Bk kamlesh didi bhatinda anubhavgatha

बी के कमलेश दीदी – अनुभवगाथा

भटिण्डा, पंजाब से ब्रह्माकुमारी कमलेश बहन जी कहती हैं, सन् 1954 में प्रथम बार जैसे ही बाबा के सामने पहुंची और बाबा के नैनों से रूहानी शक्ति का अनुभव हुआ तो कितने समय तक तो यह मालूम नहीं पड़ा कि मैं कहाँ खो गयी हूँ। जैसे नदी सागर में समाकर अपना अस्तित्व खो देती है, बाबा के साथ पहली मुलाक़ात में मेरा ऐसा ही अनुभव रहा।

बाबा के वरदान ने मेरे जीवन की रूप-रेखा ही बदल डाली

पहली बार जब मैं बाबा से मिली तो बाबा ने मुझे ऐसा बरदान दिया जिसका पूर्ण होना असम्भव-सा लग रहा था। बाबा ने कहा, ‘बच्ची, अपने मैनेजर से भी आगे जाओगी।’ बाबा ने अपना उदाहरण देकर मुझे समझाया कि मैं कैसे एक सेल्समैन से हीरों का व्यापारी बन गया। बाबा के वरदानी बोल मेरे कानों में गूंजने लगे। परिस्थितियों ने कुछ ऐसी करवट ली कि मैंने जिस टीचर से पालना ली थी उससे भी आगे निकल गयी। इस प्रकार, बाबा का वरदान सिद्ध हो गया। बाबा के वरदान ने मेरे जीवन की रूप-रेखा ही बदल डाली। मैं जब भी बाबा से मिलने जाती थी तो बाबा के नैनों में न केवल मुझे मेरा आदि-मध्य-अन्त दिखायी देता था बल्कि सारा ब्रह्माण्ड ही प्रत्यक्ष में अनुभव होता था।

जब मैंने सेवाकेन्द्र पर रहना शुरू किया तो मेरे लौकिक माता-पिता ने संस्था के विरोध में चण्डीगढ़ की अदालत में केस कर दिया। लेकिन बाबा का अद्भुत चमत्कार ही कहें कि कुछ ही दिनों में लौकिक परिवार वालों ने अपनी हार मानकर केस वापिस ले लिया और मैं निर्बन्धन हो गयी। पहाड़ समान दिखायी देने वाला विघ्न कुछ ही दिनों में राई बन गया।

बाबा के एक शब्द ने मेरी खुशियों का बाँध तोड़ दिया

मेजर भाई की कोठी पर जब मैं और मेरी एक सहेली बाबा से मिलने गये तो हमने आपस में राय की कि हम अपना नाम नहीं बतायेंगे कि कौन कमलेश है, कौन शील है क्योंकि भगवान जब जानीजाननहार है तो क्या इतनी छोटी-सी बात भी नहीं बता सकेगा क्या? हमारे निश्चय की यह पहली सीढ़ी बन गयी जैसेकि हम बाबा का पेपर लेने का प्रयास कर रहे थे। जैसे ही हम बाबा के सामने पहुँचे, तो बाबा के एक शब्द ने मेरी खुशियों का बाँध तोड़ दिया। बाबा ने कहा, ‘आओ मेरी कमलेश बच्ची।’ बाबा के ये शब्द सुनते ही मैं बाबा की गोद में समा गयी।

युगल जोड़ी का युक्तियुक्त पार्ट

पहली बार जब मैं बाबा से मेजर भाई की कोठी में मिली तो उस समय वहाँ बाबा की क्लास चल रही थी। मन में एक संकल्प पहले से ही चल रहा था कि कौन-से बोल शिव बाबा के होंगे और कौन-से ब्रह्मा बाबा के? तभी अचानक एक अद्भुत नज़ारा प्रत्यक्ष में दिखायी दिया कि जब शिव बाबा की वाणी चलती थी तो एक चमकता हुआ सितारा बाबा की भृकुटि में दिखायी देता था और फिर कभी वह सितारा गुम हो जाता था। इससे यह प्रत्यक्ष अनुभव हुआ कि शिव बाबा और ब्रह्मा बाबा दोनों का संगम ही वाणी का सार है। इस युगल जोड़ी को अलग नहीं किया जा सकता ।

बच्चों की हर तमन्ना पूरी करने की कोशिश

बाबा के शौक़ बच्चों के शौक़ से मेल खाते थे। एक बार मैंने बाबा से कहा, बाबा, आज आपके साथ बैडमिंटन खेलने का मन कर रहा है। शाम का समय था, बाबा किसी कार्य में व्यस्त थे। बाबा एकदम उस कार्य को समाप्त कर मेरे साथ बैडमिंटन खेलने चल पड़े और मेरे नैनों में स्नेह भरे अश्रु की धारा बह निकली। ऐसे थे मेरे बाबा! बाबा चौसर का खेल भी बड़े प्यार से खेलते थे और खेल-खेल में अद्भुत ज्ञान के रहस्य भी खोल देते थे।

बाबा के अव्यक्त होने के अन्तिम दिनों में जब मैं बाबा से मिलने गयी तो मैं बाबा को समाचार सुना रही थी। मैंने देखा कि बाबा देख रहे हैं मेरी तरफ़ परन्तु कहीं दूर खोये हुए नज़र आ रहे थे। मैं चुप हो गयी परन्तु बाबा उसी रस में खोये हुए थे। मैंने बाबा को दो-तीन बार बुलाया तो पाया कि बाबा वहाँ होते हुए भी वहाँ नहीं थे, दूर कहीं सागर में समाये हुए दिखायी दे रहे थे। मैंने बाबा का हाथ पकड़ कर हिलाया तो बाबा को मैंने अपने सामने पाया और बाबा ने मुस्कान भरी दृष्टि से मेरे सब प्रश्नों का हल एक सेकेण्ड में नैनों की भाषा से दे दिया।

