Bk damyanti didi junagadh anubhavgatha

बी के दमयन्ती दीदी – अनुभवगाथा

बाबा भव्य मूर्ति के साथ सौम्य मूर्ति भी थे

जूनागढ़, गुजरात से ब्रह्माकुमारी दमयन्ती बहन जी लिखती हैं कि आज से 40 साल पहले मेरी साकार बाबा के साथ पहली बार मुलाक़ात हुई। उस समय का अनुभव बड़ा ही सुहावना, अलौकिक और अवर्णनीय है। बाबा के स्नेह में हृदय गद्गद हो उठा। बाबा की उस अलौकिक प्रतिभा में जैसेकि मैं खो गयी। दिल बार-बार कहता, मेरा बाबा…। नज़र उससे हटती ही नहीं थी। जब बाबा की नज़र पड़ी तो, ‘नज़र से निहाल’ हो गयी, सुषुप्त आत्मा जाग उठी। बाबा की नज़रों से अपार प्यार और दुलार का अनुभव हुआ। बाबा की उस एक नज़र से शरीर का भान भूल गयी और मैं आत्मा स्वयं को एक प्रकाश के समुद्र में हिलोरें लेती अनुभव करती रही। उनसे नैन मुलाक़ात करने से आत्मा में यह भाव झंकृत हो उठा कि ‘तुम्हें पाके हमने जहाँ पा लिया।’

बाबा की मधुर मुस्कान देखकर मुझ आत्मा के मिलन की चाह पूरी हो जाती। यदि सायंकाल का समय होता तो मेरी दिन भर की थकान उतर जाती थी। यदि प्रातः का समय होता तो कम-से-कम दिनभर के लिए एक नयी उमंग, नयी तरंग, नया उत्साह उभर आता था। सेवामूर्ति बाबा ने ऐसे कितनी आत्माओं को नया जीवन प्रदान किया! कितनों को प्रेरित एवं प्रोत्साहित करके माया से जीतने के योग्य बनाया!

बाबा चैतन्य शिवालय थे

बाबा एक चैतन्य शिवालय थे जिसमें स्वयं शिव बाबा चलते, फिरते, बोलते, देखते, सुनते थे। बाबा ने अपकारी पर भी उपकार किया। ऐसा अटूट, निर्मल, सर्वोच्च प्यार- न कभी सुनने को, न पढ़ने को, न देखने को, न पाने को और न कल्पना करने को मिला है और न मिलेगा। एक बार बाबा ने मुझे एक अन्य सेवास्थान पर जाने के लिए कहा। बाबा ने मेरे सिर पर हाथ रखा। तब से लेकर आज दिन तक बाबा की छत्रछाया सदा ही मेरे ऊपर है। मैं उस छत्रछाया के नीचे ही चल रही हूँ- ऐसा अनुभव करती हूँ।

बाबा के जीवन में मैंने रमणीकता और गंभीरता का बैलेन्स देखा। बच्चों के साथ खेलकूद करते हुए भी देखा। बाबा के जीवन में बहुत से गुण देखने, अनुभव करने में आते थे। बाबा सच्चे पिता के समान व्यवहार करते थे। बाबा एक भव्य मूर्ति के साथ सौम्यमूर्ति भी थे। वे कहते थे, बच्चे, यही आपका असली घर है। जो कुछ बाबा का है सो आप बच्चों के लिए है। तब तो दिल से आवाज़ निकलती है, ‘वाह मेरा बाबा वाह’।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

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अनुभवगाथा

Bk premlata didi dehradun anubhavgatha

प्रेमलता बहन, देहरादून से, 1954 में 14 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आईं। दादी निर्मलशान्ता जी के मार्गदर्शन में उन्हें साकार बाबा से मिलकर अद्भुत अनुभव हुआ। बाबा ने उन्हें धार्मिक सेवा के लिए प्रेरित किया और उन्हें

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Dada chandrahas ji

चन्द्रहास, जिन्हें माधौ के नाम से भी जाना जाता था, का नाम प्यारे बाबा ने रखा। साकार मुरलियों में उनकी आवाज़ बापदादा से पहले सुनाई देती थी। ज्ञान-रत्नों को जमा करने का उन्हें विशेष शौक था। बचपन में कई कठिनाइयों

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Bk sister maureen hongkong caneda anubhavgatha

बी के सिस्टर मौरीन की आध्यात्मिक यात्रा उनके जीवन का टर्निंग पॉइंट रही। नास्तिकता से ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़कर उन्होंने राजयोग के माध्यम से परमात्मा के अस्तित्व को गहराई से अनुभव किया। हांगकांग में बीस सालों तक ब्रह्माकुमारी की सेवा

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Bk hemlata didi hyderabad anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी हेमलता बहन ने 1968 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और तब से अपने जीवन के दो मुख्य लक्ष्यों को पूरा होते देखा—अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और जीवन को सच्चरित्र बनाए रखना। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ज्ञान और

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Dadi santri ji

ब्रह्मा बाबा के बाद यज्ञ में सबसे पहले समर्पित होने वाला लौकिक परिवार दादी शान्तामणि का था। उस समय आपकी आयु 13 वर्ष की थी। आपमें शुरू से ही शान्ति, धैर्य और गंभीरता के संस्कार थे। बाबा आपको ‘सचली कौड़ी’

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Bk jagdish bhai anubhavgatha

प्रेम का दर्द होता है। प्रभु-प्रेम की यह आग बुझाये न बुझे। यह प्रेम की आग सताने वाली याद होती है। जिसको यह प्रेम की आग लग जाती है, फिर यह नहीं बुझती। प्रभु-प्रेम की आग सारी दुनियावी इच्छाओं को

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Bk santosh didi sion anubhavgatha

संतोष बहन, सायन, मुंबई से, 1965 में पहली बार साकार बाबा से मिलीं। बाबा की पहली मुलाकात ने उन्हें विश्वास दिलाया कि परमात्मा शिव ब्रह्मा तन में आते हैं। बाबा के दिव्य व्यक्तित्व और फरिश्ता रूप ने उन्हें आकर्षित किया।

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Bk nayna didi london

युगांडा में जन्मी और लंदन में पली-बढ़ी ब्र.कु. नयना का जीवन अनुभवों और आत्म-खोज से भरा हुआ है। जानिए कैसे मधुबन में बाबा की दृष्टि ने उनके जीवन की दिशा बदल दी। फूड एंड सोल किताब की लेखिका और ट्रैवल

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Bk uttara didi chandigarh anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी उत्तरा बहन जी की पहली मुलाकात साकार बाबा से 1965 में हुई। बाबा से मिलने के लिए उनके मन में अपार खुशी और तड़प थी। पहली बार बाबा को देखने पर उन्हें ऐसा अनुभव हुआ जैसे वे ध्यान में

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Dadi kamal sundari ji

दादी कमलसुन्दरी का जीवन त्याग, पवित्रता और सच्ची साधना का प्रतीक था। उनके “मरजीवा जन्म” के अनुभव और सतयुग के साक्षात्कार ने उन्हें सभी के बीच अद्वितीय बना दिया। वे बाबा से गहरे जुड़े रहे और यज्ञ के प्रति प्रेम

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