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बी के सिस्टर एरिका – अनुभवगाथा

जब मैं 22 साल की थी तब मुझे बाबा मिला। मैं क्रिश्चियन परिवार की हूँ लेकिन ईश्वरीय ज्ञान मिलने से एक साल पहले मैंने उस धर्म को छोड़ दिया था। दुनिया की बुरी परिस्थितियों को देख मैंने निर्णय लिया था कि परमात्मा है ही नहीं, यह सब भ्रम है। परिवार वाले कहते थे कि तुम परमात्मा को भूलो नहीं, रोज़ प्रेयर (प्रार्थना) किया करो। लेकिन मन उनकी बात नहीं मानता था। मन, और कोई चीज़ ढूँढ़ रहा था जिसको मैं अनुभव करना चाहती थी। लौकिक जीवन से मैं न तो दुःखी थी, न सुखी थी। ऐसा लगता था कि मैंने कुछ मिस (गँवा) दिया है, मुझे उस वस्तु को पाना है। लेकिन वह वस्तु क्या है, यह समझ में नहीं आ रहा था। मेरे पिता जी इंजीनियर थे। जब मैं 20 साल की थी तब उनकी मृत्यु हो गयी थी।

जब मैं 14 साल की थी तब ही प्राणायाम सीखा था और शाकाहारी बनी थी। जब मैं आर्किटेक्ट पढ़ रही थी उन्हीं दिनों मुझे ज्ञान मिला। मेरी मम्मी भी बाबा की बच्ची है। मेरे ज्ञान में आने के एक साल बाद वो भी ज्ञान में आ गयी। मुझे मोटर साइकिल चलाने का बहुत शौक था। ख़ासकर पहाड़ों पर मोटर बाइक पर घूमना मुझे बहुत पसन्द था। मैं एक खिलाड़ी भी थी।

सन् 1982 में हेमबर्ग में एक आध्यात्मिक सेमिनार हुआ, उसमें मेरा जाना हुआ। मुझे यह ज्ञान अच्छा लगा। यह बहुत अच्छा इसलिए लगा कि फ्री में दिया जा रहा था। मेरी मान्यता थी कि अच्छी चीजें कभी बेची नहीं जाती। मुझे यह ज्ञान इसलिए भी अच्छा लगा कि यह हरेक व्यक्ति के जीवन तथा देश के उत्थान के लिए उपकारी है, जो अन्य आध्यात्मिक संस्थाओं में नहीं मिल सकता। अन्य संस्थाओं में मिलने वाला ज्ञान बिकता है और बहुत महंगा होता है।

इस ज्ञान और योग को पाने के बाद मुझे यह विश्वास हुआ कि मैं अपने को बदल सकती हूँ तथा मन का नियन्त्रण कर सकती हूँ। राजयोग मेडिटेशन की विधि सकारात्मक और सरल है, जिसने मुझे बहुत आकर्षित किया। इसके बाद निर्वैर भाई जर्मनी आये थे। उनके व्यवहार तथा गुणों को देखकर मैं ज्ञान में और पक्की हो गयी। इसके बाद मैंने साप्ताहिक कोर्स लिया। कोर्स के बाद रोज़ सुबह की क्लास में जाने लगी। तब से लेकर आज तक रोज़ सुबह की क्लास मैंने कभी मिस नहीं की है। कोर्स के दौरान मुझे कोई भी संशय नहीं आया। ईश्वरीय ज्ञान की हर बात मुझे अच्छी और सही लगी। कोर्स पूरा होने के बाद उन्होंने कहा कि आप इसके बारे में सोचो, आपको अच्छा लगे तो स्वीकार करो, नहीं तो छोड़ दो। लेकिन मुझे कोई बात ख़राब लगी ही नहीं। क्लास में जाते हुए मुझे छह महीने हो गये थे, मन में तीव्र इच्छा हो रही थी कि मुझे मधुबन जाना है, गॉड कैसे आता है, कैसे बात करता है उसको देखना है। उसी साल दिसम्बर में मैं मधुबन आ गयी। 

प्रश्नः यह ज्ञान मिलने के बाद आप में क्या-क्या परिवर्तन आये?