बच्ची, तुम परीक्षा में पास हो गयी

सन् 1968 में पहली बार जब पार्टी लेकर बठिण्डा से मधुबन आयी तो बाबा ने कहा कि बच्ची, तुम्हें ग्वालियर जाना है। मैंने कहा, जी बाबा। बाबा ने पार्टी को मेरे बिना ही वापिस भेज दिया और मैं इधर से ही ग्वालियर चली गयी। कुछ समय पश्चात् बठिण्डा के भाई-बहनों ने मेरी वापसी के लिए बाबा को पत्र लिखने आरम्भ कर दिये। बाबा का राज़युक्त राज़ समझ में आया जब 15 जनवरी, 1969 को बाबा ने अपने हस्तों से मुझे पत्र लिखा कि बच्ची, तुम परीक्षा में पास हो गयी हो, तुम्हें बठिण्डा वापिस जाना है। यह पत्र मुझे बाबा के अव्यक्त होने के बाद 19 जनवरी को मिला। एक तरफ़ बाबा के अव्यक्त होने का समाचार था और दूसरी तरफ़ मेरी सफलता का स्नेह भरा बाबा का पत्र! कितने राज़युक्त थे ये कुछ दिन! वह पत्र मेरे लिए जीवन का वरदान बन गया। तब से अब तक मैं बठिण्डा सेवाकेन्द्र पर बाबा की सेवाओं पर तत्पर हूँ। यह भी एक राज़ है कि एक भी विघ्न इस सेवास्थान पर नहीं आया और निर्विघ्न सेवायें चल रही हैं।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा?

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Bk pushpal didi

भारत विभाजन के बाद ब्रह्माकुमारी ‘पुष्पाल बहनजी’ दिल्ली आ गईं। उन्होंने बताया कि हर दीपावली को बीमार हो जाती थीं। एक दिन उन्होंने भगवान को पत्र लिखा और इसके बाद आश्रम जाकर बाबा के दिव्य ज्ञान से प्रभावित हुईं। बाबा

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Bk amirchand bhaiji

चण्डीगढ़ से ब्रह्माकुमार अमीर चन्द जी लिखते हैं कि उनकी पहली मुलाकात साकार बह्या बाबा से जून 1959 में पाण्डव भवन, मधुबन में हुई। करनाल में 1958 के अंत में ब्रह्माकुमारी विद्यालय से जुड़कर उन्होंने शिक्षा को अपनाया। बाबा का

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Bk santosh didi sion anubhavgatha

संतोष बहन, सायन, मुंबई से, 1965 में पहली बार साकार बाबा से मिलीं। बाबा की पहली मुलाकात ने उन्हें विश्वास दिलाया कि परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आते हैं। बाबा के दिव्य व्यक्तित्व और फरिश्ता रूप ने उन्हें आकर्षित किया।

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Bk krishna didi ambala anubhavgatha

अम्बाला कैण्ट की ब्रह्माकुमारी कृष्णा बहन जी ने अपने अनुभव में बताया कि जब वह 1950 में ज्ञान में आयीं, तब उन्हें लौकिक परिवार से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। अमृतसर में बाबा से मिलने के बाद, उन्होंने एक

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Bk nalini didi mumbai anubhavgatha

नलिनी बहन, घाटकोपर, मुंबई से, 40 साल पहले साकार बाबा से पहली बार मिलीं। बाबा ने हर बच्चे को विशेष स्नेह और मार्गदर्शन दिया, जिससे हर बच्चा उन्हें अपने बाबा के रूप में महसूस करता था। बाबा ने बच्चों को

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Dadi dhyani anubhavgatha

दादी ध्यानी, जिनका लौकिक नाम लक्ष्मी देवी था, ने अपने आध्यात्मिक जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा। मम्मा की सगी मौसी होने के कारण प्यारे बाबा ने उनका नाम मिश्री रख दिया। उनकी सरलता, नम्रता और निःस्वार्थ सेवाभाव ने अनेक आत्माओं

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Bk chandrika didi

1965 की सुबह 3:30 बजे, ब्रह्माकुमारी चन्द्रिका बहन ने ईश्वर-चिन्तन करते हुए सफ़ेद प्रकाश में लाल प्रकाश प्रवेश करते देखा। उस दिव्य काया ने उनके सिर पर हाथ रखकर कहा, “बच्ची, मैं भारत में आया हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ लो।”

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Bk satyavati didi anubhavgatha

तिनसुकिया, असम से ब्रह्माकुमारी ‘सत्यवती बहन जी’ लिखती हैं कि 1961 में मधुबन में पहली बार बाबा से मिलते ही उनका जीवन बदल गया। बाबा के शब्द “आ गयी मेरी मीठी, प्यारी बच्ची” ने सबकुछ बदल दिया। एक चोर का

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Bk gayatri didi - newyork anubhavgatha

गायत्री दीदी की प्रेरणादायक यात्रा दक्षिण अमेरिका से लेकर भारत और संयुक्त राष्ट्र संघ तक फैली है। ज्ञान के मार्ग पर उन्हें बाबा का अटूट प्यार मिला, जिसने उन्हें यू.एन. में भारत की आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बना दिया। उनकी

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