वरदानी मूर्त बाबा भविष्य के ज्ञाता थे
कैथल, हरियाणा से ब्रह्माकुमारी पुष्पा बहन जी कहती हैं कि परम सौभाग्य की बात है कि मुझ आत्मा का ब्रह्मा बाबा के माध्यम से शिव बाबा संग मिलन सन् 1958 में करनाल सेवाकेन्द्र पर हुआ। उस अवसर पर बाबा पंजाब के कुछ सेवाकेन्द्रों का चक्कर लगाने आये थे। करनाल में भी उनका थोड़े समय के लिए आने का कार्यक्रम बना हुआ था। बाबा मुरली चलाकर क्लास के भाई-बहनों से मिलकर बाहर जाने के लिए निकले तो मुझे ऐसा आभास हुआ कि जीवन की कोई बहुत प्यारी चीज़ मिली है और शीघ्र बिछुड़ कर जा भी रही है। मैं अपनी सुध-बुध खो चुकी थी, जैसेकि ध्यान में थी। मित्र-सम्बन्धी भी बाबा से मिलने आये हुए थे, मेरे को जुदाई का अनुभव कर खूब प्रेम के आँसू आ रहे थे। बाबा कार में जाकर बैठ गये। जाते ही देहली से बाबा ने मुझे पत्र लिखा कि बच्ची को मैं बिलखता, रोता छोड़कर आया हूँ। बच्ची को धीरज देना और कहना कि मैं जल्दी लेने आऊँगा। यूँ तो कड़े कर्मबन्धन थे। कभी स्वप्न में भी नहीं सोचा था कि कभी बन्धन टूटेंगे लेकिन ये महावाक्य साकार हुए जो बाबा ने मुझे अपनी सूक्ष्म शक्तियाँ वरदान में देकर जल्दी बन्धनमुक्त कराया और ईश्वरीय सेवा करने का भाग्य प्राप्त कराया।
वरदानी मूर्त बाबा भविष्य के ज्ञाता थे। मस्तक को देखकर बाबा कुछ कहते थे तो वह वरदान ही बन जाता था। एक बार मैं बाबा के सम्मुख खड़ी थी तो बाबा कुछ समय मेरे मस्तक की ओर देखकर बोले, बच्ची को जल्दी अनुभवी बनाऊँगा। पहले इसको दूर-दूर भेजूंगा फिर नज़दीक ले आऊँगा। ड्रामानुसार फिर मेरा कोलकाता और नेपाल की सेवाओं पर जाना हुआ। वहाँ मुझे अनेक अनुभव प्राप्त करने के अवसर मिले।
पाँच वर्ष कोलकाता में सेवा की। उन्हीं दिनों नेपाल की सेवा का निमंत्रण मिला। बाबा ने पत्र लिखा कि बच्ची, नेपाल में जाकर अगर सेवा करेगी तो विश्व की महारानी बना दूँगा। बाबा की श्रीमत के अनुसार वहाँ चली गयी। कुछ समय पश्चात् सेवा में रूखापन और अकेलापन महसूस होने लगा। एक दिन ऐसी महसूसता हुई कि मैं यहाँ अकेली कैसे सेवा करूँगी। तो मुझे अचानक बाबा सम्मुख खड़ा दिखायी दिया और कहा कि बच्ची, मैं तेरे साथ हूँ। वरदानी हाथ मेरे ऊपर था और ऐसे महसूस हुआ कि बाबा मुझे कह रहे हैं कि बच्ची तेरे जीवन में तन-मन-धन की कभी कमी नहीं रहेगी, सर्व का सहयोग मिलता रहेगा। सचमुच उस दिन से आज तक कभी भी कोई कमी महसूस नहीं हुई। ईश्वरीय सेवाओं में हर प्रकार से भाई-बहनों का सहयोग मिलता आया है।
रहमदिल बाप यज्ञ-वत्सों को मुरली द्वारा शिक्षा भी देते और प्यार भी करते। कई बार ऐसा भी देखा कि किसी बच्चे से कोई भूल हो गयी और वह बाबा को बता रहा था कि बाबा मेरे से यह भूल हो गयी, आप क्षमा करना। उस समय बाबा प्यार का सागर बन बिल्कुल अनजान हो जाते थे जबकि बाबा को पता भी रहता था। बाबा कहा करते थे, बच्चे, आगे से नहीं करना। बाबा किसी बच्चे की भूल दिल पर नहीं रखते थे, सदैव शिक्षक बन शिक्षा भी देते थे और बाप बन अभूल हो प्यार भी देते थे। उस बच्चे के साथ व्यवहार में कोई भी अन्तर नहीं होने देते थे। बाबा सदैव निर्मानचित्त थे। सभी प्रकार की सेवायें करते थे परन्तु मैं पन का ज़रा भी भान नहीं था। हमेशा कहते थे- ‘बाबा करन-करावनहार है, बाबा करा रहा है’; कभी ‘मैं’ शब्द इस्तेमाल नहीं करते थे। इतने निरहंकारी थे बाबा!
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