Bk prem didi punjab anubhavgatha

बी के प्रेम दीदी – अनुभवगाथा

फरीदकोट, पंजाब से ब्रह्माकुमारी प्रेम बहन जी कहती हैं, जनवरी 1965 से मेरा सौभाग्य जगा जब ईश्वरीय ज्ञान मिला। मेरी खुशी का पारावार ना रहा कि बिना कोई कठिन तपस्या किये, बहुत सहज मुझे भगवान मिल गया। मेरा मन प्रभु-मिलन द्वारा जन्म-जन्मान्तर की पिपासा बुझाने को आतुर हो उठा। आख़िर वो मंगल घड़ी आयी 10 जून, 1965 को, जब हम प्यारे मधुबन स्वार्गाश्रम पहुँचे। अमृतसर से चन्द्रमणि दादी जी मेरे सहित 15 सदस्यों की पार्टी को मधुबन लेकर आयी। मन में बस एक ही लगन थी कि अभी बाबा से मिलें। दादी जी ने कहा, अभी नहा-धोकर आराम करो, बाबा शाम को 5 बजे हॉल में मिलेंगे। इन्तज़ार की घड़ियाँ बहुत लम्बी होती हैं। बाबा से मिलने को मन तड़प रहा था। शाम के 5 बजे हम हिस्ट्री हॉल में पहुँचे। बाबा हॉल में सामने बैठ, सभी को नम्बरवार दृष्टि दे रहे थे। मेरे नैन भी दृष्टि के लिए बेचैन थे और मन में यही गूंज रहा था, 

“जो सपने में ना देखा, वो साकार हो गया 

धन्य हुए ये नैन जिन्हें प्रभु का दीदार हो गया।”

 

जब बाबा ने मुझे दृष्टि दी तो ऐसा महसूस हुआ कि जन्म-जन्मान्तर की प्यासी आत्मा को भगवान खुद साकार में अपने नैनों से निहाल कर रहे हैं, खुशियाँ दे रहे हैं। इतनी अपार खुशी समायी नहीं गयी और आँखों से अश्रुधारा बह निकली। बाबा साकार में सामने दिखायी ना देकर बस लाइट ही लाइट दिखायी दी। पास में बैठे भाई-बहनें भी लाइट के फ़रिश्ते दिखायी देने लगे, मैं फ़रिश्तों की दुनिया में खो गयी। जन्म-जन्मान्तर की प्रभु-मिलन की प्यासी आत्मा उठकर साकार में प्यारे बाबा की गोद में समा गयी। दिल गाने लगा:

“सतयुग से उतरते-उतरते कलियुग में आकर, 

मेरी आत्म-ज्योति उझ गयी। 

आज तेरी मीठी गोद में समाकर, 

बाबा जन्म-जन्मान्तर की प्यास बुझ गयी। 

आत्म-परमात्म मिलन से उझाई ज्योति फिर से जग गयी।।”

बाबा ने इतना प्यार दिया कि आत्मा तृप्त हो गयी, “पाना था जो पा लिया” बस अलौकिक सुख, शान्ति, खुशी की जन्म-जन्मान्तर से जो आश थी वह पूर्ण हुई, आत्मा भरपूर हुई। फिर बाबा से बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। मैंने बाप, टीचर, सतगुरु, साजन आदि सर्व सम्बन्धों का अनुभव किया। बाबा की गोद में बहुत समय से बिछड़ी आत्मा को असीम प्यार मिला, फिर टीचर रूप में बाबा ने पूछा, ‘बच्ची, आगे कब मिली हो?’ मैंने कहा, ‘जी बाबा, 5000 वर्ष पहले मिले थे।’ बाबा ने पूछा, ‘कौन-सा पद पाया था?’ मैंने कहा, ‘महारानी का।’ फिर बाबा ने चन्द्रमणि दादी को कहा, ‘बच्ची, बाबा इसको दूसरे स्थान पर सेवा में भेजेगा। यह बच्ची होशियार है, बाबा की बहुत सेवा करेगी।’ यह सतगुरु के रूप में बाबा की आज्ञा थी। मैंने कहा, ‘जी बाबा, जहाँ आप कहेंगे वहाँ चली जाऊँगी।’ फिर चन्द्रमणि दादी जी ने कहा, अभी इसको घर से छुट्टी नहीं है, अगली बार आयेगी तो आप जहाँ कहेंगे वहाँ चली जायेगी। पहली बार मुझे 15 दिन बाबा के संग मधुबन में रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हर समय यही दिल में रहता था कि बाबा के संग में रहें, बाबा को ही देखते रहें।

क्या व्यक्तित्व था बाबा का!

