खुली आँखों से राजयोग सीखें — एक ऐसी सरल विधि जो व्यस्त दिनचर्या में भी शांति, जागरूकता और आत्मबल प्रदान करती है।

व्यस्त जीवनशैली में खुली आँखों द्वारा सहज राजयोग

क्या आपने कभी यह इच्छा रखी है कि दिनभर की व्यस्त दिनचर्या के बीच भी आप शांत, संतुलित और एकाग्र रहें? यदि आप अपनी आँखों को हल्के से खुली रखते हुए भी, अपने चारों ओर की हर चीज़ के प्रति पूर्ण जागरूकता बनाए रखते हैं और अपने भीतर गहराई से शांति का अनुभव करते हैं, तब जीवन भीतर से खिलने लगता है — शांत, स्पष्ट और अर्थपूर्ण।

विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं में योगियों और संतों की छवियों में एक मुद्रा विशेष रूप से उभरती है – ध्यान की अवस्था में हल्के खुले नेत्रों से अपने अंदर की यात्रा। आँखें न पूरी तरह बंद, जिससे संसार से कट जाएं, न पूरी तरह खुली, जिससे इंद्रियां भटक जाएं। यह कोमल दृष्टि संयोग से नहीं होती; यह संतुलन का प्रतीक हैसंसार में रहना, पर उससे अलग या उपराम बने रहना। 

राजयोग के इस आध्यात्मिक अंतरात्मा से जुड़ने के अभ्यास में, यह केवल एक शारीरिक मुद्रा नहीं है। बल्कि यह एक नया दृष्टिकोण है; एक नया “देखने व होने” का तरीका है।

बंद आंखों से योग करना; सदियों से अपने अंदर के सत्य को जानने और आत्मिक शांति पाने का माध्यम रहा है। यह अभ्यास हमें बाहरी शोर से दूर ले जाकर, आत्मा की गहराई में स्थिर कर देता है। यह विधि कईयों को आंतरिक शांति देती है। परंतु एक और मार्ग है – खुले नेत्रों की कोमल जागरूकता, जो उसी शांति को जीवन के हर क्षण में अनुभव करा सकती है।

राजयोग हमें यह संभावनाएं देता है कि हम खुली आंखों के साथ योग करें – न केवल संसार को देखने के लिए, बल्कि आत्मिक दृष्टि से देखने के लिए। केवल शांति में बैठने के लिए नहीं, बल्कि शांति में जीने के लिए। यह सूक्ष्म लेकिन प्रभावशाली बदलाव हमारे योगाभ्यास को बैठक तक सीमित न रखकर, जीवन के प्रत्येक क्षण में प्रवाहित करता है — जैसे सामान्य बातचीत, ऑफिस का वातावरण, ट्रैफिक, या घर के छोटे-छोटे काम जैसे बर्तन धोना आदि।

योगाभ्यास में हल्के खुले नेत्रों का रहस्य क्या है? योगियों की यह दृष्टि कोई रहस्यमय मुद्रा मात्र नहीं, बल्कि यह एक शक्तिशाली तकनीक है जो आध्यात्मिक ज्ञान में निहित है। राजयोग में यह अभ्यास आंतरिक शांति और बाहरी जागरूकता के संतुलन को दर्शाता है। आइए जानें क्यों यह विधि है इतनी प्रभावशाली और असरदार:

योगाभ्यास में हल्के खुले नेत्रों का रहस्य क्या है?

योगियों की यह दृष्टि कोई रहस्यमय मुद्रा मात्र नहीं, बल्कि यह एक शक्तिशाली तकनीक है जो आध्यात्मिक ज्ञान में निहित है। राजयोग में यह अभ्यास आंतरिक शांति और बाहरी जागरूकता के संतुलन को दर्शाता है। आइए जानें क्यों यह विधि है इतनी प्रभावशाली और असरदार: 

1. A return to natural awareness open-eye meditation brings attention back to the present moment. It gently reminds the soul: “stay aware. Stay awake. Remember who you are. ” the practice helps us return to our original state of being—peaceful, stable, and loving—while fully engaged in the world.

