Bk raj didi nepal anubhavgatha

बी के राज दीदी (नेपाल) – अनुभवगाथा

काठमाण्डु, नेपाल से ब्रह्माकुमारी “राज बहन” जी अपने अलौकिक अनुभव में लिखती हैं कि मेरा लौकिक जन्म सन् 1937 में एक धार्मिक आस्था वाले सम्पन्न परिवार में हुआ था। नित्य भगवान की पूजा-अर्चना से जीवन की दिनचर्या आरम्भ होती थी। भौतिक सुख-सुविधाओं से सम्पन्न जीवन होते हुए भी अन्तर्मन में प्रभु प्राप्ति की इच्छा सदा बनी ही रहती थी। सन् 1960 की बात है, एक दिन मैं अपनी लौकिक माँ से मिलने फगवाड़ा, पंजाब में गयी हुई थी। वहाँ पर मुझे अपनी लौकिक बड़ी बहन भागजी भी मिली। उन्होंने बताया कि यहाँ पर सिन्ध से कोई देवियाँ (दादियाँ) आयीं हैं जो बहुत ही अच्छा ज्ञान सुनाती हैं। मैं उन्हों का ज्ञान सुनने आश्रम पर नित्य जाती हूँ, मुझे बहुत ही आनन्द आता है। यह बात सुनकर मुझ में भी उन देवियों से मिलने की अभिलाषा जागी और मैं बड़ी बहन के साथ आश्रम पर गयी। 

बाबा ने मुझे शक्तिस्वरूपा, नष्टोमोहा बना दिया

जब हम अमृतसर के आश्रम पर पहुंचे तो वहाँ हमें दीदी चन्द्रमणि जी मिलीं। उन्होंने हमें सम्मान के साथ अन्दर बुलाया और अपने साथ ही कुर्सी पर बिठाया। बड़े प्यार से हमें प्रसाद भी दिया। दीदी जी का निश्छल स्नेह, उनके हृदय की पवित्रता, सत्यता और निःस्वार्थ व्यवहार से मैं बहुत ही प्रभावित हुई। मुझे यह पता था कि भक्तिमार्ग में तो गुरु-गोसाईं आदि नव आगन्तुकों को अपने साथ में कभी भी नहीं बिठाते हैं। लेकिन मैंने यहाँ वैसा व्यवहार नहीं देखा। उसके बाद जब दीदी जी ने बड़े प्यार से हमें परमात्मा का परिचय सुनाया तो मुझे सुनकर अति हर्ष हुआ और अनुभव होने लगा कि परमात्मा शिव ही हम सर्व आत्माओं के पिता हैं। इससे पहले तो हमारे संकल्प और स्वप्न में भी यह नहीं था कि इस साकार लोक में हमें कभी प्रभु की प्राप्ति भी हो सकती है। आश्रम से घर लौटने के बाद जब मैंने घर वालों को अपना अनुभव सुनाया तो सभी सुनकर बहुत खुश हुए। इस प्रकार मैं ज्ञान-स्नान करने के लिए प्रतिदिन आश्रम में जाने लगी। नित्य ईश्वरीय ज्ञान का पठन-पाठन और सहज राजयोग के अभ्यास द्वारा मेरे जीवन में परिवर्तन आने लगा और खुशी से जीवन भरपूर होता गया। इस तरह से दिन प्रतिदिन लौकिक गृहस्थ जीवन में अलौकिकता आने लगी। निरन्तर दैवी गुणों की धारणा और आध्यात्मिक ज्ञान के मनन-चिन्तन के द्वारा जीवन में अमूल सुधार और परिवर्तन आता गया। सफलता की किरणें उदित होने लगीं।

