म वतन है, तुम यहाँ नहीं रह सकती। तुम्हें तो जाकर बाबा की बहुत सेवा करनी है। मैं बाबा की बातों से ज़्यादा अपनी बात को लिये बैठी थी कि नहीं बाबा, मुझे तो यहाँ ही रहना है। ध्यानावस्था में ही मेरा रोना शुरू हो गया। मैं बहुत रो रही थी। तब बाबा ने कहा, “बच्ची, बाबा तुमसे वायदा करता है कि जब भी तुम बाबा को दिल से याद करोगी, बाबा तुम्हें अपने पास वतन में बुला लेगा।” फिर तो रोज़ सुबह 5 बजे जैसेकि वतन में बाबा के पास जाने का नियम ही बन गया। मैंने वतन में बाबा के पास ही सप्ताहिक कोर्स किया। साकार में मुरली सुनने के पहले मैंने वतन में बाबा से कई मुरलियाँ सुनी। देखिये, जब बाबा साकार में थे तो भी आलमाइटी बाबा ने ब्रह्मा बाबा के आकारी स्वरूप से बच्चों की कितनी सेवा और पालना की!

आख़िर वह दिन आया, साकारी फ़रिश्ते से मिलन मनाने का

साक्षात्कार के क़रीब छः मास के बाद मेरा माउण्ट आबू में आना हुआ। ब्रह्मा बाबा से साकार में मिलते हुए मैंने बहुत खुशी के साथ अपने अनुभव बाबा के सामने वर्णन किये। मैंने कहा, बाबा, आपने मुझे अपना साक्षात्कार कराया था। तब बाबा ने बड़ी विनम्रता के साथ कहा, बच्ची, हो सकता है शिव बाबा ने साक्षात्कार कराया होगा। इस बाबा को कुछ भी मालूम नहीं है। बाबा के उस उत्तर को सुनकर पहले तो मुझे ऐसा लगा कि ब्रह्मा बाबा जानते हुए भी अनजान बन रहे हैं और कहते हैं कि कराने वाला शिव बाबा ही है।

प्रथम बार जब मैं मधुबन में आयी तब मेरी उम्र केवल 18 साल ही थी और मैं स्नातक के अन्तिम वर्ष में पढ़ रही थी। बाबा ने मुझे कहा कि बच्ची, इस जन्म की सारी कर्म-कहानी बाप को बता दो। मैंने अपनी पूरी जीवन-कहानी बाबा को सुनायी। छोटे से छोटी ग़लती भी याद करके बाबा को अपना पूरा पोतामेल दिया। उसे सुनने के बाद बाबा ने मुझे वरदान दिया कि बच्ची, तुम्हारे द्वारा बहुत बड़े-बड़े लोगों की सेवा होगी। इस वरदान को मैंने अपने जीवन में साकार होते हुए देखा है और जब-जब ऐसे प्रसंग आते हैं तो बाबा के द्वारा मिला हुआ यह वरदान बार-बार मुझे याद आता है और मुझे महसूस होता है कि मैंने सच्चाई से बाबा के आगे अपने जीवन की हर बात सुनायी, उसी के फलस्वरूप बाबा से मुझे यह वरदान प्राप्त हुआ ।

