Bk sundari didi pune

बी के सुन्दरी दीदी – अनुभवगाथा

बाबा सर्व पर सदा प्यार की वर्षा करते थे

पूना, मीरा सोसाइटी से ब्रह्माकुमारी सुन्दरी बहन जी अनुभव सुनाती हैं कि मानव के जीवन में एक ऐसी दिव्य घड़ी आती है जब अनायास ही उसका भाग्योदय हो जाता है। ऐसे ही सन् 1960 में जब पहली बार मैं पाण्डव भवन में पहुँची तो पाँव रखते ही मुझे ऐसा लगा कि यह मेरा ही स्थान है। यह कोई नया स्थान नहीं है जैसेकि मेरा यहाँ अनेक बार आना हुआ है। मैं निःसंकल्प रहती थी, कहाँ भी मूँझती नहीं थी। बाबा से मुलाक़ात होने के बाद उन्होंने मुझसे पूछा, बच्ची, किससे मिलने आयी हो? मैंने फलक से जवाब दिया, मैं अपने बापदादा से मिलन मनाने आयी हूँ। फिर पूछा, क्या लेने आयी हो? मेरे मुख से सहज रीति से निकला, मैं स्वर्ग का वर्सा लेने आयी हूँ। फिर बाबा ने पूछा, पहले कब लिया था? मेरे अन्तर्मन से अत्यन्त निश्चय से निकला, अनेक बार। उसी समय मुझे बाबा विष्णु के रूप में दिखायी पड़े। बाबा के सामने जाते ही मुझे एकदम अशरीरी स्थिति का, देहभान से न्यारेपन का अनुभव होता था। बाबा की पवित्र पालना से ही हम पक्के तथा खुशबूदार फूल बनते गये। ऐसे लगता था कि यही मेरा सच्चा खेवनहार है जिसके साथ संगम का सफ़र, जीवन की नैय्या का सफ़र निरन्तर चलता रहेगा।

जितना प्यारा और उतना न्यारा

जब भी बाबा के सामने पार्टियाँ आती थीं और आत्मायें अपने बाप से मिलन मनाती थीं तो उस समय मीठा बाबा उनके ऊपर प्यार की वर्षा करते थे। अन्तरात्मा शीतलता के सागर में डूब जाती थी। फिर बाबा उतने ही न्यारे, निःसंकल्प हो जाते थे। न्यारा भी उतना और प्यारा भी उतना यह सन्तुलन मैंने बाबा की स्थिति में सदैव देखा। जगत का प्यारा तथा जगत से न्यारा यह धारणा उनमें पहले से ही थी। बहुरूपी का पार्ट था उनका। बच्चों के साथ बच्चा, युवा के साथ युवा, बूढ़े के साथ बूढ़ा अर्थात् वानप्रस्थी बन जाता था। जैसा समय, स्थान और व्यक्ति वैसा बाबा का रूप होता था। तभी तो सब आयु वाले उनसे सन्तुष्ट होते थे।

एक बार सभी यज्ञवत्स क्लास के बाद घूमने चल पड़े। आगे शिव-शक्ति सेना के प्रमुख कमाण्डर बाबा भी थे। कमाण्डर के पीछे हम सभी शान्ति में चल रहे थे। जब बाबा गेट तक पहुँचे तो अचानक बाबा ऐसे मुड़ गये कि आगे वाले पीछे हो गये और पीछे वाले आगे हो गये। बाबा ने खड़े होकर सभी यज्ञ-वत्सों को ऐसी दृष्टि दी जो ज्ञानसूर्य से सर्चलाइट पाकर आत्मायें भरपूर होती गयीं। हम सब अर्ध चन्द्रमा के आकार में खड़े थे। बाबा की दृष्टि सबको खींचती रही। बाबा का रूप ऐसा था जैसे एक पॉवर हाउस का।

