ब्रह्माकुमारी दादी रतनमोहिनी जी कहती हैं कि हम बहनें तो बाबा के साथ ऐसे बैठते थे जैसे छोटे बच्चे माँ-बाप के साथ बैठते हैं। बाबा के साथ चिटचैट भी करते थे। कहाँ भी चलो, बाबा के हाथ में हाथ देकर चलो, कहाँ भी बैठो, बाबा के साथ बैठो। बाबा के साथ बोलते जाओ, देखते जाओ और चलते जाओ। क्योंकि बाबा के लिए हम लोगों की सदा ऊँची भावनायें थीं। हमें सदा स्मृति रहती थी कि हम भगवान के साथ हैं।
हमारे मन में सदा यह भावना बनी रहती थी कि भगवान के साथ चलते हैं, बैठते हैं, बातें करते हैं। हम बाबा को कभी साधारण रूप में नहीं देखते थे। जब बाबा क्लास के बाद चैंबर में बैठते थे तो हम सब उनके सामने बैठते थे। भले ही बाबा उस समय रमणीकता से बात करेंगे परन्तु हमारे अन्दर भावना होती थी कि देखो, भगवान कितनी रमणीकता से बातें कर रहे हैं! इस रीति हम बाबा को देखते और सुनते थे। साकार बाबा का हर बोल हम भगवान का महावाक्य समझकर ही स्वीकार करते थे। बाबा के हर बोल और क्रिया के प्रति हम आपस में रूहरिहान करते थे कि देखो भगवान साकार में कैसे कर्म कर रहा है और बोल रहा है! उनके बोल में क्या-क्या राज़ समाया हुआ है, यह भी हम निकालते थे। ब्रह्मा बाबा की चलन से हमें भगवान के चरित्र का अनुभव होता था। हर समय हमारा ध्यान बाबा के चेहरे पर, बाबा की दृष्टि पर और बाबा के बोल पर ही होता था कि भगवान कैसे करते हैं और क्या कहते हैं। साकार बाबा को देखने का हमारा उद्देश्य यही होता था कि भगवान उस रथ द्वारा कैसे देखते हैं, कैसे बोलते हैं, कैसे कर्म करते हैं, कैसे बच्चों के साथ खेलपाल करते हैं। उस समय हमारे अन्दर यह पक्का बैठ गया था कि बाबा, बाबा तो है साथ में इस बाबा में भगवान बैठा है। ब्रह्मा बाबा में शिव बाबा है, यह निश्चय करने के लिए हमें मेहनत नहीं करनी पड़ी। जैसे आजकल लोग पूछते हैं कि ब्रह्मा बाबा में ही परमात्मा आता है अथवा आया है, कैसे विश्वास करें? लेकिन कभी भी ऐसा प्रश्न हमें आया ही नहीं। हमें तो हर पल और क़दम में यही अनुभव होता था कि हम भगवान के साथ हैं और भगवान अपना यह काम कर रहा है और हमें भी वैसे ही करना है।
बाबा की दृष्टि इतनी मीठी और इतनी प्यारी होती थी कि हमें साकार रूप में दिखायी भी पड़ती थी और महसूस भी होती थी। इस कारण हमारे मन में कोई ऐसे-वैसे संकल्प उठें अथवा आपस में ऐसी बातचीत हो इसके लिए मार्जिन ही नहीं थी। हमारे लिए पुरुषार्थ बहुत सहज था।
साकार बाबा विदेशी बच्चों को बहुत याद करते थे और कहते थे कि यह ज्ञान विदेशी बच्चों को बहुत अच्छा लगेगा। ये चित्र वहाँ भी जायेंगे। वे भी आकर बाप से अपना जन्मसिद्ध अधिकार लेंगे। ऐसी-ऐसी बातें बाबा बहुत समय से सुनाते थे। हम भी समझते थे कि बाबा कहते हैं तो वह बात कभी-न-कभी साकार होगी ज़रूर । हम यह नहीं समझते थे कि हम विदेश में जायेंगे और सेवा करेंगे। हम समझते थे कि बाबा का ज्ञान लेने के लिए वे ही यहाँ आयेंगे। क्योंकि हम समझते थे कि भगवान के पास सबको आना है तो वे ही सब यहाँ आयेंगे।
बाबा की यह बहुत बड़ी विशेषता थी कि बाबा ने जो भी कहा, हमें उसी समय उसको करना है। अगर उसी समय नहीं करेंगे तो बाबा कहते थे फेल। बाबा उस दिन की मुरली में जो काम अथवा सेवा देते थे हमें उसी दिन करना ही होता था क्योंकि अगले दिन फिर बाबा हमें पूछते थे कि कल जो बाबा ने होमवर्क दिया था, किसने किया हाथ उठाओ। इसलिए हम बच्चों को यही लक्ष्य होता था कि बाबा ने आज के दिन जो होमवर्क दिया है उसको आज करना ही है। जो बच्चा कोई भी सेवा करता था भले वह समझाने की हो अथवा लिखने की हो, उसको बाबा क्लास में सुनाने के लिए कहते थे और उस बच्चे को आगे बढ़ाने के लिए, उसमें उमंग-उत्साह भरने के लिए क्लास में उसकी महिमा करते थे। बाबा उससे कहते थे कि तुमने बाबा की आज्ञा का पालन किया है, तुम फरमानवरदार बच्चे हो।
