ब्र. कु. ऐन्न बोमियन

ब्र.कु. ऐन्न बोमियन  – अनुभवगाथा

सिस्टर ऐन्न बोमियन का लौकिक जन्म मध्य अमेरिका के ग्वाटेमाला में एक कैथोलिक क्रिश्चियन परिवार में हुआा। उनके पिताजी ग्वाटेमाला में औषधि उत्पादन के एक बड़े उद्योगपति थे। 

वर्तमान समय आप ही पिताजी की कंपनी की जनरल मैनेजर तथा चेअरमैन हैं। सन् 1986 में मिलियन मिनिट्स ऑफ पीस कार्यक्रम द्वारा आप ब्रह्माकुमारियों के सम्पर्क में आयीं एवं आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया। वर्तमान समय आप ग्वाटेमाला में ही रहती हैं।

बापदादा ने कहा, आप बापदादा के ख़ज़ाने के अनमोल रत्न हो

मध्य अमेरिका के ग्वाटेमाला में मेरा जन्म हुआ। मेरे माता-पिता फ्रांस के हैं। मेरे पिताजी ग्वाटेमाला में औषधि उत्पादन के एक बड़े उद्योगपति हैं। उन्नीस साल की उम्र से ही मैं भी इस व्यवसाय में आई। जब मैं मियामी विश्वविद्यालय में पढ़ रही थी, उन दिनों मेरे पिताजी की हत्या हो गयी तो मुझे माताजी की मदद के लिए इस व्यवसाय में आना पड़ा। 

अभी मैं इस कंपनी में जनरल मैनेजर तथा चेअरमैन हूं। मेरा परिवार कैथोलिक क्रिश्चियन है। पिताजी की हत्या होने के कारण का मुझे पता नहीं पड़ा। मेरे पिताजी एक अच्छे इंसान थे। मैं 28 साल की उम्र में एक आध्यात्मिक संस्था से जुड़ गयी जो पूर्वी दर्शन तथा हठयोग सिखाती थी। उस संस्था से जुड़ने के बाद मुझे पुनर्जन्म के बारे में पता पड़ा कि मेरे पिताजी की आत्मा फिर से जन्म लेगी। मैं उस संस्था में जाती रही, हठयोग तथा इस्टर्न फिलॉसोफी का अध्ययन करती रही। मैं शाकाहारी भी बन गयी। 

सन् 1986 में कुछ लोगों का संगठन मैक्सिको से ग्वाटेमाला आया ‘मिलियन मिनिट्स ऑफ पीस’ कार्यक्रम की लॉन्चिंग के लिए। इस कार्यक्रम के लिए मैंने भी एक संगठन का गठन किया और पूरे देश में इस कार्यक्रम का आयोजन किया। कार्यक्रम पूरा होने के बाद न्यूयॉर्क में इस संग्रह को यू.एन. में अर्पित करना था। उस समय दादी प्रकाशमणि, दादी जानकी तथा ब्रह्माकुमारी संस्था के कई वरिष्ठ भाई बहनें आये थे। उस समय हमें भी आमन्त्रित किया गया था। वह पहला मौका था जब मैं ब्रह्माकुमारियों के सम्पर्क में आयी। 

उसके बाद दादी जानकी, जो पूरे विश्व में सबसे स्थिर मन वाली महिला के रूप में पहचानी जाती हैं, को ग्वाटेमाला में निमन्त्रण दिया गया। इस मिलियन मिनिटस ऑफ पीस कार्यक्रम स्मृति के लिए हमने ग्वाटेमाला में एक ‘शान्ति संस्था’ की स्थापना की थी तथा ‘हाऊस फॉर गॉड‘ का निर्माण किया था। यह किसी धर्म के नाम से नहीं था। इस स्थान पर अनेक लोग शान्ति तथा आध्यात्मिकता के अनुभव करते थे। यहाँ कोई निश्चिंत प्रार्थना, अर्चना आदि की पाबन्दी नहीं थी। जो जैसे चाहे उस रूप से कर सकता था। 

