
Truly Values the Knowledge or Gyan
So invaluable was Godly knowledge to Baba that he had given clear instructions that the literature thereon should not be
सदियों से समाज में नारी की भूमिका को परंपराओं, संस्कृतियों और गहरे जमे विश्वासों ने इस प्रकार गढ़ा कि उसे हमेशा पृष्ठभूमि में रखा गया। प्राचीन काल में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता था, वह ज्ञान और शक्ति की प्रतीक थी। लेकिन जैसे-जैसे समय बदला, पितृसत्तात्मक संरचनाओं ने अधिकार ग्रहण कर लिए, जिससे नारी की स्वतंत्रता सीमित हो गई, उसकी आवाज़ दबा दी गई और उसका योगदान अनदेखा कर दिया गया।
और तब एक दिव्य प्रकाश प्रकट हुआ — न विरोध के कोलाहल से, न ही क्रांति के संघर्ष से, बल्कि एक दूरस्थ, अदृश्य लोक से, पार ब्रह्मतत्व से। वह निःशब्द, फिर भी शक्तिशाली रूप से अवतरित हुआ, जिसने हृदय और मस्तिष्क को आलोकित कर दिया, यह संकेत देते हुए कि परिवर्तन के एक नए युग का आरंभ होने वाला है।
हर वर्ष, 8 मार्च को, संपूर्ण विश्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाता है—नारी की सहनशक्ति, उपलब्धियों और अधिकारों का सम्मान करते हुए। लेकिन बहुत पहले, 1930 के दशक से ही, ब्रह्माकुमारीज़ आध्यात्मिक आंदोलन नारी सशक्तिकरण के अग्रदूत के रूप में कार्यरत रहा है। उस युग में, जब महिलाओं को अपने भविष्य पर कोई अधिकार नहीं था, ब्रह्माकुमारीज़ ने उन्हें नेतृत्व, शिक्षा और सीमाओं से मुक्त होने का साहस प्रदान किया।
यह उनकी यात्रा है—परिवर्तन, शक्ति और आध्यात्मिक नेतृत्व की कहानी।
1936 में, जब नारी के पास अपने जीवन पर कोई अधिकार नहीं था, तब कुछ अद्भुत घटित हुआ। भारत में एक समूह की महिलाएँ—जो अधिकांशतः युवा, अशिक्षित और रूढ़िवादी परिवारों से थीं—ने समाज की हर पारंपरिक धारा को चुनौती देते हुए नेतृत्व की भूमिका को अपनाया।
ईश्वरीय संकेतों और दृष्टि से प्रेरित होकर, प्रजापिता ब्रह्मा बाबा ने यह अनुभव किया कि सच्चा आध्यात्मिक नेतृत्व किसी एक लिंग तक सीमित नहीं हो सकता। दिव्य योजना में अटूट विश्वास रखते हुए, उन्होंने नारी शक्ति को ब्रह्माकुमारीज़ के भविष्य की जिम्मेदारी सौंपी, उन्हें ज्ञान, बुद्धि और निःस्वार्थ सेवा की मशाल थामने का अधिकार दिया।
यह एक क्रांतिकारी कदम था। उस समय जब महिलाओं को सार्वजनिक रूप से बोलने की भी अनुमति नहीं थी, ब्रह्मा बाबा ने कहा की कि वे ही मानवता की आध्यात्मिक माताएँ और मार्गदर्शक बनेंगी। यह केवल भूमिका देने की बात नहीं थी, बल्कि उनके भीतर निहित शक्ति को पहचानने और स्वीकार करने की थी।
और इन्हीं असाधारण नारियों में कुछ ऐसी भी थीं, जिन्होंने दिव्यता, शक्ति और बुद्धि की नई परिभाषा गढ़ते हुए सच्चे मार्गदर्शक सितारों के रूप में अपनी पहचान बनाई।