क्या रूहानी आकर्षण था बाबा में! चलते-फिरते बाबा लाइट हाउस, माइट हाउस नज़र आते थे। बाबा सदा बेफ़िकर बादशाह दिखायी देते थे। बाबा को कहीं दूर से देख लेते तो ऐसे महसूस होता था जैसे चुम्बक सुई को खींच रही है। मन कहता था कि बाबा आपने हमें ऐसे अद्भुत नज़ारे दिखाये कि आपके प्यार में हम खिंचे चले आये। बाबा रोज़ सुबह 4.45 बजे हिस्ट्री हॉल में आकर बच्चों को दृष्टि देकर योग कराते थे। योग के बाद हम बाहर आँगन में खड़े हो जाते थे। एक तरफ़ बहनों की, एक तरफ़ भाइयों की लाइन होती थी। बाबा खड़े-खड़े दृष्टि देते थे फिर कहते थे, ‘देखो बच्चे, तुम्हारी कार में एक बत्ती है, मेरी कार में दो बत्तियाँ हैं! तो बच्चो, आपको महसूस होता है, अभी डबल बत्ती से आपको लाइट मिल रही है? आत्मा को अनुभव होता है कि स्वयं आलमाइटी बाप, ब्रह्मा-तन द्वारा हमारे में लाइट-माइट भर रहे हैं?’

इतना वृद्ध तन होते हुए भी इतना चुस्त!

एक बार भोली दादी ने कहा, सुबह तीन बजे बाबा के लिए भोग बनाना है, सतगुरुवार है, आप सेवा करने आना। हमारी पूरी पार्टी नहा-धोकर सेवा करने भंडारे में गयी। हम पूरी बेल रहे थे, बाबा पौने चार बजे भंडारे में आ गये और सभी बच्चों को प्यार भरी दृष्टि देते हुए कहा, ‘देखो बच्चे, भोलानाथ का भंडारा है, बाबा की याद में पूरी बेलने से खाने वाली आत्मा को भी बाबा की याद आयेगी, शक्ति मिलेगी। उसका कितना फल तुमको मिलेगा!’ ऐसे, बाबा हम सबका ध्यान शिव बाबा में खिंचवाते थे। कमाल थी प्यारे बाबा की कि इतना वृद्ध तन होते हुए भी इतना चुस्त! कर्मयोगी बनने का अभ्यास बाबा ने बच्चों को कराया।

इतना प्यार भूलेगा कौन?

एक दिन बाबा ने कहा, बच्चों, आज बाबा बच्चों को गिट्टी खिलायेंगे। इस समय जहाँ रत्नमोहिनी दादी का ऑफिस है वहाँ क्लास के बाद बाबा-मम्मा कुर्सियों पर बैठे। आगे पत्थर के कोयले की अंगीठी थी। भोली दादी व दो बहनें, पूरी की तरह रोटी बना रही थीं, रोटी पर मक्खन व बूरा डालकर मम्मा के हाथ में पकड़ाती, मम्मा बाबा को देतीं, फिर बाबा अपने हस्तों से बच्चों के मुख में डालते। उस लाइन में मैं भाग्यशाली आत्मा भी खड़ी थी जिसने साकार में आये हुए भगवान से दृष्टि ली और मुँह में गिट्टी ले अपने को धन्य-धन्य माना। इस बात को 39 वर्ष बीत गये लेकिन आज भी वह दृष्टि और गिट्टी स्मृति में आते ही मन में अपार खुशी की लहरें उठती हैं और मैं अपने सौभाग्य पर नाज़ करती हूँ।