जब दादी जानकी ग्वाटेमाला आयीं थी, तब उस स्थान का भी दर्शन किया था। उन्होंने सोचा कि यह स्थान ब्रह्माकुमारियों के लिए बहुत अच्छा है, तो उन्होंने उसके सब सदस्यों को आबू पर्वत आने के लिए निमन्त्रण दिया। सन 1988 में हम दादी जानकी के निमन्त्रण पर माउण्ट आबू आये। दादियों, दादाओं तथा अन्य वरिष्ठ भाई-बहनों ने हमारे साथ अपने अनुभवों की लेन-देन की, हमारे साथ आहार-विहार किया। कुछ दिनों के मधुबन-वास ने हम लोगों को बहुत प्रभावित किया। हमने निश्चय किया कि इस मार्ग के जीवन को हम भी अपनायेंगे। मैं तो अपने लौकिक जीवन में देख चुकी थी कि व्यापार में कितनी परिस्थितियाँ आती हैं, कितना करप्शन (भ्रष्टाचार) होता है, कर्मचारियों की दिक्कतें होती हैं। मुझे पूरा विश्वास हो गया कि यह मार्ग ही जीवन में सुख, शान्ति तथा सत्य की प्राप्ति करायेगा। लौकिक जीवन में कितनी भी सम्पत्ति हो, दोस्त तथा रिश्तेदार हों लेकिन सन्तुष्टता नहीं थी, शान्ति नहीं थी। राजयोग मेडिटेशन सोखने के बाद मेरे बिजनेस तथा व्यक्तिगत जीवन में बहुत ही स्थिरता आई, आत्म-विश्वास बढ़ा तथा मानसिक सन्तुलन आया। 

एक बार की बात है, मेरी एक भतीजी का किसी ने अपहरण कर लिया। उस प्रकरण में मैंने अपहरणकर्ता तथा अपने भाई के बीच मध्यवर्ती का पार्ट बजाया। इस परिस्थिति में मेरे मन में कोई हलचल नहीं हुई, कोई घबराहट या भय नहीं हुआ। मैं निर्भय तथा अचल-अडोल थी। इस परिस्थिति में बाबा के ज्ञान तथा मेडिटेशन की मदद मिली। यह मेरे अलौकिक जीवन की एक बड़ी परीक्षा थी। यह प्रकरण 17 दिनों तक चला। उस समय सारा परिवार मेरे ऊपर ही निर्भर था तथा अपहरणकर्ता भी मेरी ओर ही आशा रखकर बैठे थे। लेकिन ईश्वरीय मूल्यों तथा मेडिटेशन ने ही मुझे सही निर्णय लेने और इस झगड़े का समाधान करने में सक्षम बनाया। सच में, आध्यात्मिकता मनुष्य के सुखी जीवन के लिए अति आवश्यक जीवन-पद्धति है। किस उद्देश्य से मैं यहाँ आया हूं, मुझे क्या करना है इस बात को आध्यात्मिकता ही बताती है।

प्रश्नः जब आपने पहली बार मेडिटेशन किया, उस समय का क्या अनुभव था?

उत्तरः पहला मेडिटेशन मेरा दृष्टियोग से आरम्भ हुआ। जब मैं दृष्टि लेते हुए तथा देते हुए मेडिटेशन कर रही थी, उस समय मुझे देह से अलग होने का अनुभव हुआ। मुझ ज्योतिर्बिंदु आत्मा ने शक्तिशाली पुंज बनकर, गहन शान्ति तथा शक्ति का अनुभव किया। जब मैंने बाबा से बुद्धियोग जोड़ा तो ओहो! वह तो बहुत अ‌द्भुत अनुभव था। लौकिक फादर से मेरा बहुत प्यार था। इसलिए प्यार के सागर शिव बाबा के प्यार का अनुभव कर मुझे बहुत ही आनन्द आया। मुझे अनुभव हुआ कि मैंने अपने सच्चे पिता को पा लिया। जबसे मैं ब्रह्माकुमारी बनी हूँ तब से लेकर आज तक मैं यह अनुभव कर रही हूँ कि मैं जहाँ भी जाती हूं, जो भी करती हूँ, मेरे साथ बापदादा सदा रहते हैं और सहभागी होते हैं। 

बाबा के साथ सम्बन्ध जोड़ने के अनुभव बहुत विचित्र होते हैं। सुबह अमृतवेले उठते ही उनसे गुड मार्निंग करना, उनसे ज्ञान की मुरली सुनना, उनके साथ भोजन बनाना और करना इससे आत्मा को बहुत ताक़त मिलती है। बाबा के संग से आत्मा की अनेक शक्तियों का विकास तथा वृद्धि होती है। दिन में कार्यक्षेत्र में कार्य करते समय आने वाली परीक्षाओं तथा परिस्थितियों का सामना करने में ये आन्तरिक शक्तियाँ मदद करती हैं। परमात्मा पिता के इस सम्बन्ध बिना मैं जी नहीं सकती। आध्यात्मिकता से ही जीवन में संतृप्ति मिलती है। आध्यात्मिक जीवन जीने का अर्थ यह नहीं है कि संन्यासी बनना या सारी दुनिया को छोड़ वैरागी बनना। हमें इस दुनिया में रहना है लेकिन आध्यात्मिकता के साथ।

प्रश्नः पहली बार अव्यक्त बापदादा से आप कब मिलीं और उस समय का क्या अनुभव था?

