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Bk vijaya didi haryana anubhavgatha

बी के विजया दीदी – अनुभवगाथा

बाबा ने मुझे ‘विद्धान विजय लक्ष्मी’ कहा

जींद, हरियाणा से ब्रह्माकुमारी विजया बहन जी कहती हैं कि मैं बचपन से ही श्रीकृष्ण की भक्ति करती थी। घर में ही गीता, रामायण पढ़ते थे। मेरी पढ़ाई भी गुरु ने गीता से ही शुरू करवायी थी इसलिए गीतापाठ में बहुत श्रद्धा थी। श्रीकृष्ण जी से मिलने की मन में तीव्र इच्छा थी। प्रार्थना भी करती थी, “हे श्रीकृष्ण भगवान, मुझे अपने पास बुला लो। आपने मुझे अपनी दुनिया में क्यों नहीं बुलाया, जहाँ आपके अंग-संग रहने वाले गोप-गोपियों ने इतना अतीन्द्रिय सुख पाया।” मन में यही तीव्र इच्छा बनी रही। हमारे पड़ोस की एक बहन नांगल से यह ज्ञान सुनकर अपने घर आयी थी और साथ में त्रिमूर्ति का चित्र तथा मुरलियाँ लायी थी। एक दिन उस बहन ने त्रिमूर्ति के चित्र में ब्रह्मा बाबा का फोटो दिखाते हुए कहा कि इस ब्रह्मा-तन में शिव परमात्मा आकर यह ज्ञान सुनाते हैं, यह मुरली है।

ब्रह्मा बाबा का चित्र देखते ही ऐसा अनुभव हुआ कि मैं इस बाबा से कई बार पहले भी मिली हूँ और जैसे इन मुरलियों को पढ़ती रही हूँ। चित्र देखते-देखते मैं गुम हो गयी और इस देह की दुनिया को ही भूल किसी दूसरे लोक में पहुँच गयी। ऐसा अनुभव होने के बाद मैं रोज़ उन मुरलियों को पढ़ती रही। बाबा से मिलने की लगन बढ़ती गयी। कुछ समय के बाद लौकिक मात-पिता भी ज्ञान में चलने लगे । बाद में किसी कारण से लौकिक पिता जी विरोध करने लगे। उसी समय दिल्ली में मम्मा आयी थी। पिता जी को मम्मा से मिलने भेजा। मम्मा से मिलकर पिता जी बहुत खुश हो गये । सन् 1960 में गाँव में अपने घर पर ही मुरली पढ़ने लगे। जब बाबा दिल्ली में मेजर भाई की कोठी पर आये तब लौकिक पिता जी के साथ मैं भी बाबा से मिलने गयी। बाबा की दृष्टि पड़ते ही बहुत लाइट-माइट का अनुभव हुआ। सुबह की क्लास में बाबा के सामने ही बैठी थी और एकाग्रता से मुरली सुन रही थी। बाबा के एक-एक बोल अन्दर जा रहे थे और मुझ में शक्ति भर रहे थे। मन आनन्दित हो रहा था। वह दिन कभी नहीं भूलता है और आज भी याद आते ही मन उस आनन्द की दुनिया में खो जाता है। फिर हम बाबा से मिलने कमरे में गये। बाबा की गोद में अलौकिक, पारलौकिक बाबा के बेहद प्यार का अनुभव हुआ, फिर बाबा की दृष्टि ने वतन में उड़ा दिया। दो दिन तक बाबा के साथ मेजर की कोठी पर ही रहे। बाबा मुझे हमेशा मीठी बच्ची, मीठी बच्ची कहते थे। बाबा ने मीठी टोली खिलाते मुझे मीठा बना दिया। उस मीठे वरदान से बाबा सबको मीठेपन का ही अनुभव कराते थे। सन् 1963 में मैं पहली बार मधुबन बाबा से मिलने गयी। एक दिन सुबह की मुरली में बाबा ने कहा कि तुम बच्चे ही विद्वान भी हो, पंडित भी हो। उसी दिन रात्रि को बाबा के साथ भोजन कर रहे थे तो बाबा अपने हाथों से मुझे गिट्टी देते हुए बोले, “बच्ची, तुम पंडित, विद्वान विजय लक्ष्मी हो।” जैसेकि बाबा ने मेरे में विद्वता भर दी। बच्चों के साथ बाबा जब चलते थे तो कभी-कभी खड़े होकर दृष्टि देते थे, तब ऐसे लगता था कि बाबा जैसे दूर-दूर कुछ आत्माओं के जन्मों को परख रहे हैं।