कल्पना करें, स्वतंत्रता-पूर्व भारत में एक 16 वर्षीया युवती की—एक ऐसा युग, जहाँ बेटियों से मौन रहने, आज्ञाकारी बनने और घर की चारदीवारी तक सीमित रहने की अपेक्षा की जाती थी। लेकिन इस युवा कन्या, जिसका नाम राधे था (बाद में जो मम्मा, जगदंबा सरस्वती के रूप में जानी गईं), ने कुछ अलग कर दिखाया।
जैसे-जैसे ओम मंडली (प्रारंभिक ब्रह्माकुमारीज़) का विस्तार हुआ, वैसे-वैसे अधिक महिलाएँ आत्म-सम्मान और आध्यात्मिक स्वतंत्रता की खोज में इससे जुड़ने लगीं। लेकिन इस सशक्तिकरण ने समाज में आक्रोश पैदा कर दिया। लोग यह स्वीकार नहीं कर सके कि महिलाएँ ब्रह्मचर्य को अपना रही थीं और पारंपरिक भूमिकाओं से आगे बढ़ रही थीं। झूठी अफवाहें फैलाई गईं, हिंसक विरोध हुआ, और उन्हें बंद करने के लिए कानूनी कार्रवाई तक की गई।
इन सब चुनौतियों के बीच, मम्मा अडिग रहीं। इतनी छोटी उम्र में भी उन्होंने अटल साहस का परिचय दिया। उन्होंने विरोध, आलोचना और धमकियों का सामना किया, फिर भी उनका चित्त शांत और निडर बना रहा।
प्रतिक्रिया देने के बजाय, उन्होंने शांति और विश्वास की किरण बिखेरी। यहाँ तक कि उनके आलोचक भी अंततः उनके प्रशंसक बन जाते। लोग कहते—
“यह साधारण नारी नहीं, यह तो दिव्य शक्ति है।”
मम्मा की बुद्धि और शक्ति को पहचानकर, ब्रह्मा बाबा ने उन्हें नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी। वे यज्ञ माता जगदंबा बनीं और ब्रह्माकुमारीज़ की प्रथम पीढ़ी की शिक्षिकाओं को मार्गदर्शन व प्रशिक्षण देने लगीं।
अपनी उच्च स्थिति के बावजूद, वे सदा विनम्र रहीं—सभी के लिए सच्ची मातृशक्ति। स्वयं ब्रह्मा बाबा ने कहा:
“यदि आध्यात्मिक शक्ति को देखना हो, तो मम्मा को देखो।”
इसी कारण, ब्रह्मा बाबा ने मम्मा को “जगदंबा सरस्वती” नाम दिया, क्योंकि वे माँ सरस्वती के गुणों की सजीव मूर्ति थीं—ज्ञान और पवित्रता की देवी। उनकी बुद्धि अद्भुत थी, आध्यात्मिक ज्ञान की गहरी समझ थी, और ईश्वरीय शिक्षाओं को स्पष्टता व मधुरता से समझाने की स्वाभाविक क्षमता थी।
उनके शब्दों में आत्माओं को चिकित्सित करने, उठाने और परिवर्तन करने की शक्ति थी, जैसे सरस्वती देवी दिव्य ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए जानी जाती हैं।
1965 में मम्मा ने अपने शारीरिक जीवन की यात्रा पूर्ण की, लेकिन उनकी विरासत आज भी प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है। उन्होंने उस नींव को सुदृढ़ किया, जिस पर एक ऐसा आध्यात्मिक आंदोलन खड़ा हुआ, जो आज 110 से अधिक देशों में विस्तारित हो चुका है।
आज भी वे प्रेम और श्रद्धा से “मम्मा” कहलाती हैं—सिर्फ़ एक उपाधि के रूप में नहीं, बल्कि दिव्य प्रेम और शक्ति के प्रतीक रूप में।
उनकी कहानी केवल इतिहास नहीं, अपितु एक शाश्वत प्रेरणा है।
चिंतन:
सच्ची मातृत्व भावना का अर्थ आपके लिए क्या है?
क्या यह केवल जन्म देने तक सीमित है, या निःस्वार्थ प्रेम और पालना देने का भाव ही मातृत्व है?
आपके जीवन में कौन ऐसा रहा है जिसने “मम्मा” की भूमिका निभाई?
