Bk raj didi amritsar anubhavgatha

बी के राज दीदी – अनुभवगाथा

अमृतसर से ब्रह्माकुमारी राज बहन जी अपने ईश्वरीय अनुभव सुनाती हैं कि सन् 1954 की बात है। पवित्रता तथा खान-पान की धारणाओं के कारण लोगों के मन में प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के प्रति भ्रान्तियाँ थीं। उन भ्रान्तियों का असर हमारे परिवार वालों पर भी बहुत था। मेरे लौकिक भाई (आत्मप्रकाश जी, जो वर्तमान समय शान्तिवन में ज्ञानामृत और साहित्य प्रकाशन का कारोबार सम्भालते हैं) को सबसे पहले ईश्वरीय ज्ञान की प्राप्ति हुई लेकिन भ्रान्तियों का असर होने के कारण हमारे परिवार में कोई भी ज्ञान सुनने में रुचि नहीं रखता था। लेकिन आत्मप्रकाश भाई जी को बाबा ने वरदान दिया था कि यह बच्चा श्रवण कुमार बनकर अपने माता-पिता को ज्ञान की बैगी में बिठाकर सच्ची तीर्थयात्रा करायेगा। सो आत्मप्रकाश भाई जी के अथक परिश्रम तथा बाबा के वरदान ने ऐसा रंग लाया कि परिवार के सभी सदस्य ज्ञान में रुचि लेने लगे। 

रूहानियत का पाठ पढ़ाकर बाबा ने मुझे शहंशाह बना दिया

मेरी आयु उस समय मात्र 13 वर्ष की थी। मुझे भी ज्ञान सुनाया गया लेकिन आयु छोटी होने के कारण ज्ञान की समझ उस समय नहीं आयी। हमारे घर में साकार बाबा और मम्मा के चित्र लगे हुए थे। उन चित्रों को देखकर मुझे इतना रुहानी आकर्षण होता था कि उसी ने मेरे जीवन को अलौकिक रंग में रंग दिया। लेकिन जब मैंने साक्षात्कारमूर्त बाबा को पहली बार मधुबन में देखा तो मन गा उठा- “इतना अतीन्द्रिय सुख देगा कौन, इतना प्यार करेगा कौन !”  जब बाबा ने मुझसे पूछा, बच्ची, आपका क्या लक्ष्य है? तो मैंने अपने भोलेपन में कह दिया कि बाबा मैं तो पढ़कर डॉक्टर बनूँगी, नौकरी करूंगी। मेरा यह संकल्प था कि नौकरी करके तन-मन-धन से यज्ञ की सेवा करूंगी क्योंकि ज्ञान की धारणाओं के कारण घर में विपरीत वातावरण देखकर यज्ञ में समर्पित होकर रहने का मेरा कोई लक्ष्य नहीं था। लेकिन स्नेह के सागर बाबा ने बड़े ही स्नेह से मुझे समझाया, बच्ची, ब्रह्मा की बेटी, शिव की पौत्री को नौकरी करने की क्या दरकार है? बाबा आये हैं रूहानी डॉक्टर बनाने। सतयुग में तो यह जिस्मानी डॉक्टर होंगे ही नहीं। बाबा तो आये हैं विश्व की महारानी बनाने। बच्ची, रूहानी गवर्नमेण्ट की नौकरी करनी है, जिस्मानी गवर्नमेण्ट की नहीं। जब बाबा मेरे साथ ज्ञान की टिकलु-टिकलु कर रहे थे तो मेरा मन अन्दर ही अन्दर बड़ा गदगद हो रहा या कि बाबा छोटे बच्चों पर भी अपना कितना प्यार बरसाते हैं! बाबा को बच्चों से और बुजुर्गों से बहुत प्यार था। अलौकिक माली साकार बाबा को शिव बाबा के अलौकिक चेतन बगीचे के चेतन फूलों को ज्ञानजल से सींचते देखा। 