1. स्वयं की वास्तविक जागरूकता की ओर वापसी

दैनिक जीवन की भाग दौड़ में हमारी आँखें तो खुली होती हैं, लेकिन हमारी चेतना कहीं और होती है। हम अतीत में उलझे होते हैं, भविष्य को लेकर चिंतित होते हैं, या सामने की परिस्थितियों पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे होते हैं। इस अवस्था में, आँखों से देखने के बावजूद भी, हमारे अंदर की दृष्टि धुंधली ही रहती है। 

ऐसे में, अधखुली आँखों के साथ किया जाने वाला मेडिटेशन हमें वर्तमान क्षण में लौटाता है। यह आत्मा को कोमलता से स्मरण कराता है: “सजग रहो। जागरूक रहो। याद रखो तुम कौन हो।” यह अभ्यास हमें संसार में सक्रिय रहते हुए भी हमारी मूल स्थिति – शांत, स्थिरता, और प्रेममयी स्वरूप में वापस लौटाता है।

बंद आंखों द्वारा किया जाने वाला मेडिटेशन भी सुंदर और प्रभावशाली होता है। परंतु हल्के खुले नेत्रों के साथ किया गया योगाभ्यास पूर्णता प्रदान करता है और यह दिनभर, हर कार्य और हर संपर्क के दौरान आत्मचेतना में स्थित रहने की सुंदर कला प्रदान करता है।  

The power of vibrations through the eyes. Through drishti, our inner state radiates to others, silently sharing who we are.

2. दृष्टि: आँखों द्वारा आत्मिक शक्तियों का वरदान

अधखुली आँखों द्वारा योग का सबसे सुंदर पहलू है – हमारी दृष्टि में बदलाव। क्योंकि हमारी आंखें केवल देखने का साधन मात्र नहीं हैं; वे आत्मा की खिड़कियाँ हैं। हमारी दृष्टि से हमारा भीतरी स्वरूप झलकता है।

कल्पना कीजिए: आप किसी के पास बैठे हैं, और बिना शब्दों के ही आप शांत या प्रेम से भरपूर कंपन महसूस करते हैं। यही है दृष्टि की शक्ति। जैसा कि सिखाया जाता है, हमारे विचारों के कंपन निरंतर फैलते रहते हैं। चाहे मन शांत हो या अशांत, हमारे विचार चुपचाप हमारी आंखों के माध्यम से प्रकट होते हैं। जब हम खुली आंखों से राजयोग का अभ्यास करते हैं, तो हम स्वयं को शुद्ध और श्रेष्ठ संकल्पों में दृढ़ता से स्थिर रहना सिखाते हैं — ऐसे संकल्प जो करुणा, सम्मान और शक्ति से परिपूर्ण होते हैं। यही संकल्प हमारी दृष्टि द्वारा दूसरों तक पहुंचते हैं और निःशब्द रूप से उनके हृदय को छू लेते हैं।

यह इस पर नहीं निर्भर करता कि आप क्या देख रहे हैं, बल्कि इस पर कि कैसे देख रहे हैं। राजयोग में, जब हम शांत, पवित्र विचारों को क्रिएट करने का अभ्यास करते हैं, तो हमारे ये कंपन चुपचाप, पर बहुत असरकारी ढंग से हमारी आँखों से दूसरों तक पहुँचते हैं।

घर में, ऑफिस में, समाज में – यह सूक्ष्म ऊर्जा एक निःशब्द सेवा बन जाती है। कुछ करने की ज़रूरत नहीं। जब हम स्वयं को जागरूकता में रखते हैं, तो हम एक प्रकाश स्रोत बन जाते हैं, और इससे उत्पन्न होने वाली सूक्ष्म तरंगें दूसरों के मन को छूकर उन्हें प्रभावित करती हैं।

Meditation which you can live 24x7

3. एक ऐसा योगाभ्यास जिसे 24×7 जिया जा सकता है

अक्सर लोग पूछते हैं: “मेरे पास योग के लिए कुछ मिनट ही हैं, पर मैं दिनभर शांत कैसे रहूँ?” इसका उत्तर है: खुली आँखों से अपने सत्य को जानना। यह कोई लंबे समय तक बैठने का अभ्यास नहीं है, बल्कि यह सोचने, देखने और अपनी आंतरिक स्थिति को महसूस करने के ढंग में एक परिवर्तन लाना है।

इसका अभ्यास आप रसोई में खाना बनाते हुए – मैं शांत आत्मा हूँ। डेस्क पर कार्य करते हुए – परमात्मा मेरे साथ हैं, हर कर्म में मार्गदर्शन कर रहे हैं। बोलते समय – मैं अपने शब्दों और आँखों से प्रेम के वाइब्रेशन फैलाता हूँ। ये छोटे-छोटे आत्म-स्मरण पूरे जीवन की गुणवत्ता को बदल देते हैं।

इस तरह मेडिटेशन का अभ्यास प्रयास नहीं, हमारा स्वभाव बन जाता है। यह कोई कार्य नहीं, जो किया जाए और फिर भुला दिया जाए। यह वही बन जाता है, जो आप सचमुच हैं।

आप मीटिंग में हैं और कोई आपको टोकता है। तो प्रतिक्रिया देने के बजाय, आप एक क्षण रुककर अपने अंदर जाते हैं और स्वयं को याद दिलाते हैं: “मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ। मुझे शांतिपूर्वक उत्तर देना है।” आपकी दृष्टि कोमल और स्थिर रहती है। दूसरे लोग भी उसे महसूस करते हैं। और फिर वही क्षण मेडिटेशन बन जाता है।

राजयोग कैसे सभी के लिए सहज और उपलब्ध है?