जब मम्मा ने अपनी शारीरिक यात्रा पूर्ण की, तो इस निरंतर बढ़ते आध्यात्मिक परिवार के नेतृत्व की ज़िम्मेदारी दादी प्रकाशमणि पर आई। पहली नज़र में वे एक सहज, विनम्र महिला प्रतीत होती थीं, लेकिन उनकी सरलता के भीतर पर्वत जैसी अडिग शक्ति समाई हुई थी।
दादी प्रकाशमणि को “प्रकाश का रत्न” कहा जाता था। क्यों? क्योंकि जैसे हीरा प्रचंड दबाव में तपकर निखरता है, वैसे ही वे भी कठिनतम समय में सबसे अधिक प्रकाशित हुईं।
1969 में जब ब्रह्मा बाबा ने अपनी शारीरिक यात्रा पूरी की, तो कई लोगों के मन में प्रश्न उठा—अब क्या होगा? संस्थापक चला गया, और संसार इस परिवर्तन को देख रहा था।
परंतु दादी प्रकाशमणि अडिग रहीं।
उन्होंने सबको एकत्र किया और सशक्त स्वर में कहा:
“बाबा गया नहीं है। वे हमारे साथ हैं। और हमारा लक्ष्य जोकि विश्व सेवा है वो तो अब प्रारंभ हुआ है।”
दादी प्रकाशमणि के नेतृत्व में, ब्रह्माकुमारीज़ ने भारत की सीमाओं को पार कर विश्व के कोने-कोने तक अपनी आध्यात्मिक ज्योति फैलाई। उन्होंने विश्व नेताओं से मुलाकात की, अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भाषण दिए, फिर भी उनकी विनम्रता अटूट बनी रही—वे कभी नहीं भूलीं कि उनका पहला कर्तव्य सेवा था।
उनका प्रेम एक नदी के समान था—जो निरंतर बहती रही, हर उस आत्मा की प्यास बुझाती रही जो उनके पास आई।
दादी प्रकाशमणि ने ब्रह्माकुमारीज़ को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने में अहम भूमिका निभाई। उनके नेतृत्व में यह संगठन वैश्विक स्तर पर विस्तृत हुआ, जिससे इसकी आध्यात्मिक सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त हुई।
उनकी सबसे विशेष उपलब्धियों में से एक थी संयुक्त राष्ट्र (UN) से आधिकारिक मान्यता प्राप्त करना, जिससे ब्रह्माकुमारीज़ संयुक्त राष्ट्र से संबद्ध एक गैर-सरकारी संगठन (NGO) बनीं।
इस ऐतिहासिक मान्यता ने सिद्ध किया कि आध्यात्मिकता न केवल व्यक्तिगत उत्थान बल्कि वैश्विक शांति और सामाजिक परिवर्तन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। आज, ब्रह्माकुमारीज़ संयुक्त राष्ट्र के विभिन्न कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से योगदान देती हैं, विशेष रूप से नारी सशक्तिकरण, सतत विकास और शांति स्थापना के क्षेत्रों में।
चिंतन:
क्या आपने कभी ऐसा क्षण अनुभव किया है जब आपको अप्रत्याशित रूप से जिम्मेदारी लेनी पड़ी, भले ही आप तैयार महसूस न कर रहे हों?
आपने वह शक्ति कहाँ से प्राप्त की?
वे अजेय थीं। जिस उम्र में लोग विश्राम लेना पसंद करते हैं, उस उम्र में दादी जानकी महाद्वीपों की यात्रा कर रही थीं, व्याख्यान दे रही थीं, विशिष्ट व्यक्तित्वों से मिल रही थीं और अनगिनत जीवनों को रूपांतरित कर रही थीं।
उन्होंने एक मूल सिद्धांत को अपनाया:
“शुद्ध मन ही संसार की सबसे शक्तिशाली शक्ति है।”
यह केवल आध्यात्मिक अनुभव नहीं था—विज्ञान भी उनकी मानसिक शक्ति से चकित था।
1978 में, यूएसए के टेक्सास स्थित मेडिकल एंड साइंस रिसर्च इंस्टीट्यूट में वैज्ञानिकों ने उनके मस्तिष्क पर शोध किया और घोषणा की:
“हमने आज तक इतना स्थिर और शांत चित्त कभी नहीं देखा।”
वह अक्सर कहा करती थीं:
“चिंता क्यों करें? यदि आपका बाबा (परमात्मा) में अटूट विश्वास है, तो सब कुछ ठीक हो जाएगा। अपना हृदय स्वच्छ रखो, जीवन स्वयं सहज हो जाएगा।”
यही था उनकी असीम ऊर्जा का रहस्य—एक ऐसा हृदय जो हर बोझ से मुक्त था।
चिंतन:
क्या आप किसी ऐसी बात को पकड़े हुए हैं जो आपको बोझिल बना रही है?
क्या आप इसे सिर्फ आज के लिए छोड़ सकते हैं?