मैं जब मम्मा-बाबा दोनों से मिल रही थी तो मम्मा ने पूछा, बच्ची, आपका यज्ञ में समर्पित होने का लक्ष्य क्यों नहीं है? मैंने मम्मा से कहा कि मम्मा, सहन करना पड़ता है। मम्मा-बाबा ने मुझे बहुत मीठी समझानी दी कि बच्ची, किस क्षेत्र में सहन नहीं करना पड़ता? शादी करके पति का सहन करना पड़ता है। नौकरी करते मालिक का सहन करना पड़ता है। अगर भगवान के यज्ञ में सहन कर लेंगे तो 21 जन्मों के लिए अर्थात् 2500 वर्षों के लिए विश्व की बादशाही मिलेगी। मम्मा-बाबा की इस मीठी शिक्षा ने पहली मुलाक़ात में ही मेरे मन को परिवर्तित कर दिया। मैंने यज्ञ में समर्पित होने का लक्ष्य ले लिया। 

बाबा में परखने की शक्ति, निर्णय करने की शक्ति इतनी थी कि बाबा किसी बात को बिना बताये ही कैच कर लेते थे और बच्चों को आगे बढ़ने की शिक्षा देते ये। बाबा ने मुझे कहा कि आपको अमृतसर सेवाकेन्द्र पर जाना है। चतुर सुजान बाबा ने मेरा अमृतसर जाने का पक्का भी किया और साथ में यह भी कहा कि पत्र में बाबा आपको दिल्ली जाने के लिए लिखेगा क्योंकि मेरे लौकिक भाई जी उस समय दिल्ली में रहते थे। मेरे लौकिक पिता जी का भी यही विचार था कि मैं दिल्ली में रहूँ। जब बाबा का पत्र आया कि बच्ची दिल्ली जाये तो लौकिक पिता जी कहने लगे कि बाबा ने दिल्ली जाने के लिए पत्र में लिखा है। लेकिन चतुर सुजान बाबा ने तो मुझे पहले से ही अमृतसर जाने के लिए समझानी दे रखी थी। मैं अमृतसर सेवाकेन्द्र पर सेवा के लिए चली गयी। एक बार अमृतसर सेवाकेन्द्र पर शारीरिक कर्मभोग का पेपर आया। जब बाबा को पता चला तो स्नेह के सागर बाबा ने मुझे मधुबन बुला लिया और इतने प्यार से मेरी देखभाल की कि आज भी उन स्मृतियों को ताजा करते ही नैन स्नेह के मोतियों से भर जाते हैं। बाबा ने फलों की टोकरी मेरे कमरे में भिजवायी। इस तरह बाबा के वात्सल्य से रोग भी शूली से कांटा होकर खत्म हो गया। बाबा सेवा के क्षेत्र में भी हर प्रकार की समझानी देकर आगे बढ़ाते रहते थे। थोड़ी-सी सेवा करने पर बाबा बहुत महिमा करते थे कि बहुत सेवा की है। प्रदर्शनी के नये चित्र अभी बने ही थे तो बाबा ने मुझे चित्रों का सेट दिया। इस तरह बाबा ने तन-मन-धन से मुझ आत्मा की सेवा करके आगे बढ़ाया।

मधुबन में भोग लग रहा था। मम्मा-बाबा गद्दी पर बैठे थे। सन्देशी भोग लेकर जा रही थी। मेरे मन में भी संकल्प चलने शुरू हुए कि मैं भी ध्यान में जाऊँ। जानीजाननहार बाबा ने मेरे मन का संकल्प जानकर मुझे बुलाया और पूछा, बच्ची, ध्यान में जाती हो? मैंने कहा, नहीं बाबा। तो बाबा ने मुझे इतनी शक्तिशाली दृष्टि यी कि मैं सफ़ेद सफ़ेद वतन देखने लगी तथा काफ़ी समय तक मुझे यही अनुभव होता रहा था कि मैं इस दुनिया में नहीं बल्कि किसी और दुनिया में हूँ।

