Dadi rukmani ji anubhavgatha 2

दादी रुकमणी जी – अनुभवगाथा

वडाला, मुंबई की ब्रह्माकुमारी रुकमणी दादी जी साकार बाबा के संग के अनुभव ऐसे सुनाती हैं कि सन् 1937 में मेरी माँ ने सुना कि बाबा अलौकिक ज्ञान देते हैं तो वह करांची से हैदराबाद बाबा के पास गयीं। बाबा ने मेरी माँ को एक नक्शा समझाया और कहा कि जाकर इसका मनन करना। जितना तुम मनन करोगी उतना स्वयं परम आनन्द का अनुभव करोगी और पूजनीय मूरत बनोगी। बाबा का यह वरदान पाकर माँ करांची आ गयी। फिर माँ ने नित्य का नियम बना लिया कि सुबह दो बजे उठकर योग तपस्या में बैठ जाना है और मनन-चिन्तन करना है।

आठों प्रहर समाधि

कुछ दिनों के बाद बाबा ने एक पत्र लिखा कि बच्ची गंगादेवी, करांची में आने का मेरा विचार है। तो माँ ने लिखा कि बाबा ज़रूर आओ और सुदामा की झोपड़ी को पावन करो। बाबा करांची आये। हमने मकान के ऊपर के सारे कमरे बाबा के लिए दे दिये। क्योंकि बाबा के साथ मम्मा, दीदी मनमोहिनी और अन्य बहनें भी आयी थीं। बाबा दिन में दो बार सत्संग कराते थे और काफ़ी लोग सत्संग करने आते थे। इस प्रकार बाबा कुछ दिन करांची में रहे। उस समय बाबा ने एक गीत बनाया और मम्मा को कहा कि यह गीत गंगादेवी को सितार पर सुनाओ। गीत सिन्धी भाषा में था। “सखीरो अठ्ठे पैहर समाधि” अर्थात् आठ पहर समाधि में रहो। बाबा ने उसकी विधि इस प्रकार बतायी कि 

“स्वभाव निर्मल, सम गंगा जल, 

रहणी रख तू साधी, सात्विक भोजन कंद मूल फल। 

ज्ञान-अमृत जो पी तू पाणी, सदा चिन्तन कर आत्म कहाणी, 

कर्मण जी दैवी करे पूजाणी, कर अमरनाथ सां शादी।। 

धन जौबन जी थीण धयाणी, बार् बचा सब कर्म प्राणी। 

त्रिलोकी जी तू महाराणी, चैतन्य शुद्ध अनादि, 

बुध गंगा चवे राधे निमांणी, अमरनाथ जी अथ्थै  कहाणी। 

शिव सती चयो बुध ममः राणी तू चैतन्य शुद्ध अनादि।।”

यह गीत मम्मा ने सुनाया तो गीत सुनते-सुनते मेरी माँ की सहज समाधि लग गयी। मैंने भी बाबा को देखा तो ध्यान में चली गयी और श्रीकृष्ण को देखा, साथ-साथ स्वर्ग को देखा। उस समय मैं छह घण्टे ध्यान में रही जिसमें परमात्मा से सर्व सम्बन्धों का अनुभव किया। बलिहारी मेरे बाबा की है जो मुझे एक सेकेण्ड में नज़र से निहाल करके अशरीरी बनाया। बाबा ने मुझे यह भी बताया कि बच्ची, शरीर तुम्हारा मन्दिर है, आत्मदेव अन्दर है। अब स्वयं ही तुम निर्णय करो कि भोजन कैसा होना चाहिए। मेरे पिताजी ज्वैलर थे, बड़े ठाट-बाट से रहते थे। हमारे घर में मांस-मदिरा का बहुत बरताव था। लेकिन मैंने और माँ ने सेकेण्ड में तामसिक खान-पान, फैशनेबुल वेष-भूषा का त्याग कर दिया। यह बाबा की ही कृपा कहो, दया कहो, वरदान कहो, उसी वरदान ने 14 साल की आयु में ही त्याग कराया, आज तक वही त्यागी जीवन है।