बाबा की मदद से अद्भुत सफलता

मेरे जीवन में परीक्षा के तौर पर कुछ ऐसी घटनायें भी आयीं जिनके कारण मुझे अदालत में जाना पड़ा। जाने से पहले हमारे वकील ने मुझे कुछ बातें सिखाकर अदालत में बोलने के लिए भेजा था पर वे मेरे अन्तर्विवेक को नहीं भा रही थीं। जब मैं अदालत के कठघरे में गयी तो मुझे बाबा की बहुत गहरी याद आयी। मैं अपने को मम्मा का स्वरूप अनुभव करने लगी और अपनी देह को भी भूल गयी। मुझे अन्दर से ऐसी प्रेरणा आने लगी कि मैं जो कुछ भी कहूँगी वह एक सत्य परमात्मा की याद में सच ही कहूँगी ऐसा मनोबल मेरे में पैदा हुआ। इतने में ही मैंने अपना बयान देना शुरू किया। मेरे वचनों को सुनकर के न्यायाधीश बहुत ही प्रभावित हुआ। उन्होंने उस केस का मेरे पक्ष में फैसला देते हुए मुझे विजयी घोषित किया। बात इतनी सहज और सरल रीति से सुलझ जायेगी, यह किसी के भी मन में नहीं था परन्तु बाबा की टचिंग और योग की शक्ति ने मेरे कर्मबन्धन को सहज ही पार कर दिया। इससे मुझे बाबा के ऊपर और ही दृढ़ निश्चय हो गया। केस का सामना करना मेरे लिए एक कठिन चुनौती थी। फिर भी बाबा की मदद से तूफ़ान जैसी परिस्थिति भी मेरे लिए तोहफ़ा बन गयी। इससे मैं अपने लक्ष्य में सम्पूर्ण सफल हो गयी। बाबा ने मुझे इस प्रकार शेरनी शक्ति बनाया। मैं अबला से सबला, निर्बल से बलवान बन गयी। मुझ में उस प्रभु के प्रति अपने जीवन को न्योछावर कर देने की अभिलाषा पैदा हुई। आख़िर सन् 1962 में वह दिन आया जब मैंने जीवन को ईश्वरीय सेवार्थ समर्पित कर दिया।

साकार बाबा से प्रथम मिलन की अनुभूति

सन् 1962 में जब दीदी चन्द्रमणि जी अमृतसर की पार्टी को बाबा से मिलाने मधुबन ले गयी थी तो मैं भी उसमें शामिल थी। मेरे जीवन में प्रभु-मिलन का वह स्वर्णिम अवसर आया जिसकी वर्षों से मेरे अन्दर तीव्र इच्छा थी। जब मैंने बाबा की दिव्य छवि को देखा तो उनकी शीतल और शक्तिशाली दृष्टि ने मुझे आत्मविभोर कर दिया। बाबा ने मुझे, दिल को द्रवीभूत करने वाला अलौकिक प्यार दिया तथा वरदान देते हुए कहा कि बच्ची बहुत नष्टोमोहा है, बहुत योगयुक्त है। बच्ची ने जल्दी ही अपने कर्मबन्धनों को काटा है ऐसे कहते हुए बाबा ने दिल से मेरी बहुत प्रशंसा की और मेरा उमंग-उत्साह बढ़ाया।

