Bk kamla didi patiala anubhav gatha

बी के कमला दीदी – अनुभवगाथा

पटियाला, पंजाब से ब्रह्माकुमारी कमला बहन जी कहती हैं कि सन् 1958 में करनाल सेवाकेन्द्र पर पहली बार मैं बाबा से मिली। बाबा सिर्फ एक घण्टे के लिए करनाल आये थे। उस समय मेरी उम्र 10 वर्ष की थी। बाबा क्लास में सभी भाई-बहनों से मिले। मैं भी बाबा को देखती रही लेकिन कुछ समझ में नहीं आया। परन्तु देखते ही ऐसा लगा कि मन को खींचने वाली न्यारी और प्यारी हस्ती ज़रूर है। घर में बन्धन भी बहुत थे परन्तु बाबा की पहली ही झलक से इतना आकर्षण बढ़ गया कि नैनों में आँसू आ गये। बैठे-बैठे मुझे ऐसे लगा जैसेकि कोई फ़रिश्ता आया और गया। इससे और ही मिलन की तड़पन बढ़ गयी।

जब मैं मधुबन आयी तो झोपड़ी में बाबा से बहुत ही समीपता से मिलन हुआ। मुझे बाबा ने बहुत स्नेह और शक्ति भरी दृष्टि दी तो मैं बाबा की बाहों में समा गयी और मुझे ऐसे अनुभव हुआ कि 15 वर्षों के बन्धनों और संघर्षों से थकी हुई आत्मा तन-मन का विश्राम पाकर एकदम हल्की हो गयी। प्यारे बाबा ने अपनी अलौकिक शीतल गोदी में समाते हुए बोला, ‘आओ मेरी बहादुर बच्ची आओ’ आगे कहा, ‘तुम्हें बहती गंगा बनना है।’ मैं सोचने लगी कि यह कैसे होगा? तुरन्त बाबा ने कहा, ‘अगर तुम सोचती रहोगी तो मैं भी सोचकर वर्सा दूँगा।’

हिम्मते बच्चे, मददे बाप

मैं बहुत डरपोक थी। पिताजी से छुट्टी लेने की हिम्मत नहीं होती थी। उनका ही बन्धन बहुत कड़ा था। मेरा पूरा लक्ष्य सेवा में समर्पित होने का ही था परन्तु यह कैसे होगा, कब होगा यह सोचती रह जाती थी। दूसरी मेरी कमी यह थी कि अगर मैं रूहानी सर्विस में जीवन लगाऊँ तो मुझे किसी के आगे बोलना, भाषण करना बड़ा कठिन लगता था। लेकिन कुछ दिन बाबा के सान्निध्य में रहने से निर्भय और निश्चिन्त बाप ने मुझे निर्भय बना दिया और इन वरदानों ने मेरे स्वप्न को बहुत जल्दी साकार कर मुझे निश्चिन्त बना दिया। 

मैंने निश्चय कर लिया था कि कुछ भी हो, अपने को निर्बन्धन करना ही है। मधुबन से जाने के बाद लौकिक पिताजी ने बी.ए. करने को कहा और यह भी कहा कि तुम्हें आगे पढ़ना है। लेकिन अब मेरा लक्ष्य पढ़ने का नहीं था। एक दिन पिताजी एम.ए. का फार्म लेकर आये और कहा, ‘यह फार्म भरो।’ मैंने कहा, ‘अब मुझे नहीं पढ़ना है।’ इतना कहते ही पिताजी ने बड़े गुस्से से कहा, ‘यहाँ से जाओ, जहाँ मर्ज़ी धक्के खाओ’ और गुस्से से फार्म फाड़ दिया। मैंने बड़ी नम्रता और हिम्मत से कहा, ‘पिताजी, यह तो समय बतायेगा कि हम धक्के खायेंगे या धक्के खाने वालों को धक्कों से छुड़ायेंगे।’ उसके बाद पिताजी ने मुझसे बोलना छोड़ दिया लेकिन मैं उनसे हर बार प्यार से बोलती रहती थी। मैं छिपकर आश्रम में जाती रहती थी। 

