सोनीपत, हरियाणा से ब्रह्माकुमारी जनक बहन जी कहती हैं कि मैट्रिक पास करके जब मैंने डिप्लोमा शुरू किया तो उस समय श्री हरगोविन्दपुर में चन्द्रमणि दादी जी पधारी थीं । मैं स्कूल से सीधी आश्रम पर उनसे मिलने गयी। जब उस दिव्य मूर्ति का दर्शन किया तो मेरा एक पैर अन्दर और दूसरा पैर बाहर ही रह गया। उसी क्षण मैंने फैसला किया कि मुझे भी अपना जीवन इन जैसा बनाना है। राजा जनक की भाँति मुझे भी बनना है। जीवन में काफी परिस्थितियाँ आयीं। उन्हीं परिस्थितियों के बीच 15 दिनों के अन्दर ब्रह्मा बाबा की पध्रामणी श्री हरगोविन्दपुर में हुई। पहली बार दर्शन करते ही मुझे ब्रह्मा बाबा के मस्तक पर हीरे की तरह चमकती हुई लाइट दिखायी दी। पन्द्रह मिनट के बाद श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ। वो साक्षात्कार जीवन में एक नया मोड़ लाया।
ये बच्चियाँ बहुत सेवा करेंगी
साकार बाबा ने मुझे अति स्नेह भरी दृष्टि देते हुए इस दुनिया से उपराम कर दिया। मुझे ऐसे लग रहा था कि बाबा मुझे इस दुनिया से दूर ले जा रहे हैं। हम तो बहुत खुश हुईं और जाने के लिए अपनी रीति से तैयार होने लगीं। जैसे-जैसे ज्ञान में आगे बढ़ने लगे वैसे-वैसे परीक्षाओं ने भी अपनी रफ़्तार पकड़ ली। हमने उन परीक्षाओं को पीछे रखा। बाबा की शक्ति ने हमें ऐसे खींच लिया जैसे चुम्बक सूइयों को खींच लेती है। साकार बाबा को हमारे ऊपर इतनी उम्मीदें थीं जो कहते थे कि ये बच्चियाँ बहुत सेवा करेंगी। एक बार बाबा का पत्र आया कि बाबा की बड़ी-बड़ी दुकानें हैं, कोई ऐसा मैनेजर हो जो उन दुकानों को सम्भाल कर दिखाये।
शुरू में बाबा ने मुझे मुंबई में 20 दिन के लिए प्रदर्शनी में भेजा। फिर मैं सीधे मधुबन बाबा के पास पहुँची। तीसरे दिन बाबा ने मुझे पटना के लिए रवाना किया। मैंने फैसला किया कि जहाँ भी बाबा मुझे भेजे, मुझे ना नहीं करनी। आज्ञा का पालन करते हुए देखो बाबा ने मुझे वरदानों से शक्ति भरकर सेवा में भेजा। मुझे बाबा कहते थे कि यह मेरी बच्ची बहुत ईमानदार है। फिर बाबा ने शिक्षा दी कि बच्ची, संगदोष से बचकर रहना। बचपन से मुझे पवित्र जीवन बहुत पसन्द था। बापदादा ने मुझे इस कलियुगी दुनिया से बचा लिया। मेरी सब मनोकामनायें बापदादा ने पूरी की। कहावत है:
‘चाह मिटी, चिन्ता मिटी, मनवा बेपरवाह।
जिसको कुछ नहीं चाहिए, वो है बादशाह।।’
अपने दिन को बेहतर और तनाव मुक्त बनाने के लिए धारण करें सकारात्मक विचारों की अपनी दैनिक खुराक, सुंदर विचार और आत्म शक्ति का जवाब है आत्मा सशक्तिकरण ।
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