जितनी बार मिलते उतनी बार शिक्षा मिलती

एक दिन चन्द्रमणि दादी जी बाबा के कमरे में बाबा से बातचीत कर रही थी, मैं वहाँ चली गयी। दरवाज़े की तरफ़ बाबा की पीठ थी, मैं देखकर वापिस आने लगी, आहट से बाबा को मालूम हुआ कि कोई आया है। बाबा ने झट आवाज़ दी, ‘बच्ची, तुम वापिस क्यों जाने लगी? बच्चों का हक़ है बाबा से मिलने का। बच्ची, जब चाहो बाबा से मिलने आ सकती हो।’ बाबा ने मुझे टोली दी। हम तो गिनती करते रहते, आज बाबा से कितनी बार मिले। वह ज्ञान सागर बाप जितनी बार मिलते उतनी बार ये शिक्षा देते कि बच्चे, बाप याद है? स्वर्ग का वर्सा याद है? बच्चे, आत्मा को देवताओं के सब गुणों से भरपूर करना है। बाबा प्यार भरी दृष्टि देकर मुँह में टोली खिलाते थे। उस समय ट्रेनिंग क्लास के कमरे बन रहे थे। हम देखते रहते कि 10-11 बजे बाबा मिस्त्रियों से मिलने जायेंगे, बाबा जब अपने कमरे से बाहर आते तो हम भी हाथ पकड़कर ट्रेनिंग क्लास की तरफ़ चल पड़ते। बाबा कहते थे, देखो बच्चे, ऐसे ही मज़बूत पकड़ना है, कभी बाबा का हाथ और साथ नहीं छोड़ना। मैंने भी प्यार से कहा, ‘बाबा हम आपका हाथ और साथ कभी नहीं छोड़ेंगे।’ बाबा ने फिर कहा, ‘पक्का?’ मैंने कहा, ‘जी बाबा। इतनी मेहनत यानि 63 जन्मों की भक्ति करने के बाद आप बड़ी मुश्किल से मिले हैं, कैसे छोड़ेंगे?’ इस प्रकार, क़दम-क़दम पर बाबा हमें मज़बूत करते थे।

बाबा से विदाई लेने को दिल नहीं करता था 

बाबा का कितना प्यार है! यह विदाई की घड़ी आयी ही क्यों? सभी बच्चों को बाबा ने “गो सून, कम सून” (Go soon, come soon) की टोली मिश्री, इलायची, बादाम खिलाया, साथ में ज्ञान-रत्नों से भी सजाया। बाबा ने कहा, ‘देखो बच्चे, मिश्री कितनी मीठी है, तुम भी मीठे बाप के मीठे बच्चे हो, मुख से कभी दुःख देने वाले बोल ना निकलें। बच्चे, बादाम खाने से दिमाग को ताक़त मिलती है, बाप तुम्हें इतना बुद्धिवान बनाते हैं जो 21 जन्म वज़ीर की आवश्यकता नहीं होती। इलायची खुशबू का प्रतीक है। बच्चे, तुम्हारे में दैवीगुणों की खुशबू होनी चाहिए।’ 

इस प्रकार, बाबा हमें हर एक से गुण ग्रहण करने की शिक्षा देते थे। बाबा का इतना बेहद प्यार था! जहाँ इस समय भंडारा है पहले वहाँ वृक्ष झाड़ियाँ थीं, मधुबन से विदाई के समय बाबा बच्चों को छोड़ने बाहर आये, हाथ मिलाते, दृष्टि देते विदाई दी। हम पीछे मुड़कर देखते रहे, बाबा भी तब तक बच्चों को निहारते रहे जब तक कि वे आँखों से ओझल नहीं हुए। प्यारे बाबा से विदाई लेने को हमारा दिल नहीं करता था, बेमन से विदाई ली, अश्रुधारा बहती चली गयी। ऐसा महसूस हुआ कि जन्म-जन्मान्तर की प्यासी आत्मा भरपूर हो रही है। आज भी वो दिन भुलाये नहीं भूलते।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Bk sister kiran america eugene anubhavgatha