एक दिन पिताजी को पता चल गया तो गुस्से से बोले, ‘तुमने फिर आश्रम जाना शुरू कर दिया?’ मैंने कहा, ‘मैं तो आश्रम ज़रूर जाऊँगी’; क्योंकि मुझे बाबा ने कहा था कि ‘मेरी बहादुर बच्ची आओ’ यह वरदान याद आते ही मेरी हिम्मत बढ़ती गयी। ऐसी विकट परिस्थिति बन गयी कि पिताजी ने कहा, या तुम घर में रहो या मैं घर में रहूँगा। वे एक मास के लिए घर से निकल गये। एक मास के बाद वापिस घर पर आ गये लेकिन मुझे कोई घबराहट नहीं हुई। यह मन में आता रहा की कुछ भी नहीं होने वाला है और बाबा का वरदान बार-बार याद आता रहा। उसके बाद मैं रोज़ आश्रम जाती रही और ऐसा समय आया कि मैंने बन्धन को तोड़ अपने जीवन को बाबा की रूहानी सेवा में समर्पित कर दिया।

वे सब बिना कुछ कहे, शान्ति से चले गये

एक बार की बात है कि पटियाला में दंगे हो रहे थे। एक दिन कुछ उग्रवादी रात को 11 बजे सेन्टर पर आ गये। गेट खटखटाया और बोले, ‘गेट खोलो।’ हम पाँच बहनें थीं। हमने कहा, ‘नहीं खोलेंगे।’ उन्होंने कहा, ‘हम गेट तोड़ देंगे।’ वे अड़े रहे कि गेट खोलना ही पड़ेगा। मुझे बाबा का दिया हुआ वरदान याद आया ‘बहादुर बच्ची आओ।’ मैंने बहनों को कहा, लाल लाइट जला दो और सभी बाबा के कमरे में योग में बैठ जाओ। जैसे ही मैंने गेट खोला वैसे ही वे बड़ी तेज़ी से अन्दर आ गये और हॉल में चले गये। हॉल में सामने ही बाबा का चित्र लगा था। बाबा के चित्र के सामने जाते ही वे सभी एकदम शान्त खड़े रहे। उसके बाद बाबा के कमरे की ओर बढ़े। वहाँ उन्होंने देखा कि बहनें योग में बैठी हैं और वहाँ डेड साइलेन्स थी।

मुझे प्यारे बाबा का वरदान शक्तिशाली बना रहा था। वह 12 लोगों का ग्रुप था और उनकी बड़ी भयानक शक्लें थीं। वे वापिस लौटे तो मैंने उन्हें कहा, ‘यह आप सबके परमपिता परमात्मा शान्तिदाता का घर है।’ इतना सुनते ही वे सब बिना कुछ कहे शान्ति से चले गये।

हम सब आपके भाई हैं, कभी हमारी ज़रूरत हो तो ज़रूर हमें याद करना

एक बार फिर उग्रवादियों का दूसरा ग्रुप आया। वे अन्दर आये और काफी प्रश्न किये। हमने भी बड़े धैर्य से बाबा की याद में उनको उत्तर दिये। बाद में उनको बाबा का और आत्मा का परिचय दिया। अन्त में उन्होंने कहा, ‘हम आपके भाई हैं, आपको कोई कुछ कह नहीं सकता। कभी हमारी मदद की ज़रूरत हो तो अपने भाइयों को याद करना।’ मैंने उन्हें कहा हम सर्वशक्तिवान वाहे गुरु की छत्रछाया में हैं, हम सदा सुरक्षित हैं। सचमुच उनके जाने के बाद यही अनुभव रहा कि मीठे बाबा ने ही मुझे शक्तिशाली बनाया। ऐसी आत्माओं का भी बड़े धैर्य से सामना करने की युक्ति और शक्ति दी बाबा ने। वह वरदान याद करते हुए प्यारे बाबा के प्रति कृतज्ञता से आँखें भर आयीं, नैनों से मोती छलक पड़े। कहाँ निर्बल, डरपोक आत्मा को भी बाबा ने सहारा देकर शक्तिशाली बना दिया।