उत्तरः सन्तुष्टता मिली। जीवन का लक्ष्य मिला। मैं अपने को बदल सकती हूँ यह आत्मविश्वास आया। मुझे यह भी अहसास हुआ कि इस मार्ग का अनुसरण करने से मेरा भला होगा। 

प्रश्नः जब आपने पहली बार मेडिटेशन किया, उस समय का अनुभव क्या है? 

उत्तरः मुझे बहुत शान्ति का अनुभव हुआ। परमात्मा की समीपता का अनुभव हुआ। परमात्मा के प्रति प्यार जाग्रत हुआ। ज्ञान में आते ही मैं सारे ईश्वरीय नियमों का अनुसरण करने लगी क्योंकि मुझे मधुबन आना था। मेडिटेशन में बाबा से वार्तालाप करती रही, बाबा से फरियाद भी करती रही लेकिन बाबा ने मुझे बहुत प्यार दिया। 

प्रश्नः जब आप पहली बार मधुबन आयीं अर्थात् भारत आयीं, उस समय का क्या अनुभव था? 

उत्तरः प्लेन से हम देहली में उतरे। बाहर आकर भारत की भूमि पर पाँव रखते ही मुझे ऐसा अनुभव होने लगा कि मैं अपने होम लैण्ड (मातृभूमि) पर आयी हूँ। इससे पहले, मैंने भारत के बारे में सोचा ही नहीं था, देखना तो दूर की बात थी। लेकिन भारत की भूमि पर पाँव रखते ही मुझे समझ में न आने वाले अनुभव होने लगे। अपनेपन का भाव आने लगा। जब मधुबन आयी तो मधुबन में शान्ति ही शान्ति का वातावरण था। उसने मुझे बहुत आकर्षित किया। जब बाबा के सामने बैठ मुरली सुन रही थी तब मुझे यह पूरा अनुभव हो रहा था कि बाबा ने मुझे पहचाना है, मेरे बारे में वह सब-कुछ जानता है। बाबा के साथ बहुत नज़दीकी का अनुभव हुआ। हर क्षण ऐसा अनुभव होता था कि मैं बाबा की हूँ, मेरा सब हिसाब-किताब बाबा से ही है। बाबा से मिलकर मुझे बहुत खुशी हुई तथा बहुत नशा भी चढ़ा। मिलते समय बाबा ने मेरे से पूछा कि आप नॉलेजफुल हो या पॉवरफुल हो? फिर बाबा ने कहा कि जितना जितना नॉलेज का विचार सागर मंथन करोगे उतना यह ज्ञान तुमको सम्पत्ति के रूप में काम आयेगा, इसलिए ज्ञान का मंथन करते रहो। फिर बाबा ने कहा, आप आशा का दीपक हो जिससे अनेक आत्माओं की आशायें पूर्ण होंगी।

प्रश्नः आपको कैसे निश्चय हुआ कि परमात्मा का अवतरण हो गया है? 

उत्तरः जब मैंने बाबा से दृष्टि ली तब पूरा निश्चय हुआ। उस दृष्टि से मैंने समझ लिया कि यह कोई मनुष्य की दृष्टि नहीं है, यह तो उस परम दयालु, स्नेह के सागर परमात्मा की दृष्टि है। उस दृष्टि में ही सब बातें समायी हुई थीं। दृष्टि से ही बाबा ने मुझे सब अनुभव कराया कि तुम मेरी हो, मैं तुम्हारा सब-कुछ जानता हूँ।

प्रश्नः मधुबन में आपको क्या अच्छा लगा? 