बाबा के वो बोल मेरे लिए वरदान सिद्ध हुए

कुछ वर्ष अमृतसर सेवाकेन्द्र पर रहते हुए मुझे दीदी चन्द्रमणि जी की अलौकिक पालना मिलती रही और ईश्वरीय सेवा की कारोबार सम्भालने की कला भी प्राप्त हुई। उस पालना और प्रशिक्षण से मुझ में बहुत योग्यतायें भर गयीं। उनके जीवन का प्रभाव इतनी गहरी रीति से मेरे जीवन पर पड़ा कि मुझ में निर्भयता और दैवीगुणों की धारणायें प्रबल होती गयीं। आयी हुई नयी कन्याओं में ईश्वरीय धारणाओं के प्रति अभिरुचि बढ़ाने के कार्य की ज़िम्मेवारी भी दीदी जी मुझे देती थीं। उसमें भी मुझे अधिक सफलता दिन प्रति दिन मिलती गयी। इस प्रकार ब्राह्मण परिवार में रहते ईश्वरीय सेवा करना और श्रेष्ठ धारणाओं को अपने जीवन में अधिक से अधिक अपनाते जाना, यह मेरे जीवन का अभिन्न अंग बन गया। बाद में जब हम मधुबन में आये और बाबा से मिले तो बाबा ने कहा कि “बच्ची, तुम मीरा हो, तुम गुणवान हो, तुम अपने को नहीं जानती, बाबा तुम्हें जानता है, तुम बहुत अच्छी सेवा कर सकती हो”। ऐसे वरदानी बोलों से बाबा ने मेरा उमंग-उत्साह बढ़ाया। बाबा ने उस समय मुझे और विश्वरतन दादा को आबू के मिनिस्टर कॉटेज में वी.आई.पी. सेवा के लिए भेजा था। मेरी सेवा की लगन को देखकर बाबा ने कहा, “बच्ची, तुम पटना में सेवा करने जाओ।” पटना में ईश्वरीय सेवा के लिए जाना हुआ और वहाँ पर भी सेवा में बाबा के दिये वरदान अनुसार बहुत अच्छी सफलता मिलती गयी। वहाँ पर बनाया गया म्यूज़ियम उन दिनों बहुत ही अच्छा था जिसको बाबा ने नम्बर वन में रखा था। पटना से जब मैं मधुबन पार्टी लायी तो साकार बाबा ने कहा, बच्ची ने देखो इतने बड़ों-बड़ों को लाया है, बच्ची सेवा करने में बहुत होशियार है, “सफलता इसका जन्मसिद्ध अधिकार है”। इस तरह अलौकिक जीवन में अनेक अलौकिक अनुभव हुए और होते ही रहते हैं। अभी सदा यही उमंग मन में रहता है कि जल्दी से जल्दी अपनी सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त करके इस वसुन्धरा पर आये हुए भगवान को प्रत्यक्ष करें ताकि अन्धकार में भटकती हुईं करोड़ों आत्मायें प्राण प्यारे बाप से मिलन मना सकें और उसके अविनाशी वर्से की अधिकारी बन सकें। हम भी अब जल्दी से जल्दी बाप समान बनें और बाबा की श्रेष्ठ आशाओं को पूरा करें यही हमारे जीवन का लक्ष्य रहता है।

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

अनुभवगाथा

Dada vishwaratan anubhavgatha

आपका जैसा नाम वैसे ही आप यज्ञ के एक अनमोल रत्न थे। आप ऐसे पक्के ब्रह्मचारी, शीतल काया वाले योगी, आलराउण्ड सेवाधारी कुमार थे जिनका उदाहरण बाबा भी देते कि बाबा को ऐसे सपूत, सच्चे, पक्के पवित्र कुमार चाहिए। दादा

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Bk damyanti didi junagadh anubhavgatha

दमयन्ती बहन जी, जूनागढ़, गुजरात से, 40 साल पहले साकार बाबा से पहली बार मिलीं। उस मुलाकात में बाबा की नज़रों ने उनके दिल को छू लिया और उन्हें आत्मिक सुख का अनुभव कराया। बाबा की मधुर मुस्कान और उनकी

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Bk brijmohan bhai ji anubhavgatha

भारत में प्रथा है कि पहली तनख्वाह लोग अपने गुरु को भेजते हैं। मैंने भी पहली तनख्वाह का ड्राफ्ट बनाकर रजिस्ट्री करवाकर बाबा को भेज दिया। बाबा ने वह ड्राफ्ट वापस भेज दिया और मुझे कहा, किसके कहने से भेजा?

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Bk premlata didi dehradun anubhavgatha

प्रेमलता बहन, देहरादून से, 1954 में 14 वर्ष की आयु में ब्रह्माकुमारी ज्ञान में आईं। दादी निर्मलशान्ता जी के मार्गदर्शन में उन्हें साकार बाबा से मिलकर अद्भुत अनुभव हुआ। बाबा ने उन्हें धार्मिक सेवा के लिए प्रेरित किया और उन्हें