जब मैं मधुबन आयी थी तो उस समय मुझे बाबा ने एक बहुत सुन्दर सफ़ेद कमीज़ दी थी, जिस पर बड़ी सुन्दर कढ़ाई की हुई थी। वह शर्ट मैंने कई वर्षों तक पहनी। फटी हुई भी सम्भालकर रखी और बाबा के वे बोल याद आते रहे कि बच्ची मैंने तुम्हें यह सफ़ेद कढ़ाई वाली शर्ट क्यों दी? बाबा बोले सदा सजे-सजाये रहना। (यह राज़ बाद में समझ में आया।) हम मधुबन में आये थे। उस समय बाबा को कमर में दर्द हो गया था जिसे चुक पड़ना कहते हैं। मैंने बाबा से कहा, ‘बाबा, हमारी लौकिक माताजी चुक ठीक करती है।’ बाबा ने कहा, ‘बुलाओ बच्ची को।’ मैंने माताजी को बुलाया। फिर बाबा ने सबको कहा, ‘आज बच्ची बाबा की चुक निकालेगी।’ माताजी ने कहा कि चुक सूर्योदय होते ही और सूर्यास्त के समय ही निकाली जाती है। अभी जो शान्ति स्तम्भ बना है उस समय वहाँ टेनिस कोर्ट था, उसी ग्राउण्ड में बाबा को आगे-आगे दौड़ना था, पीछे मुड़कर नहीं देखना था। यह दृश्य भी बड़ा रमणीक और आनन्ददायक था। बाबा की चुक निकल गयी, दर्द ठीक हो गया। बाबा बोले, ‘बच्ची, तुमने बाबा के रथ को ठीक किया, बाबा सदा तुम्हारे दुःख हर लेगा।’ बाबा के वे बोल वरदान बन गये और हम सब बन्धनमुक्त हो गये। सब बन्धन सहज ही समाप्त हो गये। दर्द तो जैसे अलौकिक चरित्र था। सखा रूप में बाबा के संग अतीन्द्रिय सुख पाने के वे स्वर्णिम पल थे। बाबा जब दौड़ रहे थे तो ऐसा लगा जैसे कि श्रीकृष्ण अपनी बाल-लीलाओं से हम सबको रिझा रहा है। वे सुखद पल कभी नहीं भूलते।

बाबा के शरीर छोड़ने से 6 मास पहले मैं मधुबन आयी थी। मैं क्लास में बैठी थी, बाबा आये और सन्दली पर बैठ गये। बाबा एक-एक को दृष्टि देने लगे, मैं बाबा के मस्तक पर बड़ी सुन्दर ज़ोरदार सफ़ेद ज्योति चमकती देख रही थी। मैंने बार-बार कोशिश की कि यह क्या देख रही हूँ। आँखों को बार-बार हाथ से मला और सोचा कि यह मेरा संकल्प है या वास्तविकता! परन्तु मैंने अनुभव किया कि वह ज्योति इतनी बड़ी होती गयी कि बाबा का साकार रूप उस में छिप गया, दिखायी ही नहीं दिया। ऐसा लगा कि ब्रह्मा बाबा शिव बाबा के समान बन गये। वह स्वरूप आज भी याद आता है तो जैसेकि मैं अपने में शक्ति का अनुभव करती हूँ। बाबा का सबसे अच्छा गुण, जिसे मैं हमेशा ध्यान में रखकर चलती हूँ, यह लगा कि बाबा निराधार बनकर सबका आधार बना। बाबा का निश्चय अटूट, स्थिति अचल, अडोल और एकरस थी।

बाबा से मिले हुए वरदानों को अपना विशेष ख़ज़ाना, विशेष अधिकार, विशेष कृपा और सौभाग्य समझ अपने को धन्य मानती हूँ। डायरेक्ट भगवान के दिव्य चरित्रों को मैंने इन चर्म चक्षुओं से देखा है। यह मेरा परम सौभाग्य है और यह कल्प-कल्प की नूँध मुझे सदा ईश्वरीय नशे में मगन कर देती है।

