दसुआ, पंजाब की ब्रह्माकुमारी ज्ञानी बहन जी लिखती हैं कि मैं जब पहली बार सन् 1963 में बाबा से मिली तो मुझे श्रीकृष्ण का छोटा-सा रूप दिखायी दिया। मैं तो देखने में मगन हो गयी और जैसे ही बाबा की दृष्टि मुझ पर पड़ी तो मैं आत्मा देह से न्यारी होकर उड़ने लगी और लाइट की दुनिया में पहुँच गयी। थोड़े ही समय के बाद बाबा ने कहा- यह मेरी त्यागी, तपस्वी और बेफ़िकर बच्ची है। तो ऐसे लगा कि मुझे मेरा सहारा मिल गया। इसी वरदान ने मुझे सदा आगे बढ़ाया है और बाबा का हाथ और साथ अभी भी अनुभव करती हूँ।
उसी समय बाबा ने जालन्धर की इंचार्ज बहन से पूछा कि यह बच्ची क्या काम करती है तो उन्होंने कहा कि सिलाई का काम करती है। बाबा ने मुझसे पूछा कि बच्ची, तुमको ईश्वरीय सेवा करना अच्छा लगता है? मैंने कहा, जी बाबा, अच्छा तो लगता है लेकिन मैं तो सारा दिन सिलाई में ही व्यस्त रहती हूँ इसलिए ईश्वरीय सेवा नहीं कर पाती हूँ। बाबा ने कहा, बच्ची, आज के बाद तुझे कोई नौकरी नहीं करनी है। बाबा की रूहानी सेवा में लग जाना है। बाबा ने मेरी जन्मपत्री पढ़ ली और मुझे रूहानी सेवा में लगा दिया। ऐसे थे मेरे दुरांदेशी मीठे बाबा, जो मुझे परख लिया। बाबा की परख शक्ति बड़ी तीव्र थी, जो दूर से ही बच्चों को परख लेते थे। मुझे बाबा से ध्यान में जाने का वरदान मिला। मैं हर कर्म बाबा से पूछकर करती थी।
मैंने बाबा के अन्दर बहुत गुण देखे। बाबा अपकारियों पर भी उपकार करते थे। बाबा के आगे कोई भी आ जाता था तो उसे यह अनुभव होता था की बाबा मेरा है। बाबा इतना स्नेह देते थे जो पत्थर जैसे हृदय वाला भी पानी हो जाता था क्योंकि जानीजाननहार बाबा बच्चों के अन्दर के भावों को स्पष्ट जानते थे।
एक बार मेरे शरीर का बहुत बड़ा पेपर आया। बाबा ने मुझे पहले ही बता दिया था कि बच्ची, तुम्हारे ऊपर पेपर आने वाला है लेकिन तुम घबराना नहीं, बाबा को अपने साथ रखना तो सहज ही पेपर को पार कर लोगी। शरीर का बहुत कड़ा पेपर आया परन्तु मेरे साथ बाबा था तो शरीर का कर्मभोग भी सहज चुक्तु हो गया। कभी-कभी मैं उदास हो जाती थी तो ऐसा लगता था कि बाबा मेरे सम्मुख आकर खड़े हो गये हैं, मेरी अंगुली पकड़ कर मुझे चला रहे हैं और उमंग-उत्साह बढ़ा रहे हैं। इसी प्रकार बाबा से मैंने अनेक सम्बन्धों का अनुभव किया, कभी माँ के रूप में तो कभी बाप के रूप में अंगुली पकड़ कर चलाते, कभी सखा बनकर हमारे साथ हँसते खेलते थे। जब कभी बच्चों से भूल हो जाती थी तो बड़े प्यार से बाबा कहते थे कि बच्चे शिव बाबा को सच-सच सुनाने से आप हलके हो जायेंगे और आगे से फिर कभी भूल न करना। इस प्रकार, रहम दिल बाबा सबके ऊपर रहम कर क्षमा कर देते थे।
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