एक बार पार्टी लेकर मैं मधुबन गयी। उस पार्टी में एक युगल था। जब उस भाई ने बाबा को सब्जी काटते, अनाज साफ़ करते तथा यज्ञ के अन्य कार्यों में मदद करते देखा तो बाबा के साधारण रूप को देखकर उसे संशय आया कि भगवान ऐसे साधारण तन में कैसे आते हैं? संशय में आकर उस भाई का चेहरा उतरा-उतरा सा रहने लगा। मैंने समझा कि शायद पार्टी के किसी भाई ने इसको कुछ कह दिया होगा। उसने अपने मन की बात किसी को नहीं बतायी। लेकिन जब वह भाई सुबह क्लास में गया तो बाबा ने उसी भाई को देखकर मुरली चलायी कि कई ऐसे बच्चे बाबा के घर में आ जाते हैं जिनको भगवान के कार्य के प्रति विश्वास नहीं। ऐसे संशय बुद्धि बच्चे विनश्यन्ति हो जाते हैं। उसी भाई की तरफ इशारा करके पूछा कि बच्चे, ठीक है ना? उस भाई ने समझ लिया कि ऐसे संशय का संकल्प मेरे ही मन में था, कैसे बाबा ने जान लिया? इस बात का उस भाई पर इतना प्रभाव पड़ा कि उसका संशय ही मिट गया। फिर वापसी के समय सौगात लेनी थी। सौगात दो प्रकार की थीं, लेकिन एक लेनी थी। बाबा ने मुझे कहा था कि पार्टी को खुश करके ले जाना है। किसी को कोई चीज़ चाहिए तो ले लेना। मैंने बाबा को कहा कि बाबा वो भाई दोनों ही सौगात लेना चाहता है। तो बाबा ने कहा, उस बच्चे को दोनों ही सौगातें दे दो। लेकिन भृगु ऋषि बाबा उस भाई की जन्मपत्री को भी जान गये थे और मुझे कहने लगे कि बच्ची, यह मुठा चलेगा नहीं। वह भाई पूरी धारणाओं पर चलता था लेकिन बाबा ने उसकी जन्मपत्री को जान लिया था। मधुबन से वापस आने के बाद उस भाई को ऐसी परिस्थितियां आयीं कि उसने ज्ञान में आना ही छोड़ दिया। मीठे बाबा हर बच्चे की आश को पूरी करते और उसका भविष्य भी जान लेते थे। 

बाबा-मम्मा की पालना से हर क़दम में आगे बढ़ते हुए अब यही लक्ष्य है कि मीठे बाबा समान बनें और प्यारे बापदादा को विश्व के आगे प्रत्यक्ष करें।

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Dadi allrounder ji

कुमारियों को दादी ऐसी पालना देती थी कि कोई अपनी लौकिक कुमारी को भी शायद ऐसी पालना ना दे पाए। दादी कहती थी, यह बाबा का यज्ञ है, बाबा ही पालना देने वाला है। जो पालना हमने बाबा से ली

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Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा?

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Bk meera didi malasia anubhavgatha

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Dada vishwaratan anubhavgatha

आपका जैसा नाम वैसे ही आप यज्ञ के एक अनमोल रत्न थे। आप ऐसे पक्के ब्रह्मचारी, शीतल काया वाले योगी, आलराउण्ड सेवाधारी कुमार थे जिनका उदाहरण बाबा भी देते कि बाबा को ऐसे सपूत, सच्चे, पक्के पवित्र कुमार चाहिए। दादा

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Bk raj didi nepal anubhavgatha

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Bk jayanti didi london anubhavgatha

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मैंने मम्मा के साथ छह साल व बाबा के साथ दस साल व्यतीत किये। उस समय मैं भारतीय नौसेना में रेडियो इंजीनियर यानी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर था। मेरे नौसेना के मित्रों ने मुझे आश्रम पर जाने के लिए राजी किया था।

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Bk santosh didi sion anubhavgatha

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