बी के सिस्टर किरन की आध्यात्मिक यात्रा उनके गहन अनुभवों से प्रेरित है। न्यूयॉर्क से लेकर भारत के मधुबन तक की उनकी यात्रा में उन्होंने ध्यान, योग और ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े ज्ञान की गहराई को समझा। दादी जानकी के

Read More »
Bk rajkrushna bhai

बरेली के ब्रह्माकुमार राजकृष्ण भाई ने ब्रह्माकुमारी आश्रम में आकर आत्मा के ज्ञान और योग का गहरा अनुभव किया। गीता और सत्संग से शुरू होकर, उन्होंने शिव परमात्मा से मिलकर जीवन में बदलाव देखा। बाबा ने उन्हें ‘स्वराज्य कृष्ण’ नाम

Read More »
Bk sundarlal bhai anubhavgatha

सुन्दर लाल भाई ने 1956 में दिल्ली के कमला नगर सेंटर पर ब्रह्माकुमारी ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा बाबा से पहली बार मिलकर उन्होंने परमात्मा के साथ गहरा आध्यात्मिक संबंध महसूस किया। बाबा की दृष्टि से उन्हें अतीन्द्रिय सुख और अशरीरीपन

Read More »
Bk elizabeth didi africa anubhavgatha

ब्र.कु. एलिज़ाबेथ बहन का जीवन एक प्रेरणादायक सफर है। अफ्रीका में जन्म, नन बनने का अनुभव और फिर ब्रह्माकुमारी मार्ग पर चलते हुए नैरोबी और नाकरू सेवाकेन्द्र पर ईश्वरीय सेवा का विस्तार किया।

Read More »
Bk sundari didi pune

सुन्दरी बहन, पूना, मीरा सोसाइटी से, 1960 में पाण्डव भवन पहुंचीं और बाबा से पहली मुलाकात में आत्मिक अनुभव किया। बाबा के सान्निध्य में उन्हें अशरीरी स्थिति और शीतलता का अनुभव हुआ। बाबा ने उनसे स्वर्ग के वर्सा की बात

Read More »
Bk krishna didi ambala anubhavgatha

अम्बाला कैण्ट की ब्रह्माकुमारी कृष्णा बहन जी ने अपने अनुभव में बताया कि जब वह 1950 में ज्ञान में आयीं, तब उन्हें लौकिक परिवार से बाहर निकलने की अनुमति नहीं थी। अमृतसर में बाबा से मिलने के बाद, उन्होंने एक

Read More »
Bk gyani didi punjab anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी ज्ञानी बहन जी, दसुआ, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 1963 में पहली बार बाबा से मिलने पर उन्हें श्रीकृष्ण का छोटा-सा रूप दिखायी दिया | बाबा ने उनकी जन्मपत्री पढ़ते हुए उन्हें त्यागी,

Read More »
Bk jayanti didi anubhavgatha

लन्दन से ब्रह्माकुमारी ‘जयन्ती बहन जी’ बताती हैं कि सन् 1957 में पहली बार बाबा से मिलीं, तब उनकी आयु 8 वर्ष थी। बाबा ने मीठी दृष्टि से देखा। 1966 में दादी जानकी के साथ मधुबन आयीं, बाबा ने कहा,

Read More »
Bk trupta didi firozpur - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी तृप्ता बहन जी, फिरोजपुर सिटी, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। बचपन से श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाली तृप्ता बहन को सफ़ेद पोशधारी बाबा ने ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य’ का संदेश दिया। साक्षात्कार में बाबा ने

Read More »
Dadi rukmani ji anubhavgatha 2

रुकमणी दादी, वडाला की ब्रह्माकुमारी, 1937 में साकार बाबा से मिलीं। करांची से हैदराबाद जाकर अलौकिक ज्ञान पाया और सुबह दो बजे उठकर योग तपस्या शुरू की। बाबा के गीत और मुरली से परम आनंद मिला। उन्होंने त्याग और तपस्या

Read More »