बच्चों की खुशी सदा बनाये रखने के लिए, उनको आगे बढ़ाने के लिए सदा बाबा भिन्न-भिन्न तरीके अपनाते थे। हर बात बाबा को देखकर ही हमें सीखने को मिलती थी। किसी बच्ची अथवा बच्चे को शिक्षा देनी है तो आते ही उनको सीधा यह नहीं कहते थे अथवा ऐसा नहीं समझाते थे कि तुमने यह भूल की है अथवा यह नहीं पूछते थे कि तुमने भूल क्यों की। पहले बाबा उस बच्चे को प्यार से बुलाते थे, उससे बात करते थे और उसकी विशेषताओं का वर्णन करते थे फिर उसको शिक्षा देते थे कि दोबारा ऐसा नहीं करना चाहिए। यह भी बड़ी विशेषता थी कि अगर कोई बच्चा देहाभिमान में है तो उसको शिक्षा नहीं देते थे क्योंकि वह समझेगा नहीं। इसलिए बाबा जनरल क्लास में ही सबको शिक्षा देते थे कि ऐसे-ऐसे नहीं करना चाहिए। बीच-बीच में उसकी तरफ़ ध्यान भी रखते थे कि वह समझा या नहीं, समझ लिया तो ठीक है नहीं तो कुछ बहनें जो आगे रहती थीं उनसे कहलवाते थे। बाबा में यह विशेषता थी कि हर बच्चे की नब्ज़ देखकर, उसकी शक्ति और योग्यता जानकर उसको चलाते थे। ज्ञान एक होते हुए भी बाबा हर आत्मा की योग्यता अनुसार ही शिक्षा और धारणा की बातें सुनाते थे। इस तरह बाबा से हमें हर प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का सौभाग्य मिला।
Step into the spiritual saga of Dadi Ratan Mohini ji, the luminous force behind Brahma Kumaris’ global movement. Her life, a beacon of divine light, guides countless souls towards inner peace and enlightenment. Explore the legacy of a century adorned with purity, dedication, and love.
Dadi Ratan Mohini ji, a spiritual gem, has illuminated the path for millions worldwide. As the Administrative Head of Brahma Kumaris, her life is a testament to divine dedication. Born from the spiritual lineage of Brahma Baba, Dadiji’s journey reflects a century of unwavering commitment to spreading peace, love, and enlightenment.
Born on March 25, 1925, in Hyderabad, Sindh, into a prosperous and devout family, Dadi Ratan Mohini ji, initially named Lakshmi, was early on immersed in spiritual devotion, often worshipping God instead of engaging in play like her peers. At the age of 12, her first visit to ‘Om Mandali’—which would later evolve into the Prajapita Brahma Kumari Ishwariya Vishwa Vidyalaya—marked a profound spiritual awakening. Amidst the chanting of ‘Om,’ she found an unparalleled peace and joy, a testament to her innate devotion. This experience deepened when she met PitaShri Brahma Baba upon his return from Kashmir, feeling an instant spiritual connection that identified him as her true father, the Supreme Soul. Despite initial family reservations about her attending satsang due to her studies, Dadi’s resolve led her to pursue her education within the spiritual setting provided by Om Mandali, solidifying her path of devotion and service from a tender age.
