Bk krishna didi ambala anubhavgatha

बी के कृष्णा दीदी – अनुभवगाथा

अम्बाला कैण्ट से ब्रह्माकुमारी कृष्णा बहन जी अपने अनुभव सुनाती हैं कि जब मैं ज्ञान में आयी उस समय स्कूल में पढ़ती थी। बहुत ही बन्धन होने के कारण लौकिक बाप बाहर नहीं निकलने देते थे। सन् 1950 में बाबा अमृतसर आये थे तो पेपर देने का बहाना बनाकर मैं अमृतसर जाकर बाबा से मिली। मैंने एक कविता लिखी थी जो खड़े होकर बाबा के सामने प्रस्तुत की:

मुझे निश्चय है कि आप भगवान हैं, 

करते सबका कल्याण हैं, 

मेरी नैय्या डगमग डोले, 

किश्ती भंवर में खाये हिंडोले, 

गोद में ले लो पार करो…।

बोलते-बोलते मेरी आँखों से आँसुओं की धारा बह गयी। बाबा ने मेरा हाथ पकड़ कर गले लगाया। मुझे ऐसा लगा कि बाबा रूई जैसे कोमल-कोमल हाथों से अपने ही रूमाल से मेरे आँसू पोंछ रहा है और धैर्य दे रहा है कि धीरज धरो, धीरज धरो। मेरे साथ और भी बहुत-सी कुमारियाँ थीं। बाबा ने सबको देखते हुए चन्द्रमणि दीदी को कहा कि मैं तो सबको गाड़ी में भरकर ले जाऊँगा। यह मेरी बाबा के साथ पहली मुलाक़ात थी लेकिन घर वालों से छिप-छिपके। 

इस मिलन के बाद ऐसा लगा कि किसी ने मेरा चित्त चुरा लिया और नींद ले ली। दूसरी बार बाबा ने मुझे पत्र भेजा कि अपनी फोटो भेजो। किसी दूसरे स्थान पर जाकर बाबा को फोटो भेजा। फोटो देखकर बाबा ने चन्द्रमणि दीदी को कहा कि यह तो मेरी कल्प पहले वाली बच्ची है। यह तुम्हारी मददगार बनेगी।

बाबा के बोल मेरे लिए वरदान बन गये

बाबा से मुझे दो वरदान मिले। एक ‘शेरनी शक्ति’ है। दूसरा ‘यज्ञसेवा में मददगार बनेगी।’ ये दोनों वरदान आज तक मेरे साथ चल रहे हैं। जहाँ भी मैंने क़दम रखा वहाँ मुझे बाबा के वरदान अनुसार पदम मिले। रूखे-सूखे सेन्टर, जहाँ थाली-कटोरी-गिलास की भी कमी थी, थोड़े ही दिनों में हरे-भरे हो जाते थे। खास कर पंजाब में तलवाड़ा, होशियारपुर एवं शिमला इत्यादि में यह देखा। आज तक अनेक विघ्न आते भी हैं लेकिन मुझे बाबा के वरदान अनुसार सफलता ही सफलता मिलती रहती है।

वे मुझे कहने लगे, ‘तुम देवी हो, हमें माफ़ कर दो’

विकट परिस्थिति का चमत्कार है कि जब सहन करते-करते चार साल बीत गये, कलह-क्लेश का वातावरण लौकिक घर में रोज़ बना रहता था तो बड़े भाई ने लास्ट फैसला यह लिया कि इसका गला दबाकर इसे मारकर खुद मैं भी खुदकुशी कर लूँगा या जेल में चला जाऊँगा। फिर एक दिन तंग आकर रात को मेरा गला दबाने लगा। मैं “बाबा-बाबा” करने लगी। पता नहीं अचानक मेरे अन्दर कौन-सी शक्ति आयी कि भाई मुझे मारने के बजाये खुद बड़ी दूर जा गिरा और बेहोश हो गया। मेरे माँ-बाप सब मेरे पैर छूने लगे। कहने लगे, ‘तुम देवी हो, देवी हो, हमें माफ़ करो। हमसे ग़लती हो गयी, माफ़ कर दो, माफ़ कर दो।’ उस दिन से मेरे सारे बन्धन छूट गये। मुझे नौकरी के बहाने किसी दूसरे शहर में जाने की छुट्टी मिल गयी। मैंने दो-तीन स्कूलों में लौकिक सर्विस की और वहाँ बाबा के लाल अक्षरों से लिखित पत्र मिलते रहे।