बाबा के सामने ड्रिल की और सेल्यूट दी

जब से मैंने बाबा को देखा, मुझे पूरा निश्चय हुआ कि यह बाबा ही मेरा सर्वस्व है। तब से मैं हर कदम बाबा की आज्ञा से ही रखती थी। कॉलेज की पढ़ाई के समय एन.सी.सी. (N.C.C.) में मेरा चयन हुआ। देहली में होने वाली 26 जनवरी की परेड के लिए मुझे एक मास ट्रेनिंग के लिए देहली जाना था तो बाबा की राय लेने के लिए मैंने अहमदाबाद से आबू आकर बाबा से पूछा, बाबा, मुझे एक मास परेड के लिए देहली जाना है और एक मास वहाँ रहना होगा तो मेरे खाने-पीने आदि की धारणा का क्या होगा? इतना सुनते ही बाबा ने मेरे से पूछा, अच्छा बच्ची, तुमको ड्रिल करना आता है क्या? आज रात्रि क्लास में बाबा को दिखाना। ऐसा कहते हुए लच्छु बहन को बुलाया और कहा, बच्चियों को पहरे वाले की नयी ड्रेस निकाल कर देना। मैं तो बहुत खुश हो गयी क्योंकि शाम को बाबा को ड्रिल दिखानी थी। लच्छु बहन ने मुझे नयी तीन जोड़ी ड्रेस दी। मैं, वेदान्ती बहन और हमारी एक सखी हम तीन थे। रात्रि में बाबा की क्लास पूरी हुई और बाबा ने कहा कि अहमदाबाद से आयी हुईं बच्चियाँ आज ड्रिल करके दिखायेंगी। फिर तो हमने छोटे हाल में ड्रिल की और बाबा को सेल्यूट दी। बाबा ने भूरी-भूरी प्रशंसा की और कहा, तुम्हारे जैसी बच्चियाँ रूहानी ड्रिल कराना सीख जायें तो बाबा का नाम बाला हो जायेगा। हम तो बहुत खुश हुई। रात्रि को बाबा से गुड नाइट करके सो गये। परन्तु वो सवाल का जवाब तो बाक़ी रह गया। सुबह हुई फिर मुरली क्लास के बाद बाबा के पास गयी। बाबा से पूछा, बाबा मैं दिल्ली जाऊँगी तो कहाँ रहूँगी और मेरे खान-पान का क्या होगा? बाबा मुस्कराते हुए मुझे देख रहे थे, फिर कहा, बच्ची, तुम्हारे जैसी बच्ची और एक मास का टाइम वेस्ट करेगी? बाबा नहीं चाहता कि तुम्हारा टाइम वेस्ट हो। बाबा की इस बात को सुनते ही मैंने बाबा को कहा, ठीक है बाबा, आप नहीं चाहते हैं तो मैं नहीं जाऊँगी। दो दिन के बाद बाबा ने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, देखो बच्ची, यह कुमारका बच्ची (दादी प्रकाशमणि) टूअर पर जा रही है, तुम उसके साथ जा सकती हो? तेरा बाप छुट्टी देगा? मैंने कहा, जी बाबा। तो बाबा ने मेरा और वेदान्ती बहन का दादी कुमारका जी के साथ 21 दिन का टूअर प्रोग्राम बनाया और उस समय जितने भी बड़े-बड़े सेवाकेन्द्र थे जैसे जयपुर, आगरा, देहली, लखनऊ, कानपुर, भोपाल आदि स्थानों पर दादी कुमारका जी के साथ सेवा करने का अवसर मिला। इस प्रसंग से मुझे महसूस हुआ कि हमारे भविष्य की जानकारी बाबा के पास कितनी स्पष्ट थी। दूसरा, अन्दर में यह खुशी हुई कि बाबा की आज्ञा के पालन से तथा एक छोटे-से त्याग के बदले में बाबा ने हमें कितना बड़ा सुअवसर देकर हमारे भाग्य में एक विशेष पार्ट की नूँध कर दी। मैंने दादी जी के साथ 21 दिन रहकर जो कुछ प्राप्तियाँ की वो अवर्णनीय हैं।

बाबा को बच्चियों की कमाई नहीं चाहिए

सन् 1967 में स्नातक पास होने के बाद मुझे एक जगह सर्विस के लिए इन्टरव्यू देने जाना था। मैं और वेदान्ती बहन राय लेने मधुबन गये और मैंने बाबा से पूछा कि बाबा मैं लौकिक सर्विस करूँ? इससे तन-मन-धन से यज्ञ की सेवा करूँगी। बाबा ने मेरे से पूछा, ‘बच्ची, नौकरी करोगी तो कितना कमाओगी? 500, 1000, 1500, 2,000? कितना कमाओगी? बाबा जानता है, यह कोई तुम्हारी वैल्यू नहीं है।’ बाबा के कहने से हम समझ गये कि बाबा नहीं चाहता कि हम नौकरी करें। उसी घड़ी मैंने और वेदान्ती बहन ने यह फैसला कर लिया कि हम जिस्मानी सर्विस नहीं करेंगी, रूहानी सेवा में ही अपना जीवन समर्पित करेंगी।

दिल की हर धड़कन को सुन लेते थे बाबा

एक बार दोपहर भोजन के बाद में अपने बिस्तर पर लेट गयी परन्तु मुझे नींद नहीं आयी। बार-बार एक संकल्प आने लगा कि यदि विश्व का मालिक भगवान ब्रह्मा बाबा के तन में बैठा हुआ है तो पाँच मिनट में मुझे बुलाये, तभी मैं समझूं कि शिव बाबा को मेरे दिल की बात पहुंचती है। सचमुच दो-तीन मिनट में ही पहरे वाले भाई ने आकर कहा कि चन्द्रिका बहन, बाबा आपको बुला रहे हैं। बाबा मुझे ‘चन्द्रकला’ कहकर पुकारते थे। मैं खुश होकर बाबा के पास झोपड़ी में पहुँच गयी। उस समय बाबा कुछ वत्सों के साथ बैठे थे।