In her early education, Dadi Ratan Mohini ji was exposed to an exceptional blend of academic and divine knowledge, distinguishing her as a bright student with a profound interest in spiritual learning. This unique schooling, established by Brahma Baba, offered her insights into elevated divine knowledge, fostering a sense of divine love and connection with the alaukik father. Her unwavering dedication towards studies and Godly knowledge facilitated a deep integration of her intellect with gyan and yoga, guiding her towards a life devoted entirely to spiritual service and the Godly family.
As Dadiji transitioned from Hyderabad to Karachi, living under Baba’s guidance, she dedicated her life to the institution, embodying values of loyalty, divine service, and celibacy. Her life’s journey reflects a continual pursuit of spiritual elevation, with every moment devoted to contemplation, learning, and sharing divine wisdom, making her an instrumental figure in the task of world benefit.
Dadi Ratan Mohini ji’s spiritual foundation was solidified through 14 years of intense penance in Karachi, where she engaged in rigorous yoga programs and experienced profound divine connections, feeling empowered as a form of Shiva Shakti. This period was pivotal, preparing her for a life dedicated to service and spiritual upliftment. Despite the Pakistani government’s initial reluctance, the Brahma Kumaris’ move to Mount Abu symbolised a new chapter, showcasing their commitment to spreading peace and spiritual welfare globally.
Upon their arrival in Mount Abu, the change from the coastal climate of Karachi to the mountainous terrain of Abu initially impacted everyone’s health. However, resilience prevailed, and soon the community adjusted, thriving in their new environment. This transition marked the beginning of a deeper spiritual practice, with the daily routine of gyan murli classes, walks with Baba, and solitary meditation in the mountains, fostering a profound sense of connection with the Divine along with a feeling of being ‘the masters of themselves’ and experiencing it.
Dadi’s journey took a significant turn as the Brahma Kumaris’ presence in Mount Abu became established. The institution became a hub of spiritual activity and global service, with Dadiji receiving invitations to share her insights and experiences beyond Abu. Her travels for service took her across India and eventually led her to represent the institution at the 1954 World Peace Conference in Japan. These experiences not only broadened the Brahma Kumaris’ global footprint but also solidified Dadi Ratan Mohini ji’s role as a key ambassador of peace and spiritual wisdom.
Dadiji shares her intimate experiences with Baba, reflecting on the deep spiritual connection, immediate obedience to divine guidance, and the personalized journey of learning and service that defined their path.
In 1954, Dadi Ratan Mohini ji embarked on her inaugural world service mission to the World Peace Conference in Japan, alongside Dadi Prakashmani ji and Dada Chandrahas ji. This marked her first international exposure, where she felt divinely appointed to spread spiritual wisdom. Engaging with the local and Buddhist communities, they left a lasting impact by disseminating divine knowledge and distributing thousands of spiritual literature. This year-long journey through Japan, Hong Kong, Singapore, and Penang significantly enhanced the global presence of Brahma Kumaris.
Dadiji’s services profoundly influenced diverse communities, especially the Sindhis and Gujaratis in Japan, Hong Kong, and Singapore, fostering a newfound respect and understanding of the institution’s spiritual teachings. Her efforts catalysed a broader acceptance and curiosity towards divine knowledge among these communities, illustrating the universal appeal and transformative power of the teachings she represented.
Post-Japan, Dadiji’s spiritual mission expanded across India and internationally from 1956 through the 1970s, notably laying the groundwork for Brahma Kumaris in Mumbai and later in London, where she played a pivotal role in establishing service centres. Her contributions during this period were instrumental in spreading peace and harmony, showcasing her as a central figure in the global expansion of the Brahma Kumaris’ spiritual teachings.
After services abroad, Dadi lived in Mount Abu, India and provided many types of services.
Rajyogini Dadi Ratan Mohini has entered the 100th year of her life; she is the Administrative Head of Brahma Kumaris, the largest organisation lead by women, and has witnessed its growth like a banyan tree since its inception. Dadi has witnessed the journey of 87 years since the establishment of Brahma Kumaris in 1937 until date. She dedicated her life to sacrifice, penance, service and meditation to take the organisation to this point. Dadi has entered her 100th year, and even today, starts her daily routine with Rajyoga meditation. At this stage of her life, she is engaged in service with full enthusiasm.
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