उत्तरः सन् 1989 में मैं बापदादा से पहली बार मिली। उस समय बाबा के लिए केक बनाने का सौभाग्य हम लोगों को मिला था। मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि मैं गॉड से मिलने जा रही हूँ। बाबा के साथ हमने भी केक काटा और बाबा ने अपने हस्तों से मुझे केक खिलाया। यह अनुभव मुझे सदा नशे में डुबा देता है कि दुनिया की करोड़ों आत्माओं में से परमात्मा ने मुझे चुना तथा मुझे यह महसूस कराया कि मैं तुमको अच्छी तरह जानता हूँ। बाबा से हम दो बहनें इकट्ठी मिलीं तो बाबा ने हम दोनों से कहा कि आप रूप-बसन्त हो। आप बापदादा के खज़ाने के अनमोल रत्न हो। सदा हिम्मत तथा साहस से कदम बढ़ाते चलना। बापदादा आपके साथ हैं ही।

प्रश्नः ग्वाटेमाला में आप क्या करतीं हैं?

उत्तरः मैं अपना बिज़नेस भी चलाती हूँ और मेरे साथ मेरी लौकिक सखी है, उसके साथ मिलकर ‘गॉड हाउस’ बनाया था, उसी में ही अब बाबा का सेन्टर बनाया है। मेरी सखी वह सेवाकेन्द्र चलाती है और मैं उसके साथ रहती हूँ। हम दोनों मिलकर वहां ईश्वरीय सेवा करते हैं।

प्रश्नः आप वहां किस तरह की सेवा करतीं हैं?

उसरः सेन्टर पर ब्राह्मणों के लिए स्नेह मिलन तथा भट्ठी के कार्यक्रम रखते हैं। बाहर के लोगों के लिए पोज़िटिव थिंकिंग तथा मैनेजमेन्ट कोर्स कराते हैं। इसके अलावा महिलाओं के संगठनों में जाकर उनके सशक्तिकरण के लिए आध्यात्मिकता तथा राजयोग मेडिटेशन सिखाते हैं। हम नर्सों के साथ मिलकर समाज सेवा का काम करते हैं। रोगी तथा मेडिकल स्टाफ को भी राजयोग मेडिटेशन सिखाते हैं। 

हमारे बाबा का सेन्टर तो बहुत सुन्दर है। उसके चारों तरफ गार्डन है, वह फल-फूलों से भरा रहता है। वातावरण शान्त तथा स्नेहिल है। आध्यात्मिक सेवा के अलावा हम रोगियों को फ्री में दवाई भी बाँटते हैं क्योंकि मैंने पहले ही बताया है कि हमारी दवाई उत्पादन कंपनी है। महीने में एक बार वहाँ के जनरल हॉस्पिटल वाले हमें बुलाते हैं, वहाँ जाकर प्रशिक्षणार्थी, नर्सस तथा डॉक्टरों के समक्ष मूल्यों के बारे में प्रवचन करते हैं।

प्रश्नः परमात्मा के साथ का आपका विशेष तथा प्यारा सम्बन्ध कौन-सा है?

उत्तरः प्रियतम। दुनिया में भी प्रियतम-प्रियतमा का प्रेम शुद्ध तथा पवित्र होता है। उनका प्रेम स्थिर रहता है, न कि हिलने-डोलने वाला। उनका जीवन एक-दूसरे के उत्कर्ष तथा भलाई के लिए होता है। परमात्मा तो परम प्रियतम है ना, वह तो प्रियतमों का भी प्रियतम, पतियों का भी पति तथा पिताओं का भी पिता है। उसका प्रेम तथा सम्बन्ध अविनाशी और सदा सुखदायी होता है। बाबा के साथ यह सम्बन्ध निभाना मुझे बहुत ही सुख देता है। परमात्मा का यह प्यार आत्मा में समग्र परिवर्तन ले आता है क्योंकि परमात्मा का प्यार निःस्वार्थ प्यार है, बेशर्त प्यार (अनकंडीशनल लव) है, उसके प्यार में कोई नियम या बन्धन, स्थान या मान की शर्त नहीं होती। परमात्म-प्यार का अनुभव मैं न केवल मेडिटेशन में करती हूँ परन्तु नित्य जीवन के हर क्षण, हर कर्म में प्रैक्टिकल रूप में करती हूँ।

प्रश्नः ब्रह्माकुमारी बनने से पहले भी आप उद्योगपति थीं और अभी भी उद्योगपति हैं लेकिन उस जीवन तथा इस जीवन में क्या अन्तर आया आप में?