भागवत में हम गोपियों का वर्णन पढ़ते थे लेकिन उसका अनुभव मैंने बाबा द्वारा किया। योग के गहरे अनुभव भी बाबा ने हमें कराये जो हम उसी रूहानी नशे और मस्ती में रहते थे। बाबा का यह गीत भी गाते थे –

“आत्म खुमारी, कैसी बीमारी। 

जीते जी मर गयी, अहो आनन्द। 

तुम मेरी, तुम मेरे। 

इस सुखमय जीवन का क्या साधन।। 

तुम मेरी, तुम मेरे।”

यह अनुभव होने के बाद बाबा ने कहा, तुम बेहद में आओ। बेहद में आने के लिए बाबा ने गीत लिखा:

“आज हमें सब बेहद भाता, क्या आनन्द है आता, 

ज्ञान से सृष्टि देखी, अति सुन्दर। 

ज्ञान से वस्तु देखी, अति सुन्दर।।”

शुरू हो गये तरह-तरह के बन्धन

इसके बाद मेरे पर बन्धन शुरू हुए क्योंकि मैं बहुत गहने पहनती थी। सदा गहनों से सजी रहती थी। लेकिन बाबा का ज्ञान मिला तो सारे गहने उतार दिये । पिता जी ने पूछा, गहने क्यों उतारे ? मैंने कहा, अभी हम ज्ञान के गहनों से सजे हैं। पिता जी को बहुत गुस्सा आया, मुझे और माँ को बहुत कुछ बोला। मेरे कान में ज़ेवर पड़े थे, वे निकल नहीं रहे थे तो एक दिन एसिड लगाकर वे भी निकाल दिये। दूसरे दिन पिता जी ने कान देखे जो काफ़ी ख़राब हो गये थे, तो पूछा, तुमने क्या किया है। मैंने कहा, कान में कुछ हो गया था। पिता जी ने कहा, तुमने खुद एसिड लगाया है और कहती है कि कान में कुछ हो गया था और कान के ज़ेवर भी निकाल दिये हैं। पिता जी को इतना गुस्सा आया कि उस गुस्से में पहली बार मेरी बहुत पिटाई की और कहा कि अगर अब उस दादा के पास गयी तो तुम्हें काट कर फेंक दूंगा। माँ और मेरे पर कड़ा पहरा बिठा दिया। लेकिन मैं बाबा को कभी भूली नहीं। बाबा से मेरा निरन्तर योग था। फिर एक दिन पिता जी ने कहा, यह त्यागी जीवन कैसे चलेगा और तुम्हें घर में ऐसे कैसे बिठायेंगे? शादी के लिए ज़बरदस्ती करने लगे। लेकिन मैं तो अपनी मस्ती में थी। पिताजी ने देखा कि यह तो मानने वाली नहीं है तो हमें हरिद्वार ले गये कि वहाँ किसी मंत्र-तंत्र वाले को दिखाकर ठीक करेंगे और इन पर जो (ज्ञान का) जादू लगा है वह निकालेंगे। 

हरिद्वार में एक मंत्र पढ़ने वाले ब्राह्मण को बुलाया। ब्राह्मण ने पानी पर मंत्र पढ़कर और उसे बोतल में भरकर दिया। मेरी माँ से कहा कि यह पानी तुम भी पियो और बच्ची को रोज़ पिलाओ। जब माँ ने मुझे कहा कि यह पानी पिओ तो मैंने कहा कि जादू का पानी नहीं पिऊँगी। बाबा ने माँ की ज्ञान की नींव बहुत मज़बूत डाली थी। माँ ने कहा, डरती क्यों हो? परमात्म-जादू श्रेष्ठ है या मनुष्यों का श्रेष्ठ है? बाबा ने जो हमको ईश्वरीय जादू लगाया है उस पर मनुष्यों का जादू कुछ नहीं कर सकता और नहीं पिओगी तो तुम्हारे पिता जी गुस्सा करेंगे। माँ ने कहा कि पानी पिओ, डरो नहीं।

बाबा ने एक बड़ा मस्ती का गीत बनाया था वह याद आया-

“नेष्ठा का जादू है मुझ में भरा, 

और सामने बैठ मुझे देख ज़रा।

यह देह क्या है, एक संकल्प सखी, 

अहं-मम की बनी है मन से सखी।। 

जब त्रिलोकीनाथ हमारा रक्षक है तो कौन क्या कर सकता है?”

