धर्मशाला, हिमाचल प्रदेश से ब्रह्माकुमारी उमा बहन जी कहती हैं कि बाबा से मैं पहली बार मधुबन में सन् 1964 में मिली। बाबा की दृष्टि पड़ते ही मुझे लाइट ही लाइट नज़र आयी और इतना आकर्षण हुआ कि मैं चुम्बक की तरह खिंचकर गोदी में चली गयी। फिर बाबा मुझे कभी कृष्ण का रूप दिखायी देने लगे, कभी लाल-लाल लाइट में ज्योतिबिन्दु शिव बाबा। फिर बाबा बोले, ‘यह बच्ची सेवाधारी बच्ची है, बहुत सेवा करेगी, बहुतों का कल्याण करेगी।’ फिर बाबा ने पूछा, ‘बच्ची, तुम लक्ष्मी बनोगी या नारायण बनोगी?’ मैंने कहा, ‘लक्ष्मी-नारायण जैसा बनूँगी।’ बाबा ने कहा, ‘बच्ची, आपको पुरुषार्थ बहुत करना पड़ेगा।’ मैंने कहा, ‘जी बाबा।’ जब बाबा, ‘बच्ची’ शब्द बोलते थे तो वो आवाज़ ऐसी लगती थी जैसेकि आकाश के पार से आयी हो और मैं जैसे ऊपर उड़ जाती थी। बाबा भी दुनिया से निराले फ़रिश्ता रूप दिखायी देते थे। बाबा को देखते ही यह साकार दुनिया भूल जाती थी, जैसेकि फ़रिश्तों की दुनिया में घूम रहे हैं।
एक बार मैं बाबा के कमरे में गयी तो बाबा चारपाई पर लेटे हुए थे और शिव बाबा से बातें कर रहे थे। बाबा शिव बाबा की याद में मगन थे। मैं जाकर बैठ गयी। थोड़ी देर के बाद बाबा ने कहा, ‘बच्ची कब आयी? बाबा तो शिव बाबा से रूहरिहान कर रहा था।’ बाबा ने कहा, ‘बच्ची, शिव बाबा की याद में बहुत रहना, आगे बड़ा नाजुक समय आने वाला है। योग ही बहुत काम करेगा।’ यह सन् 1964 की बात है। उस समय हम 15 दिन मधुबन में रहे थे और रोज़ बाबा हम सभी भाई-बहनों को नक्की लेक (झील) घुमाने ले जाते थे। बाबा मेरी उँगली पकड़कर चलते थे तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं श्रीकृष्ण के साथ चल रही हूँ।
सन् 1966 की बात है, मैं एक सेठ के परिवार को बाबा के सम्मुख लायी और बाबा को कहा, ‘यह बड़ा सेठ है।’ सेठ ने जब बाबा को देखा तो उसे शिव बाबा का साक्षात्कार हुआ और सेठ ने कहा, ‘जो पाना था सो पा लिया क्योंकि मैं तो भटका हुआ था।’ फिर बाबा ने मुझ से कहा, ‘बच्ची, इसकी यहाँ अच्छी खातिरी करना, जिससे यह वहाँ जाकर बहुत सेवा करेगा।’ यहाँ से जाने के बाद वह यज्ञ की तन-मन-धन से बहुत सेवा करने लगा।
सन् 1967 में एक पार्टी को लेकर आयी तो उसमें दो कुमार थे। बाबा पार्टी से मिल रहे थे। सबसे मिलने के बाद एक कुमार से बाबा ने पूछा, ‘बच्चे, एक कन्या बहुत सहन कर रही है, उसके माँ-बाप शादी करना चाहते हैं लेकिन वह पवित्र रहना चाहती है, तो क्या तुम उस कन्या से गंधर्व विवाह करोगे? उस कुमार ने ‘ना’ कहा। दूसरा कुमार यह सुन रहा था लेकिन बाबा ने उसे कुछ नहीं कहा। वह बाहर आकर उस कुमार से बोला अगर बाबा मेरे से पूछता तो मैं ज़रूर ‘हाँ’ कर लेता। तो उस कुमार ने कहा कि बाबा के अन्दर परख शक्ति बहुत है जो हर आत्मा को परख कर ही बोलते हैं। बाबा के अथाह रूहानी प्यार ने इतना खींचा जो वो दिन आज भी याद आते हैं। साकार पालना के दिन भूलाने से भी नहीं भूलते हैं, अन्दर रोम-रोम में बसे हुए हैं। ब्रह्मा बाबा तो शिव बाबा का साकार रूप ही थे। मुझे साकार बाबा चलते-फिरते शिव बाबा ही नज़र आते थे। ‘तुम्ही संग खाऊँ, तुम्ही संग बैठूं…’ ये सब खेल इन आँखों से देखे!
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