अधखुली आँखों द्वारा मेडिटेशन का अभ्यास करने से राजयोगी सीखते हैं कि आत्म-चेतना को बनाए रखते हुए भी जीवन में सक्रिय कैसे रहें। यह हमें सिखाता है कि शांति पाने के लिए संसार से भागना आवश्यक नहीं है।

दैनिक जीवन के उदाहरण:

ऑफिस में:

आप मीटिंग में हैं और कोई आपको टोकता है। तो प्रतिक्रिया देने के बजाय, आप एक क्षण रुककर अपने अंदर जाते हैं और स्वयं को याद दिलाते हैं: “मैं शांत स्वरूप आत्मा हूँ। मुझे शांतिपूर्वक उत्तर देना है।” आपकी दृष्टि कोमल और स्थिर रहती है। दूसरे लोग भी उसे महसूस करते हैं। और फिर वही क्षण मेडिटेशन बन जाता है।

For students it enhances concentration and reduces distractions while studying. A soft gaze helps the mind stay sharp and reduces mental fatigue.

छात्रों के लिए:

पढ़ाई में एकाग्रता बढ़ती है और योग से भटकाव कम होता है। कोमल दृष्टि मानसिक थकान कम करती है और फोकस बनाए रखती है।

बच्चों के साथ: बच्चा गलती करता है। आप गुस्से के बजाय समझदारी से देखते हैं और कहते हैं: "तुम एक पवित्र आत्मा हो, सीखने की यात्रा पर हो।" बच्चा तिरस्कार नहीं, स्वीकृति महसूस करता है। आपकी दृष्टि उसे ऊपर उठाती है।

बच्चों के साथ:

बच्चा गलती करता है। आप गुस्से के बजाय समझदारी से देखते हैं और कहते हैं: “तुम एक पवित्र आत्मा हो, सीखने की यात्रा पर हो।” बच्चा तिरस्कार नहीं, स्वीकृति महसूस करता है। आपकी दृष्टि उसे ऊपर उठाती है।

अकेले में: अकेले होने पर भी, आप स्वयं को याद दिलाते हैं: “मैं ज्योति स्वरूप आत्मा हूँ। मैं प्रेम स्वरूप हूँ। मैं परमात्मा की छत्रछाया में हूँ।” यह कोमल स्मृति साधारण कार्यों में भी आत्मा को पुनः ऊर्जावान कर देती है।

अकेले में:

अकेले होने पर भी, आप स्वयं को याद दिलाते हैं: “मैं ज्योति स्वरूप आत्मा हूँ। मैं प्रेम स्वरूप हूँ। मैं परमात्मा की छत्रछाया में हूँ।” यह कोमल स्मृति साधारण कार्यों में भी आत्मा को पुनः ऊर्जावान कर देती है।

क्या आप भी यह विधि आज़माना चाहेंगे? जानिए कैसे करें राजयोग का यह अनोखा अभ्यास:
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क्या आप भी यह विधि आज़माना चाहेंगे? जानिए कैसे करें राजयोग का यह अनोखा अभ्यास:

  • एक आरामदायक स्थान पर बैठ जाएँ – घर, ऑफिस या खुले स्थान पर कहीं भी।
  • अपनी आँखों को आधा खुला रखें, किसी एक वस्तु पर केंद्रित न करें, बस आसपास की जागरूकता बनाए रखें।
  • आँखें बंद किए बिना, धीरे-धीरे यह आत्म-स्मरण करें: “मैं एक आत्मा हूँ। मैं शांत स्वरूप हूँ। मेरा पिता, परमात्मा, दिव्य प्रकाश बिंदु स्वरूप हैं। उनका प्रकाश मुझे प्रेम और शक्ति से भर देता है।”
  • दूसरों से मिलते समय यह भावना बनाए रखें:वे भी आत्माएँ हैं, उसी परम ज्योति परमात्मा की संतान।”

इसका अभ्यास सुबह करें, और फिर दिनभर में 30 सेकंड के ब्रेक में इसे दोहराते रहें। चलते, बोलते, या खाते समय, बार-बार इस जागरूकता में वापस लौटते रहें।

ओम शांति।

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