लन्दन से ब्रह्माकुमारी ‘जयन्ती बहन जी’ अपना ईश्वरीय अनुभव इस प्रकार लिखती हैं कि सन् 1957 में मैं पहली बार बाबा से मिली, तब मेरी आयु 8 वर्ष थी। उस समय बाबा मुझे ग्रैंडफादर नज़र आये और उनका व्यक्तित्व बहुत प्रभावशाली था। बाबा ने मुस्कराते हुए मीठी दृष्टि दी। वही झलक मेरी बुद्धि में रह गयी। उसके बाद हम लन्दन चले गये ।
सन् 1966 में हम दादी जानकी के साथ, पूना से बाबा को मिलने मधुबन आये। मधुबन आते ही ऐसे लगा कि मैं अपने घर वापिस आयी है। जब हम मुरली क्लास में बैठे तो बाबा ने कहा, बच्ची विदेश में जाकर सेवा करेगी और टीचर बन ज्ञान सुनायेगी। जब वहाँ पूछेंगे कि यह ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ तो आप कहेंगी कि यह ज्ञान ‘माउण्ट आबू: से प्राप्त हुआ है और परमात्मा शिव आकर सुना रहे हैं, तो वे बहुत आश्चर्य खायेंगे । जब हम भारत से लन्दन वापस गये तो कुछ लोगों ने भाषण का निमंत्रण दिया। जब भाषण समाप्त हुआ तो उन्होंने पूछा कि यह ज्ञान कहाँ से प्राप्त हुआ है आपको ? मैंने बताया कि माउण्ट आबू से प्राप्त हुआ है और वही दृश्य मेरे सामने आया जब बाबा ने ऐसा कहा था।
एक दिन मैं मधुबन में रात्रि क्लास में बैठी थी। बाबा ने क्लास के बीच में ही पूछा, बच्ची, कुछ चाहिए? अगर कोई भी चीज़ की ज़रूरत हो तो बाबा से ले सकती हो। बाबा के यज्ञ में सब कुछ है, जो चाहे बाबा से लेना। मुझे ऐसे ही लगा कि जैसे माँ छोटे बच्चों को सम्भालती है। ऐसे बाबा का माँ का रूप भी देखा। क्योंकि मम्मा ने कुछ समय पहले ही शरीर त्याग किया था और बाबा ने माँ का रूप धारण किया हुआ था। साथ-साथ सूक्ष्म रूप से बाबा ने हमें अपना बनाया, वह भी तो माँ का ही सुन्दर रूप था। बाप के रूप में, भविष्य किस तरह से श्रेष्ठ बनाना है, वह प्रेरणा देते थे। टीचर के रूप में बाबा के सम्मुख आयी तो बड़ा ही आकर्षण रहा कि मुरली सुननी है। मुरली की जो कुछ बातें समझ में आयीं वो दिल में समा लीं। सतगुरु बन बाबा ने दृष्टि दी तो मैं आत्मा वतन में उड़ गयी, नज़र से निहाल हो गयी। जानी-जाननहार बाबा को मेरा भविष्य मालूम था। इसलिए बाबा, अपनी अलौकिक गोद में बिठाकर ऊँच बनने की प्रेरणा दे हिम्मत भरते रहे। बाबा मुझे सदैव यही कहते ये कि बच्ची, तुमको बहुत सेवा करनी है। मैं भी बाबा को ऐसे देखती थी कि बाबा मुझे अन्दर-बाहर अच्छी तरह से जानते हैं।
मैं जब सन् 1968 में बाबा से मिली तो बाबा ने पूछा, बच्ची, तुमको क्या करना है? मैंने कहा, बाबा, मुझे समर्पित होना है। बाबा ने बड़ी मीठी दृष्टि दी और कहा, आज रात्रि को बाबा से गुडनाइट करने आना। रात्रि को आँगन में ही बाबा खटिया पर बैठे थे, साथ में कई दादियाँ और भाई-बहनें भी थे। मैं और दादी जानकी भी पहुँचे। देखा वहाँ लाइट ही लाइट चमक रही थी। बाबा की खटिया के पास मोतिया के खुशबूदार फूल रखे थे और बाबा सबको दृष्टि दे रहे थे। जब मैं बाबा के सम्मुख गयी तो बाबा ने मुझे फूल दिये और दृष्टि दी तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि चुम्बक ने मुझ आत्मा को अपनी ओर खींच वतन में उड़ा दिया। मैं आत्मा, ज्योति की दुनिया में पहुंच गयी। बाबा ने मुझे पारलौकिक संसार में पहुँचा दिया। कुछ समय के बाद इस साकार दुनिया का आभास हुआ। देखा तो बाबा बड़े प्यार से दृष्टि दे रहे थे। बाबा ने पूछा, बच्ची, बाबा क्यों दृष्टि दे रहे हैं? दादी जानकी ने काँध हिलाते हुए इशारे से कहा, हम जानती हैं कि अब पुरानी दुनिया से मरना है और बाबा की गोद में अलौकिक जन्म लेना है।
बाबा की दृष्टि का महत्त्व मेरे लिए यादगार बन गया। सतगुरु की दृष्टि ने मुझे निहाल किया। बाबा की शक्तिशाली, मीठी, प्रेम सम्पन्न दृष्टि ने मुझ आत्मा को उड़ा दिया। इसके बाद बाबा ने दीदी के साथ ईश्वरीय सेवा पर भेजा। जब दिल्ली जा रहे थे तो बाबा ने कहा कि दिल्ली में कुमारियों की ट्रेनिंग होने वाली है। अगर पसन्द आये तो वहाँ ट्रेनिंग करना। हम दिल्ली, कमला नगर सेन्टर पर पहुंचे तो वहाँ सामने ही एक मकान लिया हुआ था जहाँ कुमारियों की ट्रेनिंग रखी हुई थी। जब बाबा को मालूम पड़ा कि बच्चियों को सड़क पार करके दूसरे मकान में ट्रेनिंग के लिए जाना पड़ेगा तो तुरन्त बाबा ने कहा, वहाँ ट्रेनिंग कैन्सिल करो और मधुबन में ही ट्रेनिंग का प्रोग्राम रहेगा। बाबा सदा बच्चियों को सुरक्षित रखते थे और प्यार से पालना करते थे। यह बात मेरे दिल में लग गयी।
