Bk saroj didi ambala anubhav gatha

बी के सरोज दीदी – अनुभवगाथा

अम्बाला से ब्रह्माकुमारी सरोज बहन जी अपना अनुभव सुनाती हैं कि मेरा सौभाग्य था जो अचानक समय ने करवट बदली और मैं ब्रह्माकुमारी आश्रम पर जा पहुँची। वहाँ बड़े-बड़े शब्दों में लिखा था कि परमात्मा सर्वव्यापी नहीं है। एक बार तो मेरा दिमाग चकरा गया लेकिन जब मैं अन्दर गयी तो मेरी दृष्टि त्रिमूर्ति के चित्र पर अटक गयी और सफ़ेद पोशधारी बाबा को देखते ही ऐसा लगा कि जो पाना था सो पा लिया। एक अलौकिक खुमारी चढ़ गयी। उस समय गीत बज रहा था, “तुम्ही हो माता, पिता तुम्ही हो…”। गीत सुनकर आँखों से आँसुओं की धारा बहने लगी और ऐसा ही लगा कि यही मेरे मात-पिता और परिवार हैं। उसी दिन से नित्य सेन्टर पर जाने लगी और मेरी लगन भी परमात्मा से मिलने के लिए बढ़ती गयी। मेरी लगन देखकर सारा समाज एक तरफ़ और मैं एक तरफ़। लेकिन बाबा सदैव मुझे दिखायी देते थे, साथ में छोटा कृष्ण भी। ऐसा लगता था कि बाबा मेरे में शक्ति भर रहे हैं और यही मन में था कि विजय सत्य की ही होगी।

कुछ भाई-बहनों की पार्टी मधुबन आ रही थी। मेरी भी तीव्र इच्छा थी कि मैं भी मधुबन में बाबा से मिलने जाऊँ लेकिन बन्धन बहुत होने के कारण छुट्टी नहीं मिली। मैंने बहुत योग लगाया तो योग में अनुभव किया कि साक्षात् बाबा सामने खड़े हैं और कह रहे हैं कि तुम्हें छुट्टी मिल जायेगी। बस मेरी खुशी का पारावार नहीं। सुबह उठी और बाबा को याद करके अपने लौकिक बाप के पास जाकर कहा, मुझे मधुबन, आबू जाना है। काफ़ी संघर्ष के बाद छुट्टी मिली और मैं बटाला की पार्टी के साथ मधुबन पहुंच गयी। फिर हम तैयार होकर बाबा के कमरे में बाबा से मिलने गये। जब बाबा को देखा तो बाबा के चारों ओर सुनहरी प्रकाश ही प्रकाश दिखायी दिया, और कुछ नज़र नहीं आता था। सारी पार्टी बाबा से मिली, फिर मेरी बारी आयी। बाबा ने कहा, ‘बच्ची, माया तंग तो नहीं करती है?’ मैंने तुरन्त बोला, ‘बाबा, माया तो तंग नहीं करती परन्तु परिवार वाले बहुत तंग करते हैं।’ बाबा समझ गये कि इसे पाँच विकारों का ज्ञान नहीं है लेकिन लगन और उमंग-उत्साह बहुत है।

बाबा कहते हैं, मैं कोई जानीजाननहार नहीं हूँ। लेकिन बाबा अपने बच्चों की जन्मपत्री ज़रूर जानते थे। बाबा ने मुझे नैनों से निहाल करते हुए कहा, ‘जब आप यहाँ पहुँच गयी हो तो कर्मबन्धन भी समझो माखन से बाल की तरह खत्म हो जायेगा और तुम्हें पता भी नहीं पड़ेगा।’ बाबा ने अचल बहन जी को कहा कि इस बच्ची को भाषण करना, प्रदर्शनी समझाना सिखाओ ।

बाबा ने मुझे वरदान दिया कि तुम्हारा काम है उड़ना और उड़ाना। बड़े आश्चर्य की बात है कि मैं 21 दिसम्बर 1968 को समर्पित हुई और बाबा ने 18 जनवरी 1969 को नश्वर शरीर त्याग दिया, व्यक्त से अव्यक्त हो गये। मुझे बहुत बड़ा झटका लगा कि यह क्या हो गया? भगवान का रथ ही चला गया तो अब क्या होगा? यह प्रश्न मन में बार-बार घूमता रहता था और मैं दुःखी हो जाती थी।

