ऋषिकेश के ब्रह्माकुमार अवधेश नन्दन कुलश्रेष्ठ कहते हैं कि मैं सन् 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था के सम्पर्क में आया और इसका साप्ताहिक कोर्स पूरा करने के बाद यह महसूस हुआ कि यही सत्य ज्ञान है और सत्य मार्ग है। इस कारण मैं ईश्वरीय सेवा में लग गया। ज्ञान में आने के लगभग दो वर्ष बाद बाबा से मिलने के लिए बाबा की एक कल्पित छवि को संजोये मधुबन पहुँच गया। मिलन की प्रतीक्षा में हम सभी क्लास हॉल में बैठ गये। कुछ समय के बाद बाबा ने हॉल में प्रवेश किया और सन्दली पर बैठ गये। कुछ क्षणों में ही मैं तो हक्का-बक्का रह गया क्योंकि उस तन में निराकार, सर्वशक्तिमान शिव परमात्मा को प्रवेश करते हुए इन आँखों से देखा। मैंने अपने जीवन में इतना सुन्दर, आकर्षक, सलोना, दिव्य, अलौकिक व्यक्तित्व कभी नहीं देखा। उस व्यक्तित्व की दृष्टि का वर्णन करने के लिए तो मेरे पास शब्द ही नहीं हैं।
उन क्षणों की स्मृति मात्र से ही एक अनोखी भीनी-भीनी परम पवित्रता की महक से आज भी मन आनन्दित हो जाता है। उस गुप्त परमानन्द को अपने जीवन की परम पूँजी के रूप में मन में संजोकर रख लिया। उस प्यार के सागर की नज़र के लिए यह ज़रूर कहा जा सकता है कि तेरी एक नज़र पर कुर्बान जाऊँ। सचमुच मैं तो कुर्बान हो ही गया। जब बाबा दृष्टि दे रहा था, वह भाव-भंगिमा अवर्णनीय थी। उस दृष्टि में स्नेह, शक्ति और आत्मीयता भरी हुई थी। उसके बाद उस सलोने मुख से प्यार भरे ‘मीठे-मीठे बच्चों’ इन शब्दों का उच्चारण हुआ और हम प्यार के सागर में समा गये। हम आज तक सुनते तो हैं कि परमात्मा प्यार का सागर है किन्तु उसके प्यार का अनुभव और उसका जादुई प्रभाव क्या होता है, उसका सम्पूर्ण अनुभव किया और अपने भाग्य को सराहा कि “वाह मेरा भाग्य, वाह!”
एक दिन हमें कहा गया कि आज कब्रिस्तान का प्रोग्राम है तो मुझे बड़ा आश्चर्य लगा कि यह क्या प्रोग्राम है! फिर टीचर बहन ने कहा कि इस प्रोग्राम को कब्रिस्तान इसलिए कहते हैं कि यज्ञ के आदि में यज्ञ वत्सों को बाबा सागर किनारे ले जाते थे और सबको सीधा एक मुर्दे की तरह बिना हिले शिव बाबा की याद में सोने के लिए कहते थे और स्वयं खड़े होकर शक्तिशाली दृष्टि से सकाश दे एक-एक को ट्रान्स में भेज देते थे। ये अपने आप में एक चमत्कार था क्योंकि जो ट्रान्स में जाते थे उनके पैर ऐसे हिलते थे जैसे नृत्य कर रहे हों। उन्हें अंगुली का सहारा दे उठा देते थे तो बहुत सुन्दर रास करना शुरू कर देते थे। ऐसे धीरे-धीरे जो कब्रिस्तान था वह सुन्दर रासमण्डल में बदल जाता था, जैसेकि फ़रिश्तों की सुहानी छटा से सूक्ष्मलोक बन जाता था। इसी प्रकार हमें भी सीधा सुला दिया और बाबा शक्तिशाली दृष्टि देने लगे और धीरे-धीरे हम सभी ट्रान्स की अवस्था में चले गये और ऊपर की दुनिया के अलौकिक, अनोखे चरित्रों का अनुभव करने में मगन हो गये। यह भी मेरा सौभाग्य था। ऐसे कई दिव्य अनुभव बाबा के संग रहकर किये। इसलिए दिल से निकलता है कि वाह बाबा, वाह!
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