साधनालीन भी और सेवाप्रिय भी

बाबा की साधना सर्वोच्च स्तर की थी। ब्रह्मा बाबा जब शिव बाबा को याद करते थे तो इतने मगन हो जाते थे कि बात मत पूछिये। एक बार अंगूर के बगीचे में कुर्सी पर बाबा बैठे हुए थे। बाबा की नज़र आसमान की ओर थी। मैं बाबा के पास आकर बैठ गयी। मैंने समझा, बाबा को मालूम पड़ जायेगा और बाबा मुझसे बात करेंगे। मैं काफी समय तक बैठी रही लेकिन बाबा अपनी मस्ती में मस्त थे। फिर मैं खड़ी होकर बाबा की ओर देखा लेकिन बाबा मुझे नहीं देख रहे थे। आखिर मुझ में धीरज न रहा और मैंने कहा, बाबा, मैं आपसे मिलने आयी हूँ। तब बाबा ने कहा, ‘अच्छा बच्ची, तुम कब आयी?’ मैंने कहा, ‘बाबा, मैं तो कब से यहाँ बैठी हूँ।’ तो बाबा ने कहा, ‘यह बाबा तो शिव बाबा को याद कर रहा था। अच्छा, बोलो बच्ची, क्या सेवा है?’ बाबा ने मुझे कॉलेज में जाकर सेवा करने को कहा था तो मैं भाषण तैयार करके आयी थी। मैंने बाबा को कहा, बाबा, योग के विषय पर मैंने भाषण तैयार किया है। सुनते ही बाबा ने कहा, अच्छा बच्ची, बाबा को सुनाओ। मैंने क़रीब 10 मिनट बाबा को अपना तैयार किया हुआ भाषण सुनाया। तब बाबा ने कहा, बच्ची, तुमने तो बहुत अच्छा भाषण तैयार किया है। ऐसे ही युक्तियुक्त समझाना चाहिए। इससे मैंने यह अनुभव किया कि बाबा अपनी साधना में लवलीन रहते हुए भी, समय पर बच्चों को योग्य सेवाधारी बनने का मार्गदर्शन देते रहे और बच्चों की सेवा में उपस्थित होते रहे। यज्ञपिता ब्रह्मा बाबा, यज्ञ के हरेक छोटे-बड़े कार्यों की देखभाल करते थे। एक बार मैं भण्डारे में बैठे-बैठे मूंगफली छील रही थी। हम कई जने थे। धीरे-धीरे करके सब चले गये। मैं अकेली सेवा कर रही थी। इतने में मैंने देखा कि मेरे पास कोई बैठा है और आवाज़ आयी कि बच्ची, चलो बाप तुमको मदद करने आया है। मना करने पर भी बाबा बैठ गये और मूंगफली छीलने लगे। कुछ ही मिनटों के बाद देखा कि सभी जने धीरे-धीरे वापस आकर बैठने लगे। बाबा को देखकर सभी ने सेवा में अपना हाथ बढ़ाया। बाबा ने किसी को कुछ कहा नहीं लेकिन स्वयं करके बच्चों को सिखलाया। 

एक बार बाबा आँगन में खड़े थे। मैं बाबा के पास जाकर खड़ी हो गयी। बाबा का कद तो बहुत ऊँचा था और मैं बहुत छोटी थी। जब मैंने बाबा से कुछ कहा तो बाबा एकदम काफी झुक गये और कहा, ‘बच्ची बोलो, बाबा से क्या काम है?’ छोटों को भी बाबा बहुत सम्मान देते थे।

एक माह पहले ही बाबा ने मुझे एहसास कराया था

बाबा के अव्यक्त होने से एक मास पहले मैं पार्टी लेकर मधुबन गयी थी। जब बाबा से छुट्टी ले रही थी तो काफ़ी समय तक बाबा ने मुझे दृष्टि दी और ‘गो सून, कम सून’ की टोली दी। बाबा से जब विदाई लेकर मैं निकली तो मेरे मन में एक संकल्प बार-बार आने लगा कि मानो बाबा मुझसे कह रहे हैं, “बच्ची, इस बाबा को इस रूप में तुम फिर कभी नहीं मिलेंगी।” कितना रोकने के बाद भी वो संकल्प अधिक ज़ोर से आने लगा। मुझे बहुत रोना आया कि ऐसा व्यर्थ संकल्प पता नहीं मेरे मन में क्यों आ रहा है? मैं अहमदाबाद पहुंची। जब भाई-बहनें मुझसे मधुबन का अनुभव पूछते थे तो मेरे मुख से यह बात बार-बार निकल आती थी, जिसे सुनकर लोग मेरे से नाराज़ होते थे कि तुम यह क्या बोल रही हो! मुझे अन्दर आ रहा था कि कहीं बाबा हमें छोड़कर चले न जायें? ठीक एक मास के बाद 18 जनवरी 1969 को रात्रि 9-00 बजे हमें समाचार मिला कि ब्रह्मा बाबा साकार शरीर त्याग वतन में चले गये। एक मास पूर्व बाबा ने अपनी दृष्टि से ही एहसास करा दिया था कि बाबा अब साकार में अधिक समय नहीं रहेंगे। 

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

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