एक ऐसा संसार, जहाँ नेतृत्व अक्सर शब्दों और कर्मों से आँका जाता है, वहाँ दादी गुलज़ार ने मौन के माध्यम से नेतृत्व किया—एक ऐसा मौन जो इतना गहरा था कि जो भी उनके समीप आता, वह शांति का अनुभव करता।
वे एक स्थिर जलाशय के समान थीं—जिसमें दिव्य ज्ञान, पवित्रता और अडिग स्थिरता प्रतिबिंबित होती थी।
जहाँ कुछ लोग आधिकार से नेतृत्व करते हैं, वहाँ दादी गुलज़ार ने मृदुता, शांति और आध्यात्मिक उपस्थिति से मार्गदर्शन किया।
उनकी सबसे महान सेवा थी अव्यक्त ब्रह्मा बाबा और शिव बाबा के आध्यात्मिक माध्यम के रूप में सेवाएँ निभाना—एक ऐसा दायित्व, जिसके लिए अत्यंत पवित्रता, स्थिरता और परमात्मा की इच्छा के प्रति सम्पूर्ण समर्पण आवश्यक था।
उनके माध्यम से, बाबा के दिव्य संदेश ब्रह्मा बाबा की शारीरिक यात्रा के पश्चात भी निरंतर प्रवाहित होते रहे, जिससे लाखों आत्माओं को मार्गदर्शन प्राप्त हुआ। फिर भी, इतनी पवित्र और उच्च भूमिका निभाने के बावजूद, वे सदैव निर्मल, न्यारी और परमात्मा से गहराई से जुड़ी हुई रहीं।
वे अक्सर कहती थीं:
“अंतर में जाओ। अपने सत्य को खोजो। मौन में ही परमात्मा की आवाज़ सुनाई देती है।”
और वास्तव में, उनकी आंतरिक स्थिरता में वह शक्ति थी, जो दूसरों के मन के कोलाहल को भी शांत कर देती थी।
सिर्फ़ उनकी उपस्थिति में रहना भी एक गहरे शांति के अनुभव में ले जाता था—मानो संसार का शोर उनके मौन के सागर में विलीन हो जाता।
मधुबन, जो ब्रह्माकुमारीज़ का आध्यात्मिक मुख्यालय है, वहाँ दादी गुलज़ार ने एक ऐसा वातावरण निर्मित किया जो पूर्ण शांति, गहन योग और दिव्य संबंध से ओतप्रोत था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि यह स्थान आत्माओं के लिए एक आध्यात्मिक तीर्थ, एक मौन और ईश्वरीय अनुभव का धाम बना रहे।
वे कभी भी प्रसिद्धि या पहचान की इच्छुक नहीं थीं—बल्कि उनकी मौन उपस्थिति ही शब्दों से अधिक प्रभावशाली थी।
2021 में जब उन्होंने अपनी शारीरिक यात्रा पूर्ण की, तब भी उनकी विरासत अमर बनी रही—शांति, समर्पण और आत्म-अभिमानी जीवन की प्रेरणा के रूप में।
उन्होंने सिद्ध किया कि सच्चा नेतृत्व सुना जाने के बारे में नहीं है, बल्कि ऐसा वातावरण बनाने के बारे में है, जहाँ आत्माएँ परमात्मा की आवाज़ सुन सकें।
25 मार्च 1925, हैदराबाद, सिंध में जन्मी दादी रतन मोहिनी ने बाल्यकाल से ही आध्यात्मिकता के प्रति गहरी रुचि दिखाई। मात्र 12 वर्ष की आयु में, जब उन्होंने ओम मंडली (जो आगे चलकर प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय बना) का दर्शन किया, तो यह उनके जीवन का एक निर्णायक मोड़ बन गया।
दिव्य दृष्टि से प्रेरित होकर, उन्होंने अपना जीवन आध्यात्मिक सेवा और ब्रह्मचर्य के लिए समर्पित कर दिया, और राजयोग की शिक्षाओं को सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ अपनाया।
अपने आध्यात्मिक सफर में, दादी रतन मोहिनी ने ब्रह्माकुमारीज़ के वैश्विक विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
1954 में, उन्होंने जापान में आयोजित वर्ल्ड पीस कॉन्फ्रेंस में संगठन का प्रतिनिधित्व किया और आगे चलकर हांगकांग, सिंगापुर और मलेशिया में आध्यात्मिक सेवाओं का विस्तार किया।
वे मुंबई और लंदन सहित अनेक देशों में ब्रह्माकुमारीज़ के केंद्रों की स्थापना और सशक्तिकरण में भी सहायक रहीं।
आज, दादी रतन मोहिनी ब्रह्माकुमारीज़ की मुख्य प्रशासिका के रूप में अपनी शांति, प्रेम और दिव्यता की सौ वर्षीय यात्रा को निरंतर आगे बढ़ा रही हैं, और पूरे विश्व में करोड़ों आत्माओं को मार्गदर्शन और प्रेरणा दे रही हैं।
आज, 30,000 से अधिक महिलाए एक ऐसे संगठन को संचालित कर रही हैं, जिसमें 110 से अधिक देशों में दस लाख से भी अधिक विद्यार्थी जुड़े हुए हैं।
वे राजयोग सेवाकेंद्रों का संचालन, आध्यात्मिक ज्ञान की शिक्षा, सामाजिक सेवाओं का प्रबंधन, और लाखों आत्माओं को शांति के मार्ग पर अग्रसर कर रही हैं।
और क्यों?