जब अव्यक्त बापदादा से मिलने मधुबन आयी तो अपने प्यारे बाबा को देखना चाहती थी। मुझे निश्चय नहीं था कि बाबा अव्यक्त में है। गुलज़ार दादी में बापदादा की पधरामणी हुई, मैं बहुत व्याकुल हो आँसू बहा रही थी। बाबा ने मुझे बुलाया और कहा, ‘बच्ची, कर्मबन्धन माखन से बाल की तरह टूट गया और प्रदर्शनी समझाना भी सीख लिया और भाषण भी करना सीख लिया।’ सच, एकदम साकार बाबा ने जो कहा था वही हूबहू अव्यक्त बाबा ने भी कहा, तो मेरे में नयी जान आ गयी और निश्चय भी हो गया कि दादी गुलज़ार नहीं लेकिन स्वयं भगवान ही है। वाह बाबा वाह! यह गीत दिल से निकलता है कि:

“किसने ये सब साज सजाये 

अपने आप सभी कुछ करके 

अपना आप छुपाया।”

मुख्यालय एवं नज़दीकी सेवाकेंद्र

Bk radha didi ajmer - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी राधा बहन जी, अजमेर से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। 11 अक्टूबर, 1965 को साप्ताहिक कोर्स शुरू करने के बाद बाबा से पत्राचार हुआ, जिसमें बाबा ने उन्हें ‘अनुराधा’ कहकर संबोधित किया। 6 दिसम्बर, 1965

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Bk vedanti didi

नैरोबी, अफ्रीका से ब्रह्माकुमारी ‘वेदान्ती बहन जी’ लिखती हैं कि 1965 में पहली बार मधुबन आयीं और बाबा से मिलीं। बाबा ने उन्हें पावन बनकर विश्व की सेवा करने का वरदान दिया। बाबा ने वेदान्ती बहन को सफेद पोशाक पहनने

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Bk hemlata didi hyderabad anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी हेमलता बहन ने 1968 में ईश्वरीय ज्ञान प्राप्त किया और तब से अपने जीवन के दो मुख्य लक्ष्यों को पूरा होते देखा—अच्छी शिक्षा प्राप्त करना और जीवन को सच्चरित्र बनाए रखना। मेडिकल की पढ़ाई के दौरान उन्हें ज्ञान और

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Dada chandrahas ji

चन्द्रहास, जिन्हें माधौ के नाम से भी जाना जाता था, का नाम प्यारे बाबा ने रखा। साकार मुरलियों में उनकी आवाज़ बापदादा से पहले सुनाई देती थी। ज्ञान-रत्नों को जमा करने का उन्हें विशेष शौक था। बचपन में कई कठिनाइयों

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Dadi hridaypushpa ji

एक बार मैं बड़े हॉल में सो रही थी परंतु प्रातः नींद नहीं खुली। मैं सपने में देख रही हूँ कि बाबा से लाइट की किरणें बड़े जोर से मेरी तरफ आ रही हैं, मैं इसी में मग्न थी। अचानक

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Bk nalini didi mumbai anubhavgatha

नलिनी बहन, घाटकोपर, मुंबई से, 40 साल पहले साकार बाबा से पहली बार मिलीं। बाबा ने हर बच्चे को विशेष स्नेह और मार्गदर्शन दिया, जिससे हर बच्चा उन्हें अपने बाबा के रूप में महसूस करता था। बाबा ने बच्चों को

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Bk geeta didi batala anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी गीता बहन का बाबा के साथ संबंध अद्वितीय था। बाबा के पत्रों ने उनके जीवन को आंतरिक रूप से बदल दिया। मधुबन में बाबा के संग बिताए पल गहरी आध्यात्मिकता से भरे थे। बाबा की दृष्टि और मुरली सुनते

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Bk trupta didi firozpur - anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी तृप्ता बहन जी, फिरोजपुर सिटी, पंजाब से, अपने साकार बाबा के साथ अनुभव साझा करती हैं। बचपन से श्रीकृष्ण की भक्ति करने वाली तृप्ता बहन को सफ़ेद पोशधारी बाबा ने ‘सर्वधर्मान् परित्यज्य’ का संदेश दिया। साक्षात्कार में बाबा ने

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Bk suresh pal bhai shimla anubhavgatha

ब्रह्माकुमार सुरेश पाल भाई जी, शिमला से, 1963 में पहली बार दिल्ली के विजय नगर सेवाकेन्द्र पर पहुंचे और बाबा के चित्र के दर्शन से उनके जीवन की तलाश पूर्ण हुई। 1965 में जब वे पहली बार मधुबन गए, तो

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Bk amirchand bhaiji

चण्डीगढ़ से ब्रह्माकुमार अमीर चन्द जी लिखते हैं कि उनकी पहली मुलाकात साकार बह्या बाबा से जून 1959 में पाण्डव भवन, मधुबन में हुई। करनाल में 1958 के अंत में ब्रह्माकुमारी विद्यालय से जुड़कर उन्होंने शिक्षा को अपनाया। बाबा का

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