बटाला की ब्रह्माकुमारी गीता बहन जी लिखती हैं कि मैंने बाबा को पहले पत्र लिखा और बेसब्री से इन्तज़ार करने लगी कि बाबा का लाल पेंसिल से लिखा हुआ पत्र ज़रूर आयेगा। कुछ ही दिनों में बाबा का पत्र मेरे पास पहुँचा तो उस समय ऐसा नशा छा गया जैसे स्वयं बाबा मेरे पास आये हैं। बाबा तो जानी-जाननहार थे जो पत्र में ही सारी जीवन-कहानी सुना देते थे। साथ में लिखा कि कन्याओं का कन्हैया आ गया है। उन शब्दों में इतना जादू भरा था कि उसका वर्णन क्या करूँ, शब्द ही नहीं मिलते हैं। अभी भी जब मैं बाबा का पत्र निकाल कर पढ़ती हूँ तो आँखों से छम-छम आँसुओं की धारा बह जाती है, जैसे साक्षात् बाबा मेरे सन्मुख आ खड़े हुए हैं।
मैं रोज़ मुरली सुनने क्लास में जाती थी। एक दिन क्लास पूरी हुई तो अचल बहन जी ने मुझे कहा कि हम मधुबन जा रहे हैं। बाबा से मिलने की तड़पन बहुत थी लेकिन लौकिक बन्धन थे। मैं अपने घर में आकर बहुत रोने लगी। इतना रोया कि मेरी माँ को तरस आ गया और कहा कि अच्छा जाओ लेकिन जल्दी आ जाना। बस मेरी तो खुशी का ठिकाना ही नहीं रहा। एक ही धुन थी कि अब तो बाबा से मिलने मधुबन जाऊँगी। मैंने अचल बहन जी को जाकर सुनाया कि मुझे मधुबन की छुट्टी मिल गयी है। उन्हें भी आश्चर्य हुआ। फिर तो वह दिन भी आ गया जब हम मधुबन के लिए रवाना हो गये। भले रास्ता लम्बा था लेकिन मेरे को कुछ भी पता नहीं चला और मैं मधुबन पहुँच गयी। जब बाबा से मिलने गयी तो उस समय बाबा आँगन में चारपाई पर बैठे थे। बाबा ने कहा, आओ बच्ची आओ, मैंने बाबा को देखा तो बाबा के मस्तक पर तेज प्रकाश दिखायी दिया। मैं अपनी सुध-बुध ही भूल गयी और मैं बाबा की गोदी में समा गयी। बाबा ने इतना प्यार-दुलार दिया जो कभी लौकिक में किसी ने भी नहीं दिया। बाबा ने मुझे वरदान दिया कि यह बच्ची बहुत सहनशील है। उसी वरदान से मैं आगे बढ़ती जा रही हूँ और उसी वरदान से पल रही हूँ। रोज़ बाबा अमृतवेले योग कराते थे और बच्चों को सर्चलाइट देते थे। जब मेरे पर दृष्टि पड़ी तो मुझे ऐसा अनुभव हुआ कि बाबा की आँखें नहीं हैं लेकिन दो बल्ब जल रहे हैं और मैं इस दुनिया से पार प्रकाश की दुनिया में चली गयी।
आबू में जहाँ अभी म्यूजियम बना हुआ है उसके सामने एक कोठी है, उसमें प्रदर्शनी लगायी गयी थी। बाबा भी प्रदर्शनी देखने गये। देखने के बाद बाबा आँगन में आये और कहा कि यह जो होटल बना हुआ है यह मकान हमें मिल जाये तो बाबा यहाँ बहुत बड़ा म्यूजियम बनायेंगे और इस म्यूजियम से बहुत बच्चों की सेवा होगी। बाबा के वे बोल भी साकार हो गये।