यह सशक्तिकरण कोई साधारण परिवर्तन नहीं था—यह स्वयं परमात्मा (निराकार शिव) की योजना थी, जिसे ब्रह्मा बाबा ने मूर्त रूप दिया।
जब संसार ने कहा:
“नारी नरक का द्वार है”
तब ब्रह्मा बाबा ने दृढ़ता से कहा की:
“नारी स्वर्ग का द्वार है।”
और आज, यह आध्यात्मिक नारी सेना उनके शब्दों को सत्य सिद्ध कर रही है।
आज ब्रह्माकुमारीज़ में विभिन्न क्षेत्रों से आई महिलाएँ स्पष्टता और उद्देश्य के साथ अपना जीवन जी रही हैं। वे नई ऊँचाइयों को पाने का संकल्प रखती हैं और शक्ति व जिम्मेदारियों को आध्यात्मिकता के साथ संतुलित कर रही हैं।
ब्रह्माकुमारीज़ आंदोलन एक जीवंत प्रमाण है कि जब नारी को केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से सशक्त किया जाता है, तो क्या संभव हो सकता है।
उन्होंने अपने अधिकारों की माँग नहीं की।
बल्कि, वे इतनी शक्तिशाली बन गईं कि संसार को उन्हें स्वीकार करना ही पड़ा।
यह केवल ब्रह्माकुमारीज़ की कहानी नहीं है।
यह हर उस नारी की कहानी है, जिसे कभी यह कहा गया कि वह कमजोर है—
और जिसने संसार को गलत साबित कर दिखाया।
और यह कहानी अभी भी लिखी जा रही है।
अंतिम चिंतन: आप अपनी कहानी कैसे लिखेंगे?
ओम शांति।
So invaluable was Godly knowledge to Baba that he had given clear instructions that the literature thereon should not be
ये वृतान्त सन् 1953 का है। तब इस ईश्वरीय विश्व विद्यालय का मुख्यालय भरतपुर के महाराजा की ‘बृजकोठी’ में स्थित
मानसिक बीमारी शारीरिक बीमारी से कई गुना हानिकारक होती है। भगवान शिवपिता का सिखाया हुआ सहज राजयोग मानसिक विकारों को
Brahma Baba’s life and acts have left, in the minds of those who came in touch with him, very happy
खुली आँखों से राजयोग सीखें — एक ऐसी सरल विधि जो व्यस्त दिनचर्या में भी शांति, जागरूकता और आत्मबल प्रदान
In a world where leadership was once dominated by men, women’s leadership in Brahma Kumaris emerged as a revolutionary force.
क्या आपके डर आपके अपने हैं या वे पिछले जन्मों से आए हैं? जानिए पिछले जन्मों का प्रभाव आपके डर,
प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के साकार संस्थापक पिताश्री प्रजापिता ब्रह्मा के नाम से आज जन-जन भिज्ञ हो चुका है।
जल – जन अभियान धरती के समस्त प्राणियों, वनस्पतियों एवं जीव-जन्तुओं में जीवन-शक्ति का संचार करने वाली जल की बूंदे
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18th January, Smriti Divas (Day of Remembrance) is one of the most celebrated occasions across all the centres of Brahma
आज किसान खेती के अवशेषों को जलाते हैं माना माँ धरती की चमड़ी को ही जला देते हैं। जिससे धरती
शिक्षक दिवस पर विशेष: जानिए कैसे परमात्मा, हमारे परम शिक्षक, जीवन की हर चुनौती में हमें मार्गदर्शन करते हैं। आदर्श
एक बाबा ही हमारा संसार है। गीत के थोड़े-थोड़े शब्दों में भी बहुत दफा बहुत ज्ञान भरा हुआ रहता है।
प्रकृति का शाश्वत नियम है रात के बाद दिन और दिन के बाद रात आने का। ठीक उसी तरह जब-जब
When we mention the birth place of Brahma Baba, we say that he had his physical birth in Sindh. But,
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क्या सदा रहने वाली प्रसन्नता संभव है? सच्ची प्रसन्नता बाहरी चीज़ों में नहीं, बल्कि हमारे भीतर है! जानिए कैसे योग,
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