Bk sheela didi guvahati

बी के शीला दीदी – अनुभवगाथा

बाबा अत्यन्त विनम्र सेवाधारी थे

गुवाहाटी, असम से ब्रह्माकुमारी शीला बहन जी कहती हैं कि जब मैं मीठे मधुबन में बापदादा से मिलने के लिए आयी थी तब बाबा के कमरे की ओर बढ़ी तो एक विचित्र अनुभव पाया। जैसे ही मैं कमरे के दरवाज़े तक पहुँची तो दूर से ही बाबा ने मीठे-मीठे स्वर में मुझे बुलाया, “आओ मेरी शीला बच्ची, आओ।” ऐसा सुनते हुए मैं स्नेह के सागर में खो गयी और मन ही मन सोचने लगी कि मीठे बाबा ने मेरा नाम कैसे जाना कि मैं वही शीला हूँ। सचमुच ज्ञानसागर, जानीजाननहार का विचित्र अनुभव बाबा ने मुझे कराया। फिर कहा, बच्ची, जो भी तुम्हें ज़रूरत हो वह बाबा के घर से मिल सकता है। मैं तो बहुत देर तक बाबा को ही निहारती रही। फिर बाबा ने गद्दी पर बिठा कर गोद में लिया। वह गोद का अनुभव कितना सुखकारी था जो अवर्णनीय है जैसे कि बहुत समय से बिछुड़े हुए माँ-बाप का स्नेह होता है।

फिर एक बार बाबा ने मुझे अपने पास कुटिया में बुलाया और सभी स्थानों की सेवा का समाचार पूछा। बाप अपने बच्चों का हाल-चाल पूछकर आगे बढ़ने की राय देता है और उनको हल्का कर देता है, ऐसा ही अनुभव मुझे मीठे बाबा से हुआ। मैं जब भी बाबा को देखती थी बहुत ख़ुशी में खो जाती थी। फिर तो बाबा ने कहा, बच्ची, और भी सेन्टर देखने जाओगी? ऐसे कहते बाबा ने दिल्ली, मुज़फ्फरपुर, पटना आदि सेवास्थानों पर मेरा घूमने का प्रोग्राम बनाया।

सेवा पर भेजते समय मीठे बाबा ने हाथ हिलाते अन्तिम महावाक्य कहे कि बच्ची, जहाँ भी जाना वहाँ सदा ही सर्विस, सर्विस और सर्विस। सचमुच बाबा ने जैसे कि मुझे सर्विस का वरदान दिया और मैंने जीवन में यही पाया कि बाबा के वरदान को साथ रखते हुए जहाँ भी सर्विस करते हैं, जो भी संकल्प सेवा का किया, वो सफलता को प्राप्त होता रहा है। बाबा ने जैसे वरदान देकर, आशीर्वाद देकर मुझे आगे बढ़ाया है और सेवा में सफलता का जन्मसिद्ध अधिकार अनुभव कराया है। धन्य है मेरा जीवन जो कि ऐसे सर्वशक्तिवान बापदादा को इन नयनों से निहारने का, शक्ति प्राप्त करने का, उसकी गोद में जाने का परम सौभाग्य मिला। मैं अपने को सदा ही पदमापदम भाग्यवान समझती हूँ कि साकार में माँ-बाप दोनों की गोद मुझे मिली।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Bk jagdish bhai anubhavgatha

प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु-प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को

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Bk sister maureen hongkong caneda anubhavgatha

बी के सिस्टर मौरीन की आध्यात्मिक यात्रा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट रही। नास्तिकता से ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़कर उन्होंने राजयोग के माध्यम से परमात्मा के अस्तित्व को गहराई से अनुभव किया। हांगकांग में बीस सालों तक ब्रह्माकुमारी की सेवा

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Dadi shantamani ji

ब्रह्मा बाबा के बाद यज्ञ में सबसे पहले समर्पित होने वाला लौकिक परिवार दादी शान्तामणि का था। उस समय आपकी आयु 13 वर्ष की थी। आपमें शुरू से ही शान्ति, धैर्य और गंभीरता के संस्कार थे। बाबा आपको ‘सचली कौड़ी’

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Bk pushpal didi

भारत विभाजन के बाद ब्रह्माकुमारी ‘पुष्पाल बहनजी’ दिल्ली आ गईं। उन्होंने बताया कि हर दीपावली को बीमार हो जाती थीं। एक दिन उन्होंने भगवान को पत्र लिखा और इसके बाद आश्रम जाकर बाबा के दिव्य ज्ञान से प्रभावित हुईं। बाबा

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Bk amirchand bhaiji

चण्डीगढ़ से ब्रह्माकुमार अमीर चन्द जी लिखते हैं कि उनकी पहली मुलाकात साकार बह्या बाबा से जून 1959 में पाण्डव भवन, मधुबन में हुई। करनाल में 1958 के अंत में ब्रह्माकुमारी विद्यालय से जुड़कर उन्होंने शिक्षा को अपनाया। बाबा का

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Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा?

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Bk puri bhai bangluru anubhavgatha

पुरी भाई, बेंगलूरु से, 1958 में पहली बार ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आए। उन्हें शिव बाबा के दिव्य अनुभव का साक्षात्कार हुआ, जिसने उनकी जीवनशैली बदल दी। शुरुआत में परिवार के विरोध के बावजूद, उनकी पत्नी भी इस ज्ञान में आई।

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Bk chandrika didi

1965 की सुबह 3:30 बजे, ब्रह्माकुमारी चन्द्रिका बहन ने ईश्वर-चिन्तन करते हुए सफ़ेद प्रकाश में लाल प्रकाश प्रवेश करते देखा। उस दिव्य काया ने उनके सिर पर हाथ रखकर कहा, “बच्ची, मैं भारत में आया हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ लो।”

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Bk achal didi chandigarh anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी अचल बहन जी, चंडीगढ़ से, 1956 में मुंबई में साकार बाबा से पहली बार मिलने का अनुभव साझा करती हैं। मिलन के समय उन्हें श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ और बाबा ने उन्हें ‘अचल भव’ का वरदान दिया। बाबा ने

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Bk ramesh bhai ji anubhavgatha

हमने पिताश्री जी के जीवन में आलस्य या अन्य कोई भी विकार कभी नहीं देखे। उम्र में छोटा हो या बड़ा, सबके साथ वे ईश्वरीय प्रेम के आधार पर व्यवहार करते थे।इस विश्व विद्यालय के संचालन की बहुत भारी ज़िम्मेवारी

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