साकार बाबा से वरदानों की झोली भरने पर मैंने सेवा में सफलता ही सफलता पायी है। योगी जीवन का स्वरूप प्रैक्टिकल में देखा। न पुरुषार्थ में कठिनाई, न सेवा में कोई विघ्न। अनेक बड़े-बड़े सेवास्थान बनते गये, साधन भी मिलते ही रहे परन्तु साधना को मैं कभी नहीं भूली। बाबा से सर्व सम्बन्ध रखकर, योगयुक्त रहकर सदैव अपने में रूहानियत धारण करती रहती हूँ।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

Bk raj didi nepal anubhavgatha

काठमाण्डु, नेपाल से ब्रह्माकुमारी “राज बहन” जी लिखती हैं कि उनका जन्म 1937 में एक धार्मिक परिवार में हुआ था। भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद, उन्हें हमेशा प्रभु प्राप्ति की इच्छा रहती थी। 1960 में पंजाब के फगवाड़ा में, उन्हें ब्रह्माकुमारी

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Bk raj didi amritsar anubhavgatha

राज बहन बताती हैं कि उस समय उनकी उम्र केवल 13 वर्ष थी, और ज्ञान की समझ उतनी गहरी नहीं थी। उनके घर में बाबा और मम्मा के चित्र लगे थे, जिन्हें देखकर उन्हें इतना रुहानी आकर्षण होता था कि

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Dada anandkishore ji

दादा आनन्द किशोर, यज्ञ के आदि रत्नों में से एक, ने अपने अलौकिक जीवन में बाबा के निर्देशन में तपस्या और सेवा की। कोलकाता में हीरे-जवाहरात का व्यापार करने वाले दादा लक्ष्मण ने अपने परिवार सहित यज्ञ में समर्पण किया।

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Dadi pushpshanta ji

आपका लौकिक नाम गुड्डी मेहतानी था, बाबा से अलौकिक नाम मिला ‘पुष्पशान्ता’। बाबा आपको प्यार से गुड्डू कहते थे। आप सिन्ध के नामीगिरामी परिवार से थीं। आपने अनेक बंधनों का सामना कर, एक धक से सब कुछ त्याग कर स्वयं

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Bk mahesh bhai pandav bhavan anubhav gatha

ब्रह्माकुमार महेश भाईजी, पाण्डव भवन, आबू से, अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे बचपन से ही आत्म-कल्याण की तीव्र इच्छा उन्हें साकार बाबा की ओर खींच लाई। सन् 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े और 1965 में

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Bk premlata didi dehradun anubhavgatha

प्रेमलता बहन, देहरादून से, 1954 में 14 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आईं। दादी निर्मलशान्ता जी के मार्गदर्शन में उन्हें साकार बाबा से मिलकर अद्भुत अनुभव हुआ। बाबा ने उन्हें धार्मिक सेवा के लिए प्रेरित किया और उन्हें

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Dadi sheelindra ji

आपका जैसा नाम वैसा ही गुण था। आप बाबा की फेवरेट सन्देशी थी। बाबा आपमें श्री लक्ष्मी, श्री नारायण की आत्मा का आह्वान करते थे। आपके द्वारा सतयुगी सृष्टि के अनेक राज खुले। आप बड़ी दीदी मनमोहिनी की लौकिक में

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Dadi brijindra ji

आप बाबा की लौकिक पुत्रवधू थी। आपका लौकिक नाम राधिका था। पहले-पहले जब बाबा को साक्षात्कार हुए, शिवबाबा की प्रवेशता हुई तो वह सब दृश्य आपने अपनी आँखों से देखा। आप बड़ी रमणीकता से आँखों देखे वे सब दृश्य सुनाती

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Bk ramesh bhai ji anubhavgatha

हमने पिताश्री जी के जीवन में आलस्य या अन्य कोई भी विकार कभी नहीं देखे। उम्र में छोटा हो या बड़ा, सबके साथ वे ईश्वरीय प्रेम के आधार पर व्यवहार करते थे।इस विश्व विद्यालय के संचालन की बहुत भारी ज़िम्मेवारी

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Dadi hridaypushpa ji

एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक

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