जब हमारे पर नेष्ठा (योग) का जादू है, मनुष्य का जादू क्या करेगा ? हमारा जादू उस पर लगेगा। हमारा रक्षक त्रिलोकीनाथ है। मैंने पानी पी लिया। लेकिन उस जादू के पानी का हमारे पर कोई असर नहीं हुआ। उसके बाद हम वापस करांची आ गये। मेरी माँ ने अपनी दिनचर्या शुरू की जैसेकि सुबह उठना, योग करना और मुरली पढ़ना। बाबा के पास जाने की सख्त मना थी। लेकिन बाबा मुरली, विश्वरतन दादा के द्वारा भेज देते थे। विश्वरतन दादा सब्ज़ी लेने आते थे तो बाबा सप्ताह में तीन बार मुरली और टोली उन द्वारा भेजते थे। यह परमात्म चमत्कार ही था कि जब पिता जी घर से बाहर निकलते थे तो तुरन्त बाद विश्वरतन दादा आते थे। मुरली और टोली देकर, माँ को बाबा की बातें सुनाकर चले जाते थे। इस प्रकार बाबा ने घर में ही गुप्त पालना की। 

आलराउण्डर दादी लौकिक में मेरी बुआ की लड़की हैं। जब वे हमारे घर पर आती थीं तो पिताजी बहुत हंगामा मचाते थे और बहुत गुस्सा करते थे। क्योंकि पिताजी समझते थे कि ये ही हैं जो इनको कैसे भी करके बाबा के पास ले जायेंगी। इनके संग से छुड़ाने के लिए दुबारा फिर छह मास के लिए हरिद्वार ले गये। वहाँ गंगाराम नाम के एक महात्मा जी रहते थे जो सिन्ध के जोही गाँव के महन्त थे। उनके पास मुझे और माँ को ले गये। महात्मा जी ने बहुत परीक्षा ली, कई उल्टे- सुल्टे प्रश्न पूछे लेकिन मेरी माँ की परख शक्ति बहुत अच्छी थी तो उनको बहुत सुन्दर उत्तर दिये। महात्मा जी बहुत खुश हुए। वे हाथ जोड़कर बोले, “तुम्हारे पति के कहने पर मैंने तुम्हारी इतनी परीक्षा ली। लेकिन मैं देखता हूँ कि तुम्हारा निश्चय, तुम्हारी ज्ञान-योग की निष्ठा मुझसे बढ़कर है और संन्यास के लिए मैंने गेरूवे वस्त्र पहने हैं फिर भी तुम्हारे जैसा त्याग, वैराग मुझ में नहीं है। तुम्हारा ज्ञान और योग बहुत ऊँचे हैं।” छह मास के बाद मैं और माँ वापस घर आये। 

चित्तचोर की याद से परमानन्द की अनुभूति

सन् 1947 में भारत विभाजन के बाद हम सब परिवार सहित करांची से मुंबई आ गये। लेकिन बाबा ने जो परम आनन्द का अनुभव कराया था उसके आगे तो सारे संसार के रस हमें फीके लगते थे। मैं और मेरी माँ उसी मस्ती में रहती थीं। बाबा ने जो करांची में गीत लिखे थे वे याद आये। गीतों में इतना आनन्द था जो संसार को सेकेण्ड में भुला देते थे

“बाहरमुखता छोड़, माला तोड़, किताब डाल पानी में, 

पकड़कर हाथ वस्तों का निजानन्द को तू पाता जा। 

प्रेम की मस्ती और, जगत में ज्ञान की मस्ती और, ज्ञान से मन की मस्ती और, 

राझू सारथी रमझ बतावे, धीरे-धीरे पैर बढ़ावे।। 

कदम-कदम पर राह दिखावे, देह-अभिमान से जान छुड़ावे, 

निज में ही निज नैन अडावे, ऐसा यह चित्त चोर। 

जगत में योगी का प्रेम ही और, प्रेम से मोही लिया चित्त चोर।।”