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Bk sudha didi burhanpur anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी सुधा बहन जी, बुरहानपुर से, अपने अनुभव में बताती हैं कि सन् 1952 में उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ। 1953 में बाबा से मिलकर उन्हें शिव बाबा का साक्षात्कार हुआ। बाबा की गोद में बैठकर उन्होंने सर्व संबंधों का

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Bk sundarlal bhai anubhavgatha

सुन्दर लाल भाई ने 1956 में दिल्ली के कमला नगर सेंटर पर ब्रह्माकुमारी ज्ञान प्राप्त किया। ब्रह्मा बाबा से पहली बार मिलकर उन्होंने परमात्मा के साथ गहरा आध्यात्मिक संबंध महसूस किया। बाबा की दृष्टि से उन्हें अतीन्द्रिय सुख और अशरीरीपन

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Bk ramesh bhai ji anubhavgatha

हमने पिताश्री जी के जीवन में आलस्य या अन्य कोई भी विकार कभी नहीं देखे। उम्र में छोटा हो या बड़ा, सबके साथ वे ईश्वरीय प्रेम के आधार पर व्यवहार करते थे।इस विश्व विद्यालय के संचालन की बहुत भारी ज़िम्मेवारी

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Bk kailash didi gujrati anubhavgatha

गाँधी नगर, गुजरात से कैलाश दीदी ने अपने अनुभव साझा किए हैं कि उनकी जन्मपत्री में लिखा था कि वे 25 वर्ष की आयु में मर जाएँगी। 1962 में बाबा के पास जाने पर बाबा ने कहा कि योगबल से

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Bk hemlata didi hyderabad anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी हेमलता बहन ने 1968 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और तब से अपने जीवन के दो मुख्य लक्ष्यों को पूरा होते देखा—अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और जीवन को सच्चरित्र बनाए रखना। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ज्ञान और

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Bk sister kiran america eugene anubhavgatha

बी के सिस्टर किरन की आध्यात्मिक यात्रा उनके गहन अनुभवों से प्रेरित है। न्यूयॉर्क से लेकर भारत के मधुबन तक की उनकी यात्रा में उन्होंने ध्यान, योग और ब्रह्माकुमारी संस्था से जुड़े ज्ञान की गहराई को समझा। दादी जानकी के

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Dadi pushpshanta ji

आपका लौकिक नाम गुड्डी मेहतानी था, बाबा से अलौकिक नाम मिला ‘पुष्पशान्ता’। बाबा आपको प्यार से गुड्डू कहते थे। आप सिन्ध के नामीगिरामी परिवार से थीं। आपने अनेक बंधनों का सामना कर, एक धक से सब कुछ त्याग कर स्वयं

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Dadi mithoo ji

दादी मिट्ठू 14 वर्ष की आयु में यज्ञ में समर्पित हुईं और ‘गुलजार मोहिनी’ नाम मिला। हारमोनियम पर गाना और कपड़ों की सिलाई में निपुण थीं। यज्ञ में स्टाफ नर्स रहीं और बाबा ने उन्हें विशेष स्नेह से ‘मिट्ठू बहन’

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Dadi gulzar ji anubhav

आमतौर पर बड़े को छोटे के ऊपर अधिकार रखने की भावना होती है लेकिन ब्रह्मा बाबा की विशेषता यह देखी कि उनमें यह भावना बिल्कुल नहीं थी कि मैं बाप हूँ और यह बच्चा है, मैं बड़ा हूँ और यह

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Dadi allrounder ji

कुमारियों को दादी ऐसी पालना देती थी कि कोई अपनी लौकिक कुमारी को भी शायद ऐसी पालना ना दे पाए। दादी कहती थी, यह बाबा का यज्ञ है, बाबा ही पालना देने वाला है। जो पालना हमने बाबा से ली

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Bk satyavati didi anubhavgatha

तिनसुकिया, असम से ब्रह्माकुमारी ‘सत्यवती बहन जी’ लिखती हैं कि 1961 में मधुबन में पहली बार बाबा से मिलते ही उनका जीवन बदल गया। बाबा के शब्द “आ गयी मेरी मीठी, प्यारी बच्ची” ने सबकुछ बदल दिया। एक चोर का

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