सभी बड़ी बहनें तो प्रदर्शनी समझाने चली जाती थीं, मैं बाद में जाती थी क्योंकि मुझे बाबा के संग में अच्छा लगता था और बाबा मेरी अंगुली पकड़कर स्टॉक रूम दिखाते, तो कभी कुछ दिखाते थे। मैं सोचती थी कि मैं तो छोटी हूँ, बाबा मुझे यह सब क्यों दिखाते हैं ? बाबा में जितनी परखने की शक्ति थी, उतने ही वे निर्मानचित्त थे। मैं बाबा के कमरे में बार-बार जाती थी और बाबा से मीठी-मीठी बातें सुनती थीं। बाबा मुझसे पूछते थे कि यह रथ किसका है? मैं कहती थी, शिव बाबा का है।
बाबा की प्रातः मुरली चलती तो हमेशा मुझे भृकुटी में शिव बाबा की लाइट दिखायी देती थी, कभी श्रीकृष्ण वा श्रीनारायण का स्वरूप दिखायी देता था। बाबा के बोल अथार्टी के होते थे और ऐसा लगता था कि शिव बाबा बोल रहे हैं। साथ ही ब्रह्मा बाबा का सम्पूर्ण स्वरूप दिखायी देता था। सचमुच मेरे बाबा सर्वगुण सम्पन्न, 16 कला सम्पूर्ण फ़रिश्ता दिखायी देते थे। बाबा की यह आन्तरिक स्थिति मैंने स्वयं अनुभव की थी और देखी थी।
एक बार जब मैं बाबा के कमरे में गयी तो वहाँ बाबा नहीं लेकिन साक्षात् श्रीकृष्ण को देखा। मैं बार-बार आँखें मलती रही कि श्रीकृष्ण है या बाबा! लेकिन काफी समय तक वह दृश्य सामने रहा और मैं अपने आपको भूल गयी। ऐसा अनुभव हो रहा था कि मैं श्रीकृष्ण के साथ रास कर ही हूँ। यही नशा काफी दिन तक रहा। मुझे अधिकतर श्रीकृष्ण का और शिव बाबा का साक्षात्कार होता था। साथ ही मैंने बाबा से सर्व सम्बधों का भी अनुभव किया। कभी बाबा को सखा-सखी के रूप में तो कभी टीचर के रूप में और कभी माँ के रूप में अनुभव किया।
एक बार की बात है कि मैं बाबा के पास बैठी थी। एक भाई कहीं लकड़ी काट रहा था। वह बाबा के पास आया और कहने लगा, बाबा, लकड़ी नहीं कट रही है। तो बाबा ने कहा, दुबारा काट कर देखो। थोड़े समय के बाद फिर वह भाई आया और बोला, बाबा, लकड़ी नहीं कट रही है। ऐसे तीन-चार बार आया और गया। अब बाबा उठकर उसके साथ चल दिये। मैं भी बाबा की अंगुली पकड़ कर साथ में चल दी। वहाँ जाकर बाबा बोले, अच्छा बच्चे यह लकड़ी नहीं कटती है? लाओ कुल्हाड़ी, मैं एक सेकण्ड में काट देता हूँ। बाबा ने कुल्हाड़ी ली और एक ही बार में उसके टुकड़े कर दिये। भाई बहुत खुश हो गया। ऐसे थे मेरे शक्तिशाली बाबा, जो हर कार्य सहज कर देते थे।
बाबा कन्याओं को देख बहुत खुश होते थे और कन्याओं को रूहानी स्नेह दे, शक्ति भर, उन्हें ईश्वरीय सेवा में लगा देते थे। मेरे को अपने पर बहुत नाज़ है क्योंकि मुझे बाबा से इतना प्यार-दुलार मिला जिसका शब्दों में वर्णन नहीं कर सकती। बाबा सदैव कहते, कन्यायें ग़रीब हैं, इन्हों के पास कुछ भी नहीं है, न सम्पत्ति है, न ही अधिकार। कन्या तो जैसे संन्यास-बुद्धि होती है। बाबा कन्याओं को प्यार और पालना दे ऊपर उठाते थे। बाबा कहते थे, यह मेरी बच्ची शक्ति स्वरूपा है, शेरनी शक्ति है, यह अनेकों का कल्याण करने वाली कल्याणी है। ऐसे वरदानी बोल से कन्याओं में बल भर देते थे।
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