इस गीत के याद आते ही श्रीकृष्ण की बात याद आयी कि श्रीकृष्ण की काठ की मुरली के पीछे गोपियाँ भागीं। लेकिन भगवान ने ज्ञान की मुरली बजायी उसके पीछे हम भागे। करांची में बाबा कहते थे, बच्चे, ज्ञान मुरली के अर्थ में टिकना है, शब्दों को नहीं देखना है। जितना अर्थ में टिकती जायेंगी उतना स्वयं सहज समाधि में टिक जायेंगी और दूसरों को भी अनुभव करायेंगी। इसलिए मैं बाबा की मुरली को बार-बार पढ़ती थी और उसका आनन्द लेती थी।

बाबा ने कहा- तुम गुप्त गोपी हो

राखी का त्यौहार आया। मुझे संकल्प आया कि बाबा को राखी भेजूँ। राखी के दो दिन पहले एक साधारण राखी ख़रीद कर लायी और पोस्ट मास्टर से कहा कि यह पोस्ट, कैसे भी राखी के दिन आबू पहुँचनी चाहिए। उसने कहा कि थोड़ा पैसा ज़्यादा लगेगा। मैंने कहा कि जितने भी लगें लेकिन पहुँचनी चाहिए। मैंने राखी भेजी और वह सही समय पर मधुबन पहुँच गयी। जो भी राखियाँ बाबा के लिए आयी थीं उनको छोटे हाल (हिस्ट्री हाल) में सजा कर रखा था। उसमें मेरी भी राखी रखी हुई थी। मुझे किसी ने बाद में बताया कि बाबा हाल में आये और सब राखी देखते हुए मेरी राखी को देखकर कहा कि यह कहाँ से आयी है? पता पड़ने के बाद बाबा ने उस राखी को बड़े प्यार से उठाया और बोला यह मेरी बाँधेली बच्ची की राखी है। इसका ज़िक्र बाबा ने मुरली में किया था। मेरा मन खुशी से नाच उठा। जब बाबा मुंबई आये थे तो मैं घर से छिपकर बाबा से मिलने गयी। उस समय क्लास चल रहा था। बाबा ने मुझे देखा और कहा, तुम गुप्त गोपी हो, तुमने राखी भेजी थी। बस यह सुनते ही मेरी आँखों से स्नेह का जल बहने लगा। वाह मेरे जानीजाननहार बाबा! जो मुझ बाँधेली को भी आपने याद किया। कितनी ख़ुशी की बात है कि स्वयं भगवान मुझे याद करे! कुछ वर्ष के बाद पिता जी ने शरीर छोड़ा और मैं बन्धन से मुक्त हो गयी और बाबा की सेवा में तत्पर हो गयी। बाबा का सिन्धी में लिखा हुआ एक पुराना गीत याद आया जो वैराग्य दिलाता है –

“छड़ देह-अभिमान, वठ योगीन सा ज्ञान, 

कर गंगा में स्नान, अर्थ ओम् सां। 

अहं आत्मा सुठ्ठो, कर परदेश फिट्टो, 

ओम् देश मिठो, हल गुरु कुलसां।।”

इसका हिन्दी अर्थ है- देह-अभिमान छोड़ो। गंगा में स्नान करो। ओम् एक औषधि है, अगर इस औषधि का पान किया तो तुम देह-अभिमान से मुक्त हो जाओगे। आत्मा श्रेष्ठ है, यह प्रकृति परदेश है, इससे उपराम हो जाओ। निज देश तुम्हारा ‘शान्तिधाम’ है। ओम् मंडली का नाम गुरुकुल है, इसके साथ रहो।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