साधारण मानव-तन में बैठ, सामान्य कर्म करती हुई परम शक्ति को देखा

बाबा के चेहरे पर मैंने अनोखी चमक, आँखों में अति प्रेम का आकर्षण और हाथों में स्थूल तथा सूक्ष्म सब कुछ करने की अद्भुत शक्ति का अनुभव किया है। मैं कितनी भाग्यशाली हूँ जो बच्चों के साथ बैठकर सब्ज़ी काटते, धान साफ़ करते हुए भगवान को मैंने देखा। घरों में पुरुष लोग पानी का एक गिलास भी लेकर नहीं पीते, यहाँ निरहंकारी बाबा को अनेक स्थूल कार्य एक्यूरेट करते देखा। ब्रह्मा बाबा की आन्तरिक स्थिति का ज़्यादा अनुभव तब हुआ जब अव्यक्त होने से कुछ समय पहले मैं उनसे मिली थी। उस समय बाबा बहुत गंभीर लगने लगे। मुरली के पश्चात् खड़े होकर दृष्टि देना, अपने कमरे तक आकर भी पहले कई बार चैम्बर में जो दो शब्द बोलते थे उसमें भी गंभीर रहने लगे। सबको शान्ति में ले जाते थे। शान्ति की स्थिति में बहुत गहराई महसूस होने लगी। खड़े-खड़े बहुत देर तक योग करते लाइट स्वरूप बनते देखा ।

बाबा में सभी प्रकार के गुण थे। सबसे बड़ी बात, बाबा में परखने की अद्भुत शक्ति थी। पार्टी के भाई-बहनों को मधुबन में लाकर बाबा के सामने बिठाते थे। पार्टी से मिलने के बाद बाबा हमें अलग बिठाकर कहते थे कि यह भाई तुम्हें आगे चलकर धोखा दे सकता है। सचमुच वह ऐसा ही निकलता था। जिसके लिए हम कहते थे कि यह अच्छा नहीं है, लड़ता रहता है, उसके लिए बाबा कहते थे कि यह तुम्हें यज्ञ में बहुत सहायता देगा। ऐसे बाबा अनेक आत्माओं की जन्मपत्री पढ़ लेते थे। एक बार समझानी मिल गयी कि सब कुछ बाबा को सुनाना होता है, तब से लेकर मैं सब कुछ बाबा को सच-सच लिखती रही हूँ। इसलिए भी बाबा ने मुझे कई बार “सचली कौड़ी” का टाइटिल भी दिया हुआ है।

लॉफुल और लवफुल बाबा

बाबा का धर्मराज रूप मैंने तीन बार देखा है। ग़लती करने पर भी सच्चे दिल से सब कुछ बाबा को सुनाने पर बाबा माफ़ कर देते हैं और वे बच्चे बाबा के नज़दीक चले जाते हैं। इसके बारे में एक छोटा-सा प्रसंग सुनाती हूँ। एक बार लगभग एक मास में मधुबन में रही। मेरे ऊपर इंचार्ज रूप में बड़ी बहन थी। मैं छोटी थी। उस बड़ी बहन को कुछ दिमागी तकलीफ़ होने के कारण कई बार रात को कमरे से बाहर घूमती रहती थी। उसे नींद नहीं आती थी। तब पाण्डव भवन पूरा बना नहीं था, सिर्फ तीन-चार कमरे बने थे जिन्हें ट्रेनिंग रूम कहते थे। वह बहन पूरी रात बाहर घूमती रही। किसी बहन ने बाबा को यह सब बता दिया। दिन में बाबा ने उसे कुछ भी न कहकर मुझे अकेले में बुलाकर बहुत कुछ कह दिया कि तेरा योग नहीं, तेरा अपनी साथी से सम्बन्ध ठीक नहीं, तूने आये हुए परमात्मा बाप को पहचाना ही नहीं। रूप भी बाबा का बहुत सख्त, पूरा धर्मराज का था। 