उत्तरः बहुत अन्तर आया। उस जीवन में मैं अपने को उद्योगपति तया मालिक समझती थी। कर्मचारियों को नौकर, मज़दूर समझती थी। उनके दुःख-दर्द से मेरा कोई लेना-देना नहीं था। उनसे काम लेना और उसके बदले तनख्वाह देना मेरा काम था। बाकी सरकारी क़ानून के अनुसार उनको जो भी सुविधा देना ज़रूरी है, उतना दे दिया तो बस हो गया मेरा काम।

लेकिन ब्रह्माकुमारी बनने के बाद मैं उनको आत्मिक दृष्टि से देखती हूँ। उनको भी अपने भाई-बहन समझती हूँ, मेरे से जितनी ज़्यादा होता है उनकी सहायता करने की कोशिश करती हूँ। उनके प्रति प्रेम, दया, अपनापन दिखाती हूँ इससे उनमें भी परिवर्तन आया है, उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि हुई है, इसके फलस्वरूप कंपनी का उत्पादन तथा लाभ भी बढ़ा है। मेरे में आये परिवर्तन को देखकर, मेरे प्रति उनके व्यवहार में भी बहुत परिवर्तन आया है। पहले वाले जीवन का उद्देश्य था धन कमाने का, अभी का उद्देश्य है भौतिक तथा आध्यात्मिक जीवन का सन्तुलन बनाये रखना। मेरे से जितना हो सकता है उतना अन्य आत्माओं की सहायता स्थूल रूप से तथा सूक्ष्म रूप से करती हूँ। मेरे जीवन में आध्यात्मिकता होने के कारण में बिज़नेस में भी सफलता पा रही हूँ। मैं यह समझती हूँ कि बिज़नेस का लक्ष्य केवल धन कमाना नहीं है बल्कि लोगों की मदद करना भी है। अगर व्यापारी में यह भावना होती है तो उसके जीवन में गुणवत्ता भी होती है और उससे समाज का कल्याण भी होता है।

प्रश्नः ब्रह्माकुमारी बनने के बाद आपमें क्या परिवर्तन आया?

उत्तरः स्थूल रूप से मेरे में कोई परिवर्तन नहीं आया लेकिन सूक्ष्म रूप से, आत्मिक रूप से बहुत-से परिवर्तन आये। ज्ञान मिलने से पहले मन में भय बहुत रहता था। कोई भी परिस्थिति आती थी तो उसका सामना करने की या सहन करने की शक्ति नहीं थी। परन्तु जब से मैंने मेडिटेशन करना आरम्भ किया तब से व्यवसायिक जीवन में आने वाली परीक्षाओं तथा परिस्थितियों का सामना करने की शक्ति आयी, सहनशक्ति की वृद्धि हुई। इनके अलावा समायोजन तथा सामंजस्य (एडजस) करने की शक्ति आयी। कई बार, परिस्थितियों में मैं आक्रामक रुख अपनाती थी। लेकिन ईश्वरीय ज्ञान मिलने के बाद हर बात का आदि-मध्य-अन्त सोचकर निर्णय लेती हूँ और योगयुक्त होकर हर कार्य करती हैं। कर्मचारियों के साथ के व्यवहार में स्नेह तथा शक्ति का, नियम तथा प्रेम का सन्तुलन आया है। मैं अपने को निमित्त (ट्रस्टी) समझती हूँ और परमात्मा पिता को अपना तथा अपनी कंपनी का मालिक समझकर कार्य करती हूँ। ईश्वरीय मार्ग पर चलने का मुझे बहुत गर्व है। आध्यात्मिकता से मुझे जीवन में विचित्र खज़ानों की प्राप्ति हुई है।

प्रश्नः परमात्मा के अवतरण के बारे में तथा सृष्टिचक्र की अवधि के बारे में आपको कोई संशय नहीं उठा?