साकार मिलन के वे सुनहरे पल अपार खुशी की लहरों में मस्त और व्यस्त कर देते हैं। मन आनन्द विभोर हो जाता है और इस फ़िकर की दुनिया से दूर बहुत दूर, उस बेहद की दुनिया में खो जाता है।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

[drts-directory-search directory="bk_locations" size="lg" style="padding:15px; background-color:rgba(0,0,0,0.15); border-radius:4px;"]
Bk mahesh bhai pandav bhavan anubhav gatha

ब्रह्माकुमार महेश भाईजी, पाण्डव भवन, आबू से, अपने अनुभव साझा करते हुए बताते हैं कि कैसे बचपन से ही आत्म-कल्याण की तीव्र इच्छा उन्हें साकार बाबा की ओर खींच लाई। सन् 1962 में ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े और 1965 में

Read More »
Dadi bholi ji

दादी भोली, जिनका लौकिक नाम ‘देवी’ था, ने अपनी छोटी बच्ची मीरा के साथ यज्ञ में समर्पण किया। बाबा ने उन्हें ‘भोली भण्डारी’ कहा और भण्डारे की जिम्मेदारी दी, जिसे उन्होंने अपनी अंतिम सांस तक निभाया। वे भण्डारे में सबसे

Read More »
Bk premlata didi dehradun anubhavgatha

प्रेमलता बहन, देहरादून से, 1954 में 14 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आईं। दादी निर्मलशान्ता जी के मार्गदर्शन में उन्हें साकार बाबा से मिलकर अद्भुत अनुभव हुआ। बाबा ने उन्हें धार्मिक सेवा के लिए प्रेरित किया और उन्हें

Read More »
Bk achal didi chandigarh anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी अचल बहन जी, चंडीगढ़ से, 1956 में मुंबई में साकार बाबा से पहली बार मिलने का अनुभव साझा करती हैं। मिलन के समय उन्हें श्रीकृष्ण का साक्षात्कार हुआ और बाबा ने उन्हें ‘अचल भव’ का वरदान दिया। बाबा ने

Read More »
Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा?

Read More »
Dadi bhoori ji

दादी भूरी, यज्ञ की आदिकर्मी, आबू में अतिथियों को रिसीव करने और यज्ञ की खरीदारी का कार्य करती थीं। उनकी निष्ठा और मेहनत से वे सभी के दिलों में बस गईं। 2 जुलाई, 2010 को दादी ने बाबा की गोदी

Read More »
Bk prabha didi bharuch anubhavgatha

प्रभा बहन जी, भरूच, गुजरात से, सन् 1965 में मथुरा में ब्रह्माकुमारी ज्ञान प्राप्त किया। उनके पिताजी के सिगरेट छोड़ने के बाद, पूरा परिवार इस ज्ञान में आ गया। बाबा से पहली मुलाकात में ही प्रभा बहन को बाबा का

Read More »
Dadi ratanmohini bhagyavidhata

ब्रह्माकुमारी दादी रतनमोहिनी जी कहती हैं कि हम बहनें बाबा के साथ छोटे बच्चों की तरह बैठते थे। बाबा के साथ चिटचैट करते, हाथ में हाथ देकर चलते और बोलते थे। बाबा के लिए हमारी सदा ऊँची भावनायें थीं और

Read More »
Bk meera didi malasia anubhavgatha

मीरा बहन का जीवन सेवा और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। मलेशिया में ब्रह्माकुमारी संस्थान की प्रमुख के रूप में, उन्होंने स्व-विकास, मूल्याधारित शिक्षा और जीवन पर प्रभुत्व जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रवचन दिया है। बाबा की शिक्षाओं से प्रेरित

Read More »
Bk satyavati didi anubhavgatha

तिनसुकिया, असम से ब्रह्माकुमारी ‘सत्यवती बहन जी’ लिखती हैं कि 1961 में मधुबन में पहली बार बाबा से मिलते ही उनका जीवन बदल गया। बाबा के शब्द “आ गयी मेरी मीठी, प्यारी बच्ची” ने सबकुछ बदल दिया। एक चोर का

Read More »