Bk rajni didi - japan anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी रजनी बहन का आध्यात्मिक सफर, स्व-परिवर्तन की अद्भुत कहानी है। दिल्ली में शुरू हुई यात्रा ने उन्हें जापान और न्यूयॉर्क में सेवा के कई अवसर दिए। कोबे भूकंप के कठिन समय में बाबा की याद से मिली शक्ति का

Read More »
Dada vishwaratan anubhavgatha

आपका जैसा नाम वैसे ही आप यज्ञ के एक अनमोल रत्न थे। आप ऐसे पक्के ब्रह्मचारी, शीतल काया वाले योगी, आलराउण्ड सेवाधारी कुमार थे जिनका उदाहरण बाबा भी देते कि बाबा को ऐसे सपूत, सच्चे, पक्के पवित्र कुमार चाहिए। दादा

Read More »
Bk suresh pal bhai shimla anubhavgatha

ब्रह्माकुमार सुरेश पाल भाई जी, शिमला से, 1963 में पहली बार दिल्ली के विजय नगर सेवाकेन्द्र पर पहुंचे और बाबा के चित्र के दर्शन से उनके जीवन की तलाश पूर्ण हुई। 1965 में जब वे पहली बार मधुबन गए, तो

Read More »
Bk sister kiran america eugene anubhavgatha

बी के सिस्टर किरन की आध्यात्मिक यात्रा उनके गहन अनुभवों से प्रेरित है। न्यूयॉर्क से लेकर भारत के मधुबन तक की उनकी यात्रा में उन्होंने ध्यान, योग और ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े ज्ञान की गहराई को समझा। दादी जानकी के

Read More »
Bk sister denise anubhavgatha

सिस्टर डेनिस का जीवन अनुभव प्रेरणा से भरा है। ब्रिटिश व्यवसायी परिवार से जन्मी, उन्होंने प्रारंभिक जीवन में ही महिला सशक्तिकरण के विचारों को आत्मसात किया और आगे भारतीय संस्कृति और ब्रह्माकुमारी संस्थान से जुड़ीं। ध्यान और योग के माध्यम

Read More »
Bk sister chandrika toronto caneda anubhavgatha

बी के सिस्टर चंद्रिका की प्रेरणादायक कहानी में, ग्याना से ब्रह्माकुमारी संस्थान के माध्यम से उनकी आध्यात्मिक यात्रा को समझें। बाबा के नयनों से मिले शक्तिशाली अनुभवों ने उन्हें राजयोग मेडिटेशन में निपुण बनाया और सेवा के प्रति समर्पित कर

Read More »
Dadi situ ji anubhav gatha

हमारी पालना ब्रह्मा बाबा ने बचपन से ऐसी की जो मैं फलक से कह सकती हूँ कि ऐसी किसी राजकुमारी की भी पालना नहीं हुई होगी। एक बार बाबा ने हमको कहा, आप लोगों को अपने हाथ से नये जूते

Read More »
Bk santosh didi sion anubhavgatha

संतोष बहन, सायन, मुंबई से, 1965 में पहली बार साकार बाबा से मिलीं। बाबा की पहली मुलाकात ने उन्हें विश्वास दिलाया कि परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आते हैं। बाबा के दिव्य व्यक्तित्व और फरिश्ता रूप ने उन्हें आकर्षित किया।

Read More »
Bk nirwair bhai ji anubhavgatha

मैंने मम्मा के साथ छह साल व बाबा के साथ दस साल व्यतीत किये। उस समय मैं भारतीय नौसेना में रेडियो इंजीनियर यानी इलेक्ट्रोनिक इंजीनियर था। मेरे नौसेना के मित्रों ने मुझे आश्रम पर जाने के लिए राजी किया था।

Read More »
Bk sister maureen hongkong caneda anubhavgatha

बी के सिस्टर मौरीन की आध्यात्मिक यात्रा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट रही। नास्तिकता से ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़कर उन्होंने राजयोग के माध्यम से परमात्मा के अस्तित्व को गहराई से अनुभव किया। हांगकांग में बीस सालों तक ब्रह्माकुमारी की सेवा

Read More »