उत्तरः मधुबन का शान्त तथा शक्तिशाली वातावरण। इसके अलावा मधुबन के भाइयों की शुद्ध, सुन्दर तथा हर्षित आँखें। उनकी आँखों ने मुझे बहुत आकर्षित किया। उनकी आँखों से ही मैंने समझा कि यह बी.के. जीवन बहुत ऊँचा जीवन है। ऐसी आँखें दुनिया के किसी भी देश में पा नहीं सकते। यह मेरा मधुबन का पहला अनुभव था। मधुबन से जाने के बाद मेरा एक फ्लैट था, उसको शक्ति भवन बनाया। इसके एक साल के बाद मैंने सेन्टर पर रहना शुरू किया। 

प्रश्नः राजयोग मेडिटेशन से आपको क्या फ़ायदा हुआ? 

उत्तरः सबसे पहला फ़ायदा यह हुआ कि मैंने परमात्मा को अपना जीवनसाथी बनाया। दूसरा यह कि स्वयं को परिवर्तन करने की कला पायी। तीसरा है कि अपनी भावनाओं को कैसे नियन्त्रण में रखें, यह विधि मिली। एक क्षण में कैसे अपने आपको साइलेंस में ले जायें इसका तरीक़ा मिला। अपने आपको समेटने की, आन्तरिक गहराई में जाने की युक्ति मिली। विश्व की दुःखी आत्माओं को योगदान करने की पद्धति की जानकारी मिली। मेडिटेशन से मुझे प्रकृति के पाँच तत्वों तथा पशु-पक्षियों को भी योगदान करने की नयी सेवा मिली।

प्रश्नः गॉड के साथ आपका अति प्रिय सम्बन्ध कौन-सा है? 

उत्तरः मित्र का। विदेशों में माता-पिता तथा भाई-बहनों से ज़्यादा, मित्र को बहुत पसन्द किया जाता है। मित्र को चुना जाता है, बनाया जाता है। जिसको हम चुनते हैं, उसके सामने तो अपना सब-कुछ बता देते हैं ना! मित्र भी अपना सब-कुछ हमें बताता है। मित्र के ऊपर ही पूरा भरोसा रहता है। मैं तो बाबा को अपना पुराना तथा अति समीप का मित्र समझती हूँ। बाबा भी मुझे मित्रता का आभास तथा अनुभव कराता है। मैं अपना सब-कुछ बाबा को बताती हूँ और जो भी करना है, बाबा से राय लेकर करती हूँ। 

प्रश्नः इस ज्ञान में आपको क्या अच्छा लगा? 

उत्तरः मुझे सारा ज्ञान ही अच्छा लगा। ज्ञान की हर बात ने मेरा दिल छुआ। चित्रों में मुझे कल्पवृक्ष ने बहुत आकर्षित किया। क्योंकि इस वृक्ष में हरेक धर्म को अपने-अपने योग्य स्थान पर बिठाया गया है। कल्पवृक्ष को जानने से ही मुझे कई प्रश्नों के उत्तर मिले। दूसरी बात मुझे यह अच्छी लगी कि परमात्मा ही सब धर्म वालों का मात-पिता है, वही सर्व आत्माओं को मुक्तिलोक में अपने साथ ले जाता है। जब भी मैं फ्री रहती हूँ तब कल्पवृक्ष के सामने जाकर बैठ जाती हूँ और उसको सकाश देती हूँ। इससे मुझे ख़ुशी मिलती है। 

प्रश्नः भारत के प्रति आपका क्या दृष्टिकोण है और भारतवासियों को क्या कहना चाहती हैं? 