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अनुभवगाथा

Bk nalini didi mumbai anubhavgatha

नलिनी बहन, घाटकोपर, मुंबई से, 40 साल पहले साकार बाबा से पहली बार मिलीं। बाबा ने हर बच्चे को विशेष स्नेह और मार्गदर्शन दिया, जिससे हर बच्चा उन्हें अपने बाबा के रूप में महसूस करता था। बाबा ने बच्चों को

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Bk raj didi nepal anubhavgatha

काठमाण्डु, नेपाल से ब्रह्माकुमारी “राज बहन” जी लिखती हैं कि उनका जन्म 1937 में एक धार्मिक परिवार में हुआ था। भौतिक सुख-सुविधाओं के बावजूद, उन्हें हमेशा प्रभु प्राप्ति की इच्छा रहती थी। 1960 में पंजाब के फगवाड़ा में, उन्हें ब्रह्माकुमारी

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Bk sudha didi burhanpur anubhavgatha

ब्रह्माकुमारी सुधा बहन जी, बुरहानपुर से, अपने अनुभव में बताती हैं कि सन् 1952 में उन्हें यह ज्ञान प्राप्त हुआ। 1953 में बाबा से मिलकर उन्हें शिव बाबा का साक्षात्कार हुआ। बाबा की गोद में बैठकर उन्होंने सर्व संबंधों का

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Dadi bhoori ji

दादी भूरी, यज्ञ की आदिकर्मी, आबू में अतिथियों को रिसीव करने और यज्ञ की खरीदारी का कार्य करती थीं। उनकी निष्ठा और मेहनत से वे सभी के दिलों में बस गईं। 2 जुलाई, 2010 को दादी ने बाबा की गोदी

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Bk kailash didi gujrati anubhavgatha

गाँधी नगर, गुजरात से कैलाश दीदी ने अपने अनुभव साझा किए हैं कि उनकी जन्मपत्री में लिखा था कि वे 25 वर्ष की आयु में मर जाएँगी। 1962 में बाबा के पास जाने पर बाबा ने कहा कि योगबल से

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Bk saroj didi ambala anubhav gatha

ब्रह्माकुमारी सरोज बहन जी, अम्बाला से, अपने आध्यात्मिक सफर का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं कि जब पहली बार ब्रह्माकुमारी आश्रम पहुंचीं, तो त्रिमूर्ति के चित्र और सफेद पोशाक में बाबा को देखकर उन्होंने एक अलौकिक अनुभव किया। यह

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Dadi rukmani ji anubhavgatha 2

रुकमणी दादी, वडाला की ब्रह्माकुमारी, 1937 में साकार बाबा से मिलीं। करांची से हैदराबाद जाकर अलौकिक ज्ञान पाया और सुबह दो बजे उठकर योग तपस्या शुरू की। बाबा के गीत और मुरली से परम आनंद मिला। उन्होंने त्याग और तपस्या

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Dadi manohar indra ji

पहले दिल्ली फिर पंजाब में अपनी सेवायें दी, करनाल में रहकर अनेक विघ्नों को पार करते हुए एक बल एक भरोसे के आधार पर आपने अनेक सेवाकेन्द्रों की स्थापना की। अनेक कन्यायें आपकी पालना से आज कई सेवाकेन्द्र संभाल रही

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Bk laxman bhai anubhavgatha

लक्ष्मण भाई, दिल्ली, मालवीय नगर से, 1933 में करांची में जन्मे। 1958 में ब्रह्माकुमारी ज्ञान प्राप्त किया और बाबा से मिलकर जीवन बदल गया। 1962 में दिव्य विवाह किया और योगी जीवन अपनाया। बाबा की शिक्षाओं ने उन्हें साकार बाबा

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Bk sundari didi pune

सुन्दरी बहन, पूना, मीरा सोसाइटी से, 1960 में पाण्डव भवन पहुंचीं और बाबा से पहली मुलाकात में आत्मिक अनुभव किया। बाबा के सान्निध्य में उन्हें अशरीरी स्थिति और शीतलता का अनुभव हुआ। बाबा ने उनसे स्वर्ग के वर्सा की बात

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