Bk sudha didi burhanpur anubhavgatha

बी के सुधा दीदी – अनुभवगाथा

बुरहानपुर से ब्रह्माकुमारी सुधा बहन जी कहती हैं कि सन् 1952 में मुझे यह ज्ञान मिला। उसके पहले भक्ति में भी यही कहते थे कि साक्षात् भगवान मिल जाये तो मैं भोग लगाऊँ। अब साक्षात् भगवान मिल गये और सन् 1953 में बाबा से मिलने मधुबन आये। बाबा को देखा तो उनमें शिव बाबा को प्रवेश होते देखा और मैं चुम्बक की माफ़िक बाबा की गोद में चली गयी और यही अनुभव हुआ कि मैं भगवान की गोद में बैठी हूँ। इस ईश्वरीय नशे में मगन हो सब कुछ भूल गयी। उस पहले मिलन में ही बाबा ने सर्व सम्बन्धों का अनुभव कराया, जिस कारण पुरानी दुनिया स्वतः भूल गयी। कभी स्वप्न में भी पुरानी दुनिया याद नहीं आयी। 

बाबा को जब-जब देखती थी तो श्रीकृष्ण के साथ रास आदि करते हुए अनेकानेक अनुभव होते थे और साक्षात्कार भी बहुत होते थे। इस कारण दिन-प्रतिदिन परमात्मा से मेरी लगन बढ़ती गयी और परमात्म-प्यार में मगन रहने लगी। मेरी लगन देखकर बाबा ने कहा, ये मेरी कल्प पहले वाली और संगम की बहुत लगन वाली बच्चियाँ हैं (मैं और मेरी लौकिक छोटी बहन रानी जो मुज़फ्फरपुर में रहती है)। जो यज्ञ से गयी थीं और वापस यज्ञ में आ गयीं, ये बहुतों का कल्याण करेंगी। फिर बाबा ने बताया कि एक परिवार में दो बच्चियाँ बहुत लगन वाली थीं, उन्हें बहुत बन्धन था, खाना भी नहीं देते थे। परन्तु बच्चियों का संकल्प था कि जब तक बाबा की वाणी नहीं सुनेंगी, हम कुछ भी ग्रहण नहीं करेंगी। आखिर उन्होंने शरीर छोड़ दिया। बाबा ने कहा, ये वही बच्चियाँ हैं जो वापिस आकर बाबा से मिली हैं। एक बल, एक भरोसे, एक लगन में मगन रहने वाली हैं। इस प्रकार हमारे जीवन में ‘एक बाबा दूसरा न कोई’ और पवित्र जीवन ही हमारे लिए वरदान बन गया। हम बाबा के थे, बाबा के हैं और बाबा के ही रहेंगे।

प्रतिष्ठित परिवार होने के कारण बन्धन भी बहुत थे लेकिन प्यारे बाबा की दिव्य शक्तियों ने और ईश्वरीय मस्ती ने हमें बन्धन से मुक्त करा दिया। कितनी भी समस्यायें आयीं लेकिन साक्षात्कार के माध्यम से कठिन रास्तों को भी सहज युक्तियों से पार करा दिया। कोई भी परीक्षा आने से पहले बाबा हमें बताते थे कि ऐसे जवाब देना है। इस कारण सब ही बन्धन सहज खत्म हो गये। क़दम क़दम पर बाबा की पूरी मदद अनुभव होती थी जिसका मैं शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती। कभी भी बाबा ने कष्टों का अनुभव नहीं होने दिया, सदा ही अद्भुत और अनोखा साथ निभाया।

खुश रहो, आबाद रहो

एक बार दिल्ली से दाताराम भाई मिठाई वाला, सर्दी के दिनों में मधुबन आया था। उसने स्वेटर नहीं पहना था और बाबा से मिल रहा था तो बाबा ने पूछा, बच्चे, स्वेटर नहीं पहना? उसने कहा, बाबा सफ़ेद स्वेटर नहीं था। उसी समय बाबा ने स्वयं का ही पहना हुआ स्वेटर उतारकर उस भाई को अपने हाथ से बड़े प्यार से पहना दिया और गले लगा लिया। तो उसकी खुशी का पारावार नहीं रहा। ऐसे थे हमारे रहम दिल बाबा।

हम सभी मधुबन से विदाई लेकर जा रहे थे तो हम सभी ने बाबा से कहा, बाबा, आपको छोड़कर हमारा जाने का मन नहीं कर रहा है। प्यारे बाबा बोले, ‘आप एक बाबा को छोड़कर जाते हो, बाबा कितने बच्चों को भेजता है!’ तुरन्त हम सभी ने कहा, बाबा, हम जायेंगे परन्तु हमको भूलना नहीं। बाबा ने कहा, ‘बच्चे, अगर मैं आपको याद करूँगा तो मैं अपने शिव बाबा को भूल जाऊँगा। इसलिए बच्चे देखो, बाबा सदैव कहता है, खुश रहो, आबाद रहो। न बिसरो, न याद रहो।’