उत्तरः भारत से मुझे बहुत प्यार है, साथ-साथ रहम भी है। क्योंकि इतने दिव्य तथा भव्य भारत का आज क्या हो गया है! विश्व में एक ही राष्ट्र है जिसको मातृभूमि कहा जाता है। बीस सालों से मैं भारत आ रही हूँ। जब भी मैं मुंबई या देहली में आती हूँ तो वहाँ देखती हूँ कि भ्रष्टाचार इतना बढ़ गया है कि बात मत पूछिये। जब हम भारत के ग्रामीण प्रदेशों में जाते हैं तो वहाँ के लोग कितने अच्छे हैं, अतिथियों को कितना मान-सम्मान देते हैं और कितना अतिथि सत्कार करते हैं! शहरों का वातावरण देखते हैं तो लगता है कि भारत कितना बदल गया है! मैं तो भारतवासियों को यह कहना चाहती हूँ कि भ्रष्टाचार बढ़ाने के लिए केवल अधिकारी या व्यापारी गण निमित्त नहीं हैं, साथ देने वाले भी निमित्त हैं। भ्रष्टाचार का मूल कारण है लोभ, धन संग्रह की भूख। रिश्वतखोरी से अल्पकाल की सफलता मिलती है लेकिन दीर्घकाल की सफलता कहो, सुख-शान्ति कहो वो नहीं मिलती। इसलिए अपने भारतवासी भाई-बहनों के लिए मेरा यही निवेदन है कि वे ईश्वरीय ज्ञान को जानें, अपनायें तो सब मनोकामनायें पूर्ण हो जायेंगी और भारत ही क्यों, सारा विश्व ही सुख-सम्पत्ति से भरपूर हो जायेगा। 

प्रश्नः ज्ञान मिलने से पहले भारत के प्रति आपका कोई आकर्षण था? उसके बारे में कोई जानकारी थी? 

उत्तरः भारत के प्रति मेरा कोई लगाव या आकर्षण नहीं था। हाँ, भारत के बारे में सुना था कि वह एक ग़रीब देश है।  

प्रश्नः भारत के ग़रीब लोगों ने ही विदेशों में जाकर आप लोगों को जगाया है, परमात्मा का परिचय दिया है, आप लोगों की सेवा की है! बाबा कहते हैं कि विदेश के बी.के. भारत के लोगों को जगायेंगे, तो क्या आप यहाँ आकर भारत के लोगों को अज्ञान नींद से जगाने की सेवा करेंगी? 

उत्तरः हाँ, ज़रूर करूँगी अगर मुझे मौका मिलता है तो। विदेश के बी.के. भाई-बहनों ने तो भारत में आकर सेवा करना आरम्भ किया है। भगवानुवाच ऐसा है तो वह सच ही होगा ना! हम ज़रूर भारत की सेवा करेंगे। सच में, भारत के प्रति, मेरे भारत के प्रति मेरे दिल में विशेष स्थान है, मैं भारत की सेवा करना चाहती हूँ और करूँगी ज़रूर। 

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Dadi santri ji

ब्रह्मा बाबा के बाद यज्ञ में सबसे पहले समर्पित होने वाला लौकिक परिवार दादी शान्तामणि का था। उस समय आपकी आयु 13 वर्ष की थी। आपमें शुरू से ही शान्ति, धैर्य और गंभीरता के संस्कार थे। बाबा आपको ‘सचली कौड़ी’

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Bk kamlesh didi bhatinda anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी कमलेश बहन जी, भटिण्डा, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ के अनमोल अनुभव साझा करती हैं। 1954 में पहली बार बाबा से मिलने पर उन्होंने बाबा की रूहानी शक्ति का अनुभव किया, जिससे उनका जीवन हमेशा के लिए

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Bk rajkrushna bhai

बरेली के ब्रह्माकुमार राजकृष्ण भाई ने ब्रह्माकुमारी आश्रम में आकर आत्मा के ज्ञान और योग का गहरा अनुभव किया। गीता और सत्संग से शुरू होकर, उन्होंने शिव परमात्मा से मिलकर जीवन में बदलाव देखा। बाबा ने उन्हें ‘स्वराज्य कृष्ण’ नाम

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Bk mahesh bhai pandav bhavan anubhav gatha

ब्रह्माकुमार महेश भाईजी, पाण्डव भवन, आबू से, अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे बचपन से ही आत्म-कल्याण की तीव्र इच्छा उन्हें साकार बाबा की ओर खींच लाई। सन् 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े और 1965 में

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Didi manmohini anubhav gatha

दीदी, बाबा की ज्ञान-मुरली की मस्तानी थीं। ज्ञान सुनते-सुनते वे मस्त हो जाती थीं। बाबा ने जो भी कहा, उसको तुरन्त धारण कर अमल में लाती थीं। पवित्रता के कारण उनको बहुत सितम सहन करने पड़े।