उत्तरः बिल्कुल नहीं। उसके बदले मैं आश्चर्य चकित हुई कि ये लोग कितनी स्पष्टता तथा आत्म विश्वास से बोल रहे हैं कि कल्प की आयु 5000 वर्ष है। ईश्वरीय ज्ञान की किसी भी बात में मुझे आपत्ति नहीं आयी क्योंकि यह ज्ञान तर्कसम्मत तथा विवेकसम्मत है। जब बहनों ने कहा कि गॉड का अवतरण हुआ है, तो मुझे बहुत आश्चर्य हुआ कि क्या परमात्मा का अवतरण हुआ है! क्या मैं उनसे मिल पाऊंगी! क्या उनसे बात कर पाऊंगी! जब बहनों ने कहा, हां, तो मैं बहुत ही खुश हुई तया निश्चय भी हुआ। मुझे ज्ञान स्पष्ट रूप से समझ में आया और ज्ञान की हर बात को मैं स्वीकार करती गयी।

मेरा लौकिक परिवार कैथोलिक क्रिश्चियन धर्म का है। मैं बचपन से ही बहुत धार्मिक भावना वाली थी। मैं कैथोलिक स्कूल में पढ़ी हुई थी। मैं नन बनना चाहती थी इसलिए मुझे कैथोलिक जीवन-शैली बहुत अच्छी लगती थी। मुझे अज्ञान काल में भी क्राइस्ट तथा गॉड के अन्तर का पता था। मुझे क्राइस्ट बहुत अच्छा लगता था, उससे मेरा बहुत प्यार था क्योंकि गॉड के साथ उसका बहुत गहरा प्यार था। मैं जानती थी कि क्राइस्ट गॉड नहीं है लेकिन उसके साथ हमेशा मुझे समीपता का अनुभव होता था।

प्रश्नः ज्ञान में आने से पहले भारत के प्रति आपकी क्या भावनायें थीं और अभी क्या भावनायें हैं?

उत्तरः पहले-पहले मुझे भारत के प्रति कोई भावना नहीं थी लेकिन जबसे मैंने हठयोग सीखा उसके बाद भारत के प्रति थोड़ा-सा आकर्षण हुआ था। जब मुझे ईश्वरीय ज्ञान मिला उसके बाद मुझे भारत भूमि अपनी भूमि लगने लगी। कभी मैं भारत में थी, वहाँ मैंने जीवन बिताया है ऐसा अनुभव होने लगा। भारत देश तथा भारत के लोग मुझे बहुत प्यारे लगने लगे। भारत की सभ्यता, भारतवसियों के आहार-व्यवहार मुझे अच्छे लगने लगे।

प्रश्नः भारतवासियों के लिए आपका क्या सन्देश है?

उत्तरः भारतवासी भाई-बहनों को देख, चाहे बी.के. हों या नॉन बी.के., मुझे बहुत खुशी होती है क्योंकि उनका जन्म इस पावन भूमि पर हुआ है, वे इस पवित्र धरती पर अपना जीवन जी रहे हैं। यह भारत पावन भूमि है क्योंकि इस भूमि पर ही परमात्मा आया है। इसलिए उस परम शक्ति परमपिता परमात्मा को शीघ्रातिशीघ्र जानना आपका परम कर्तव्य है। मैं तो परदेशी हूँ, मैं भारत से बहुत दूर रहती हूँ। मैं यहाँ 18 सालों में 20 बार आयी हूँ। आप से मेरा यही नम्र निवेदन है कि आप भारतवासी परमात्मा का सन्देश तथा आदेश सुनो, ईश्वरीय जीवन का आनन्द लो। आप समीप होने के कारण इस ज्ञान का पूरा-पूरा लाभ उठाओ।

प्रश्नः क्या आप इस ब्रह्माकुमारी जीवन से सन्तुष्ट हैं?

उत्तरः आप कैसा प्रश्न पूछ रहे हैं? मैं तो इस जीवन से पूर्णतः सन्तुष्ट हूँ। इस आध्यात्मिक जीवन से मैं लौकिक तथा अलौकिक जीवन में खुशी तथा सफलता पा रही हूँ।

प्रश्नः आपको शाकाहारी बनने में कोई मुश्किल नहीं हुई?

उत्तरः नहीं, मैं ज्ञान में आने से पहले ही शाकाहारी थी क्योंकि मांसाहार से मैं ज़्यादा बीमार रहती थी इसलिए मैंने माँसाहार छोड़ दिया, स्वाभाविक जीवन जीने लगी। प्राकृतिक आहार स्वीकार करने लगी तो मेरे स्वास्थ्य में प्रगति होने लगी इसलिए मैंने शाकाहार को हो जीवन में अपनाया। शाकाहारी बनने से मुझे बहुत ही फायदा हुआ है। ईश्वरीय ज्ञान मिलते ही मेरा जीवन खुशियों से भर गया। जैसे कहते हैं ना, चार चांद लग गये। मैं अपने लौकिक तथा अलौकिक जीवन में बहुत ही खुश हूँ, सन्तुष्ट हूँ।


 

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