मैंने बाबा को कभी पुरुषार्थ करते नहीं देखा। बाबा सदैव सम्पूर्ण स्वरूप में मुझे दिखायी पड़ते थे। साकार में होते भी ऐसे लगता था कि बाबा यहाँ नहीं हैं। जैसे चलते-फिरते फ़रिश्ता ही दिखायी देते थे, बिल्कुल शिव बाबा के समीप। इस साकारी मनुष्य लोक में बाबा देवलोक के देव स्वरूप लगते थे। बाबा हर बच्चे के कल्याण का ही सोचते थे ताकि हर आत्मा की उन्नति होती रहे। बाबा निरन्तर आत्म-स्थिति में रहते थे और हर आत्मा को आत्मिक दृष्टि देते थे ताकि उस आत्मा का देहभान छूट जाये और वह आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाये। यह विशेषता बाबा की देखी। कई बार मुझे ऐसा लगता है कि हम और कोई पुरुषार्थ करें या न करें लेकिन आत्म-स्मृति में रहने का, आत्मिक स्थिति में रहने का पुरुषार्थ करते रहेंगे तो हम जल्दी से जल्दी बाबा के नज़दीक पहुँच सकते हैं।
एक बार की बात है, मैं बाबा के साथ बैडमिंटन खेल रही थी तो खेलते- खेलते बाबा रुक गये और पूछा, बच्ची, किसके साथ खेल रही हो? तुरन्त याद आया कि बाबा के साथ सर्वशक्तिवान शिव भी है। यह तो दिल को छूने वाली बात है कि परमात्मा भी बच्चों के साथ बच्चा बनकर, साधारण रीति से खेलपाल करता है। उसी समय बाबा ने कहा, आज बच्चों के साथ बाबा भोजन करेंगे। टेबल लगवाया गया और 8-10 भाई-बहनों को बाबा ने अपने साथ भोजन करवाया। बाबा एक तरफ़ बैठे थे और हम सब बाबा के सामने बैठे थे, उतने में बाबा बोले, देखो बच्चे, ऐसा मौका सतयुग में भी नहीं मिलेगा। अभी सर्वशक्तिवान बाप के साथ भोजन करने का मौका मिला है। तो हम कितने भाग्यवान हैं जो ज्ञान सागर, प्यार के सागर बाप के संग इस समय भोजन कर रहे हैं!
एक दिन हिस्ट्री हॉल के बाहर बैठकर मैं कुछ सेवा कर रही थी। बाबा कमरे से बाहर आये और एरोप्लेन (एक मकान का नाम) की ओर बढ़ने लगे, मुझे भी इशारा किया। मैं दौड़कर बाबा के पास पहुंची। बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा और चल दिये। वहाँ जाकर देखा तो दीदी, दादी और बड़े भाई-बहनों की मीटिंग चल रही थी। मैं संकोचवश अन्दर जाना नहीं चाहती थी मगर बाबा मुझे वहाँ ले गये। बाबा अपने स्थान पर जाकर बैठे और मुझे भी बैठने का इशारा किया। मैं पीछे बैठ गयी। मुझे इतना अच्छा मौका मिला जो बड़ी दादियों और भाई-बहनों की चिटचैट सुनी। ऐसी मीटिंग में बैठने का मौका बाबा ने दिया, उसे मैं अपना भाग्य समझती हूँ। बाबा भविष्य को जानते थे कि सेवा के निमित्त कैसे और कौन कारोबार चलायेगा? वह दिन मेरे लिए यादगार बन गया। कई बातें सीखने को मिलीं। आज भी कई परिस्थितियाँ आती हैं या खुद के संस्कार भी आते हैं परन्तु मुझ आत्मा को बाबा किसी भी युक्ति से सभी बातों से पार उड़ाकर सेवा के निमित्त बना देता है। यह बाबा की ही कमाल है जो उस समय शक्तिशाली दृष्टि देकर मुझ में शक्ति भर देते हैं। उस आधार से ही मेरा इतना ऊँचा और श्रेष्ठ जीवन बन गया। यह मेरे लिए सारे कल्प का भाग्य है। मुझे एक घटना याद आ रही है कि जब मेरी आयु 10 वर्ष की थी और हम लन्दन में रहते थे तब एक दिन एयर मेल (Air mail) आया। पार्सल खोला तो उसमें हाफुज आम थे। हमें बड़ा आश्चर्य लगा कि भारत से किसने ये आम भेजे होंगे! हमारे लौकिक सम्बन्धियों ने तो आज तक हमें याद नहीं किया। लेकिन पता चला कि साकार बाबा उस समय मुंबई में थे। आम खाते समय उन्हें हम छोटे बच्चे याद आये और बाबा ने बड़े प्यार से अच्छे-अच्छे आम चुनकर पार्सल द्वारा भेजे। मेरे मन ने भाव-विभोर होकर कहा, इतना प्यार करेगा कौन? उस समय लन्दन में आम का नाम-निशान भी नहीं था। परन्तु बाबा ने हमें प्यार से याद किया। वह दृश्य मुझे कभी भूल नहीं सकता।
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