बाबा ने मुझे बहुत कुछ कह दिया। मेरी टांगें काँप रही थीं। डर के मारे मुँह लाल हो गया। फिर जब मैं वापिस कमरे में गयी तो उस बहन ने मुझसे पूछा कि तुझे क्या हुआ? बाबा ने तुझे क्या कहा? मैंने कुछ नहीं बताया और जाकर बिस्तर पर लेट गयी। मुझे बहुत ज़ोर का बुखार चढ़ गया। रात भर शरीर गरम रहा। सुबह अमृतवेले डरती-डरती उठी और क्लास में गयी। बाबा ने सारी मुरली मुझे ही देखकर चलायी। देखता भी रहा और मुस्कराता भी रहा। मुरली पूरी होते ही बाबा ने उंगली पकड़कर, प्यार का सागर बन गोद में समा लिया और कहा, ‘कभी भी किसी भी बात में मजबूर नहीं होना, मज़बूत हो रहना। सब कुछ बाबा को सुनाना।’ यह समझा कर फिर से गले से लगाकर टोली, बादाम, मिश्री खिलाकर छुट्टी दी। 

बड़ी दीदी (मनमोहिनी जी) को बुलाकर कहा कि बहुत मज़बूत बच्ची है, इसका ख्याल रखना। ऐसे थे मेरे लॉफुल और लवफुल साकार बाबा! एक बार मैंने बाबा को कहा कि मुझे लौकिक बाप बार-बार याद आता है। कभी-कभी रोना भी आ जाता है। बाबा मुझे देखता रहा और मेरी पूरी बात सुनता रहा। बहुत मीठी दृष्टि देकर हँसते हुए कहा, फिर क्या हुआ? बाप है ना! वर्सा ज़्यादा बाप से ही मिलता है। बाबा ने मुझे तो यह कहा परन्तु उस दिन के बाद मोह का अंश भी समाप्त हो गया। ऐसा लगा कि बाबा ने इस मोह के विकार को ब्लॉटिंग पेपर बन मेरे से निकाल दिया।

युक्तियुक्त बोल से बन्धनों से मुक्त करने वाले बाबा

बाबा के होते पाण्डव भवन छोटा था। इसे और बड़ा करने के लिए बाबा प्लान बनाते रहते थे। उस समय में लौकिक सर्विस करती थी। बन्धन छुड़ाने के लिए बाबा को पत्र लिखती रहती थी। बाबा दयालु कृपालु बन लाल अक्षरों में उत्तर लिखते थे। एक बार बन्धनमुक्त बनाने हेतु बाबा की ओर से मुझे एक युक्तियुक्त पत्र आया। बाबा ने लिखा कि बच्ची, मैं एक बहुत बड़ा और बहुत सुन्दर भवन बना रहा हूँ। एक में फुलकास्ट ब्राह्मण रहेंगे और दूसरे में हाफकास्ट। मुझे तो इसका अर्थ समझ में नहीं आया कि फुलकास्ट ब्राह्मण क्या है और हाफकास्ट ब्राह्मण क्या है? मैंने फिर लिखा, बाबा, मुझे समझ में नहीं आया। तो बाबा ने लिखा, बुद्धू बच्ची हो क्या? फुल समर्पण होना माना फुलकास्ट ब्राह्मण। फिर दिन-रात बुद्धि चलने लगी कि क्या करूँ? पहले ही में बहुत सहन कर चुकी थी इसलिए मैंने दृढ़ संकल्प किया कि अब तो मुझे फुलकास्ट ब्राह्मण बनना ही है। मैं दो महीने में अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा देकर अमृतसर चन्द्रमणि दादी जी के पास चली गयी और समर्पित हो गयी। फिर तो साकार बाबा से ऐसा मनभावन मिलन मनाया कि सच्चे-सच्चे मात-पिता का अनुभव किया। बाबा ने ऐसा गले लगाया कि मैं दुनिया भूल गयी, पावन प्रेम-गंगा में डूब गयी। बस फिर तो वो मस्ती चढ़ी कि आज तक उस इलाही (ईश्वरीय) मस्ती में पल रही हूँ। फिर तो बाबा ने निश्चय बुद्धि का टाइटिल दिया।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Bk hemlata didi hyderabad anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी हेमलता बहन ने 1968 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और तब से अपने जीवन के दो मुख्य लक्ष्यों को पूरा होते देखा—अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और जीवन को सच्चरित्र बनाए रखना। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ज्ञान और