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Dadi mithoo ji

दादी मिट्ठू 14 वर्ष की आयु में यज्ञ में समर्पित हुईं और ‘गुलजार मोहिनी’ नाम मिला। हारमोनियम पर गाना और कपड़ों की सिलाई में निपुण थीं। यज्ञ में स्टाफ नर्स रहीं और बाबा ने उन्हें विशेष स्नेह से ‘मिट्ठू बहन’

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Bk sheela didi guvahati

शीला बहन जी, गुवाहाटी, असम से, मीठे मधुबन में बाबा से मिलकर गहरी स्नेह और अपनत्व का अनुभव करती हैं। बाबा ने उन्हें उनके नाम से पुकारा और गद्दी पर बिठाकर गोद में लिया, जिससे शीला बहन को अनूठी आत्मीयता

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Bk raj didi nepal anubhavgatha

काठमाण्डु, नेपाल से ब्रह्माकुमारी “राज बहन” जी लिखती हैं कि उनका जन्म 1937 में एक धार्मिक परिवार में हुआ था। भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद, उन्हें हमेशा प्रभु प्राप्ति की इच्छा रहती थी। 1960 में पंजाब के फगवाड़ा में, उन्हें ब्रह्माकुमारी

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Experience with dadi prakashmani ji

आपका प्रकाश तो विश्व के चारों कोनों में फैला हुआ है। बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात् 1969 से आपने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की, मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला,

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Bk sudha didi burhanpur anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी सुधा बहन जी, बुरहानपुर से, अपने अनुभव में बताती हैं कि सन् 1952 में उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ। 1953 में बाबा से मिलकर उन्हें शिव बाबा का साक्षात्कार हुआ। बाबा की गोद में बैठकर उन्होंने सर्व संबंधों का

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Dadi atmamohini ji

दादी आत्ममोहिनी जी, जो दादी पुष्पशांता की लौकिक में छोटी बहन थी, भारत के विभिन्न स्थानों पर सेवायें करने के पश्चात् कुछ समय कानपुर में रहीं। जब दादी पुष्पशांता को उनके लौकिक रिश्तेदारों द्वारा कोलाबा का सेवाकेन्द्र दिया गया तब

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Bk sister chandrika toronto caneda anubhavgatha

बी के सिस्टर चंद्रिका की प्रेरणादायक कहानी में, ग्याना से ब्रह्माकुमारी संस्थान के माध्यम से उनकी आध्यात्मिक यात्रा को समझें। बाबा के नयनों से मिले शक्तिशाली अनुभवों ने उन्हें राजयोग मेडिटेशन में निपुण बनाया और सेवा के प्रति समर्पित कर

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1965 की सुबह 3:30 बजे, ब्रह्माकुमारी चन्द्रिका बहन ने ईश्वर-चिन्तन करते हुए सफ़ेद प्रकाश में लाल प्रकाश प्रवेश करते देखा। उस दिव्य काया ने उनके सिर पर हाथ रखकर कहा, “बच्ची, मैं भारत में आया हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ लो।”

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Dadi situ ji anubhav gatha

हमारी पालना ब्रह्मा बाबा ने बचपन से ऐसी की जो मैं फलक से कह सकती हूँ कि ऐसी किसी राजकुमारी की भी पालना नहीं हुई होगी। एक बार बाबा ने हमको कहा, आप लोगों को अपने हाथ से नये जूते

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ऋषिकेश के ब्रह्माकुमार अवधेश नन्दन कुलश्रेष्ठ जी ने 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़ने के बाद, सन् 1964 में मधुबन में बाबा से पहली मुलाकात की। इस अनुभव में उन्होंने बाबा के तन में प्रवेश करते हुए निराकार, सर्वशक्तिमान शिव

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एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक

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Bk trupta didi firozpur - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी तृप्ता बहन जी, फिरोजपुर सिटी, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। बचपन से श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाली तृप्ता बहन को सफ़ेद पोशधारी बाबा ने ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य’ का संदेश दिया। साक्षात्कार में बाबा ने

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