अम्बाला कैंट से पुष्पा माता लिखती हैं कि मैंने सन् 1959 में ज्ञान प्राप्त किया और परिवार सहित ज्ञान में चली जिसमें चार बच्चे भी थे। बचपन से ही भक्ति आदि करती थी और परमात्मा से मिलने की बहुत इच्छा थी। अन्दर में बार-बार संकल्प आता था कि मैं कभी भगवान से मिली थी परन्तु कब, कहाँ, यह पता नहीं था। अन्दर इच्छा रहती थी कि कोई बताये कि कैसे भगवान मिल सकता है।
एक बार घर में एक महात्मा जी आये, उनसे पूछा कि भगवान से कैसे मिल सकते हैं? महात्मा जी ने कहा, अभी तुम छोटी हो। थोड़े दिनों के बाद मालूम हुआ कि आबू से सफ़ेद पोशधारी बहनें आयी हैं और बहुत अच्छा ज्ञान सुनाती हैं। मेरे युगल (पति) के मित्र ने आकर बताया और वह हमको भी आश्रम पर ले गया जहाँ हमको ध्यानी दादी और राधे बहन ने आत्मा, परमात्मा का ज्ञान सुनाया। बस, मुझे तो निश्चय हो गया कि मैं जो चाहती थी वह मिल गया। मुझसे ध्यानी दादी ने निश्चय पत्र लिखने को कहा। मैंने निश्चय पत्र लिखकर बाबा को मधुबन भेज दिया। बाबा का लाल अक्षरों वाला पत्र आया कि ये पक्के हैं, भले आयें। टेप द्वारा बाबा की आवाज़ सुनी तो दिल होती थी कि बाबा से मिलूँ। दिन बीतते गये दिल तड़पता रहा मिलने के लिए। कुछ समय के बाद समाचार मिला कि बाबा दिल्ली आ रहे हैं, यह सुनकर बहुत खुशी हुई। बाबा दिल्ली आये तो मैं और मेरे युगल बाबा से मिलने गये। बाबा से मिले तो ऐसा लगा कि जन्म-जन्म की आश पूरी हो गयी। जब बाबा की दृष्टि मुझ पर पड़ी तो अनुभव हुआ कि बाबा के मस्तक पर शिव बाबा की प्रवेशता हुई और मैं चुम्बक की माफ़िक खिंचकर बाबा की गोद में चली गयी। मुझे यह अनुभव हुआ कि मैं अपने पिता से मिल रही हूँ।
दूसरी बार दिल्ली में प्यारे बाबा मेजर भाई की कोठी पर आये थे। उस समय मैं बाबा से मिलने गयी तो बाबा आँगन में खड़े थे। मैं वहीं बाबा से मिली। उसके बाद मैं अपने शहर आ गयी लेकिन मन में मधुबन जाने की इच्छा बनी रही। एक साल के बाद मधुबन जाना हुआ। मधुबन पहुँचकर सुबह की क्लास में बाबा ने प्रश्न पूछा, बच्ची, किसके पास आयी हो? मैंने कहा, पिता के घर। बाबा ने पूछा, निश्चय है? पहले कब मिली हो? मैंने कहा, हाँ बाबा, कल्प पहले भी ऐसे ही मिली थी। फिर बाबा कमरे में गये। हम भी वहाँ गये। वहाँ ध्यानी दादी ने परिचय दिया कि यह चार बच्चों और युगल सहित ज्ञान में चलती है। बाबा ने कहा, मैंने इसे अपनी एक बच्ची दी है। उस समय मुझे पता नहीं था लेकिन धीरे-धीरे बच्चे बड़े हुए, उनमें से एक बच्ची समर्पित होकर 32 साल से पाटन सेवाकेन्द्र पर सेवा कर रही है। यह मुझे बाद में पता पड़ा कि बाबा ने मुझे अपनी एक बच्ची दी है। बाबा का बनने से ऐसा अनुभव हुआ है कि ‘पाना था सो पा लिया!’ विकट परिस्थितियों में भी बाबा की मदद का अनुभव बहुत हुआ है। बीमारी आदि में भी बाबा की मदद मिली है। ठंडी, गर्मी, बारिश में कभी क्लास मिस नहीं की है। कुछ भी हो सवेरे की क्लास में 44 वर्षों से नित्य जाती हूँ। अब तो बस यही आशा है कि चलते-फिरते बाबा की याद में ही शरीर छूटे।
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