Read More »
Bk chandrika didi

1965 की सुबह 3:30 बजे, ब्रह्माकुमारी चन्द्रिका बहन ने ईश्वर-चिन्तन करते हुए सफ़ेद प्रकाश में लाल प्रकाश प्रवेश करते देखा। उस दिव्य काया ने उनके सिर पर हाथ रखकर कहा, “बच्ची, मैं भारत में आया हूँ, तुम मुझे ढूंढ़ लो।”

Read More »
Experience with dadi prakashmani ji

आपका प्रकाश तो विश्व के चारों कोनों में फैला हुआ है। बाबा के अव्यक्त होने के पश्चात् 1969 से आपने जिस प्रकार यज्ञ की वृद्धि की, मातृ स्नेह से सबकी पालना की, यज्ञ का प्रशासन जिस कुशलता के साथ संभाला,

Read More »
Bk erica didi - germany anubhavgatha

एरिका बहन का सफर दिल छू लेने वाला है। क्रिश्चियन धर्म से ईश्वरीय ज्ञान तक, उनके जीवन में आध्यात्मिक बदलाव, बाबा के साथ अटूट रिश्ता और भारत के प्रति उनके गहरे प्रेम को जानें। राजयोग से मिली शांति ने उनके

Read More »
Bk meera didi malasia anubhavgatha

मीरा बहन का जीवन सेवा और आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है। मलेशिया में ब्रह्माकुमारी संस्थान की प्रमुख के रूप में, उन्होंने स्व-विकास, मूल्याधारित शिक्षा और जीवन पर प्रभुत्व जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर प्रवचन दिया है। बाबा की शिक्षाओं से प्रेरित

Read More »
Bk radha didi ajmer - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी राधा बहन जी, अजमेर से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 11 अक्टूबर, 1965 को साप्ताहिक कोर्स शुरू करने के बाद बाबा से पत्राचार हुआ, जिसमें बाबा ने उन्हें ‘अनुराधा’ कहकर संबोधित किया। 6 दिसम्बर, 1965

Read More »
Dadi hridaypushpa ji

एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक

Read More »
Dadi santri ji

ब्रह्मा बाबा के बाद यज्ञ में सबसे पहले समर्पित होने वाला लौकिक परिवार दादी शान्तामणि का था। उस समय आपकी आयु 13 वर्ष की थी। आपमें शुरू से ही शान्ति, धैर्य और गंभीरता के संस्कार थे। बाबा आपको ‘सचली कौड़ी’

Read More »
Didi manmohini anubhav gatha

दीदी, बाबा की ज्ञान-मुरली की मस्तानी थीं। ज्ञान सुनते-सुनते वे मस्त हो जाती थीं। बाबा ने जो भी कहा, उसको तुरन्त धारण कर अमल में लाती थीं। पवित्रता के कारण उनको बहुत सितम सहन करने पड़े।

Read More »
Bk gyani didi punjab anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी ज्ञानी बहन जी, दसुआ, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 1963 में पहली बार बाबा से मिलने पर उन्हें श्रीकृष्ण का छोटा-सा रूप दिखायी दिया | बाबा ने उनकी जन्मपत्री पढ़ते हुए उन्हें त्यागी,

Read More »