मैं एक बार मधुबन में थी। सन्तरी दादी जी कमरे में जाकर प्यारे बाबा के पुराने कपड़ों की गठरी लायी और खोली। उसमें से एक धोती और कुर्ता निकाला जो फटे हुए थे। मेरे से कहा कि इनकी सिलाई करके ले आओ। मैंने कहा कि यह बाबा नहीं पहनेंगे। मैं दिल्ली जाती हूँ और वहाँ से बनाकर भेज दूँगी। बाबा ने यह सुना तो कमरे में आये और कहा, बच्ची, जब सीज़न नहीं होता तो बाबा इनको ही पहनता है। इसलिए बच्ची, इनको ठीक करके ले आओ। बाबा के कहने पर मैंने उनकी सिलाई की, धुलाई की और बाबा के कमरे में रख आयी। बाबा ने शाम को वही धोती और कुर्ता पहना। हमारे प्यारे बाबा जितने दातादिल और खुले भण्डारी थे उतना ही उन्होंने बचत करना भी सिखाया।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Dadi hridaypushpa ji

एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक

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Bk nirwair bhai ji anubhavgatha

मैंने मम्मा के साथ छह साल व बाबा के साथ दस साल व्यतीत किये। उस समय मैं भारतीय नौसेना में रेडियो इंजीनियर यानी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर था। मेरे नौसेना के मित्रों ने मुझे आश्रम पर जाने के लिए राजी किया था।

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Dadi manohar indra ji

पहले दिल्ली फिर पंजाब में अपनी सेवायें दी, करनाल में रहकर अनेक विघ्नों को पार करते हुए एक बल एक भरोसे के आधार पर आपने अनेक सेवाकेन्द्रों की स्थापना की। अनेक कन्यायें आपकी पालना से आज कई सेवाकेन्द्र संभाल रही

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Bk jagdish bhai anubhavgatha

प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु-प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को

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Dadi sheelindra ji

आपका जैसा नाम वैसा ही गुण था। आप बाबा की फेवरेट सन्देशी थी। बाबा आपमें श्री लक्ष्मी, श्री नारायण की आत्मा का आह्वान करते थे। आपके द्वारा सतयुगी सृष्टि के अनेक राज खुले। आप बड़ी दीदी मनमोहिनी की लौकिक में

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Bhau vishwakishore ji

बाबा के पक्के वारिस, सदा हाँ जी का पाठ पढ़ने वाले, आज्ञाकारी, वफादार, ईमानदार, बाबा के राइट हैण्ड तथा त्याग, तपस्या की प्रैक्टिकल मूरत थे। आप लौकिक में ब्रह्मा बाबा के लौकिक बड़े भाई के सुपुत्र थे लेकिन बाबा ने

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Bk sundari didi pune

सुन्दरी बहन, पूना, मीरा सोसाइटी से, 1960 में पाण्डव भवन पहुंचीं और बाबा से पहली मुलाकात में आत्मिक अनुभव किया। बाबा के सान्निध्य में उन्हें अशरीरी स्थिति और शीतलता का अनुभव हुआ। बाबा ने उनसे स्वर्ग के वर्सा की बात

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Bk aatmaprakash bhai ji anubhavgatha

मैं अपने को पद्मापद्म भाग्यशाली समझता हूँ कि विश्व की कोटों में कोऊ आत्माओं में मुझे भी सृष्टि के आदि पिता, साकार रचयिता, आदि देव, प्रजापिता ब्रह्मा के सानिध्य में रहने का परम श्रेष्ठ सुअवसर मिला।
सेवाओं में सब

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Bk amirchand bhaiji

चण्डीगढ़ से ब्रह्माकुमार अमीर चन्द जी लिखते हैं कि उनकी पहली मुलाकात साकार बह्या बाबा से जून 1959 में पाण्डव भवन, मधुबन में हुई। करनाल में 1958 के अंत में ब्रह्माकुमारी विद्यालय से जुड़कर उन्होंने शिक्षा को अपनाया। बाबा का

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Bk kamlesh didi odhisha anubhavgatha

कटक, उड़ीसा से ब्रह्माकुमारी ‘कमलेश बहन जी’ कहती हैं कि उन्हें ईश्वरीय ज्ञान 1962 में मिला और साकार बाबा से 1965 में मिलीं। बाबा ने उन्हें “विजयी भव” और “सेवा करते रहो” का वरदान दिया। बाबा के वरदानों ने कमलेश

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